भक्ति क्या है ???
भक्ति एक सुंदर भाव है। भक्ति दिखावे की चीज नहीं ,बंधन नहीं मुक्ति का नाम है,भक्ति।
घंटो किसी पूजा स्थल पर या फिर मंदिर ,गुरुद्वारे आदि पवित्र स्थलों में बैठकर पूजा करना भी भक्ति ही है।
परन्तु भक्ति घंटों किसी स्थल पर बैठ कर ही संभव है यह सत्य नहीं पर यह चिर -स्थाई भक्ति की और ले जाने वाली सीढियाँ हैं।
भक्ति वह भावना है ,जहाँ भक्त का मन या फिर यूं कहिये की भक्त की आत्मा परमात्मा में स्थिर हो जाती है। भक्त को घंटों किसी धार्मिक पूजा- स्थलपर बैठकर प्रपंच नहीं रचने पड़ते ,वह कंही भी बैठ कर प्रभु को याद कर लेता है।उसका चित परमात्मा में एकसार हो जाता है।
भक्त अपने इष्ट के प्रति निष्काम प्रेम और समर्पण का नाम है। भक्ति श्रधा है। भक्ति बंधन नहीं। मुक्ति है ,भक्ति में भक्त अपने परमात्मा या इष्ट से आत्मा से जुड़ जाता है ज्यों माँ से उसका पुत्र। भक्ति में भक्त को कुछ मांगना नहीं पड़ता। उसका निस्वार्थ प्रेम उसे स्वयमेव भरता है। ज्यों एक माँ अपने पुत्र की इच्छा पूरी करती है। देना एक माँ और पमात्मा का स्वभाव है।
भक्ति निष्काम प्रेम की सुंदर अवस्था है।
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