*देश के प्रति सम्मान*

*सरहद पर तैनात वीर जांबाज
** सैनिकों को मेरा शत शत नमन *
यह मेरा मेरे देश के प्रति सम्मान है
मैं कोई बहुत बड़ी देश भक्त नहीं
फिर भी यह तो एक श्रद्धा है
एक भाव है ,देश के प्रति अपनत्व
की भावना है ,चन्द पंक्तियां
लिखकर स्वयं को देश भक्त
कहलाने का दावा कदापि
नहीं किया जा सकता किन्तु
कहीं ना कहीं ये आग सब में है
देश प्रेम की आग
माना कि हम सिर्फ
चन्द बातें कहकर
स्वयं में जागृत
देशभक्ति की भावना
की मशाल तो जलाए हुए हैं
स्वयं को देश भक्त समझ लेना का भ्रम ही सही
हमारी सोच सकारात्मक तो है
फिर भी एक आग तो है हममें भी
जो हमें अपने देश के बारे में सोचने
लिखने और कुछ कहने को विवश करती है  ।


*अस्तित्व मेरा समुंदर*

**पूर्ण से शून्य की यात्रा
शून्य से फिर पूर्णता की
यात्रा ,शून्य का शून्य हो जाना ही
पूर्णता की यात्रा है...

कोयले की खान से
हीरे चुन कर लाने हैं
ये जिन्दगी बारूदी
सुरंग है, संभलकर चलना ज़रा ....

बहुत भटका बूंद बनकर
अस्तित्व मेरा समुंदर था
मैं अनभिज्ञ था समुंदर ही
मुझमें था ....

भटकता फिरता हूं दुनियां
 के मेले में,स्वयं की खोज में और
स्वयं का ही अस्तित्व मिटा बैठता हूं....

आया था दुनियां के
मेले में मौज -मस्ती करने को
मेले के आकर्षण में कुछ इस
कदर खोया की घर वापिसी
 का रास्ता ही भूल गया....



*हमारी प्यारी कश्मीरा*

      आज कई वर्षों बाद दो बहनें  

बिना किसी आतंक के डर से एक दूजे के घर जाकर मिली।

काल्पनिक नाम  एक का जमुना दूसरी का *कश्मीरा* यूं तो यह सिर्फ दो ही बहने नहीं और भी कई भाई बहन हैं भरा-पूरा कुटुम्ब है  ,परंतु आज कई वर्षों के बाद जमुना अपनी बहन कश्मीरा के लिए खुश थी ।

क्योंकि जमुना और कश्मीरा आस -पास ही रहती थीं ।

 काफी समय बाद जमुना का कश्मीरा के घर जाना हुआ.....

 कश्मीरा खुश थी कि आज उसे कोई बंदिश नहीं वो अपनी बहन जमुना का अच्छे से स्वागत करेगी ,उसकी आव भगत में कोई कमी नहीं छोड़ेगी।

   जमुना:-  कश्मीरा मेरी बहन तू कैसी है कितनी सुन्दर कितनी प्यारी होती थी तुम किसी जमाने में,  क्या हालत हो गई है तुम्हारी ,मुरझा गई हो ,चलो कोई बात नहीं *देर आए दुरुस्त आए* आज तक मैं तेरे घर एक बहन होकर भी ढंग से नहीं आ पाती थी कश्मीरा आज मैं बहुत खुश हूं तेरे लिए कश्मीरा अब हम संग-संग रहेंगे एक दूसरे के दुख-सुख बांट लेंगे ,  कश्मीरा मैं जानती हूं तूने बहुत दुख सहे हैं ,ना कहीं आना ना जाना बंदिशें ही बंदिशें अब सब ठीक हो जाएगा जमुना ने कश्मीरा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा...

    कश्मीरा:-   हां बहन जमुना आज कई वर्षों के बाद मैं खुली हवाओं में सांस ले पा रही हूं ,आज मेरे पास उड़ने को खुला आसमान है ,कल तक मैं अपने ही घर में कैद थी। 

  जमुना :-  कश्मीरा अब तो तुम खुश हो ना.....

   कश्मीरा :-   हां बहन जमुना क्यों नहीं मैं बहुत और बहुत खुश हूं ,अब मैं अपनी मर्जी से कहीं भी घूमने का सकती हूं ,और पता है बहन जमुना जब मुझ पर बंदिशें थीं ,मेरा आना -जाना तो बंद था ही... और भी कोई मेरे घर आता था तो उसके साथ बुरा व्यवहार होता था, बहुत आतंक था अभी तक मेरे घर में .....

   कश्मीरा--   लेकिन अब मुझ पर से सब बंदिशें हट चुकी हैं ,कोई भी मेरे घर आएगा तो हम सब मिलकर उसका बहुत स्वागत करेंगे ।

  जमुना :-   कश्मीरा  बातें  ही करती रहोगी ,या मुझे कुछ खिलाओगी -पिलाओगी भी...

     कश्मीरा:-   हां बहन जमुना मैं तुम्हारे लिए अभी केसर वाली बिरयानी बनाती हूं .. तब तक तुम ये  कहवा पियो ये लो आज ठंड बहुत है ये कांगड़ी भी रख लो अपने पास जमुना कांगड़ी लेते हुए कश्मीरा ज़रा ध्यान से कोयला गरम है ,ध्यान रखना 

  कश्मीरा :-   बिरयानी की तैयारी भी कर रही है ,और जमुना से बातें भी ,अच्छा जमुना ये बताओ हमारे और भाई बहन कैसे हैं ?

 जमुना:-   हां कश्मीरा सब ठीक हैं ,खूब तरक्की कर रहे हैं ,डोली ,मोली ,कोली सब आसमान की बुलंदियों को छू रहे हैं ,सब तुम्हारे बारे में बहुत चिंतित रहते थे ।

 कश्मीरा :-  हां बहन मैं समझ सकती हूं तुम मेरे इतने पास थी फिर भी हम मिल नहीं पाते थे ,तुम्हारी 

    मेरी तुम्हारी कहानी एक सी  है जमुना , पर अब हम आजाद हैं, अब हम दोनों मिलकर बहुत अच्छे -अच्छे काम करेंगे।

    कश्मीरा अपनी बहन जमुना से कह रही थी उन दोनों बहनों की आंखे नम थीं         बहन हमारी      *भारत माता* कैसी है आज वो बहुत खुश होंगी ना हां बहन बहुत खुश बहन कौन मां नहीं चाहती की उसके बच्चे आगे बड़ें ,खुश रहें ...... इतने में बहन ललिता का भी आना हो गया तीनों मिलकर बहुत खुश हुईं कहने लगीं ,कितने महान होंगे वो लोग जिन्होंने हमें आजाद किया हमें इतनी बड़ी खुशी दी  .... पता है उन महान लोगों ने हमारी मां भारत मां के सम्मान में तिरंगा भी फहराया .......

  बहन आओ हम सब मिलकर अपनी मां*भारत मां* के साथ अपनी खुशियां बांटे ,और खुशियां मनाएं ....

*भारत माता की जय* हमारी मात्रभूमि की जय जय के नारों से सारा माहौल गूंज उठा *****


* शुभ दिन *


 बहुत घायल हुआ कश्मीर अभी तक कश्मीर की सत्ता प्यादों के हाथों में थी  कश्मीर को दर्दनीय लहूलुहान स्थिति  से छुटकारा...  

जम्मू कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा ....... आज कश्मीर राजनीति की बेड़ियों से आजाद हुआ .....
यूं तो भारत एक लोकतंत्र देश है ....और अभी तक जम्मू कश्मीर को लोकतंत्र के चुने नेता ही चला रहे थे ,जम्मू कश्मीर की अभी तक की स्थिति से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है .....

