कुछ तो है ( कश्मकश)


  या तो मैं किसी को समझ नहीं पाता
या कोई मुझे समझ नहीं पाता
कुछ तो खामियां होंगी
हममें भी यूं ही कोई किसी
को ंनजरअंदाज नहीं करता
या तो वो मेरी पहुंच से बहुत ऊपर हैं
या फिर मैं उनकी समझ से बाहर
ये समझने ना समझने के खेल में
बड़ी कश्मकश है ,किस के मन में
क्या चल रहा है समझ नहीं आता
किसी को समझो कुछ
और असली चेहरा कुछ और ंनजर आता है
आईने के सामने तो हर कोई
स्वयं को स्वांरता है
जो आईने में ंनजर नहीं आता
किसी भी मनुष्य का चरित्र
उस पर क्यों नहीं ंनजर डालता
जाने क्यों मनुष्य स्वयम के चरित्र
को नहीं निखारता
कहते हैं मन के भाव चेहरे पर
झलक जाते हैं , फिर भी मनुष्य
आत्मिक सौंदर्य पर क्यो नहीं ंनजर डालता
या तो मैं किसी को समझ नहीं पाता
या मुझे कोई समझ नहीं पाता
इसी समझने ना समझने की कश्मकश
में जीवन गुजर जाता है ।


यूं ही कोई महात्मा नहीं हो जाता ********

   *अहिंसा परमोधर्म* *जय जवान जय किसान*

मोहन दास करमचंद गांधी  कुछ तो विशेषता अवश्य रही होगी इस शक्सियत में यूं ही कोई महात्मा नहीं कहलाता ।
दे दी हमें आजादी बिना खड़क बिना ढाल साबरमती के संत तुमने कर दिया कमाल ।
हिंसा से हिंसा को मिटाने का प्रयत्न सभी करते हैं ,
और वह काल जब देश में अंग्रेजों का आधिपत्य था ,उस समय की स्थितियों को देखते हुए ,भारतीयों पर हो रहे जुल्म ,उस पर अपने देश के प्रति भारत वासियों का स्वभिमान आत्मसम्मान,  शीश कटा देंगे परंतु शीश झुकाना कदापि मंजूर नहीं था।
गांधीजी की दार्शनिक दृष्टि ने जिसको समझा आखिर कितने और कितने फांसी की सूली पर चड़ते,नहीं मंजूर हुआ होगा .....गांधी ने जाना हम भारत वासियों की सबसे बड़ी पूंजी है आत्मविश्वास, सत्य , अहिंसा की ताकत जिसके बल पर दुश्मनों को भी झुकाया का सकता है पहचाना और उसमें जोश भरना शुरू किया ।
अहिंसा परमोधर्म
 कहते हैं गांधी जी कहते थे कोई  आपके गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल भी आगे कर दो
आज के युग में जब उग्रता सिर चढ़ कर बोल रही है एक हास्य का विषय है , परंतु इसके पीछे का दार्शनिक सत्य समझ पाना एक महात्मा की सोच हो सकती है ।
 आज दो अक्टूबर को दो महान विभूतियों का जन्म दिवस महात्मा गांधीजी और लाल बहादुर शास्त्री जी को मेरा शत- शत नमन ।
लाल बहादुर शास्त्री जी कहते हैं तरक्की अभावों की मोहताज नहीं होती ,किसान परिवार में जन्में अभावों के बीच बड़े हुए शिक्षा अर्जित की ।
क्योंकि लाल ब हादुर शास्त्री जी स्वयं एक किसान परिवार से थे तो वह जानते थे एक किसान की अहमियत और एक जवान हो देश की रक्षा करता है और उनकी देश के प्रति की गई सेवाओं से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है ।
इन दो महान विभूतियों को मेरा शत* शत नमन*****

शुभम करोती कल्याणम


**यहां मेरी भावनाओं की कोई कदर नहीं .....

प्रेरणास्पद, भावात्मक, काल्पनिक,हास्यास्पद,

( नाटक)

श्रीमान जी :- सुनो श्रीमती जी बाहर से 

किसी रद्धि वाले की आवाज आए तो उसे रोक लेना।

और मुझे बुला लेना  मुझे कुछ बेचना है ।


श्रीमती जी:- अब क्या बेचना है ,अभी परसों ही तो सारा रद्दी  सामान दिया था ,जबकि मैंने कहा था एक दो अखबार बचा लेना अलमारी में बिछाने के लिए चाहिए थे ,तुमने तो एक भी अखबार नहीं छोड़ा था, अब क्या रह गया है कुछ, जो बेचना है ।


श्रीमान जी:- अरे भाग्यवान बस कुछ बेचना है ,बहुत कीमती है, परंतु कोई उनका मोल नहीं जानता ।


श्रीमती जी :- कीमती है और बेचना है,ऐसा क्या है कहीं मेरे गहने तो नहीं ....


