''  जिस दिल में मॊहब्बत होती है ''
                                                                 
rose-flower-9बस यूँ ही मुस्कराता है
गुनगुनाता है ,मुस्कराहटें लुटाता है।
मोहब्ब्तों में सब सुंदर हो जाता है ,
मोहब्ब्तों  में इंसान खुदा  हो जाताहै  
Lovely Rainbow Rose Pics
मोहब्बतों जिन दिलों में होती हैं
उन चेहरों कि रौनके ही ख़ास होती है ,
दुनियाँ को देखने कि उनकी निगाहें भी ख़ास होती हैं
आत्मिक सौन्दर्य से परिपूर्ण ,
वह  दिल नहीं मन्दिर होता है।
प्रेम का समुन्दर लिए
इतराता इठलाता अधरों पर गीत बन गुनगुनाता है।
  प्रेम ,
बस यूँ ही मुस्कराता है ,
मीठी कशिश ,अनकहे शब्दों में सब कह जाता ,
  प्रेम ,
health-wealth-and-wisdom-rose-any-other-name_127615
तपती दोपहरी में वृक्ष कि छाया 'संगीत में सुरों कि तरह
हवा में सुगंध कि तरह विलीन हो जाता है प्रेम ,
स्व्यं के लिए तो सभी जीते  है ,
जो दूसरों के  जीने के लिए जी जाता है ,
वही है, सच्चा प्रेम।
                                            '''नया  जमाना  आएगा ''

अभी तक जितने नेता हुए , वह नेता जनता के वोटों के आधार पर चुनाव में जीतकर , भिन्न -भिन्न पदो पर मंत्री बन उस पद के कार्यक्षेत्र  कि अर्थव्यवस्था  का कार्य-भर सँभालते  हुए , राजा  बन राज्य करते आए।

आज़ दिन तक सभी नेता देश व् समाज कि भलाई व् सुरक्षा से अधिक  सवयं कि भलाई पर अधिक धयान देते आए हैं।    
जनता कि आवश्यक आवश्कताओं को पूरा करने कि बजाये अपनी आर्थिक  उन्नति पर विशेष ध्यान केन्द्रित करते आये हैं।
मंत्री बनते ही नेताओं के तेवर बदल जाते हैं। वेह मंत्री जो देश व् समाज कि रक्षा के लिए होता है।  सबसे पहले उसकी सुरक्षा के कड़े इन्तजाम हो जाते हैं ,फिर चाहे देश कि सुरक्षा ,उसके लिए जान कि बाजी लगते हैं , हमारे सुरक्षा अधकारी ,देश कि पुलिस और देश का सैनिक।

दूसरी तरफ देश का महा नायक ''अरविन्द केजरीवाल जी ''अपनी सुरक्षा के इंतजामों को ठुकरा कर एक आम  आदमी कि तरह रहना चाहा , यह उनकी महानता को दर्शाता है ,   शायद इसी को  कहते हैं ,


'' सिंपल लिविंग हाई थिंकिंग  ''    पहली बार पार्टी वाद से हटकर देश कि  आम जनता ने
आम पार्टी से एक हीरा ढूंढ निकला है।
अरविंदजी ने भ्रष्टाचार के दल-दल को साफ़  करने का जो  संकल्प लिया है ,उस  संकल्प में  देश आम जनता को  हम सब को मिलकर चलना है  भ्रष्टाचार कि  जड़े  बहुत गहरी  हैं जिसके  लिए हम सब भारतवासियों को
अरविन्द जी कि ताकत बनना है।
 भ्रष्टाचार  के बीजों को पनपने  से रोकना है।
यूँ तो अन्ना जी ही  लड़ाई के महानायक हैं  अन्नाजी  के संकल्पों  व् अनशन  ने भ्रष्टाचार कि जड़ो को पहले से ही हिला दिया है और खोकला कर दिया था ,  मन कि आज अरविन्द जी ने आज अपनी एक अलग पार्टी बना ली है ,परन्तु अन्ना जी का  आशिर्वाद आज भी अरविन्द जी के साथ है।