बहुत घायल हुआ अभी तक कश्मीर तकलीफों से बचाने के लिए असंख्य सैनिकों ने कुर्बानियां देते आ रहे हैं आखिर कब तक होता ये सब शुक्र है देश के राजनीतिज्ञों का.... जिन्होंने समस्या को तह से ख़तम करने  के लिए बेहतरीन कदम उठाया .....

 अभी तक कश्मीर की सत्ता प्यादों के हाथों में थी

लेकिन कश्मीर को  दर्द में करहाते देख .....प्रधानमंत्री ने बेहतरीन और कश्मीर के हित का फैसला लिया  
😊आज हवाओं में इत्र             की खुशबू🌹 आ रही है            लगता है मेरे मित्रों की मंडली मुस्करा😄😃 रही है ,गुनगुना रही है अपने मित्रों की खुशियों की फरियाद कर रही है🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌸🌸🌸
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2925894254301879&id=100006440001929

*तीज का त्यौहार लेकर आता खुशियों की सौगात*

 पक्षियों के चहकने की आवाज
  खनकती चूड़ियों का आगाज
  सुहागनों के हाथों में रचती पवित्र
   मेहंदी की सौगात आओ सखियों
    झूमे नाचें गाएं आया है हरियाली तीज का त्यौहार
     **सावन का मौसम आया
संग अपने सुख-समृद्धि लाया
वर्षा की फुहारों से धरती का
जल अभिषेक जब होता है
प्रकृति प्रफुल्लित
हरी-भरी हो जाती है
वृक्षों की डालियां अपनी
बाहें फैलाती हैं
झूला झूलन को
सखियों को बुलाएं
प्रकृति संग सखियां भी
सोलह श्रृंगार करती हैं
वृक्षों की ओट में बैठ कोयल भी
मीठा राग सुनाती है
समस्त वातावरण संगीतमय हो जाता है
चूड़ियों की खनक मन को लुभाती है
हरियाली तीज को देवी पार्वती ने भी
सोलह श्रृंगार और कठिन उपवास कर
शिव को प्रसन्न किया था
उस दिन से हरियाली तीज की शुभ बेला पर
सुहागनें उपवास नियम करती हैं
वृक्षों पर झूलों की पींगे जब चड़ती हैं
आसमान की ऊंचाइयों में सखियां
झूल-झूल कर हंसती है
धरती झूमती है
प्रकृति निखरती है
पक्षीयों की सुमधुर ध्वनियों से
सावन में प्रकृति समृद्ध और संगीतमय हो जाती है**



*अनुभव*

 
  *मानव पहुंच गया आज चांद पर
 तुम खटिया पर बैठे दिन -भर 
 क्या बड़बड़ाती रहती

   इंटरनेट है ,हम सब का साथी
 उसके बिना ना हम सब को जिंदगी भाती

   तुम क्यों बेवजह अम्मा बड़बड़ाती 
 तेरी बात ना कोई समझना चाहता
 सारा ज्ञान इंटरनेट से मिल जाता

 अम्मा बोली हां मैं अनपढ़, ना अक्षर ज्ञानी
 उम्र की इस देहलीज पर आज पहुंची हूं
क्या दे सकती हूं मैं तुम सबको 
अपना काम भी ना ढंग से कर पाती

मैं तो बस अपने अनुभव बांटती
जीवन के उतार-चाढाव के कुछ 
किस्से सुनाती कई बार गिरी ,गिर-गिर 
के संभली यही तो मैं कहना चाहती 
बेटा चलना थोड़ा संभलकर 
तुम ना करना मेरे जैसी नादानी

मैं तो सिर्फ अपने अनुभव बांटती
जो आता है जीवन जीने से देखो
तुम नाराज़ ना होना मेरे बच्चों 
आज जमाना इंटरनेट का
चन्द्रमा तक तुम पहुंच चुके हो
अंतरिक्ष में खोजें कर रहे हो 
आशियाना बनाओ चन्द्रमा पर अपना 
पूरा हो तुम सब के जीवन का सपना
मैं तो बस अपने अनुभव बांटती
ना मैं ज्ञानी ,ना अभिमानी।







आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...