पुष्पों में पुष्प पलाश

पुष्प तुम विधाता की
प्रकृति को बेहतरीन
अनमोल ,अतुलनीय अद्भुत 
देन या यूं कहिए भेंट हो ।

पुष्प तुम्हारी प्रजातियां अनेक
पुष्पों में पुष्प पलाश 
पल्लवित पलाश दर्शाता
प्रकृति का वसुंधरा 
के प्रति अप्रितम प्रेम
दुल्हन सा श्रृंगार
सौंदर्य का अद्भुत तेज 
पुष्प तुम प्रकृति के 
अनमोल रत्न दिव्य आधार
पुष्प तुम श्रद्धा
पुष्प तुम श्रृंगार 
पुष्प तुम प्रेम 
पुष्प तुम मित्रता 
पुष्प तुम समर्पण
पुष्प तुम महक
पुष्प तुम रौनकें बहार
पुष्प तुम संवेदना
पुष्प तुम श्रद्धांजलि
मिट्टी की गोद आकाश की छत
कांटों के बीच भी मुस्कराते हो
जीने की वजह बन जाते हो
पुष्प ने कहा ,मेरा स्वभाव ही ऐसा है 
मुस्कराने के सिवा कुछ आता नहीं 
देने के सिवा कुछ भाता नहीं








*पलाश के पुष्पों का सुन्दर संसार*

पलाश के पुष्पों का सुन्दर संसार
मन प्रफुल्लित रोम-रोम में होने
लगा अद्भुत रक्त संचार
सत्य है प्रकृति तुम हो जीवन का आधार
तुमसे ही सुन्दर संसार
वसुंधरा भी करती है श्रृंगार
मन मोहित हर्ष आभार
प्रकृति की बहार
नाच उठा मन मयूर
अद्भुत प्रकृति भी खूब चित्रकार

नई नवेली दुल्हन सा श्रृंगार
पलाश के पुष्पों की रक्तिम
बूटियों से जड़ी चुनरिया की कतार
अग्नि शोलों सा प्रतीत होता
सानिध्य में शीतल अतुलनीय
आभास ,मानों प्रेम की मीठी मिठास
रक्त वर्ण पलाश के पुष्पों की आभा
अग्निपथ प्रतीत होता
टेसू के कानन में जब झांका
प्राप्त हुई शांत ,निर्मल सुन्दर
रक्तिम पलाश के पुष्पों
की चुनरिया ओढ़े
दुल्हन ,प्रकृति चित्रकार
वसुंधरा दुल्हन ,अम्बर दूल्हा
देख मेरा रूप चांद भी शर्माता.......
पलाश के पुष्पों ने मेरा मन मोह में बांधा।




*काजल भागों वाला*

* काजल जो बिखर 
जाए तो कालिख 
बन जाता है *
काजल तू काला है
फिर भी भाग्य वाला है 
तेरा रूप निराला है 
यकीनन किस्मत वाला है
सौंदर्य का तू प्रेमी है
बनकर काला टीका नज़र से बचाता है
सौंदर्य को निहार स्वयं भी आकर्षण का केंद्र बन जाता है , काजल तुम वास्तव में भागों वाले हो
तुम्हें ही नयनों में सजाया जाता है
सौंदर्य का प्रसाधन भी माना जाता है
ऐ काजल तुम नयनों की शोभा बढ़ाना
नज़र से भी बचाना परंतु कभी ना किसी के
जीवन में कालिख बनकर मत आना
आना तो सौंदर्य ही बढ़ाने के लिए आना
नज़र से बचाने के लिए आना ।

वक़्त लौटता है*
धारावाहिक सीरियल रामायण 1987में जब पहले दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ था उस समय रामायण देखने के लिए भारत वर्ष के सभी अपने जरूरी काम छोड़कर ,यहां तक की सड़कों पर यातायात भी यदाकदा रामायण धारावाहिक देखने के लिए जहां टेलीविजन पर रामायण चल रहा हो रुक जाता था ...... आज समय ने कैसी करवट ली ,आज वैश्विक संक्रमण के कारण भारत के लोग अपने -अपने घरों में रुके हैं ...... और आज इस समय में रामानंद निर्देशित रामायण सीरियल फिर से दिखाया जा रहा है ,कौन कहता है प्रतिफल नहीं मिलता
(कल जिनके लिए हम रुके थे, आज हम रुके हैं तो वो हमारे लिए चल पड़े ) उदाहरणार्थ *रामायण ,महाभारत*

