* भारत की पहचान *



   *भारत मेरा  देश महान ,भारत माता की जय*


भारत मात्र क्षेत्रफल या क्या किसी सीमा का नाम  ही है ? 

 "भारत माता की जय " हम भारतीय अपने देश को माता का स्थान देते हैं ,क्योंकि माता का स्वरूप वसुंधरा की भांति सदैव अपनी संतानों के कर्म फलों का भार सहन करते हुए स्वयं को और अपनी संतानों को संभाले रहती है ,और कभी विचलित नहीं होती ।


  *भारत की पहचान भारत का अस्तित्व ,हम सब भारत के नागरिकों से हैं ,हम सब भारतीय भारत के नागरिकों से रहित, भारत देश मात्र क्षेत्रफल या सीमा ही बनकर रह जाएगा।


भारत की पहचान हैं , हम सवा सौ करोड़ देशवासी।

आप , मैं और हम सब के बिना भारत की पहचान है ।सिर्फ एक क्षेत्रफल है ।


किसी भी देश की संस्कृति ,वहां की सभ्यता ही वहां के नागरिक और नागरिकों के उच्च आदर्श ,कर्मों में कर्मठता ,ज्ञान ,विज्ञान और संस्कार ही उस देश की पहचान और सभ्यता का प्रतीक होते हैं।


  सभी भारतीय ,भारत के नागरिकों के द्वारा किए गए निस्वार्थ कर्म जो स्वार्थ सिद्धि से ऊपर उठ कर सबके और समाज के हित में किए जाते हैं ,वह सब देश की धरोहर देश की वास्तविक सम्पदा है ।



सकारात्मक सामूहिक संकल्प शक्ति

दिव्य मशाल की ज्वाला से 

वायुमंडल को प्रकाशित करना  है

वैश्विक महामारी के संकट काल में

सामूहिक सात्विक ऊर्जा शक्ति से

सकारात्मकता का दिव्य तेज

 जब समस्त विश्व को प्रकाशित करेगा ।

तब नकारात्मक ऊर्जा के

संकट को भागना ही पड़ेगा

आत्मशक्ति के तेज का प्रकाश जब

सम्पूर्ण विश्व में फैलेगा ,

तब अवश्य ही

विश्व के समस्त प्राणी

 स्वस्थ,निरोगी एवं दिव्य होंगे ।

पुष्पों में पुष्प पलाश

पुष्प तुम विधाता की
प्रकृति को बेहतरीन
अनमोल ,अतुलनीय अद्भुत 
देन या यूं कहिए भेंट हो ।

पुष्प तुम्हारी प्रजातियां अनेक
पुष्पों में पुष्प पलाश 
पल्लवित पलाश दर्शाता
प्रकृति का वसुंधरा 
के प्रति अप्रितम प्रेम
दुल्हन सा श्रृंगार
सौंदर्य का अद्भुत तेज 
पुष्प तुम प्रकृति के 
अनमोल रत्न दिव्य आधार
पुष्प तुम श्रद्धा
पुष्प तुम श्रृंगार 
पुष्प तुम प्रेम 
पुष्प तुम मित्रता 
पुष्प तुम समर्पण
पुष्प तुम महक
पुष्प तुम रौनकें बहार
पुष्प तुम संवेदना
पुष्प तुम श्रद्धांजलि
मिट्टी की गोद आकाश की छत
कांटों के बीच भी मुस्कराते हो
जीने की वजह बन जाते हो
पुष्प ने कहा ,मेरा स्वभाव ही ऐसा है 
मुस्कराने के सिवा कुछ आता नहीं 
देने के सिवा कुछ भाता नहीं








*पलाश के पुष्पों का सुन्दर संसार*

पलाश के पुष्पों का सुन्दर संसार
मन प्रफुल्लित रोम-रोम में होने
लगा अद्भुत रक्त संचार
सत्य है प्रकृति तुम हो जीवन का आधार
तुमसे ही सुन्दर संसार
वसुंधरा भी करती है श्रृंगार
मन मोहित हर्ष आभार
प्रकृति की बहार
नाच उठा मन मयूर
अद्भुत प्रकृति भी खूब चित्रकार