परन्तु मेरा मानना है कि अरविन्द जी का अलग से पार्टी बनाना आवश्यक भी था , क्योंकि कहते हैं न गंदगी को साफ़ करने के लिए गंदगी में उतरना पड़ता है।
आज राजनीती  बड़े दल -दल का रूप ले चुकी  है , भगवान् करे  अरविन्द जी दल -दल में फंसने से बचे , अपना और  अपने सहयोगियों  का सारा  ध्यान  भ्रष्टाचार के दल -दल को साफ़  करने  में लगवाएं।

भ्रष्टाचार एक गंदे गहरे घिनौने  व्  स्वार्थ  के अंधे कुँए ,  कि तरह है।    जिसका सबसे  अधिक नुकसान मध्यमवर्गीय  आम जनता को  उठाना पड़ता है , तरक्की तो सिर्फ उसी कि होती है ,जो धनवान  है ,,ज्ञान  कि तो कोई कीमत ही नही।

उम्मीद है कि ,आम पार्टी  समाज कि तस्वीर  बदलने में ,निरंतर  कार्य-शील  रहेगी।
भगवान करे कि  अन्ना जी का अनशन  व्यर्थ न जाए ,आम पार्टी के आम नायक अरविन्द जी निरन्तर कार्य शील रहें , अरविन्द जी को किसी कि सुरक्षा कि आवश्यकता ही न पड़े।   वैसे भी  कहते है न   '' ,जाको राखे साईयाँ मार सके न कोई। ''
एक  सुंदर  सभ्य  सुसंस्कृत  समाज कि स्थापना  हो , देश कि तक़दीर और तस्वीर  दोनों बदले। बस यही चाह है।
        नया   जमाना   आएगा  , नया  जमाना  आएगा। 
                                                         '' अग्निकुंड ''   
                                                                                                                      

  क्रोध यानि उत्तेजना ,क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।
 क्रोध करने वाला स्वयं के लिए अग्नि-कुंड बनाता है ,और उस अग्नि में सवयं को धीरे -धीरे जलाता है। कुछ लोग मानते हैं
 कि ,क्रोध उनका हथियार है ,सब उनसे डरते हैं ,उनकी ईज्जत करते हैं।
परन्तु क्रोधी स्व्भाव का व्यक्ति यह नहीं जानता कि जो लोग उसके  सामने आँखे नीची करके बात करते हैं ,जी -हजूरी करते हैं वह सब दिखावा है
। वास्तव में वह  क्रोधी व्यक्ति कि इज्ज़त नहीं करते ,पीठ पीछे
 क्रोधी व्यक्ति को खडूस ,नकचढ़ा ,एटमबम ,इत्यादि ना जाने क्या -क्या नाम   देते है। इसके विपरीत सीधे सरल लोगों के प्रति सम भाव रखते हैं।

आज के मानव ने सवयं के आगे पीछे बहुत  कूड़ा -करकट इ क्क्ठा कर रखा है। सवयं के बारे में सोचने का आज के मानव के  पास समय ही नहीं है।  वास्तव में मानव को यह ज्ञात ही नहीं या यूँ कहिए कि ,उसे ज्ञात ही नहीं कि वास्तव में वह चाहता क्या है। 
क्यों कहाँ कैसे किसलिए  वह जी रहा है
। सामाजिक क्रिया -कलापों में सवयं को बुरी तरह जकड़ कर रखा है। बस करना है  ,चाहे रास्ता पतन कि और क्यों न ले जाए।  
 क्योंकि सब चल रहे हैं इसलिए मुझे भी चलना है जहां तक और लोग पहुंचे आज के मानव को भी पहुँचना ही है वह तरक्की करना चाहता है परन्तु सही ढंग और सही रास्ता नहीं मालूम नहीं ,किसी भी तरह मंजिल कि और बड़े जा रहा है मंजिल मिले या न मिले। 