*आग और धुआँ *

*आग और धुआँ *


  *मैं ज्योति उजाले के साथ आयी
सब और उजाला छा गया
मैं ज्योति जलती रही चहुँ और
उजाला ही उजाला  ........
सबकी आँखे चुंध्याने लगीं
जब आग थी ,तो उजाला भी था
उजाले की जगमगाहट भी थी
जगमगाहट में आकर्षण भी था
आकर्षण की कशिश मे, अँधेरे जो
गुमनाम थे  झरोंकों से झाँकते
धीमे -धीमे दस्तक दे रहे थे।
  उजाले मे सब इस क़दर व्यस्त थे कि
ज्योति के उजाले का कारण किसी ने नहीं
जानना चाहा, तभी ज्योति की आह से निकला दर्द सरेआम हो गया
  आँखों से अश्रु बहने लगे
काले धुयें ने हवाओं में अपना घर कर  लिया जब तक उजाला था
सब खुश थे उजाले के दर्द
को किसी ने नहीं जाना
जब दर्द धुआँ ,बनकर निकला तो सब
उसे कोसने लगे।
बताओ ये भी कोई बात हुई
जब तक हम जलते रहे सब खुश रहे
आज हमारी राख से धुआँ उठने लगा तो
सब हमें ही कोसने लगे
दिये तले अँधेरा किसी ने नहीं देखा
आग तो सबने देखी पर आग का की तड़प
उसका दर्द धुआँ बनकर उड़ा तो उसे  सबने कोसा
उसके दर्द को किसी ने नहीं जाना ।

मेरा धर्म इंसानियत है ****

* शर्मसार होती इंसानियत*
    नहीं- नहीं -नहीं , मैं नहीं करूंगा जो तुम मुझसे करवाना चाहते हो ,चाहे मैं और मेरे बच्चे भूख से मर जाएं पर हम ऐसा काम कभी नहीं करेंगे ।
 इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं और हम अपने धर्म से कभी पीछे नहीं हटेंगे।
   अब्बा जान जरा दिमाग़ लगा कर सोचो ,सरकार ने नागरिकता बिल पास कराया है ,और सरकार का कहना है की सभी को नागरिकता लेनी पड़ेगी ....
 अब्बा जान - तो क्या हुआ ले लेंगे नागरिकता हमारा तो जन्म यहीं का है हमारी हमारा निकाह भी यहीं और यहीं के परिवार से हमारा रिश्ता जुड़ा अब कोई हम कहीं और थोड़े जाने वाले हैं , ले लेंगे यहीं को नागरिकता और यहीं के होकर रहेंगे इसमें दिक्कत क्या है।

 अब्बा जान ,आप भी ना बहुत सीधे हैं ये हिन्दुस्तान है,यहां हिन्दुओं का राज रहेगा ।

अब्बा जान अपने पड़ोसी मित्र पर झल्लाते हुए तो लल्लन हमें कौन सा राज करना है ,हमसे अपना घर परिवार सम्भल जाए वो ही काफी है ।
लल्लन, अब्बा जान से तुम्हें कोई नहीं समझ सकता  जब धक्के मार कर बाहर निकाल  जाओगे ना तब
पता चलेगा ।
अब्बा जान मैं आज ही यहां की नागरिकता लेता हूं फिर कौन निकलेगा हमें बाहर जब हम यहीं के हो जाएंगे ।

 बहुत अच्छे से ट्रेनिंग दी गई थी इन युवाओं को

जानवर ,भेड़िए,आस्तीन के सांप ,जैसे कितने भी अपशब्द कम थे ऐसे देश के गद्दारों के लिए ,जिस थाली में खा रहे थे उसी में छेद कर रहे थे ।

भटके हुए प्राणी कुछ पैसों के लालच और गलत शिक्षा के कारण भटके हुए थे ये हिंसक युवा .....

जब नोटों का लालच दिखाया जाता है ,तब बड़े- बड़ों का ईमान डोल जाता है ।

और जब पापी पेट का सवाल हो तो ...

