लेखक और उसके भाव

  **   ख़ूबसूरत देखने की आदत**

  

    स्वर्ग से सुंदर समाज की कल्पना 


     यही एक लेखक की इबादत होती है


     हर तरफ़ ख़बसूरत देखने की एक

     सच्चे लेखक की आदत होती है 

     अन्याय,  हिंसा, भेदभाव,

     देख दुनिया का व्यभिचार ,अत्याचार

     एक लेखक की आत्मा जब रोती है

     तब एक लेखक की लेखनी

     तलवार बनकर चलती है

     और समाज में पनप रही वैमनस्य की

     भावना का अंत करने में अपना

     महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करती है

     विचारों की पवित्र गंगा की धारा

    सर्वजन हिताय हेतु

    सुसंस्कृत,सुशिक्षित समाज की स्थापना

    का आदर्श  लिये

   शब्दों के तीखे तीर

    जब तीर चलाती

    तब वो इतिहास रचती है,

    युगों-युगों तक

   आने वाले समाज का 

   मार्गदर्शन करती है ।

   लिखने को तो लेखक की लेखनी लिखती है

   एक अद्वितीय शक्ति उसको प्रेरित करती है

   तभी तो ऐतिहासिक, रहस्यमयी

   सच्ची घटनाओं की तस्वीरें 

   कविताओं, कहानियों आदि के रूप में

  युगों-युगों तक

  जनमानस के लिए प्रेरणास्रोत बन
  
  जनमानस  के हृदयपटल पर राज करती हैं ।

स्व रचित :-ऋतु असूजा
शहर:-  ऋषिकेश उत्तराखंड   

यकीन

  **  मैं अपने कर्मों को इतनी ईमानदारी  

     लगन और पूर्ण निष्ठा से करता हूं, कि

     इतना तो मुझे यकीन है कि,

     जीत हो या हार मुझे फ़र्क नहीं पड़ता 

     परंतु मेरे कर्म कहीं ना कहीं किसी की

     मनः स्थिति पर सकारात्मक प्रभाव

    डालने में अवश्य सफ़ल होंगे ।

   

**महिला दिवस विशेषांक **

**महिला दिवस विशेषांक **

     प्राचीन काल से ही महिलाएं अपनी ओजिस्वता-अपनी तेजविस्ता,व अपनी बुद्धिमत्ता का लोहा मनवा ती रही हैं , शास्त्रों में पारंगत विद्योतमा, झांसी की रानी लक्ष्मी बाई आदि कई ऐसे उदाहरण हैं । 
   महिला दिवस ही क्यों मनाया जाता है प्रत्येक वर्ष 
क्या आपने कभी सुना है पुरुष दिवस..... नहीं ना क्योंकि पुरुष दिवस की तो कोई आव्यशक्ता ही नहीं क्योंकि पुरुष दिवस तो हर रोज होता है ,जैसे कि ये 
दुनियां सिर्फ उन्हीं से चलती हो , इसका कारण है हमारी मानसिकता...... हम लड़कियों को हमेशा से कमजोर समझा जाता रहा है ।
आज लड़कियां किस क्षेत्र में अपना लोहा नहीं मानव रही हैं ,अंतरिक्ष में जा रही हैं ,हवाई जहाज उड़ा रही हैं ,डॉक्टर ,इंजीनियर कौन सा ऐसा क्षेत्र है जहां महिलाएं नहीं है ।

माना कि आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे हैं,महिला शक्ति कर्ण में बहुत तेजी से बड़ोतरी हुई है ।
फिर भी आज भी महिलाओं को अकेले में जाने से डर लगता है इसका क्या कारण है ?
इसका मुख्य कारण हमारी पुत्र प्रधान मानसिकता है, लड़का हो या लड़की दुनियां की गाड़ी के ये दोनों पहिए हैं ,

 चाहे लाख लड़िकयों को बराबरी का हिस्सा मिल रहा है ,फिर भी अगर लड़का हो तो आज भी सोने पे सुहागा ही समझा जाता है ।
लड़कियां कमजोर नहीं हैं ,कमी है हमारी मानसिकता की.... आव्यशकता है ,अपने बालकों को बाल्यकाल से संस्कार शील बनाने की अपनी शक्ति का दुरुपयोग ना करने के शिक्षा देने की,प्रत्येक नारी का सम्मान करने की
महिलाएं भावात्मक रूप से भी बहुत मजबूत होती हैं तभी तो वो एक घर में पलती हैं ,और दूसरे घर की पालना करती हैं ,महिलाओं को सुशिक्षित करना मतलब सम्पूर्ण समाज को शिक्षित करना ।
    महिला और पुरुष समाज के रथ के दो पहिए हैं ,किसी एक के बिना भी ये रथ का चलना असम्भव है । अंत में मैं तो यही कहना चाहूंगी एक सुशिक्षित ,
सभ्य समाज के लिए जहां पुरुष और महिला दोनों का स्थान समान है जिसका जितना प्रयास उतना पाने को वो अधिकारी है ,चाहे वो पुरुष हो या महिला सभी का सम्मान एक समान है।