श्रीमान जी:- तुम्हारे गहने वो तुम्हारे हैं अभी इतने भी बुरे दिन नहीं आए ,की मुझे ऐसा  कुछ बेचना पड़़े ।

 

श्रीमती जी:- अनमोल अजी मुझे तो घबराहट हो रही है आप ऐसा  क्या है जो रद्दी वाले को बेचने वाले हैं ,कहीं आप मुझे तो रद्दी वाले लो तो नहीं दे देंगे ......


श्रीमान जी:- राम -राम..... रद्दी वाला तुम्हें लेकर क्या करेगा , तुम्हें तो मैं ही झेल लूं इतना ही बहुत है.... व्यंग करते हुए श्री मान जी .....


श्रीमती जी:- हां -हां मेरी कीमत तो मेरे जाने के बाद ही पता चलेगी ।


श्रीमान जी :- आवाज सुनो रद्दी वाले की है शायद ....


श्रीमती जी:- दरवाजा खोल कर देखती हैं इधर-उधर ताकने के बाद ,कोई नहीं है यहां ...


श्रीमान जी :- चलो तो फिर एक कप चाय ही पीला दो


थोड़ी देर में चाय भी बनकर तैयार थी श्रीमानजी चाय की चुस्कियां ले ही रहे थे ,तभी श्रीमती जी ने थोड़ा साहस करके प्रेम से श्रीमान जी से पूछा  ,अच्छा ये बताईए आपको रद्दी वाले को क्या सामान बेचना है।


श्रीमान जी :- कुछ डायरियां निकाल कर रखी थीं कुछ पेपर कुछ पत्रिकाएं   बोले इन्हे बेचना है 


श्रीमती जी :- परंतु ये तो आपकी भावनाएं हैं आपकी धरोहर हैं आपकी अमानत हैं 

आपको तो ये बहुत प्रिय हैं।


श्रीमान जी :- हां ये मेरी भावनाएं हैं ,मेरी आत्मा की आवाज हैं ,ये मेरे द्वारा लिखे गए वो भाव हैं जिनमें विचारों की गहराई है ।


श्रीमती जी मैंने आज तक जो लिखा समाज के हित में प्रेरणादायक लिखा और प्रयास किया , परंतु श्रीमती जी कौन कदर करता है इन भावनाओं की ,आज विज्ञान के युग में तकनीकी दुनियां में कोमल भावनाओं का तो मानों अंतिम संस्कार हो चुका है । श्रीमती जी तुम सही कहती थी जिसके पास समय है आज के युग में ये सब पड़ने का कोई मोल नहीं मेरी लिखी रचनाओं का .....श्रीमती जी दे दो इन्हें किसी रद्दी वाले को .....


श्रीमती जी:- आप निराश न हों श्रीमान जी हम तो बस यूं ही कह देते हैं , हमें बहुत कदर है आपकी भावनाओं की ,हम जानते हैं आप लिखते हैं क्योंकि आप समाज को कुछ अच्छा सिखाना ,और बताना चाहते हैं ,आप निराश न हों एक दिन आएगा जब आपकी भावनाओं की लोग कदर करेंगे ,आपका लिखा हुआ पड़ने के लिए प्रतीक्षा की पंक्तियों में खड़े होंगे ,

और वो क्या कहते हैं आपसे आपके हस्ताक्षर यानी ऑटोग्राफ लेने  शानमें अपनी समझेंगे ।

तभी द्वार पर किसी ने दस्तक दी ,श्रीमती जी ने द्वार खोला डाकिए था कोई पत्र था पकड़ा कर चला गया.....