अपना पेट तो छोड़ो बच्चों की जरूरतों की खातिर ।

  अगले ही दिन टेलीविजन पर आज  कुछ उपद्रवियों ने किसी पुलिस चौकी के समीप पथराव किया ,

फिर एक और ख़बर उपद्रव की बड़ी खबरें  शहर में जगह -जगह हिंसा पथराव,कई लोग घायल .....

लगातार कई दिनों से हिंसा की घटनाएं चल रही थीं अब्बा जान मन ही मन बहुत परेशान थे कुछ कर भी नहीं पा रहे थे । आखिर अपने ही सगों के खिलाफ आवाज उठान इतना आसान नहीं था ,लेकिन अब्बा जान का जमीर इस बात की गवाही नहीं दे रहा था ।

 शहर के कई इलाके नफरत की आग में झुलस रहे थे ।

 अब्बा जान क्योंकि लल्लन के पड़ोसी मित्र थे ,और उम्र में भी बड़े तो सब उन्हें अपने अब्बा सामान ही समझते थे ,लेकिन सुनता कौन था उनकी ।

बस अब और नहीं अब्बा जान की आत्मा उन्हें धिक्कार रही थी ,हर अगले दिन कौन सी वारदात होनी है उन्हें ख़बर होती  ,माना की वो उस वारदात का हिस्सा नहीं थे और ना ही चाहते थे परन्तु  हिंसा

या किसी वारदात की खबर होना और कुछ ना कर पाना यह भी किसी हिंसा से कम नहीं था ।

अब्बा जान स्वयं को दोषी मानने लगे थे ,अल्लाह तो सब जानता है ,क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा का पाठ कभी नहीं पढाता  ।

अब्बा जान जब आल्लाह से मुलाकात होगी तो दोषी मैं भी ठहराया जाऊंगा ।

 अब्बा जान नहीं मुझे कुछ करना होगा कैसे रौंकू इस उपद्रव की गन्दगी को ....

अब्बा जान कश्मकश में थे उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था, तभी अब्बा जान अचानक कहीं चले गए ।

 पूरी रात बीत गई थी अब्बा जान घर नहीं पहुंचे थे घर वालों को चिंता हो रही थी ,आखिर अब्बा जान किधर गए ,कई जगहों से पता लगाया परंतु अब्बा जान का कुछ भी पता नहीं चल रहा था ।

 इधर दंगाइयों का उपद्रव सिर चड़ कर बोल रहा था ,शहर में आगजनी की वारदातें भी बड़ रही थीं ।

  पुलिस फोर्स भी इन दंगों पर काबू नहीं कर पा रही थी ।

 आखिर बढते हुए दंगे जान- माल का भारी नुकसान । अगले दिन ही समाचार सुनने को मिला की सरकार ने दंगा पीड़ित इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया है । शहर के हालात दो -चार दिन सामान्य होने लगे थे ।

   थोड़े दिनों बाद छब्बीस जनवरी थी ।

 आज अब्बा जान अच्छे से तैयार होकर कहां चले लल्लन ने व्यंग कसते हुए कहा ।

 गले में सम्मान प्रतीक मेडल और हाथ में राष्ट्रपति सम्मान का प्रमाण पत्र लिए अब्बा जान अपनी गली से अपने घर के लिए जा रहे थे अब्बा जान की चाल में  सवभिमान की साफ झलक रहा था ।

 गली के और घर के लोग बाहर खड़े मन ही मन अब्बा जान का स्वागत कर रहे थे ,खुश थे की अब्बा जान ने कुछ बेहतरीन काम किया है जो आज उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार मिला है ।
 अपने घर की  चौखट पर अभी अब्बा जान ने कदम बढाया ही था की अचानक जोर की आवाज हुई ,अब्बा जान की पीठ लहूलुहान थी ,सब लोग अब्बा जान कि तरफ दौड़े , अब्बा जान ने आखिरी सांसे लेते हुए ,वंदेमातरम कहते हुए अपने प्राण छोड़ दिए और सबकी आंखें नम हो गईं थीं।

