"पहचान मेरी "
हाँ मैं यूँ ही इतराता हूँ ।
खुद पर नाज भी करता हूँ।
अपनी खेती मैं करता हूँ
शुभ संकल्पों के बीज मैं बोता हूँ ।
क्यों कहूँ मैं कुछ भी नहीं
मैं किसी से कमतर नहीं ।
मुझ से ना पूछो मेरी पहचान
मैं क्यों किसी के जैसा बनूँ ।
क्यों ना मैं जैसा स्वयं चाहता हूँ
वैसा बनूँ।
मैं जैसा हूँ ,मैं वैसा ही हूँ ।
मैं तो बस अपने जैसा हूँ
नहीं मुझको करना है मेकअप।
नहीं बनना मुझे किसी के जैसा
मेरा अस्तित्व मेरी पहचान।
मेरे कर्म बने मेरी पहचान
मुझसे ना छीनो पहचान मेरी ।
कर्मो की खाद मे मैंने शुभ संकल्पों
के बीज मैंने डालें है
आने वाले कल मैं जो खेती होगी
उससे समस्त वसुंधरा पोषित होगी
मेरी जीवन यात्रा तब स्वर्णिम होगी
और मेरी पहचान पूरी होगी ।।।।।।।
हाँ मैं यूँ ही इतराता हूँ ।
खुद पर नाज भी करता हूँ।
अपनी खेती मैं करता हूँ
शुभ संकल्पों के बीज मैं बोता हूँ ।
क्यों कहूँ मैं कुछ भी नहीं
मैं किसी से कमतर नहीं ।
मुझ से ना पूछो मेरी पहचान
मैं क्यों किसी के जैसा बनूँ ।
क्यों ना मैं जैसा स्वयं चाहता हूँ
वैसा बनूँ।
मैं जैसा हूँ ,मैं वैसा ही हूँ ।
मैं तो बस अपने जैसा हूँ
नहीं मुझको करना है मेकअप।
नहीं बनना मुझे किसी के जैसा
मेरा अस्तित्व मेरी पहचान।
मेरे कर्म बने मेरी पहचान
मुझसे ना छीनो पहचान मेरी ।
कर्मो की खाद मे मैंने शुभ संकल्पों
के बीज मैंने डालें है
आने वाले कल मैं जो खेती होगी
उससे समस्त वसुंधरा पोषित होगी
मेरी जीवन यात्रा तब स्वर्णिम होगी
और मेरी पहचान पूरी होगी ।।।।।।।