** स्वतन्त्रता दिवस की शुभ बेला **

        **"स्वतन्त्रता दिवस की शुभ बेला "**
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        स्वतन्त्रता दिवस की शुभ बेला
        मन में उत्साह हृदय परफुल्लित
     
        आजादी की सतरवीं वर्षगाँठ
        पन्द्रह अगस्त उन्नीस सौ सैतालिस।
     
         हमारा देश भारत अंग्रेजों की गुलामी
         की जंजीरो से आजाद हुआ था।
     
         आजादी का प्रतीक झण्डा हमारे देश
         की मान शान अभिमान तिरंगा
         आत्मसम्मान तिरंगा ,न कुछ ऐसा
         करें  की अपमानित हो तिरंगा।
     
         हाँ आज हम स्वतन्त्र हैं ।
         सतंत्रता है,हम कुछ भी करें
         विचारों की व्यवहारों की ,
         अपना लक्ष्य चुनने की स्वतन्त्रता
         आज हम किसी भी तरह परतन्त्र नहीं
         यहां तक की मतदान द्वारा देश का नेता
         चुनने की स्वतन्त्रता।
       
         भव्य आलिशान मकान
         बनाने की स्वतन्त्रता
       
        पर इस स्वतन्त्रता का अनुचित
        लाभ उठाना उचित नहीं ।
     
         देश आपका है, फिर क्यों आपके
         देश की सड़कों पर जगह जगह
         कूड़े का ढेर पड़ा मिलता है ,
         भारत वासी कहते हैं आज हम
         स्वतन्त्र हैं ,क्या स्वतंत्रता सिर्फ अपने
         निजी स्वार्थ के लिये है, अपने घरों का
         कूड़ा बहार देश की सड़कों पर फैकने की है
          अजी आप लोग तो स्वार्थी हो गये ।
     
         अजी स्वतन्त्रता सिर्फ आपकी निजी नहीं ,
         देश की स्वतन्त्रता के लिये निस्वार्थ बलिदान
         को भारत माँ भूल नहीं सकती ।
 
        आज स्वतन्त्रता दिवस के दिन प्रण हैं लेते
        निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर अपने देश को
        स्वच्छ ,रामरणीय ,व् समृद्ध बनाये ।।।।।
       
   
     






       
   
     
        

"मौन"

     "मौन"

    सुनी सुनायी बातों को तो
   अक्सर लोग सुनते हैं
कुछ याद रखते हैं कुछ
भूल जाते हैं।
पर मौन की भाषा जो समझ
जाते है।वो ख़ास होते हैं ।
क्योंकि ?
खामोशियों में ही अक्सर
गहरे राज होते है ।
जुबाँ से ज्यादा मौन की भाषा
में कशिश होती है ।

जब तक मैं बोलता रहा
किसी ने नहीं सुना ।
कई प्रयत्न किये ,
अपनी बात समझाने
की कोशिश करता रहा
चीखा चिल्लाया गिड़ गिड़ा या
प्यार से समझाया, हँस के रो के
सारे प्रयत्न किये पर कोई समझ
न पाया ।

पर अब मै मौन हूँ ।
किसी से कुछ नहीं कहता
ना कोई शिकवा ना शिकायत ।

पर अब बिन कहे सब मेरी
बात समझ जाते जाते हैं
लोग कहते हैं,कि मेरी खानोशी
बोलती है।
अब सोचता हूँ व्यर्थ बोलता रहा
मौन में तो बोलने से भी ज्यादा
आवाज होती है।


"सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हामारा "

      "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा"


    मेरे  देश का तिरंगा
आकाश की ऊँचाइयओं
में बड़ी शान से लहरा रहा है ।

सुख समृधि और शांति के गीत
गुनगुना रहा है ।

अज्ञान का अन्धकार अब छंट गया है
ज्ञान के प्रकाश का उजियारा अब प्रकाश
फैला रहा है ।

सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा
की बातें अब सच हो रही हैं ।

प्रेम की मीठी भाषा से हमने सबके दिलों
में जगह बना ली है ।

विश्व कौटूमबकम "अनेकता में एकता" की
नींव मजबूत कर डाली है ।

अपनी सबसे मित्रता नहीं किसी से वैर
स्वर्णिम युग की स्थापना
सतयुग फिर से आ रहा
धरा फिर से बन रही स्वर्ग
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा
तिरंगा लहरा रहा हर्षित
प्रफुल्लित सहर्ष ।।

" भारत माता की जय "