*काफिला*

 परिचय,

पिताजी:- नाम चमनलाल उम्र ६५ वर्ष

बेटा:- अमन उम्र २५ वर्ष

टेलीविजन,समाचार वाचिका

शर्मा जी- पड़ोसी

पवन:- अमन का मित्र

भीड़,में शोर मचाते,नारे लगाते लोग

भीड़ में एक व्यक्ति

पुलिस की गाड़ी :- सायरन की आवाज


(पहला दृश्य)  भीड़ का दृश्य


कुछ लोग भीड़ के पीछे आंखे बंद करके चल देते हैं उनसे पूछा जाए की तुम कहां और क्यों जा रहे हो तो जवाब मिलता है,जिस और सब जाएंगे वहीं तो जाएंगे, हम कोई अपनी डफ़ली अपना राग थोड़े अलापेंगे ।
  लोग कहते हैं कि देश देश बदल रहा है ,कुछ लोगों का कहना है की बड़े -बड़े बदलावों के होने से थोड़ी परेशानी तो होगी ही ।

        दूसरा दृश्य


पिताजी :-  खादी के कपड़े और चमड़े के सस्ते से जूते पहनने वाले पिताजी को उनके बेटे अमन ने ब्रैंडेड कपड़े और महंगे जूते लाकर दिए फिर क्या हुआ देखिए ।

पिताजी:-    आजकल देखो कुछ भी बदल जाता है कल तक मैं खादी का कुर्ता पाजामा और

सस्ते से कपड़े के जूते पहनता था । और अब...
हे भगवान कैसा जमाना आ गया है ....बदल रहा है मेरा देश बदल रहा है।
पिताजी जूतों को अपने सीने से लगाए हुए
पिताजी नाम चमनलाल  - :   मेरे तो अच्छे दिन आ गए पूछो वो कैसे देखो सब लोग ये मेरे जूते पूरे हजार के हैं। मे
बेटे ने मंगवाकर दिए हैं कहता है अब मैं कमाता हूं पिताजी आप चिंता ना करो मेरा स्टैंडर्ड बड़ गया है ।
पिताजी चमनलाल अपने आप से बतियाते हुए अब आप लोग ही बताइए मैं क्या करूं इतने मंहगे जूते पहनने में मानों डर लगता है अगर गंदे हो गए तो,
ऐसा करता हूं इन जूतों को संभाल कर अलमारी में रख देता हूं ,बेटे की शादी में पहनूंगा
 पिताजी अपना जूते सम्भाल कर रख देते हैं ।

    पिताजी बैठक में प्रवेश करते हुए ...


 चमनलाल का बेटा नाम अमन टेलीविजन पर समाचार सुनने में इतना खोया हुआ था की उसको पता भी नहीं चला की उसके पिताजी ने उससे कुछ कहा है ।

पिताजी -: अपने बेटे अमन को हिलाते हुए

अमन:- अरे पिताजी इतनी जोर से क्यों हिलाया आवाज लगा देते मैं सुन लेता क्या पिताजी आपने तो मेरा सारा मूड खराब कर दिया ।

पिताजी:- मैं बोला था सबसे पहले मैंने तुम्हें आवाज ही लगाई थी पर तुम्हारे कान और आंखे तो टेलीविजन देखने और सुनने में खोए हुए थे ।
 पिताजी:- अच्छा ये बताओ क्या चल रहा है अब हमारे देश में कौन सा नया कानून आ रहा है कहीं अब तो कोई नोट बन्द नहीं हो रहे.....
 अमन:- टेलीविजन की तरफ देखते हुए ,पिताजी अब लगता है कुछ बड़ा होने वाला है इस देश में जब देखो तब नारेबाजी हड़ताल ।
  पिताजी :- बेटा तुझे क्या करना है ,तू क्यों इन चक्करों में पड़ता है तेरी अच्छी सी नौकरी उस पर ध्यान दे ...
तभी टेलीविजन :- से न्यूज रिपोर्टर और:-आज की सबसे बड़ी खबर ,बस वही तोड़-फोड़ पथराव आदि
पिताजी चमनलाल:- ये समाचार वाले कभी कोई अच्छी खबर नहीं देते

अमन:- नहीं पिताजी जरूर कुछ बड़ा होने वाला है  तभी इतना विरोध हो रहा है ।


 तभी किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी ,अमन दरवाजा खोलते हुए पड़ोस के शर्मा जी को नमस्कार करते हुए  जाते शर्मा जी आ जाते थे घर पर कभी-कभी कोई नयी- ताजी सुनने -सुनाने  ।