श्रीमान जी :- हाथ में पत्र लेते हुए अब ये क्या है ,पत्र हाथ में था श्रीमान जी के चेहरे पर आत्मसम्मान की लहर दौड़ पड़ी 

श्रीमती जी :- ऐसा क्या है कोई मनी ऑर्डर आया है क्या , श्रीमान जी चुप थे ,श्री मती जी ने श्रीमान जी के हाथ से पत्र ले लिया और पड़ने लगी श्रीमती जी के चेहरे पर भी   खुशी की लहर दौड़ पड़ी ।

श्रीमती जी :-क्या अभी भी ये सब रद्दी वाले को देना है 


श्रीमान जी :- तुम सही कहती थी श्रीमती जी ,एक दिन ऐसा आएगा जब मेरी भावनाओं को भी कोई समझेगा और आज वो सच हुआ ।


श्रीमती जी :-चलिए सबसे पहले परमात्मा को नमन कीजिए ,शुक्रिया कीजिए ।


फिर मैं सारे शहर को बता कर आती हूं कि मेरे श्रीमान जी को उनके उत्कृष्ट लेखन के लिए राज्य सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया है ।




**दफन**

** कल मुझे कुछ संस्कार मिले 

     कफ़न में लिपटे हुए

      पड़े थे  मृत के समान  मूर्छित अवस्था में,मानों कोमा में 

      सांसे ले रहे थे ,

      पर मरे नहीं थे,तैयार थे ,

      शव शैय्या पर

      स्वाहा होने के लिए

      क्योंकि मृत के सामान पड़े थे 

      ले जाया जा रहा था उन्हें अंतिम संस्कार

      के लिए .......

      तभी कुछ हलचल हुई,

      एक आस जो बची थी

      जीवंत हो उठी ,संस्कारों ने 

       लम्बी सांस ली...... इंसानियत 

        भी मुस्करा उठी ,खिलखिलाने लगी....

         शुभ मंगल संस्कारों की सांसे चलते देख....

       

 

*बेटियां *


  बेटियां इन कलियों की

अहमियत तो उन बागवानों से पूछो ,

जिन बागों में यह खिलती हैं



घर आंगन महकाती हैं 

रौनकें बढ़ाती हैं 

बेटियां दो घरों की आन-बान 

और शान होती हैं

 एक घर की जड़ों में 

फलती -फूलती और संस्कारित होती है 

दूजे घर की इज्जत नींव और जड़ों को पोषित करने की जिम्मेदारियां निभाती हैं 

बेटियां एक नहीं दो -दो घरों की रौनक और शान बढ़ाती हैं ।

बेटे वंशज होते हैं तो

बेटियां उपजाऊ धरती होती हैं 

भूमिका में दोनों की अहमियत सामान होती है ।




*विचार शून्य जीवन का क्या आधार *

**

*किसी अद्वितीय असीमित,
  शक्तिशाली विचार से ही प्रारम्भ
  हुआ होगा धरती पर जीवन

  विचारों का खेल है सारा
  विचारों से ही संसार का
  अद्भुत नजारा......
  विचारों से ही सृष्टि की सभ्यता विकसित
   मनुष्य में विद्यमान विचारों ने धरती को खूब
   संवारा ......

   मेरा तो मानना है कि विचारों की नींव
   पर ही टिका ही संसार सारा
   विचार ही तो हैं जीवन का आधार ......
   जीवन का सार ,विचार ना होते तो तब
   कहां सम्भव था धरती पर प्रेम और सौहार्द.....

  विचार माना की अद्वितीय शक्तियों का
  सार ,शक्ति का आधार ,जैसे मनुष्य जीवन
  में प्राण रक्त का संचार,हृदय गति का आधार ....
  विचारों के भी दो प्रकार :-
  जहां असुर विचार :- संहारक विनाशकारक
  सुर विचार शुभ दैवीय विचार :-उत्थान करक
 
 *विचारों के द्वंद्व में उलझा  
   तब समझा ,विचार शून्य 
 सब निरर्थक ,निराधार ,
 विचार ही जीवन का आधार

  विचारों के चयन की ना होती महिमा
  तो क्यों कहते ,शुभ और अशुभ विचार
  नकारात्मक और साकारात्मक सोच
  जब मनुष्य की सोच ही उसके काम
  बनाती और बिगाड़ती है तो विचारों
  का ही तो हुआ खेल सारा....



आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...