**जाने किसकी दुआ रंग ला रही है ,
ख्वाबों के गुलिस्तान की क्यारियों से
भीनी सी ,और मीठी सी सुगन्ध आ रही है *।
" मैंने ख्वाबों में जो सपने बुने थे
उन सपनों में मेरी वफ़ा शायद रंग
ला रही है "।
*ख्वाबों के सच होने का ना मुझको
यकीन था ,ख्वाबों को देखना ,निंद्रा
में आना ,फिर टूट जाने पर यकीन था* ।
*मेरे ख्वाबों में निष्फल कर्म का अर्श था।
आत्मा की आवाज़ को परमात्मा का संदेश
जान बस कर्म करते रहने का जज़्बा था।
शायद वही जस्बा ए कर्म ,मुझे रास आ गया
दरिया की तरह में भी बहता रहा ।*
*आत्मा का परमात्मा से सम्बंध हो गया
जो उसका था सब मेरा हो गया ।
मेरा जीवन सफ़ल हो गया ।
सफ़ल हो गया* ।।