" राम नाम धन "
सिमरन ,सिमरन सिमरन
नाम धन जो मैंने पाया,
मैंने तो मानों संजीवनी
खजाना पायो ।
सुमधुर सुरमयी
रूप माधुरी स्वरूप
तुम्हारो मनमोहिनी
नज़र हटे ना,नजर झुके ना
हर पल तुमको निहारूं।
जब कोई प्रभु दिल से पुकारूं
तुम तब-तब उसको जीवन सवारों
तुम ही जग के पलानहार
तुम ही सबको पार उतारो
तुम सबके दिल की जानो
तुम हो जो पुष्पों में सुगन्ध
प्रकृति में ज्यों प्राणवायु
आकाश में विद्युत तरंगे ।
भाव प्रेम और श्रद्धा हो तो
बड़ी सरलता से तुम मिल जाते
तर्क-वितर्क हो तो ना कोई तुमको
जाने ना पहचाने ।
मिलते तुम प्रभू उसी को
जो निर्मल मन से तुम्हें पुकारे ।
सिमरन ,सिमरन सिमरन
नाम धन जो मैंने पाया,
मैंने तो मानों संजीवनी
खजाना पायो ।
सुमधुर सुरमयी
रूप माधुरी स्वरूप
तुम्हारो मनमोहिनी
नज़र हटे ना,नजर झुके ना
हर पल तुमको निहारूं।
जब कोई प्रभु दिल से पुकारूं
तुम तब-तब उसको जीवन सवारों
तुम ही जग के पलानहार
तुम ही सबको पार उतारो
तुम सबके दिल की जानो
तुम हो जो पुष्पों में सुगन्ध
प्रकृति में ज्यों प्राणवायु
आकाश में विद्युत तरंगे ।
भाव प्रेम और श्रद्धा हो तो
बड़ी सरलता से तुम मिल जाते
तर्क-वितर्क हो तो ना कोई तुमको
जाने ना पहचाने ।
मिलते तुम प्रभू उसी को
जो निर्मल मन से तुम्हें पुकारे ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें