सकारात्मक सामूहिक संकल्प शक्ति

दिव्य मशाल की ज्वाला से 

वायुमंडल को प्रकाशित करना  है

वैश्विक महामारी के संकट काल में

सामूहिक सात्विक ऊर्जा शक्ति से

सकारात्मकता का दिव्य तेज

 जब समस्त विश्व को प्रकाशित करेगा ।

तब नकारात्मक ऊर्जा के

संकट को भागना ही पड़ेगा

आत्मशक्ति के तेज का प्रकाश जब

सम्पूर्ण विश्व में फैलेगा ,

तब अवश्य ही

विश्व के समस्त प्राणी

 स्वस्थ,निरोगी एवं दिव्य होंगे ।

पुष्पों में पुष्प पलाश

पुष्प तुम विधाता की
प्रकृति को बेहतरीन
अनमोल ,अतुलनीय अद्भुत 
देन या यूं कहिए भेंट हो ।

पुष्प तुम्हारी प्रजातियां अनेक
पुष्पों में पुष्प पलाश 
पल्लवित पलाश दर्शाता
प्रकृति का वसुंधरा 
के प्रति अप्रितम प्रेम
दुल्हन सा श्रृंगार
सौंदर्य का अद्भुत तेज 
पुष्प तुम प्रकृति के 
अनमोल रत्न दिव्य आधार
पुष्प तुम श्रद्धा
पुष्प तुम श्रृंगार 
पुष्प तुम प्रेम 
पुष्प तुम मित्रता 
पुष्प तुम समर्पण
पुष्प तुम महक
पुष्प तुम रौनकें बहार
पुष्प तुम संवेदना
पुष्प तुम श्रद्धांजलि
मिट्टी की गोद आकाश की छत
कांटों के बीच भी मुस्कराते हो
जीने की वजह बन जाते हो
पुष्प ने कहा ,मेरा स्वभाव ही ऐसा है 
मुस्कराने के सिवा कुछ आता नहीं 
देने के सिवा कुछ भाता नहीं








*पलाश के पुष्पों का सुन्दर संसार*

पलाश के पुष्पों का सुन्दर संसार
मन प्रफुल्लित रोम-रोम में होने
लगा अद्भुत रक्त संचार
सत्य है प्रकृति तुम हो जीवन का आधार
तुमसे ही सुन्दर संसार
वसुंधरा भी करती है श्रृंगार
मन मोहित हर्ष आभार
प्रकृति की बहार
नाच उठा मन मयूर
अद्भुत प्रकृति भी खूब चित्रकार

नई नवेली दुल्हन सा श्रृंगार
पलाश के पुष्पों की रक्तिम
बूटियों से जड़ी चुनरिया की कतार
अग्नि शोलों सा प्रतीत होता
सानिध्य में शीतल अतुलनीय
आभास ,मानों प्रेम की मीठी मिठास
रक्त वर्ण पलाश के पुष्पों की आभा
अग्निपथ प्रतीत होता
टेसू के कानन में जब झांका
प्राप्त हुई शांत ,निर्मल सुन्दर
रक्तिम पलाश के पुष्पों
की चुनरिया ओढ़े
दुल्हन ,प्रकृति चित्रकार
वसुंधरा दुल्हन ,अम्बर दूल्हा
देख मेरा रूप चांद भी शर्माता.......
पलाश के पुष्पों ने मेरा मन मोह में बांधा।




*काजल भागों वाला*

* काजल जो बिखर 
जाए तो कालिख 
बन जाता है *
काजल तू काला है
फिर भी भाग्य वाला है 
तेरा रूप निराला है 
यकीनन किस्मत वाला है
सौंदर्य का तू प्रेमी है
बनकर काला टीका नज़र से बचाता है
सौंदर्य को निहार स्वयं भी आकर्षण का केंद्र बन जाता है , काजल तुम वास्तव में भागों वाले हो
तुम्हें ही नयनों में सजाया जाता है
सौंदर्य का प्रसाधन भी माना जाता है
ऐ काजल तुम नयनों की शोभा बढ़ाना
नज़र से भी बचाना परंतु कभी ना किसी के
जीवन में कालिख बनकर मत आना
आना तो सौंदर्य ही बढ़ाने के लिए आना
नज़र से बचाने के लिए आना ।