तरक्की पाने के लिए आज का मानव सवयं को ईर्ष्या ,द्वेष संशय ,क्रोध लालच वहम इत्ययादी। 

  नकारात्मक विचारों के दल-दल में फंसा रखा है। 
जब हमारे मन कि नहीं होती तब हम धैर्य खो देते है। 
 और फिर हमारे मन में क्रोध उत्त्पन होता है। क्रोध कि अवस्था में क्रोध करने वाले को कुछ नहीं सूझता ,वेह जल रहा होता है ,क्रोध कि अग्नि में ,उसके लिए उचित -अनुचित में भेद कर पाना मुश्किल हो जाता है।

क्रोधी व्यक्ति के मन में नकारात्मक विचारों कि परत च ड़ी होती है।कि उसे सवयं का भला  बुरा नहीं दिखाए देता क्रोधी व्यक्ति का कहना होता है कि ,अमुक व्यक्ति ने मेरा बुरा कर दिया। 
वास्तव में हमारी सोच ही हमारे क्रोध का कारन होती है ,कोई किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। 
 हो सकता है कि,किसी वयक्ति के विचार हमारे विचारो से मेल न खाते हों वेह हमारे विचारो के विपरीत परिस्थियाँ उत्त्पन करता हो ,  ऐसे अवस्था में हमें सवयम को समझाना चाहिए। 

किसी दूसरे को बदलना या उसके विचार और वयव्हार से प्रभावित होकर ,क्रोध के वशीभूत होकर हम सवयं का ही नुकसान करते हैं।,जो कि उचित नहीं है। किसी का बुरा आचरण हमें प्रभावित करता है तो हम कमज़ोर।
क्रोध कई बुरे विचारों का जन्मदाता है बुरे विचार किसी का बुरा सोचना, बुरा बोलना,. किसी के प्रति क्रोध करके हम सोचते हैं ,कि हैम उसे सबक सिखा रहे हैं यह हमें भी नहीं समझ नहीं आता वास्तव में तो वेह क्रोध हमें ही सबक सिखा रहा होता है।


हमारा मानसिक सन्तुलन बिगाड़ रक्त-चाप बड़ा देता है।   क्रोध के वशीभूत होकर हम कई नकारात्मक विचारो  का ऐसा जाल बुन लेते है  ,और वह विचार  हमें  अच्छासोचने ही नहीं देते  ,नई -नई विधियाँ  नए -नए विचार  नकारात्मक क्रोध कि  अवस्था में हमारे मन में पनपने लगते हैं
जिन्हे हम  अपना हथियार  समझ रहे होते है

क्रोधी वयक्ति इस जाल में इतनी बुरी तरह फँसा होता है कि वेह उस जाल से निकलना भी चाहता तो निकल नहीं पाता  वह उसके स्व्भाव  का एक हिस्सा  बन जाता है।

अतः उचित यही है कि  क्रोध रूपी अग्नि  को अपने अंदर पनपने ही न दें। क्रोध रुपी हथियार  का जिसका हम स्वयं कि सुरक्षा के लिए उपयोग करते हैं  वह हथियार हमारी स्वयं  कि भी हिंसा कर रहा होता है।

कोई भी  हथियार हिंसा का ही प्रतीक है।  वह हथियार  जो हमें दुश्मनो  से बचने के काम आता है वह हमारे भी हिंसा कर सकता है,  हथियार हिंसा का ही  प्रतीक है।

                 
           ''क्रोध कि अग्नि जो जलाये ,पहले पहल वह  जले दूजे को जलाये ,स्वयं  बुरे विचारों के जाल में फँसे''. 
                                
