" पहचान मेरी "

  "पहचान मेरी "

हाँ मैं यूँ ही इतराता हूँ ।
खुद पर नाज भी करता हूँ।

अपनी खेती मैं करता हूँ
शुभ संकल्पों के बीज मैं बोता हूँ ।

क्यों कहूँ मैं कुछ भी नहीं
मैं किसी से कमतर नहीं ।

मुझ से ना पूछो मेरी पहचान
मैं क्यों किसी के जैसा बनूँ ।

क्यों ना मैं जैसा स्वयं चाहता हूँ
    वैसा बनूँ।
मैं जैसा हूँ ,मैं वैसा ही हूँ ।

मैं तो बस अपने जैसा हूँ
नहीं मुझको करना है मेकअप।

नहीं बनना मुझे किसी के जैसा
मेरा अस्तित्व मेरी पहचान।

मेरे कर्म बने मेरी पहचान
मुझसे ना छीनो पहचान मेरी ।

कर्मो की खाद मे मैंने शुभ संकल्पों
      के बीज मैंने डालें है
आने वाले कल मैं जो खेती होगी
उससे समस्त वसुंधरा पोषित होगी
मेरी जीवन यात्रा तब स्वर्णिम होगी
    और मेरी पहचान पूरी होगी ।।।।।।।






**फरिश्ता ऐ आसमान **

 धरती पर फरिश्ता ऐ ,
 आसमान होते हैं।
 माँ बाप तो दुआओं की खान होते है । 
जीवन के हर मोड़ पर 
कवच की तरह माँ बाप 
सुरक्षा की ढाल होते हैं।

हर दर्द की दवा होते हैं 
फल फूलों से लदे वृक्ष और 
ठण्डी छाँव होते हैं ।

अनकहे शब्दों की अरदास होते हैं।

माँ बाप के ना होने का दर्द,
एक अनाथ बच्चे से पूछो,
बेटा सुनने को जिसके कान तरसते हैं।।



** मेघ मल्हार **

        "मेघ मल्हार "

मेघों ने मल्हार है गया
रिम-झिम,रिम-झिम वर्षा
से सिंचित हो गया प्रकृति
का श्रृंगार निराला ।
मौसम भी क्या खूब है ,आया

कभी धूप ,कभी छाया,तो
कभी पल भर मे छा जाते,
नील गगन में हर्षोल्लास
के बादल।

और भीग जाते पल भर मे
 वर्षा से सबके आँगन
वसुन्धरा हुयी प्रफुल्लित
वृक्षों पर नयी कोपलें पुलकित।

 फल फूलों से समृद्ध                              
 प्रकृति हो रही है हर्षित।

 वसुन्धरा पर समृद्ध हर कंधरा।
 मोर  मोरनी निर्त्य कर रहे
 पक्षी भी चहक लगे हैं अब तो
आओ हम सब मिल मंगल गान गायें
 गीत ख़ुशी के गुनगुनायें
 झुला झूलें ,नाचे गायें ।।


" राम नाम धन "

      " राम नाम धन "



    सिमरन ,सिमरन सिमरन
   नाम धन जो मैंने पाया,
मैंने तो मानों संजीवनी
खजाना पायो ।

सुमधुर सुरमयी
रूप माधुरी स्वरूप
तुम्हारो मनमोहिनी
नज़र हटे ना,नजर झुके ना
हर पल तुमको निहारूं।

जब कोई प्रभु  दिल से पुकारूं
तुम तब-तब  उसको जीवन सवारों

तुम ही जग के पलानहार
तुम ही सबको पार उतारो
तुम सबके दिल की जानो


तुम हो जो पुष्पों में सुगन्ध
प्रकृति में ज्यों प्राणवायु
आकाश में विद्युत तरंगे ।

भाव प्रेम और श्रद्धा हो तो
बड़ी सरलता से तुम मिल जाते
तर्क-वितर्क हो तो ना कोई तुमको
जाने ना पहचाने ।


मिलते तुम प्रभू उसी को
जो निर्मल मन से तुम्हें पुकारे ।


"करें योग निरोग रहें "

    " करें योग निरोग रहें "
आलस्य को त्यागो
मेरे मित्रों अब तो जागो।

कब तक कडवी गोलीयाँ
निगलोगे । तन में रसायनों
का ज़हर भरोगे ।

करो योग रहो निरोग
योग से कट जातें हैं रोग।

यह है शुभ संयोग ,प्राचीन काल
से भरतीय परम्परा में योग का
है शुभ संयोग ।

आधुनिकता वाद के इस काल मे
जहाँ मशीनों की तरह भाग रहा है मानव
श्स्वन तंत्र में घुल रहा है जहर
आओ इस जहर को बाहर निकले ।

प्रतिदिन योग का समय निकालें
करें योग रहें निरोग ।।

*** जीतना सीखें****

           * जितना सीखें*

कई बार ऐसा होता है की हमें किसी भी कार्य में सफलता हासिल नहीं होती । हमारी जी तोड़ मेहनत के बावजूत हमें अपनी मंजिल नहीं मिलती ,हम अन्दर से बुरी तरह टूट जाते हैं हर रास्ता अपना लिया होता कोई और रास्ता नजर नहीं आता।