 
     "मेरा भारत महान"
   
     "माँ भारत माता की जय"
  सरल स्वभाव मीठी वाणी ,
आध्यमिकता के गूंजते शंख नाद यहाँ


अनेकता में एकता का प्रतीक मेरा भारत देश महान ,
विभिन्न रंगों के मोती हैं  ,फिर भी माला अपनी एक हैं


मेरे देश का अद्भुत वर्णन ,मेरी भारत माँ का मस्तक हिमालय के ताज से सुशोभित


सरिताओं में बहता अमृत यहाँ,
जड़ी -बूटियों संजिवनियों का आलय


प्रकृति के अद्भुत श्रृंगार से सुशोभित
मेरा भारत देश महान ,अपने देश की महिमा का क्या करूं व्याख्यान।


जी चाहे मैं हर जन्म में बन देश का रक्षा प्रहरी शीश पर शीश झुकाऊँ।


देश की खातिर प्राणों की बलि चढाऊँ, भारत माँ की शान में जो दुश्मनों की आँख भी उठ जाए।


तो उन्हें"   छटी का दूध" याद दिलाऊँ दुश्मन " दाँतों तले ऊँगली दबाएँ" " उल्टे पाँव घर लौट जाएँ "।


भारत माँ की आन में, भारत की शान बन जाऊँ
मैं अपनी मातृ भूमि भारत माँ का माँ जैसा ऊँचा सम्मान करूँ ।।


मैं भारत माँ का माँ के जैसा  सम्मान करूँ।
"भारत माँ की जय "   "मेरा भारत महान"।।


 






















"ये कौन चित्रकार है"

  "  ये कौन चित्रकार है "

सच मे प्रकृति का चित्रकार स्वयं
कितना सुन्दर होगा ।जिसने प्रकृति को
इतना सुन्दर रूप दिया है ।

विशाल पर्वत,वृक्ष नादियाँ,झरने
अन ,जल,   पुष्प जड़ी -बूटियाँ
 और मौसम के विभिन्न अवतार
    सच में ये कौन चित्रकार है ,


ग्रीष्म की उषणता से राहत दिलाने आया है ,
 मौसम सावन का प्रकृति आनन्दित है ,
 प्रफुल्लित पुलकावली ,मेघ मल्हार गा रहे
 प्रकृति स्वयं अपना श्रृगार कर रही ।
 बादल भी आँख मीचौली कर रहे ,
धरती पर अपना बसेरा कर रहे
फिर फिर छम छमा छम बरस रहे

" पहचान मेरी "

  "पहचान मेरी "

हाँ मैं यूँ ही इतराता हूँ ।
खुद पर नाज भी करता हूँ।

अपनी खेती मैं करता हूँ
शुभ संकल्पों के बीज मैं बोता हूँ ।

क्यों कहूँ मैं कुछ भी नहीं
मैं किसी से कमतर नहीं ।

मुझ से ना पूछो मेरी पहचान
मैं क्यों किसी के जैसा बनूँ ।

क्यों ना मैं जैसा स्वयं चाहता हूँ
    वैसा बनूँ।
मैं जैसा हूँ ,मैं वैसा ही हूँ ।

मैं तो बस अपने जैसा हूँ
नहीं मुझको करना है मेकअप।

नहीं बनना मुझे किसी के जैसा
मेरा अस्तित्व मेरी पहचान।

मेरे कर्म बने मेरी पहचान
मुझसे ना छीनो पहचान मेरी ।

कर्मो की खाद मे मैंने शुभ संकल्पों
      के बीज मैंने डालें है
आने वाले कल मैं जो खेती होगी
उससे समस्त वसुंधरा पोषित होगी
मेरी जीवन यात्रा तब स्वर्णिम होगी
    और मेरी पहचान पूरी होगी ।।।।।।।






**फरिश्ता ऐ आसमान **

 धरती पर फरिश्ता ऐ ,
 आसमान होते हैं।
 माँ बाप तो दुआओं की खान होते है । 
जीवन के हर मोड़ पर 
कवच की तरह माँ बाप 
सुरक्षा की ढाल होते हैं।

हर दर्द की दवा होते हैं 
फल फूलों से लदे वृक्ष और 
ठण्डी छाँव होते हैं ।

अनकहे शब्दों की अरदास होते हैं।

माँ बाप के ना होने का दर्द,
एक अनाथ बच्चे से पूछो,
बेटा सुनने को जिसके कान तरसते हैं।।



आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...