                                           
                               ''दिल रो पड़ा ''
यात्राएं तो मैने बहुत कि हैं। पर कुछ यात्राएं असमरणीय होती हैं। दिलों दिमाग़ पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं। 
महानगरों कि यात्राएं सुविधाओं से पूर्ण होती हैं। 
परन्तु एक बार हमने एक यात्रा के दौरान ट्रैफिक से बचने के लिए हाईवे का रास्ता छोड़ उस रास्ते से यात्रा करनी चाही जिस पर ट्रैफिक का नाम न हो।हाईवे के मुक़ाबले वेह रास्ता काफी कम समय में हमें हमारी मन्जिल तक पहुँचा सकता था। समय बचाने के चक्कर में हमने शार्ट -कट रास्ता अपनाया ,वह रास्ता गावों से होकर जाता था। गावों कि कच्ची सडकें ,समझ नहीं आ रहा था कि सड़को में गढ्ढो हैं या गढ्ढो में सड़क ,गाड़ी में बैठे -बैठे हम उछल रहे थे ,तीन घण्टों में एक भी पल हम चैन से नहीं बैठे ,इतने झूले बचपन में झूले -झूले भी उसके आगे कुछ नहीं थे। गावों के कच्ची मिट्टी से बने घऱ जो एक परिवार के लिए बस सर छिपाने के लिए बस छत भर ही थे ,बरसात के पानी से बचने के लिए छतों पर बिछाये गयी त्रिपाल इत्यादि ठिठुरती सर्दी में तन दो साधारण वस्त्र उस पर शाल या साफ़ा पैरों में मौजों का नाम नहीं बस  साधारण सी चप्पल, उन्हें देख में सोचने लगी क्या इन्हें ठण्ड नहीं लगती होगी ,यहाँ हैम लोगों जो गाड़ी में बैठे थे मोटे-मोटे स्वेटर जैकेट वजनदार जूते उस पर भी हम ठण्ड -ठण्ड कर रहे थे। इन्तजार कर रहे थे कि कहीं कोई चाय कि दुकान दिखे और हम गर्म -गर्म चाय पीकर अपनी ठण्ड दूर करें।कहाँ हम  शहरों में रहने वाले अभावों का रोना रोते रहते हैं ,इधर गावों कि जिन्दगी देखकर दिल द्रवित हो उठा कि इतने अभावों के बीच भी जीवन जिया जा सकता है। 
माना कि गावों का वातावरण बहुत अच्छा था, हरे -भरे लहलहाते खेत देख मन प्रसन्न था परन्तु किसान जो सम्पूर्ण मानव जाती का अन्न दाता है। वह किसान जो अपना सम्पूर्ण जीवन  मानव   जाति का पेट  भरने में लगा देता है,उसका सवयं का जीवन कितना आभाव पूर्ण होता है देख कर  '' दिल रो पड़ा '' कितना चिन्ता का विषय है , गावों की स्थिति मै  सुधार होना चहिये। 
एक और  अति चिंतनीय और दरदनीय  विषय गावों के रास्तों से जाते हुए जो दिखी ,वह था  ' 'ठेका देसी शराब ''जो थोड़ी -थोड़ी दूरी पर थे। बड़ा आश्चर्य हुआ एक भी राशन या चाय कि दुकान ना मिली पर ठेका देसी शराब तीन चार मिल गए। गरीब किसान क्या खाता होगा क्या अपने परिवार को खिलता होगा ,किसान के खून पसीने कि कमाई तो शराब के ठेके वाला ही ले जाता होगा। अति चिन्तनीय विषय है गावों में इस तरह शराब का ठेका होना ,इस पर कार्य करने कि आवश्यकता है एक परिवार अभावों के बीच आधा पेट भूखा रहा रह सकता है परन्तु अपने परिवार के किसी सदस्य को शराब की लत में फंसे देख दिन रात घुट -घुट कर मर जाता है।
 किसान हमारा अन्न दाता है धरती पर हमारा भगवान है। गावों में शिक्षा और सुविधाओं का होना अति आवश्यक है। 
 

सुख समृद्धि

 "लक्ष्मी जी संग सरस्वती जी भी आति  आवशयक  है"