नई नवेली दुल्हन सा श्रृंगार
पलाश के पुष्पों की रक्तिम
बूटियों से जड़ी चुनरिया की कतार
अग्नि शोलों सा प्रतीत होता
सानिध्य में शीतल अतुलनीय
आभास ,मानों प्रेम की मीठी मिठास
रक्त वर्ण पलाश के पुष्पों की आभा
अग्निपथ प्रतीत होता
टेसू के कानन में जब झांका
प्राप्त हुई शांत ,निर्मल सुन्दर
रक्तिम पलाश के पुष्पों
की चुनरिया ओढ़े
दुल्हन ,प्रकृति चित्रकार
वसुंधरा दुल्हन ,अम्बर दूल्हा
देख मेरा रूप चांद भी शर्माता.......
पलाश के पुष्पों ने मेरा मन मोह में बांधा।




*काजल भागों वाला*

* काजल जो बिखर 
जाए तो कालिख 
बन जाता है *
काजल तू काला है
फिर भी भाग्य वाला है 
तेरा रूप निराला है 
यकीनन किस्मत वाला है
सौंदर्य का तू प्रेमी है
बनकर काला टीका नज़र से बचाता है
सौंदर्य को निहार स्वयं भी आकर्षण का केंद्र बन जाता है , काजल तुम वास्तव में भागों वाले हो
तुम्हें ही नयनों में सजाया जाता है
सौंदर्य का प्रसाधन भी माना जाता है
ऐ काजल तुम नयनों की शोभा बढ़ाना
नज़र से भी बचाना परंतु कभी ना किसी के
जीवन में कालिख बनकर मत आना
आना तो सौंदर्य ही बढ़ाने के लिए आना
नज़र से बचाने के लिए आना ।

वक़्त लौटता है*
धारावाहिक सीरियल रामायण 1987में जब पहले दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ था उस समय रामायण देखने के लिए भारत वर्ष के सभी अपने जरूरी काम छोड़कर ,यहां तक की सड़कों पर यातायात भी यदाकदा रामायण धारावाहिक देखने के लिए जहां टेलीविजन पर रामायण चल रहा हो रुक जाता था ...... आज समय ने कैसी करवट ली ,आज वैश्विक संक्रमण के कारण भारत के लोग अपने -अपने घरों में रुके हैं ...... और आज इस समय में रामानंद निर्देशित रामायण सीरियल फिर से दिखाया जा रहा है ,कौन कहता है प्रतिफल नहीं मिलता
(कल जिनके लिए हम रुके थे, आज हम रुके हैं तो वो हमारे लिए चल पड़े ) उदाहरणार्थ *रामायण ,महाभारत*

*आग और धुआँ *

*आग और धुआँ *


  *मैं ज्योति उजाले के साथ आयी
सब और उजाला छा गया
मैं ज्योति जलती रही चहुँ और
उजाला ही उजाला  ........
सबकी आँखे चुंध्याने लगीं
जब आग थी ,तो उजाला भी था
उजाले की जगमगाहट भी थी
जगमगाहट में आकर्षण भी था
आकर्षण की कशिश मे, अँधेरे जो
गुमनाम थे  झरोंकों से झाँकते
धीमे -धीमे दस्तक दे रहे थे।
  उजाले मे सब इस क़दर व्यस्त थे कि
ज्योति के उजाले का कारण किसी ने नहीं
जानना चाहा, तभी ज्योति की आह से निकला दर्द सरेआम हो गया
  आँखों से अश्रु बहने लगे
काले धुयें ने हवाओं में अपना घर कर  लिया जब तक उजाला था
सब खुश थे उजाले के दर्द
को किसी ने नहीं जाना
जब दर्द धुआँ ,बनकर निकला तो सब
उसे कोसने लगे।
बताओ ये भी कोई बात हुई
जब तक हम जलते रहे सब खुश रहे
आज हमारी राख से धुआँ उठने लगा तो
सब हमें ही कोसने लगे
दिये तले अँधेरा किसी ने नहीं देखा
आग तो सबने देखी पर आग का की तड़प
उसका दर्द धुआँ बनकर उड़ा तो उसे  सबने कोसा
उसके दर्द को किसी ने नहीं जाना ।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...