हम निराशा के घने अन्धकार में घिरने लगते हैं,हमारा किसी काम में दिल नहीं लगता ।हम स्वयं को निठल्ला समझने लगते हैं यहाँ तक की दुनियाँ वाले भी हमें बेकार का या किसी काम का नहीं है ,समझकर दुत्कारते रहते हैं
और यही निराशा हमें बुरी तरह से तोड़ कर रख देती है।
और हम आत्महत्या तक के बारें में तकसोचने लगते हैं

1. सबसे पहले तो अपनी हार से निराश मत होइये

2, हार और जीत तो जीवन के दो पहलू हैं ।

3.हार की वजह ढूंढने की कोशिश करिये ।

4.अगर फिर भी सफलता नहीं मिलती तो रास्ता बदल लिजीये।

5.प्रत्येक व्यक्ति की अपनी अलग पहचान होती है

6.सारे गुण एक में नहीं होते ,अपनी विशेषता पहचानिये।

7.आप में जो गुण है उसे निखारिये अपना सौ प्रतिशत लगा दीजिये सफलता निश्चित
 आपके कदम चूमेगी ।

8.बार -बार प्रयास करने पर भी अगर किसी काम में सफलता नहीं मिल रही है तो काम करने का तरीका बदल कर देखिये ।

9.नकारात्मक विचार जब भी आप पर हावी होने लगें तो तुरन्त अपने विचार बदल लीजिये ।

10 हमेशा सकारात्मक सोचिये ।और कभी भी किसी के जैसा बनने की कोशिश मत करिये ।

11.आप अपने स्वभाव में जियें और अपने आन्तरिक गुणों को पहचान कर उन्हें निखारिये।

12.अपने रास्ते खुद बनाईये।

13. कभी भी लकीर के फ़कीर मत बनिये ।

14. हमेशा अच्छा सोचिये ।

15.अपनी नयी पहचान बनाइये अपने रस्ते अपनी मंजिले स्वयं तैयार कीजिये ।

16.याद रखिये चलना तो अकेले ही पड़ता है ,सफलता पाने के लिए ।

16.दुनियाँ की भीड़ तो तब इकठ्ठी होती है ,जब रास्तें तैयार हो जाते है ।

17.सफलता के बाद तो हर कोई पहचान बढाना चाहता है ।

8.सकारात्मक सोच ही हमें आगे बड़ाने में सहायक होती है।

19 .नकारात्मक सोच अन्धकार से भरे बंद कमरे मे बैठे रहने के सिवा कुछ भी नहीं ।

20.उजियारा चाहिये तो अँधेरे कमरे में प्रकाश की व्यवस्था करनी पड़ेगी ।
21.यानि  नकारात्मक विचारों रुपी अन्धकार को दूर करने के लिये सकारात्मक विचार रुपी उजियारे की व्यवस्था करनी पड़ेगी ।

21.याद रखिये दूनियाँ में अन्धकार भी है ,और प्रकाश भी   ! तय हमें करना  है की हमें क्या चाहिए ।
22 . हमारी हार या जीत हमारे स्वयं के संकल्पों की शक्ति है।
23.इस धरती पर मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है ,जो अपने संकल्पों से अनहोने काम कर सकता है ।
24.कोई भी व्यक्ति शरीर से कमजोर या ताकतवर हो सकता है ।
25.परन्तु शुभ संकल्पों की शक्ति बहुत ही श्रेष्ठ और अद्वितय होती है ।

*अन्नदाता *

धरती पर इन्सानों का भागवान
मेरे देश का किसान अन्नदाता
तू अन्नदाता फिर भी तेरा क्यों
कमतर है ,सम्मान प्रकृति की
मार भी तुझे सहनी पड़ती है।
कभी तन को झुलसा देने वाली गर्मी ,
कहीं बाड़ का प्रकोप ,कभी सूखे का कहर
जो अन्नदाता है उसे ही अपने परिवार की जीविका
के लिए पीना पड़ता है ज़हर
और कभी सूली पर लटक
देता है प्राण ।।।
हाय मेरे देश का किसान
सर्वप्रथम किसानो दो को उच्चतम स्थान
उन जैसा नहीं कोई महान
मै दिल से करती हूँ तेरा सम्मान ।
ऐ किसान तू नहीं कोई साधारण इन्सान
तू अन्नदाता है ,इस सृष्टि का भगवान ।
तू तपति दोपहरी में खेतों मे काम करता है
सूखी रोटी ,तन पर एक वस्त्र अभावों में अक्सर
तेरा जीवन गुजरता है।
अपनी आजीविका चलाने को, अपने और अपने परिवार
को दो रोटी खिलाने को तू ,न जाने कितनों के पेट भरता है ऐ किसान।
ऐ मेरे देश के किसान ,तू महान है ।
तेरा क्या सम्मान करूँ ।तू स्वयं ही सम्माननीय ।
परमात्मा ने अपने ही कुछ दूतों को धरती पर किसान बनाकर भेजा होगा ।
नहीं तो यहाँ तो सबको अपने -अपने पेटों की पड़ी है ।
किसानों का सम्मान करो ,भारत एक कृषि प्रधान देश है अभिमान करो।
किसान नहीं होंगे तो ,भोजन कहाँ से लाओगे
क्या ? ईंट ,पत्थर ,रेता ,बजरी ,चबाओगे ।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...