चमनलाल :- और शर्मा जी कैसे हो आज बहुत दिनों में आए ।

शर्मा जी :- हां आजकल बस स्वास्थ्य भी ऐसा ही रहता है ।

चमनलाल :- जा अमन मां को बोल दो कप चाय बना दे

शर्मा जी और चमनलाल चाय की चुस्कियां लेते हुए ।
शर्मा जी अपनी बात कहते हुए घर से बाहर निकल कर देखो जगह-जगह दंगे फसाद हो रहे हैं ,तुम्हे पता भी है तुम्हारे देश में क्या चल रहा है ।
पिताजी क्या चल रहा है, मजाक करते हुए फाग चल रहा है ....और क्या दोनों ठहाका लगाकर हंसने लगे

शर्मा जी:- आज हमारे घर के आगे चौराहे पर कुछ लोग प्रदर्शन करेंगे , नगर पालिका के बाहर भी धरना होगा, चमनलाल मेरे साथ चलना ।

चमनलाल  :- देख शर्मा कहीं घूमने जाना हो तो मैं चलता तेरा कोई जरूरी काम होता तो भी मैं चलता पर इन फालतू के चक्करों में मैं नहीं पड़ता ।

मुझे तमाशा देखने का कोई शौंक नहीं

अगर मैं अपने देश के लिए कुछ कर नहीं सकता तो कोई दुःख नहीं परंतु इस तरह बिना सोचे-समझे नहीं
शर्मा मेरी आत्मा गवाही नहीं देती
शर्मा जी टेड़ा सा मुंह करके लौट गए

अमन:- थोड़ी देर बैठने के बाद कुछ सामान लेने के बहाने पिताजी मैं बाजार से सामान लेकर आता हू ...


(दूसरा दृश्य)


 अमन घर से सामान लेने के बहाने निकल गया था ।
थोड़े आगे ही चला था की अमन को उसका मित्र जिसका नाम मदन मिल गया ।

 अमन और अमन का मित्र मदन दोनो में हाय ,हेलो हुई ।

अमन :- यार मदन आजकल तुम कहां रहते हो


मदन :- यार अमन मुझे गुड़गांव में अच्छी नौकरी मिल गई है ,अब मां ,पिताजी मेरी शादी की तैयारियां कर रहे हैं थोड़ा शर्माते और सिर खुजलाते हुए ...

अमन:- यार मेरी होने वाली भाभी कैसी है,कब मिलवा रहा है भाभी से ..

मदन :- जल्द ही अगले महीने की पांच तारीख को शादी है मेरी , मां ,पिताजी कार्ड देने आएंगे तुम जरूर आना
अमन :- हां यार तेरी शादी में तो जरूर आऊंगा क्या पता मुझे भी कोई अपने लायक लड़की मिल जाए
 हंसते हुए ...
अमन:- मदन चल थोड़ा आगे तक चलते हैं देखते हैं वहां क्या हो रहा है।
पवन:- नहीं यार मुझे कुछ सामान लेना है जल्दी है घर जाकर और भी काम हैं तू जा मैं सामान लेता हूं।

(तीसरा दृश्य )

    भीड़ का दृश्य  भीड़ का आक्रोश , हाय-हाय मुर्दाबाद की आवाजें


अमन थोड़ी दूर से खड़ा भीड़ को देख रहा था


अमन थोड़ा आगे बड़ा और एक व्यक्ति से पूछने लगा ,यार ये भीड़ क्यों लगा रखी है तुम्हारी कौन से मांग दृश्यया फिर कौन सी ऐसी जातती हो रही है तुम्हारे साथ, जो तुम सब इतना आक्रोश दिखा रहे हो

भीड़ वाला व्यक्ति:-  बोला साहब जी हम तो कल भी मेहनत मजदूरी करके रोटी खाते थे और हर रोज यही करेंगें।   हमें तो हमारे ठेकेदार जो कहते हैं  वहीं करते हैं

