*सफलता कभी भी परिस्थितयों की मोहताज नहीं होती
आज तक जितने भी सफ़ल लोग हुये हैं, उन सब ने विपरीत परिस्थियों से लड़कर ही सफलता पायी है *

* उड़ने को पँख तो मिले थे, पँखों में उड़ान भी थी ,परन्तु उड़ने को खुला आसमान नहीं था
विचारों के समन्दर मैं पंख फड़फड़ाते थे ,विचार उड़ान तो भरते थे, परन्तु दायरे सिमित थे *

निःसंदेह यह बात तो सत्य है ,कि डिजिटल दुनियाँ ने लेखक, लेखिकाओं को , लिखने को खुला आसमान दिया
विचारों और भावों को प्रकट करने को भव्य खुला आकाश

दिल से आभार और धन्यवाद ,"prachidigital.in " का जिसने देशभर से 24 लेखकों का चयन किया

उन 24 लेखकों की 24 कहानियों की "पंखुड़ियाँ "

Prachidigital.in publish प्रकाशित करने जा रहा है e-book "पंखुड़ियाँ"

देश भर के "चौबीस लेखक ,लेखिकाएं , और उनकी चौबीस कहानियाँ

" चौबीस लेखक ,चौबीस कहानियाँ "" पंखुड़ियाँ"

दिन :-24, जनवरी समस्त भारत देशवासी पढ़ेंगे e- book " पंखुड़ियाँ"







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" अमीरी"


 अगर विचार ही संकीर्ण हों तो ,
 कोई क्या करे
  विचारों की अमीरी ने अपने जुनून और
  कर्मठता के बल पर ,कई लोगों को बादशाह
  बना दिया इतिहास इसका गवाह है ।

निर्धनता को दूर किया जा सकता है
धनकमा कर ..निर्धन होना इतना बुरा नहीं
क्योंकि परमात्मा द्वारा मनुष्य को
आत्मबल की जो अमूल्य सम्पदा प्राप्त है
उसके उचित उपयोग द्वारा निर्धन धनवान बन सकता है

परन्तु ग़रीबी ........ग़रीबी तो पनपती है मनुष्य के मन में
अगर कोई अमीर होना ही ना चाहे तो कोई क्या करे
हाँ धन की अधिकता संसाधनों मई वृद्धि अवश्य करती है ।

धन का क्या है कहीं ज़्यादा कहीं कम
अमीर बनिये दिल के अमीर ,
खाता हर कोई रोटी ही है
निधन सबका निश्चित है
अमीर और ग़रीब जाती सबकी झोली ख़ाली है ।


💐इन्तजार💐


💐इन्तजार नहीं-नहीं..... मुझे किसी का भी इन्तजार नहीं
पर शायद दिल के किसी के कोने में
करता तो हूँ, मैं भी किसी का इन्तजार
पर किसका ,नाम नहीं जानता उसका
दरवाजे पर खड़ा अक्सर झाँकता रहता हूँ
कोई नहीं है, फिर भी ना जाने किसका
इंतजार रहता है ।
शायद कोई मीठी सी महक 💐
मन्द मधुर समीर का झोंका
कोई मीठा सा एहसास दे जाये
कोई आये मुस्कराहटों की बौछार ले आये
हम भी मुस्करायें, वो भी मुस्करायें
सारा जहाँ मुस्कराना सीख जाये
नहीं किसी भी चेहरे पर
उदासी की झलक नज़र आये
सभी गिले-शिकवे ख़त्म हो जायें
आये तो अब बस बहारों के ही मौसम आयें
इन्तजार मैं रहता हूँ,अक्सर
कोई ईर्ष्या,द्वेष लोभ, अहँकार जैसी
जहरीली बिमारियों को खत्म करने की
दवा ले आये।
अब जो भी ईंसान नज़र आये
निस्वार्थ प्रेम की औषधी संग
जीने की वज़ह लेकर आये ।।💐💐💐💐💐💐💐💐
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐






