** इंतज़ार में उसकी**

हिय में तरंगों के साज बज रहें हैं
इबादत है जिसकी
इंतज़ार में उसकी
मुखड़े पर खुशियों के
गुलाब खिल रहे हैं
बागवान सज रहे
पुष्पों के पायदानों को
खुशियों के नीर सींच रहे हैं
चक्षुओंं के दो पैमानों में
नीर का दरिया थामें
समुंदर के रत्नों
से शामियानें सजे हैं
दृष्टि से सृष्टि में
जुगनुओं की झालरें
झिलमिला रही हैं
पलकों में सपनों के
ख़्वाब लिए
नयनों के चिरागों
को रोशन किये
उनके आने के इंतजार में
जमीन से फ़लक तक सितारों
की सौगात लिये बैठा हूं
मैं अपने ख़ुदा की इबादत में
नयनों के चिराग जलाए बैठा हूं
पलकों के किवाड़ भी बंद नहीं होने
दे रहा , मैं टकटकी लगाये
दीदार में उसकी नयनों के
पायदान बिछाये बैठा हूं ।







* धुंध *

प्रकृति में सौंदर्य  की
पवित्रता जो हमने देखी
उसका सम्पूर्ण चित्रण करना
इतना सरल नहीं है
फिर भी...
अद्भुत अलौकिक प्रकृति
का रमणीय नज़ारा
दिनकर के प्रकाश से प्रकाशित
जग सारा
पल में आया कोहरे का साया
और फिर "छाया"
ये मौसम भी दिल को भाया
फ़िर एक और सुन्दर नज़ारा
शायराना मौसम में शायराना आलम सारा
मौसम की मस्तियां
तो देखो
हसीन वादियों में कोहरे का पहरा
तो देखो
श्वेत मखमली महीन रूई की
सी उड़ती धुंध
दृष्टि के सामने हसीन दृश्य
पल में ही सब धुंध में गुम
नन्हीं जल की बूंदे
कोहरे की चादर बन फैले इधर-उधर
वाह धुंध में पल -पल में सब होते गुम
कभी दिखते कभी हो जाते गुम
जिन्दगी भी एक धुंध बस धुंध ही धुंध.....






**ठंडी छांव**

  **  इनायते कर्म तो होती है
तू एतबार करके तो देख
निखार तो आता है
सूर्य की तपिश में
तप के तो देख
इंतहान तो देना पड़ता है
कठिन से कठिन हालातों
को चुनौती समझ पार कर के तो देख
तू थोड़ा सब्र करके तो देख
उसके आश्रय की ठंडी छांव
मिलती है तू विश्वास करके तो देख
सफ़र लम्बा है पथरीली राहें
जख्मों के नासूर भी बनते हैं
ये तेरे किरदार की भूमिका है
अपने किरदार को अच्छे से निभाकर तो देख
जीत तेरी होगी तू उस पर विश्वास करके तो देख
रो मत, हौसला रख ,ये जिंदगी का सफर है
चलते -चलते राहों में गीत गुनगुना के तो देख
दुनियां तेरी दीवानी होगी
तू हर हाल में मुस्करा के तो देख
उसकी दुआओं की ठंडी छांव आ रही है
तू एहसास करके तो देख ...



खिलौने से खेलने की उम्र
जीवन के रंगों से खेलती
नहीं.. मैं, नहीं खेलती गुब्बारों से
गुलाबी ,नीले,पीले,लाल रंगों की
खूबसूरती भाती है मुझे भी
पर क्या करूं मैं खेल नहीं सकती
बचपन की रंगीनियों से मैं
बेचती हूं सुन्दर-सुंदर रंग-बिरंगे गुब्बारे
घर में छोटा भाई है, छोटी बहन है
जिम्मेदारियों के बोझ ने मुझे
बड़ा कर दिया ...

**जज्बात**

    *****अनमोल का क्या मोल 
दुनियां का क्या उसका तो 
काम ही है ,मोल-भाव नाप- तोल
माना की निर्झर झड़ी है
झरने सी प्रतीत होती है
ये झरना नहीं 
दरिया सा बह रहे हैं 
किन्तु दरिया भी नहीं 
ये तो बेअंत हैं
इनका कोई थाह भी नहीं 
इनकी यात्रा असीम है 
गहराई भी अनन्त है
ये बेवजह भी नहीं 
प्रहार पर प्रहार 
बेअंत तूफ़ान ,आंधियां 
परिणाम जलजला 
सैलाब.... ये अश्क हैं साहब.....
.. कोई झरना या दरिया नहीं
ये जज्बातों के दर्द की वो किताब है 
जिनके हर पन्ने की लिखायी 
बताती है अश्कों से धुले हुए
लफ्जों की कहानी 
ऐसे ही किरदारों की है दुनियां दीवानी ******
चाहे घुट-घुट कर गुज़र जाए किसी की जिन्दगानी******







मां तुम कैसे हो

 माँ  के  बिन उदास है दिल मां कभी तो आ कर मुझसे मिल
आंख भर आती है
जब कानों में मां -मां आवाज आती है
दिल तड़फ उठता है
एक आह निकलती है
दिल की पीर दिल में ही
दफ़न हो जाती है
मां तू कैसी होती है
सुना है तुम फरिश्ता ए आसमान होती हो
मां मैं भी तो किसी मां का ही लाल हूं
मां मैं भी छोटा था क्यों मेरी उंगली पकड़ने
के चलने के दिनों में मुझे अकेला छोड़ गई
तुझे मुझ पर तरस भी नहीं आया मैं गिरता संभलता
मां -मां करता आज बड़ा हो गया हूं
फिर याद आती हो तुम मां
 मैं जानता हूं तुम्हारी भी कोई मजबूरी होगी
तुममें मेरी जान पूरी होगी
तुम जहां होगी वहां भी कहां चैन से होगी
अब अगले जन्म में मिलेगी ना जब मां तब
मेरा हाथ ना छोड़ना मेरा साथ ना छोड़ना
अगर तुम्हें जाना पड़े दूर मुझको भी संग अपने ले चलना तेरे बिन मां बड़ा मुश्किल है दुनियां में जीना
तेरे संग संग है मुझे रहना तेरे बिन नहीं दुनियां की महफ़िल में रहना नहीं मुझे भाता
तुझ संग झोपड़ी भी राजमहल लगेगी
मां तुम साथ रहोगी तो दुनिया जन्नत लगेगी।





संतुष्ट हूं,हर्षित हूं, गर्ववानवित हूं ,आत्मसम्मान से भरपूर हूं
आज लिखने को खुला आसमान है ,पड़ने को सारा जहां ...आज जब स्वयं को देखता हूं
लिखते -लिखते कितने आगे निकल आया हूं
आत्मसम्मान से भरपूर हूं, आज मेरे साथ इतना बढ़ा कारवां है
में लिख रहा हूं लोग पड़ रहे हैं
अपनी राय दे रहे हैं जब मैंने लिखना शुरू किया था
तब कोई पड़ने वाला नहीं था
मैं में एक आस थी
मुझे लिखना था अपने लिए समाज के लिए
आज में लिख रहा हूं लोग पड़ रहे हैं
संतुष्ट हूं हर्षित हूं गर्वान्वित हूं,आत्मसम्मान
से भरपूर हूं ।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...