हमसे कहा गया की जाकर ऐसे ऐसे नारे लगाओ शोर मचा ओ हम वहीं कर रहे हैं ।
 अमन:- तो तुम्हें यह काम करने यानि नारे लगाने के पैसे मिलते हैं
व्यक्ति:-  और क्या बिना पैसे के कोई पागल ही होगा जो यह सब करेगा
अमन को इतना तो समझ आ गया था इस आक्रोश को दिखाने वाली किसी धर्म जाति के नहीं यह तो किसी के मोहरे है जिन्हें जैसे चला जा रहा था वह चल रहे थे ।

   तभी पुलिस की गाड़ियां सायरन की आवाज करती हुई भीड़ के समीप पहुंच गई ,

पुलिस:- एक -एक कर सबको गाड़ियों में भरने लगी और डंडे भी चलाने लगी ।
पुलिस का एक डंडा अमन को भी लगा तभी एक पुलिस  वाला अमन को पकड़ कर गाड़ी में बैठाने लगा ,अमन चिल्ला रहा था में इस भीड़ का हिस्सा नहीं हूं । मैं तो यहां भीड़ क्यों लगी है देखने आया था ।

पुलिस वाला: अमन से अच्छा तमाशा देखने आए थे चलो तुम्हारा तमाशा तो हम पुलिस स्टेशन में ही देखेंगे ।

 (पुलिस स्टेशन का दृश्य)

इतने में अमन का मित्र मदन जो वहीं से होकर गुजर रहा था अमन को पुलिस को ले जाता देख मदन चिल्लाया सर ये निर्दोष है यह तो यहां भीड़ में क्या हो रहा है  ये देखने आया था पुलिस वाले यह कहते हुए आगे बड़ गए जो कहना है पुलिस स्टेशन में कहना ।

मदन पुलिस स्टेशन पहुंच गया था ,अमन को देखकर मदन ने उसे खूब खरी खोटी सुनाई ।

पुलिस :- अरे भाईसाहब ये इमोशनल ड्रामा आप बाहर जाकर करिएगा चलिए इन कागजों पर साइन कीजिए और आगे से इन्हें समझा कर रखिएगा।

भीड़ के पीछे भागने में समझदारी नहीं होती
अच्छे काम करने वालों की भीड़ किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती तोड़-फोड़ नहीं करती किसी को पत्थर नहीं मारती ।
 मदन अपने मित्र अमन को समझाते हुए देख अमन पहले देखो समझो की तुम्हे कहां जाना है सिर्फ भीड़ के पीछे चल देना कोई समझदारी नहीं
जिस तरफ सब चल रहे हैं भेड़ों की तरह उसी तरफ चल देना बेवकूफी है भगवान ने इंसान को ही दिमाग दिया की अपनी बुद्धि से वो अपना रास्ता खुद चुन सके ।

( भीड़ हिस्सा बनने से अच्छा है तुम अकेले ही अपना बेहतरीन रास्ता बनाओ जिससे भीड़ का काफिला तुम्हारे पीछे चल दे )


स्व रचित :- ऋतु असूजा ऋषिकेश

निवास स्थान :- उत्तराखंड ऋषिकेश 

जन्म तिथि:- 11-6-1968

शिक्षा:- स्नातक इंटरनेट पर अपना ब्लपोस्ट 

"ऊंचाईयां शीर्ष की आसमानी फ़रिश्ते

बेस्ट ब्लॉगर सम्मान I blogger द्वारा

इसके अतिरिक्त लेखन की कई प्रतियोगिताएं में हिस्सा लिया और सम्मान पत्र प्राप्त किया । 

एक सक्रिय लेखक 






























 पवन अब अपने पिताजी द्वारा चलाई जा रही पंखों ,फ्रिज आदि सामान की दुकान संभालने लगा था ।
पवन:- सुबह के साढ़े ग्यारह बज रहे थे ,कुछ कमाई धंधा कर ले अपनी दुकान पहुंचा, दुकान पहुंचते ही इतनी तेज पंखा क्यों चला रखा है सुबह से कमाई धंधा कुछ हुआ नहीं और ये चले बिजली का बिल बढ़ाने ,पवन चिल्ला रहा था अपनी दुकान पर काम करने वालों पर।
 पिताजी:-  बोले आ गए साहब जी
जरा फर्श को देखो अभी सफाई हुई है फर्श गीला था इसीलिए पंखा चला रखा था हमें कोई शौंक नहीं है इतनी ठंड में पंखा चलाने का, जोर से बोलने की वजह से पिताजी खांसने लगे ।
पवन:- क्या पिताजी कितनी बार कहा है दवा ले लिया करो और आप भी ना जब तक मैं आकर अपने हाथ से दवा नहीं दूंगा ,आप लोगे नहीं लो चलो दवा पी लो पवन पिताजी को दवा पिला ते हुए ....पिताजी अब आपकी उम्र हो गई है घर पर आराम करा करो ,में हूं ना सब संभाल लूंगा ।
पिताजी :-हां देख लेंगे दस बजे तक तो सोकर नहीं उठता ,बारह बजे भी कोई दुकान आने का समय है क्या ......पता नहीं मेरे बाद क्या होगा ।

तभी कुछ लोगों का झुंड :-  बहुतजोर -जोर से चिल्लाते हुए दुकान के आगे से निकला
दुकान के सभी लोगों :- की नजरें उस भीड़ को ताकने लगी ,आस-पास सब ही बतिया रहे थे जरूर कुछ बड़ा कांड हुआ है बहुत आक्रोश था भीड़ में ...

  दुकान के थोड़ा आगे एक चौराहा था जहां से सब लोगों के जोर-जोर से नारे लगाने की आवाज आ रही थी ।
पवन:- पवन के मन में उत्सुकता हो रही थी की आखिर क्या हुआ इतना शोर किसलिए पवन ने अमन को फोन मिलाया
 अमन:-  अमन की चौराहे के पास ही किराने की दुकान थी पवन का फोन आते ही हां बोल पवन क्या काम है जल्दी बोल ग्राहक खड़े हैं बोनी का समय है जरूरी काम है तो बोल नहीं तो बाद में बात करेंगे
अमन फोन पर पवन की बात सुनकर यार यह तो यहां रोज होता है रोज ही कोई ना कोई हंगामा इं लोगों की तो आदत ही है शोर मचाना यार इन लोगों को दंगा करने के पैसे मिलते हैं तुझे चाहिए तो तू भी हो जा इस भीड़ में शामिल।
पवन:- अपने पिताजी से कहते हुए पिताजी कुछ बड़ा हुआ है तभी इतनी भीड़ थी ।
पिताजी: पवन बेटा तुम क्यों बेकार में परेशान हो रहे हो ,जाओ उड़ के चले जाओ वहीं इतनी बैचेनी हो रही है तो ।
ग्राहक :- पवन ग्राहकों से हां जी आप कौन सा पंखा देखना चाहेंगे सबसे टॉप मॉडल दिखाऊं
दुकान में काम करने वाले ग्राहकों को पंखों के बारे में समझाने लगे ।
 भीड़ :- भीड़ में कुछ लोग फिर चिल्लाते हुए आगे बढ गए नहीं चलेगी ,नहीं चलेगी गुंडागर्दी नहीं चलेगी ।
पवन:- के मन में बैचेनी हो रही थी आखिर मामला क्या है वह जानना चाहता था ।
पवन पिताजी से  ब हाना करके पिताजी मैं अमन के पास जा रहा हूं उसकी दुकान  से कुछ सामान लेना है मां मुझे तीन दिन से कह रही है ।
पिताजी :-हां बेटा जा तीन दिन से सो रहा था आज जागा है जा जल्दी सामान ला और फिर आ मुझे खाना खाने घर जाना है ।
पवन :- ने अपनी बाइक से अमन की दुकान के लिए
चल दिया।
अमन:- अमन अपने काम में व्यस्त था ,पवन को देखकर यार तुझे भी चैन नहीं है मुझे पता था तू आएगा और देखा आ गया ।
पवन :- अरे यार ये बता क्या हुआ इतना शोर किसलिए ....
अमन:- देख पवन मैं तो इन चक्करों में पड़ता नहीं तुझे देखना है तो तू देख ले मुझे तो बहुत काम है।
पवन:- अमन की दुकान के बाहर खड़ा काफी देर तक देखता रहा आखिर मामला क्या है....
एक दो कदम आगे बढाते हुए एक दो से पूछताछ करते हुए अमन आगे बढ़ गया अब तो पवन भीड़ के बिल्कुल समीप चला गया था  .....
भीड़ में शोर मचाने वाले लोगों में ज्यादातर अठारह ,से बीस पच्चीस के उम्र के ही लोग थे ,साफ अंदाजा हो रहा था था की ये दंगा करने वाले लोगों का किसी भी मुद्दे से कोई मतलब नहीं है ,किसी के बहकावे में आकर या पैसे के लालच में ये लोग यह सब कर रहे हैं ।
पवन साथ ही खड़े एक व्यक्ति से कुछ पूछ ही रहा था की अचानक
पुलिस की कुछ गाडियां आ गई ,और पुलिस वालों ने सबको अपनी जीप में भरना शुरू कर दिया ।
पवन को भी पुलिस वाले खींचकर अपनी गाड़ी में के गए ,पवन चिल्ला रहा था मेरा इस भीड़ से कोई वास्ता नहीं मैं तो भीड़ देखने आया था ।
पवन पुलिस वालों से बहुत विनती कर रहा था की उसे छोड़ दिया जाए ,परंतु पुलिस वालों का एक ही जवाब था अब पुलिस स्टेशन पहुंचकर ही कहना अपनी बात .....बेचारा पवन बिन बात में फंस गया था भीड़ देखने आया था भीड़ में ही फंस गया ।
इधर अमन को किसी ने ख़बर दी कि तुम्हारे मित्र अमन को पुलिस ले जा रही है ,अमन सारा काम छोड़कर भागा पुलिस ने अपनी गाड़ी के गेट बंद कर दिए थे अमन पुलिस वालों से विनती करने लगा कि वो पवन को छोड़ दें उसका इस दंगे से कोई लेना देना नहीं है पर पुलिस वाले बस यही क रहे थे अब तो पुलिस स्टेशन आकर ही मिलोऔर पुलिस की जीप चल दी ।