*सुकून *


**** मेरे पड़ोस में रहने वाली बूढ़ी अम्मा ,दिन भर घर के द्वार पर ही नज़र आती ।
सब गली मोहल्ले वाले अपने काम से आते-जाते बूढ़ी अम्मा का आशीर्वाद जरूर लेते ।
पहले तो अम्मा द्वार पर खड़ी रहती,पर जब थक जाती तब
बूढ़ी अम्मा अपने घर के द्वार के बाहर अधिकतर एक छोटी सी चौकी लगाकर बैठ जाती ।
आते -जाते सबको देखती रहती ,कभी किसी के पास फुर्सत होती तो दो पल अम्मा के पास खड़ा होकर बातें भी कर लेता ,
बस अम्मा का सारा दिन यूँ ही बीत जाता ।
हम सब आस-पास के गली -मोहल्ले वाले अम्मा को न्यूज़ रिपोटर भी कहते ,कयोंकि अम्मा को कोई काम तो था ,नहीं और सत्तर साल की उम्र में उनके बस की बात भी नही थी कोई काम करने की ।
सुबह सवेरे ही अम्मा रोज का नियम कर्म करके नाश्ता करके बाहर आ जाती ,  और चलते-फिरते कोई न कोई उन्हें कुछ न कुछ जो भी कुछ अलग हो रहा होता आस-पास तो बता देता ,जैसे कोई बीमार है, कोई कहीं बाहर घूमने गया है ,किसी ने कुछ नया खरीदा ,किस की बहू कैसी है, वगैरा-वगैरा  आस-पास देश दुनियाँ में क्या कुछ नया हो रहा है खबर दे देता ।
अम्मा सबकी सुनती ,फिर अपने ढंग से सबको बताती रहती।
हमें भी इंतजार रहता कि अगर कुछ अलग होगा तो अम्मा हमें खबर दे ही देगी ।
जब कभी अम्माँ का स्वास्थ्य ख़राब होता तो वो घर से में ही आराम करती , यूँ तो सब लोग इस बात से चिड़ते थे की अम्मा सबको टोकती है कहते पता नहीं कब इस अम्माँ से पीछा छूटेगा  पर जब एक दिन अम्माँ ना दिखती तो बेचैन हो जाते
  कई परिवारों में कई बार अम्माँ की व किलग्रैम्ज़ से विवाद हो जाता ,कभी देवरानी ,जेठनी कभी सास बहू ,नन्द-भाभी वग़ैरा
  अब तो सब को पता चल हुआ था की अम्माँ इधर की उधर बातें करती हैं चाहे वो अपनी जंग सही होती होंगी पर उनकी
बातें सुन के कई लोग ग़लत मतलब खाते थे ।
एक बार तो अम्माँ ने हमारे ही घर में झगड़ा कर दिया ,हुआ यूँ की अम्माँ ने मेरे पति देव को भड़का दिया की तेरी बीवी तो रोक शाम को बाज़ार जाती है और ना जाने कितना -कितना समान ख़रीद कर लाती है ।
जबकि जीमेल डोनो पति-पत्नी को पता था की अम्माँ किसी भी बात को भूत बड़ा कर कहती है
पर कभी -कभी बुद्धि खराब हो जाती है और बस ....एक दिन मेरे पति देव भी किसी बात से पहले से hi परेशान थे उस पर अम्माँ ने थोड़ा मिर्च माल्स खा कर कह दिया की मैं अभी-अभी आयी हूँ बाज़ार से और भूत समान ख़रीद कर लायी हूँ ,
मेरे पतिदेव तो घर में घुसते ही मुझ पर भड़कने लगे और कहने लगे की उड़ा लो मेरी मेहनत की कमाई को तुम में सारा दिन पाटूँ की तरह घर से बाहर मेहनत करता हूँ और तुम दिन भर घर आराम से रहती हो और शाम को चल देती हो मेरे पैसे उड़ाने मज़े हैं तुम्हारे ।
मैंने अपने पति देव के आगे एक ग्लास ठंडा पानी रखा ,पानी पीते ही वो थोड़ा शांत हुए

