** इंतज़ार में उसकी**

हिय में तरंगों के साज बज रहें हैं
इबादत है जिसकी
इंतज़ार में उसकी
मुखड़े पर खुशियों के
गुलाब खिल रहे हैं
बागवान सज रहे
पुष्पों के पायदानों को
खुशियों के नीर सींच रहे हैं
चक्षुओंं के दो पैमानों में
नीर का दरिया थामें
समुंदर के रत्नों
से शामियानें सजे हैं
दृष्टि से सृष्टि में
जुगनुओं की झालरें
झिलमिला रही हैं
पलकों में सपनों के
ख़्वाब लिए
नयनों के चिरागों
को रोशन किये
उनके आने के इंतजार में
जमीन से फ़लक तक सितारों
की सौगात लिये बैठा हूं
मैं अपने ख़ुदा की इबादत में
नयनों के चिराग जलाए बैठा हूं
पलकों के किवाड़ भी बंद नहीं होने
दे रहा , मैं टकटकी लगाये
दीदार में उसकी नयनों के
पायदान बिछाये बैठा हूं ।







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