''दिल रो पड़ा ''
यात्राएं तो मैने बहुत कि हैं। पर कुछ यात्राएं असमरणीय होती हैं। दिलों दिमाग़ पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
महानगरों कि यात्राएं सुविधाओं से पूर्ण होती हैं।
परन्तु एक बार हमने एक यात्रा के दौरान ट्रैफिक से बचने के लिए हाईवे का रास्ता छोड़ उस रास्ते से यात्रा करनी चाही जिस पर ट्रैफिक का नाम न हो।हाईवे के मुक़ाबले वेह रास्ता काफी कम समय में हमें हमारी मन्जिल तक पहुँचा सकता था। समय बचाने के चक्कर में हमने शार्ट -कट रास्ता अपनाया ,वह रास्ता गावों से होकर जाता था। गावों कि कच्ची सडकें ,समझ नहीं आ रहा था कि सड़को में गढ्ढो हैं या गढ्ढो में सड़क ,गाड़ी में बैठे -बैठे हम उछल रहे थे ,तीन घण्टों में एक भी पल हम चैन से नहीं बैठे ,इतने झूले बचपन में झूले -झूले भी उसके आगे कुछ नहीं थे। गावों के कच्ची मिट्टी से बने घऱ जो एक परिवार के लिए बस सर छिपाने के लिए बस छत भर ही थे ,बरसात के पानी से बचने के लिए छतों पर बिछाये गयी त्रिपाल इत्यादि ठिठुरती सर्दी में तन दो साधारण वस्त्र उस पर शाल या साफ़ा पैरों में मौजों का नाम नहीं बस साधारण सी चप्पल, उन्हें देख में सोचने लगी क्या इन्हें ठण्ड नहीं लगती होगी ,यहाँ हैम लोगों जो गाड़ी में बैठे थे मोटे-मोटे स्वेटर जैकेट वजनदार जूते उस पर भी हम ठण्ड -ठण्ड कर रहे थे। इन्तजार कर रहे थे कि कहीं कोई चाय कि दुकान दिखे और हम गर्म -गर्म चाय पीकर अपनी ठण्ड दूर करें।कहाँ हम शहरों में रहने वाले अभावों का रोना रोते रहते हैं ,इधर गावों कि जिन्दगी देखकर दिल द्रवित हो उठा कि इतने अभावों के बीच भी जीवन जिया जा सकता है।
माना कि गावों का वातावरण बहुत अच्छा था, हरे -भरे लहलहाते खेत देख मन प्रसन्न था परन्तु किसान जो सम्पूर्ण मानव जाती का अन्न दाता है। वह किसान जो अपना सम्पूर्ण जीवन मानव जाति का पेट भरने में लगा देता है,उसका सवयं का जीवन कितना आभाव पूर्ण होता है देख कर '' दिल रो पड़ा '' । कितना चिन्ता का विषय है , गावों की स्थिति मै सुधार होना चहिये।
एक और अति चिंतनीय और दरदनीय विषय गावों के रास्तों से जाते हुए जो दिखी ,वह था ' 'ठेका देसी शराब ''जो थोड़ी -थोड़ी दूरी पर थे। बड़ा आश्चर्य हुआ एक भी राशन या चाय कि दुकान ना मिली पर ठेका देसी शराब तीन चार मिल गए। गरीब किसान क्या खाता होगा क्या अपने परिवार को खिलता होगा ,किसान के खून पसीने कि कमाई तो शराब के ठेके वाला ही ले जाता होगा। अति चिन्तनीय विषय है गावों में इस तरह शराब का ठेका होना ,इस पर कार्य करने कि आवश्यकता है एक परिवार अभावों के बीच आधा पेट भूखा रहा रह सकता है परन्तु अपने परिवार के किसी सदस्य को शराब की लत में फंसे देख दिन रात घुट -घुट कर मर जाता है।
किसान हमारा अन्न दाता है धरती पर हमारा भगवान है। गावों में शिक्षा और सुविधाओं का होना अति आवश्यक है।
यात्राएं तो मैने बहुत कि हैं। पर कुछ यात्राएं असमरणीय होती हैं। दिलों दिमाग़ पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
महानगरों कि यात्राएं सुविधाओं से पूर्ण होती हैं।