" ॐ नमः शिवाय "

ॐ नमः शिवाय
ॐ नमः शिवाय
हे, त्रिलोकीनाथ,
हे त्रिशूल धारी
हे डमरू वाले
आज फिर से आतंक के
पाप का कलश भर
गया है धरती पर
हलाहल मचा पड़ा है
उठा त्रिशूल एक बार
फिर से कर दो तांडव
इस हलाहल का विनाश करो
धरती को फिर से
आतंक के जहर से
मुक्त करो, हे शिवशंकर
हे अभ्यंकर यहां दिलों
में पल रहा जहर है
इस जहर के कहर से
राक्षस धरा को धराशाही
कर रहे, हे शिव शम्भू
वसुंधरा को पाप मुक्त करो
इस शिवरात्रि हम सब की
अर्जी मंजूर करो
धरती पर राक्षस वृत्ति का
अब अंत करो
अपने शंख कि ध्वनि से
से इंसानियत ही सबसे बड़ा
धर्म ऐलान कर दो ।
ॐ के महामंत्र से इस धरा को
स्वर्ग सा सुंदर कर दो





*अभिशाप*

"प्राचीन काल से
चली आ रही परम्परा
एकलव्य , कर्ण
ने भी सहा अभिशप्त
होने का दर्द ,साधारण
मनुष्य की क्या औकात  "
"देकर जन्म मुझे
     चली गई
मेरे जीने की खातिर
अनगिनत दुख सह गई
जीवनदान देकर मुझको
सहारे जिसके छोड़कर
दुनियां से अलविदा हो गई
तुझ बिन जीवन बना अभिशाप
मेरा है , ना जाने कौन से जन्म
का पाप मेरा था
लोग कहते हैं कर्म जली हूं
मनहूस कहीं की पैदा होते ही
मां को खा गई
मां क्या करूं मैं
ऐसे जीवन का
जिसमें ना कोई
मान मेरा ,तुम ही
तो थी अभिमान मेरा
क्या करूं ऐसे अभिशप्त
जीवन का
दुनियां वाले मुझे
मनहूस कहते,
मां क्या मैं,
इतनी बुरी हूं ,मां तुझ बिन
बना जीवन अभिशाप मेरा है
ये अभिशप्त जीवन
बना मेरे लिए सजा है ।



*अभिवादन है ,वंदन है *

**सत्य शाश्वत है

सत्य शांति है
सत्य करुणा है
सत्य निसंदेह निस्वार्थ
प्रेम है ।
ये तो सत्य की ही जीत है
विंग कमांडर अभिनन्दन का अभिनंदन है
भारत माता हर्ष से प्रफुल्लित है
कर रही अपने देश के
वीर सपूत का वंदन है
सत्य पर कभी - कभी
अ सत्य के ग्रहण के काले
बादल अवश्य आ सकते हैं
परंतु सत्य का सूरज कभी अस्त
नहीं हो सकता
ये तो अनगिनत निस्वार्थ दुआओं का
ही असर नज़र आ रहा
जो कि आतंकियों के डेरे से
भारत मां का वीर सिपाही लौट कर घर आ रहा है
किसी के सकारात्मक व्रत का
प्रतिफल, शांति के लिए किए गए
हवन में डाली गई आहुतियां का तेज
आतंक की कंटीली झाड़ियां ने तबाही
तो बहुत मचाई, परंतु इन आंधियों ने
हमारे हौसले नहीं पस्त किये ,
हमें और सतर्क रहने के मौके दिए ।
ये तो सत्य की जीत है

सत्य सदा सर्वदा शाश्वत है **



*प्रेम ही शाश्वत है *

"माना कि आज नफ़रत
 प्रेम पर भारी है
परंतु नफ़रत की तो सिर्फ
कंटीली झाड़ियां हैं
प्रेम तो वो शाश्वत बीज है
जो किसी भी मनुष्य का
आंतरिक स्वभाव है *
"माना की आज नफ़रत के
आतंक ने तांडव मचा रखा है
ये तो सिर्फ आंधियां हैं
प्रेम की जड़ों की पकड़
धरती पर गहरी हैं
हम तो सूर्य का वो तेज़ हैं
जिसके आगे किसी की भी
कोई बिसात नहीं

प्रेम ही शाश्वत था और रहेगा।





आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...