वक़्त लौटता है*
धारावाहिक सीरियल रामायण 1987में जब पहले दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ था उस समय रामायण देखने के लिए भारत वर्ष के सभी अपने जरूरी काम छोड़कर ,यहां तक की सड़कों पर यातायात भी यदाकदा रामायण धारावाहिक देखने के लिए जहां टेलीविजन पर रामायण चल रहा हो रुक जाता था ...... आज समय ने कैसी करवट ली ,आज वैश्विक संक्रमण के कारण भारत के लोग अपने -अपने घरों में रुके हैं ...... और आज इस समय में रामानंद निर्देशित रामायण सीरियल फिर से दिखाया जा रहा है ,कौन कहता है प्रतिफल नहीं मिलता
(कल जिनके लिए हम रुके थे, आज हम रुके हैं तो वो हमारे लिए चल पड़े ) उदाहरणार्थ *रामायण ,महाभारत*

*आग और धुआँ *

*आग और धुआँ *


  *मैं ज्योति उजाले के साथ आयी
सब और उजाला छा गया
मैं ज्योति जलती रही चहुँ और
उजाला ही उजाला  ........
सबकी आँखे चुंध्याने लगीं
जब आग थी ,तो उजाला भी था
उजाले की जगमगाहट भी थी
जगमगाहट में आकर्षण भी था
आकर्षण की कशिश मे, अँधेरे जो
गुमनाम थे  झरोंकों से झाँकते
धीमे -धीमे दस्तक दे रहे थे।
  उजाले मे सब इस क़दर व्यस्त थे कि
ज्योति के उजाले का कारण किसी ने नहीं
जानना चाहा, तभी ज्योति की आह से निकला दर्द सरेआम हो गया
  आँखों से अश्रु बहने लगे
काले धुयें ने हवाओं में अपना घर कर  लिया जब तक उजाला था
सब खुश थे उजाले के दर्द
को किसी ने नहीं जाना
जब दर्द धुआँ ,बनकर निकला तो सब
उसे कोसने लगे।
बताओ ये भी कोई बात हुई
जब तक हम जलते रहे सब खुश रहे
आज हमारी राख से धुआँ उठने लगा तो
सब हमें ही कोसने लगे
दिये तले अँधेरा किसी ने नहीं देखा
आग तो सबने देखी पर आग का की तड़प
उसका दर्द धुआँ बनकर उड़ा तो उसे  सबने कोसा
उसके दर्द को किसी ने नहीं जाना ।

मेरा धर्म इंसानियत है ****

* शर्मसार होती इंसानियत*
    नहीं- नहीं -नहीं , मैं नहीं करूंगा जो तुम मुझसे करवाना चाहते हो ,चाहे मैं और मेरे बच्चे भूख से मर जाएं पर हम ऐसा काम कभी नहीं करेंगे ।
 इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं और हम अपने धर्म से कभी पीछे नहीं हटेंगे।
   अब्बा जान जरा दिमाग़ लगा कर सोचो ,सरकार ने नागरिकता बिल पास कराया है ,और सरकार का कहना है की सभी को नागरिकता लेनी पड़ेगी ....
 अब्बा जान - तो क्या हुआ ले लेंगे नागरिकता हमारा तो जन्म यहीं का है हमारी हमारा निकाह भी यहीं और यहीं के परिवार से हमारा रिश्ता जुड़ा अब कोई हम कहीं और थोड़े जाने वाले हैं , ले लेंगे यहीं को नागरिकता और यहीं के होकर रहेंगे इसमें दिक्कत क्या है।

 अब्बा जान ,आप भी ना बहुत सीधे हैं ये हिन्दुस्तान है,यहां हिन्दुओं का राज रहेगा ।

अब्बा जान अपने पड़ोसी मित्र पर झल्लाते हुए तो लल्लन हमें कौन सा राज करना है ,हमसे अपना घर परिवार सम्भल जाए वो ही काफी है ।
लल्लन, अब्बा जान से तुम्हें कोई नहीं समझ सकता  जब धक्के मार कर बाहर निकाल  जाओगे ना तब
पता चलेगा ।
अब्बा जान मैं आज ही यहां की नागरिकता लेता हूं फिर कौन निकलेगा हमें बाहर जब हम यहीं के हो जाएंगे ।

 बहुत अच्छे से ट्रेनिंग दी गई थी इन युवाओं को

जानवर ,भेड़िए,आस्तीन के सांप ,जैसे कितने भी अपशब्द कम थे ऐसे देश के गद्दारों के लिए ,जिस थाली में खा रहे थे उसी में छेद कर रहे थे ।

भटके हुए प्राणी कुछ पैसों के लालच और गलत शिक्षा के कारण भटके हुए थे ये हिंसक युवा .....