पवन पुलिस स्टेशन पहुंच गया था ,अमन को देखकर पवन ने उसे खूब खरी खोटी सुनाई ।

पुलिस :- अरे भाईसाहब ये इमोशनल ड्रामा आप बाहर जाकर करिएगा चलिए इन कागजों पर साइन कीजिए और आगे से इन्हें समझा कर रखिए

भीड़ के पीछे भागने में समझदारी नहीं होती
अच्छे काम करने वालों की भीड़ किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती तोड़-फोड़ नहीं करती किसी को पत्थर नहीं मारती ।
 पवन अपने मित्र अमन को समझाते हुए देख अमन पहले देखो समझो की तुम्हे कहां जाना है सिर्फ भीड़ के पीछे चल देना कोई समझदारी नहीं

जिस तरफ सब चल रहे हैं भेड़ों की तरह उसी तरफ चल देना बेवकूफी है भगवान ने इंसान को ही दिमाग दिया की अपनी बुद्धि से वो अपना रास्ता खुद चुन सके ।
भीड़ का हिस्सा बनने से अच्छा है तुम अकेले ही अपना बेहतरीन रास्ता बनाओ और तुम्हारे पीछे भीड़ का काफिला चल दे ....*****
















 पवन पुलिस स्टेशन पहुंच गया था ,अमन को देखकर पवन ने उसे खूब खरी खोटी सुनाई ।

पुलिस :- अरे भाईसाहब ये इमोशनल ड्रामा आप बाहर जाकर करिएगा चलिए इन कागजों पर साइन कीजिए और आगे से इन्हें समझा कर रखिए

भीड़ के पीछे भागने में समझदारी नहीं होती
अच्छे काम करने वालों की भीड़ किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती तोड़-फोड़ नहीं करती किसी को पत्थर नहीं मारती ।
 पवन अपने मित्र अमन को समझाते हुए देख अमन पहले देखो समझो की तुम्हे कहां जाना है सिर्फ भीड़ के पीछे चल देना कोई समझदारी नहीं

जिस तरफ सब चल रहे हैं भेड़ों की तरह उसी तरफ चल देना बेवकूफी है भगवान ने इंसान को ही दिमाग दिया की अपनी बुद्धि से वो अपना रास्ता खुद चुन सके ।
भीड़ का हिस्सा बनने से अच्छा है तुम अकेले ही अपना बेहतरीन रास्ता बनाओ और तुम्हारे पीछे भीड़ का काफिला चल दे ....*****

स्वरचित :- ऋतु असुजा ऋषिकेश



आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...