शुभ दीपावली ,दीपावली में लक्ष्मी जी के पूजन का विशेष महत्व है,क्यों ना हो लक्ष्मी जी विशेष स्थान ,क्योंकि लक्ष्मी जी ही तो हैं जो,ऋद्धि -सिद्धि धन ऐश्वर्य कि दात्री हैं। परन्तु कहते हैं ,लक्ष्मी चंचल होती है वह एक जगह टिकती नहीं ,इसलिये लक्ष्मी जी के साथ सरस्वती जी का स्वागत भी होना चहिये ,सरस्वतीजी बुद्धि ज्ञान विवेक कि दात्री हैं,लक्ष्मी का वाहन उल्लू है ,यह बात तो सच है कि लक्ष्मी के बिना सारे ऐश्वर्य अधूरे हैं ,परन्तु एक विवेक ही तो है जो हमें भले -और बुरे में अन्तर बताता है।

दीपावली के दिन स्व्छता का भी विशेष महत्व होता  है ,क्योंकि स्व्च्छ स्थान पर देवों का वास होता है। दीपावली के दिन  ऋद्धि- सिद्धि कि देवी सुख समृद्धि के साथ जब घर -घर जायें तो उन्हें सवच्छ सुंदर प्रकाश से परिपूर्ण वातावरण मिले और वो वहीं रुक जाएँ। दीपावली के दिन पारम्परिक मिट्टी के दीयों को सुंदर ढंग से सजाकर पारम्परिक रंगों से रंगोली बनाकर माँ लक्ष्मी का स्वागत करना चाहिए।  आवश्यक नहीं की मूलयवान सजावटी समानो से ही अच्छा स्वागत हो सकता है। भगवान  तो भाव के भूखे हैं। मान लीजिए आप किसी के यहाँ अथिति बन कर गए,  आपके स्वागत में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी सुंदर सजावट कई तरह के देशी -विदेशी वयंजन से आपका स्वागत हुआ परन्तु उस व्यक्ति के चहरे के भावों से व्यक्त हो जाये कि वः खुश नहीं है ,कोई स्वार्थ नजर आए तो  बताइये आपको कैसा लगेगा। अतः अगर भगवान का स्वागत हम अच्छे भाव से करेंगे तो उन्हें ज्यादा प्रसन्नता  होगी। मन में कोई द्वेष न हो मन में निस्वार्थ प्रेम भरा हो ईर्ष्या द्वेष से परे परस्पर प्रेम का सन्देश लिए अब से हर दीपावली ज्ञान के प्रकाश का विवेक संग दीपक जलाएं।

                                  "भगवान भाव के प्रेमी न होते तो शबरी के जूठे बेर न खाते।"

"श्री कृष्ण भगवान दुर्धोयन के महलों का मेवा छोड़ कर विदुर जी के यहाँ भोजन करने गए और प्रेमवश केले के छिलके खाकर भी प्रसन्न हो गए। "





                                           

                                                       भक्ति क्या है ???

भक्ति एक सुंदर  भाव  है। भक्ति दिखावे की चीज नहीं  ,बंधन नहीं  मुक्ति का नाम है,भक्ति। 
घंटो  किसी पूजा स्थल पर या फिर मंदिर ,गुरुद्वारे आदि पवित्र स्थलों में बैठकर पूजा करना भी भक्ति ही है।
परन्तु भक्ति घंटों किसी स्थल पर बैठ कर ही संभव है यह सत्य नहीं पर यह चिर -स्थाई भक्ति की और ले जाने वाली सीढियाँ हैं। 
भक्ति वह भावना है ,जहाँ भक्त का मन या फिर यूं कहिये की भक्त की आत्मा परमात्मा  में स्थिर हो जाती है। भक्त को घंटों किसी धार्मिक पूजा- स्थलपर बैठकर प्रपंच नहीं रचने पड़ते ,वह कंही भी बैठ कर प्रभु को याद कर लेता है।उसका चित परमात्मा में एकसार हो जाता है। 
भक्त अपने इष्ट के प्रति निष्काम प्रेम और समर्पण का नाम है। भक्ति श्रधा है। भक्ति बंधन नहीं। मुक्ति है ,भक्ति में भक्त अपने परमात्मा या इष्ट से आत्मा से जुड़ जाता है ज्यों माँ से उसका पुत्र। भक्ति में भक्त को कुछ मांगना नहीं पड़ता। उसका निस्वार्थ प्रेम उसे स्वयमेव भरता है। ज्यों एक माँ अपने पुत्र की इच्छा पूरी करती है। देना एक माँ और पमात्मा का स्वभाव है। 
भक्ति निष्काम प्रेम की सुंदर अवस्था है।              
                                        