जब नोटों का लालच दिखाया जाता है ,तब बड़े- बड़ों का ईमान डोल जाता है ।

और जब पापी पेट का सवाल हो तो ...

अपना पेट तो छोड़ो बच्चों की जरूरतों की खातिर ।

  अगले ही दिन टेलीविजन पर आज  कुछ उपद्रवियों ने किसी पुलिस चौकी के समीप पथराव किया ,

फिर एक और ख़बर उपद्रव की बड़ी खबरें  शहर में जगह -जगह हिंसा पथराव,कई लोग घायल .....

लगातार कई दिनों से हिंसा की घटनाएं चल रही थीं अब्बा जान मन ही मन बहुत परेशान थे कुछ कर भी नहीं पा रहे थे । आखिर अपने ही सगों के खिलाफ आवाज उठान इतना आसान नहीं था ,लेकिन अब्बा जान का जमीर इस बात की गवाही नहीं दे रहा था ।

 शहर के कई इलाके नफरत की आग में झुलस रहे थे ।

 अब्बा जान क्योंकि लल्लन के पड़ोसी मित्र थे ,और उम्र में भी बड़े तो सब उन्हें अपने अब्बा सामान ही समझते थे ,लेकिन सुनता कौन था उनकी ।

बस अब और नहीं अब्बा जान की आत्मा उन्हें धिक्कार रही थी ,हर अगले दिन कौन सी वारदात होनी है उन्हें ख़बर होती  ,माना की वो उस वारदात का हिस्सा नहीं थे और ना ही चाहते थे परन्तु  हिंसा

या किसी वारदात की खबर होना और कुछ ना कर पाना यह भी किसी हिंसा से कम नहीं था ।

अब्बा जान स्वयं को दोषी मानने लगे थे ,अल्लाह तो सब जानता है ,क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा का पाठ कभी नहीं पढाता  ।

अब्बा जान जब आल्लाह से मुलाकात होगी तो दोषी मैं भी ठहराया जाऊंगा ।

 अब्बा जान नहीं मुझे कुछ करना होगा कैसे रौंकू इस उपद्रव की गन्दगी को ....

अब्बा जान कश्मकश में थे उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था, तभी अब्बा जान अचानक कहीं चले गए ।

 पूरी रात बीत गई थी अब्बा जान घर नहीं पहुंचे थे घर वालों को चिंता हो रही थी ,आखिर अब्बा जान किधर गए ,कई जगहों से पता लगाया परंतु अब्बा जान का कुछ भी पता नहीं चल रहा था ।

 इधर दंगाइयों का उपद्रव सिर चड़ कर बोल रहा था ,शहर में आगजनी की वारदातें भी बड़ रही थीं ।

  पुलिस फोर्स भी इन दंगों पर काबू नहीं कर पा रही थी ।

 आखिर बढते हुए दंगे जान- माल का भारी नुकसान । अगले दिन ही समाचार सुनने को मिला की सरकार ने दंगा पीड़ित इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया है । शहर के हालात दो -चार दिन सामान्य होने लगे थे ।

   थोड़े दिनों बाद छब्बीस जनवरी थी ।

 आज अब्बा जान अच्छे से तैयार होकर कहां चले लल्लन ने व्यंग कसते हुए कहा ।

 गले में सम्मान प्रतीक मेडल और हाथ में राष्ट्रपति सम्मान का प्रमाण पत्र लिए अब्बा जान अपनी गली से अपने घर के लिए जा रहे थे अब्बा जान की चाल में  सवभिमान की साफ झलक रहा था ।

 गली के और घर के लोग बाहर खड़े मन ही मन अब्बा जान का स्वागत कर रहे थे ,खुश थे की अब्बा जान ने कुछ बेहतरीन काम किया है जो आज उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार मिला है ।
 अपने घर की  चौखट पर अभी अब्बा जान ने कदम बढाया ही था की अचानक जोर की आवाज हुई ,अब्बा जान की पीठ लहूलुहान थी ,सब लोग अब्बा जान कि तरफ दौड़े , अब्बा जान ने आखिरी सांसे लेते हुए ,वंदेमातरम कहते हुए अपने प्राण छोड़ दिए और सबकी आंखें नम हो गईं थीं।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...