परन्तु एक बार हमने एक यात्रा के दौरान ट्रैफिक से बचने के लिए हाईवे का रास्ता छोड़ उस रास्ते से यात्रा करनी चाही जिस पर ट्रैफिक का नाम न हो।हाईवे के मुक़ाबले वेह रास्ता काफी कम समय में हमें हमारी मन्जिल तक पहुँचा सकता था। समय बचाने के चक्कर में हमने शार्ट -कट रास्ता अपनाया ,वह रास्ता गावों से होकर जाता था। गावों कि कच्ची सडकें ,समझ नहीं आ रहा था कि सड़को में गढ्ढो हैं या गढ्ढो में सड़क ,गाड़ी में बैठे -बैठे हम उछल रहे थे ,तीन घण्टों में एक भी पल हम चैन से नहीं बैठे ,इतने झूले बचपन में झूले -झूले भी उसके आगे कुछ नहीं थे। गावों के कच्ची मिट्टी से बने घऱ जो एक परिवार के लिए बस सर छिपाने के लिए बस छत भर ही थे ,बरसात के पानी से बचने के लिए छतों पर बिछाये गयी त्रिपाल इत्यादि ठिठुरती सर्दी में तन दो साधारण वस्त्र उस पर शाल या साफ़ा पैरों में मौजों का नाम नहीं बस साधारण सी चप्पल, उन्हें देख में सोचने लगी क्या इन्हें ठण्ड नहीं लगती होगी ,यहाँ हैम लोगों जो गाड़ी में बैठे थे मोटे-मोटे स्वेटर जैकेट वजनदार जूते उस पर भी हम ठण्ड -ठण्ड कर रहे थे। इन्तजार कर रहे थे कि कहीं कोई चाय कि दुकान दिखे और हम गर्म -गर्म चाय पीकर अपनी ठण्ड दूर करें।कहाँ हम शहरों में रहने वाले अभावों का रोना रोते रहते हैं ,इधर गावों कि जिन्दगी देखकर दिल द्रवित हो उठा कि इतने अभावों के बीच भी जीवन जिया जा सकता है।
माना कि गावों का वातावरण बहुत अच्छा था, हरे -भरे लहलहाते खेत देख मन प्रसन्न था परन्तु किसान जो सम्पूर्ण मानव जाती का अन्न दाता है। वह किसान जो अपना सम्पूर्ण जीवन मानव जाति का पेट भरने में लगा देता है,उसका सवयं का जीवन कितना आभाव पूर्ण होता है देख कर '' दिल रो पड़ा '' । कितना चिन्ता का विषय है , गावों की स्थिति मै सुधार होना चहिये।
एक और अति चिंतनीय और दरदनीय विषय गावों के रास्तों से जाते हुए जो दिखी ,वह था ' 'ठेका देसी शराब ''जो थोड़ी -थोड़ी दूरी पर थे। बड़ा आश्चर्य हुआ एक भी राशन या चाय कि दुकान ना मिली पर ठेका देसी शराब तीन चार मिल गए। गरीब किसान क्या खाता होगा क्या अपने परिवार को खिलता होगा ,किसान के खून पसीने कि कमाई तो शराब के ठेके वाला ही ले जाता होगा। अति चिन्तनीय विषय है गावों में इस तरह शराब का ठेका होना ,इस पर कार्य करने कि आवश्यकता है एक परिवार अभावों के बीच आधा पेट भूखा रहा रह सकता है परन्तु अपने परिवार के किसी सदस्य को शराब की लत में फंसे देख दिन रात घुट -घुट कर मर जाता है।
किसान हमारा अन्न दाता है धरती पर हमारा भगवान है। गावों में शिक्षा और सुविधाओं का होना अति आवश्यक है।
रितु दी, गांवों की यहींंतो विडंबना हैं कि जो किसान अनाज उगाता हैं वहींं किसान भखे पेट सोता हैं। बहुत विचारणीय लेख...
जवाब देंहटाएंजी ज्योति जी यूं तो ये पोस्ट पुरानी है फिर भी गांवों में इस तरह की समस्या तो अभी भी है
हटाएंयह बेहद चिंता का विषय उठाया आपने...गांव में शराब के ठेके नहीं स्वास्थ्य केंद्र और बच्चों के लिए स्कूल की व्यवस्था होनी चाहिए। सुंदर और सटीक प्रस्तुती ऋतु जी
जवाब देंहटाएंजी नमन अनुराधा जी विषय चिंतनीय है
हटाएंदी जी बेहतरीन लेख है हर शब्द स्वयं अपनी पैरवी कर रहा है किसानों की मासूमियत उस की मेहनत रसूखदार एक पल में लूट लेते है
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी
सादर
जी अनीता जी
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