          हिंदी मेरी मात्रभाषा है माँ तुल्य पूजनीय है 



मेरी मात्रभाषा हिंदी है । मै गर्व से कहती हूँ! जिस भाषा को बोलकर सर्व- प्रथम मैंने अपने भावों को प्रकट किया ,जिसे बोलकर बन जाते हैं मेरे सरे काम ,उस भाषा का मै दिल से करती हूँ  सम्मान। आज विशेषकर भारतीय लोग अपने देश की भाषा अपनी मात्रभाषा को बोलने में स्वयं को छोटा महसूस करते हैं। अंग्रेजी भाषा को प्राथमिकता देकर स्वयं को विद्वान् समझते हैं। मात्रभाषा बोलने में हीनता महसूस करते हैं। हिंदी में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करके समझते हैं की आधुनिक हो गए हैं। क्या  आधुनिकता की पहचान अंग्रेजी भाषा ही है ? अरे! नहीं- नहीं आधुनिकता किसी भाषा पर निर्भर नहीं हो सकती। आधुनिकता किसी भी समाज द्वारा किये गए ,प्रगति के कार्यों से उच्च संस्कृति व् संस्कारों से होती है।जापान के लोग अपनी मात्रभाषा को ही प्राथमिकता देते हैं,क्या वह देश प्रगति नहीं कर रहा ,बल्कि प्रगति की राह में अपना लोहा मनवा रहा है ।
अरे नहीं कर सका जो अपनी माँ सामान मात्रभाषा का सम्मान ,उसका स्वयं का सम्मान भी अधूरा है , खोखला है, अपनी जड़ों से हिलकर हवा में इतराना चाह रहा है । संसार में बोले जाने वाली किसी भी भाषा का ज्ञान होना कोई अपराध नहीं , आवयशक है । परन्तु अपने देश में सर्वप्रथम अपनी मात्रभाषा को ही स्थान देना चाहिए । माँ तो माँ ही है ,भारत की मात्रभाषा हिंदी है, हिंदी भारतवासियों की पहचान है । हिंदी में रचित साहित्य विश्व  में अपनी पहचान है । हिंदी भाषा में जो बिंदी है प्रय्तेक भारतवासी के माथे के सिर का ताज है ।आज आवश्यकता है भारत  के प्रत्येक नागरिक को प्रणलेना होगा ,की वह अपनी बोल -चाल की भाषा कार्य -स्थल पर हिंदी को ही प्राथमिकता देंगे । माना की अंग्रेजी भाषा को अंतराष्ट्रीय भाषा का स्थान मिला है मेरी मात्रभाषा हिंदी है। मेरे लिए मेरी मात्र भाषा हिंदी से उच्च कोई नहीं ,अपने ही देश में अपनी मात्र -भाषा संग सौतेला व्यवहार उचित नहीं ,हिंदी गरीबो की ही भाषा बन कर रह गयी है अंग्रेजी  स्कूलों में पड़ने के लिए लाखों रूपये खर्च दिए जातें है। अपने ही देश मे अपनी मात्र -भाषा का अपमान  निंदनीय है। आधुनिकता की अंधी दौड़ में जिस देश की संकृति उस देशकी पहचान है,अपनी ही भाषा का अपमान होना क्या उचित है। हिंदी का सम्मान माँ का सम्मान है।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...