मैंने बोला हाँ मैं शाम को बाज़ार जाती हूँ ,पर घर की ज़रूरत का सामान लेने घर का सामान भी आ जाता है और मेरा चलना भी । अगर आपको बुरा लगता है तो कल से बाज़ार नहीं जाऊँगी ,जब आप आओगे तब आपके साथ ही ले आया करेंगे घर का सामान , पति देव बोले अरे नहीं कुछ काम तुम भी कर लिया करो घर का दामन तो तुम ही लाया करो ....
हम दोनो ही हँसने लगे ...
हम सोनी ने अम्माँ जी के घर का दरवाज़ा खटखटाया अम्माँ आयी ,यूँ तो अम्माँ बड़े प्यार वाली थी हमें अपने पास बिठाया
बोली ख्या खाओगे ,हमने बोला अम्माँ कुछ नहीं बस आप बस इधर की बात उधर मत किया कीजिए
अम्माँ बोली मई जानती हूँ ये मेरी हालत आदत है कर करूँ ,मेरे भू बेटे तो मेरे पास रहते नहीं बस टेंशन में सब कर देती हूँ
हमने बोला अम्माँ कल से रोक शाम को हम आपसे मिलने आयेंगे आपके पास बैठेंगे ,अम्माँ ने  डोनो के सिर ख़ुशी से चूम लिए ,अम्माँ बहुत ख़ुश हुई आज उनके चेहरे पर सुकून दिखायी दे था था ।
शायद हमारे बड़े बुज़र्गों को दो हम बच्चों से कुछ नहीं चाहिये बस दो दो बोल प्यार के एर हम बच्चों का साथ चाहिये।

,


सफ़र

सफ़र की शुरुआत
बड़ी हसीन थी
हँसते थे ,मुस्कुराते थे
चिड़ियों संग बातें करते थे
सपनों की ऊँची उड़ाने भरते थे
हर पल मुस्कुराते थे
वो बचपन के दिन भी कितने अच्छे थे
सफ़र ये कैसा सफ़र
प्रतिस्पर्धा की दौड़ मैं
चेहरे की मुस्कान छिन गयी
चिंता की रेखाएँ चेहरे पर पर बोलती हैं
जाने क्यों हम बड़े हो गए
मन में हज़ारों द्वेष पल गए
संग्रह करते -करते हम
विभाजित हो गये
अपराधी हो गए
व्यवसायिक हो गए
व्यवहारिकता स्वार्थी हो गयी
इंसान तो रहे ,इंसानियत गुम गयी
जीवन एक
सफ़र है,सब को है ज्ञात
सफ़र में सुविधाओं के लिए
धरती लहुलोहान हो गयी
मिट्टी के तन की मिट्टी पहचान हो गयी
फिर भी अकड़ ना गयी
जिस जीवन की ख़ातिर आतंक फैलाया
वही आतंकवाद जीवन का विनाश कर रहा
जीवन एक सफ़र है किसी का लम्बा
किसी का छोटा ,
सफ़र का अन्त तो निश्चित है
फिर क्यों आतंकवाद से सफ़र का मज़ा किरकिरा करना
हँसना ,मुस्कराना जीवन के सफ़र को
आनंद मयी यादगार और प्रेरणास्पद बनाना ।





"सकरात्मकता का व्रत"

"जब से मुझे सकारात्मकता के बीज

मिले हैं मैं तो मालामाल हो गया

अरे, ये तो बहुत कमाल हो गया 

अब  मैं सकारात्मकता के बीज

डालकर सकारात्मकता की फ़सल

उगा रहा हूँ ,नकारात्मकता की सारी

झाड़ियाँ काट रहा हूँ "

एक व्रत जो मैंने हर वक़्त लिया है ठान

आव्यशक्ता से अधिक में खाता नहीं 

अन्न को दुरुपयोग होने से बचाता हूँ

सिर्फ़ अन्न का ही नहीं

अनावश्यक विचारों को स्वयं में

समाहित होने देता नहीं

नकारात्मक विचारों को स्वयं से

दूर रखने का लिया है

मैंने जीवन भर का व्रत ठान

स्वच्छ निर्मल जल में हो

प्रतिबिम्बित यही मेरी  पहचान 



आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...