भारतीय संस्कृति
** ** **
भारतीय संस्कृति विश्व की समस्त संस्कृतियों में श्रेष्ठ है।
संस्कृति यानि उच्च से उच्चम संस्कार ।
संस्कार कोई स्थूल वस्तु नहीं ........
संस्कार मनुष्य द्वारा किये गये कर्म व् व्यवहार ...
भारतीय संस्कृति के आदर्श ,सदभावना, परस्पर प्रेम, आदर, आत्मविश्वास का आभूषण जिससे भारतीयता के श्रृंगार में और निखार आता है , क्योंकि सत्य ,और अहिंसा भारतीय संस्कृति की सशक्त लाठी है।
भारतीय संस्कृति हिंसा में कभी भी विश्ववास नहीं करती ।
इसका तातपर्य यह कदापि नहीं की हम कमजोर हैं ।
हिंसा से हमेशा विनाश ही हुआ है हिंसा अपने साथ कई मासूमों की भी बलि चढ़ा देती है ।
हम भी ईंट का जवाब पत्थर से दे सकते है और समय आने पर हम भारतीयों ने ईट का जवाब पत्थर से दिया भी है ।यह समस्त विश्व जनता है । भारत अहिंसा का का पुजारी है और अहिंसा की शक्ति तो महात्मा गाँधी ने बखूबी दिखा दी थी । गोले बारूद से अधिक आत्मविश्वास ,सत्य और अहिंसा की शक्ति है जिसका लोहा भारतीय संस्कृति की के इतिहास में मिलता है।
सत्य, प्रेम अंहिसा ,के तप का के बल की अग्नि
के आगे गोले,बारूद, की अग्नि भी शून्य है ।
गोले ,बारूद तो कुछ एक को ही तबाह करते हैं
पर भारतीयों के तप के बल की अग्नि में वो तेज है जो
की कहीं भी भी किसी को बैठे-बैठे ही स्वाहा कर सकती है।
भस्म कर सकती है । स्वाहा कर सकती है ।
** ** **
भारतीय संस्कृति विश्व की समस्त संस्कृतियों में श्रेष्ठ है।
संस्कृति यानि उच्च से उच्चम संस्कार ।
संस्कार कोई स्थूल वस्तु नहीं ........
संस्कार मनुष्य द्वारा किये गये कर्म व् व्यवहार ...
भारतीय संस्कृति के आदर्श ,सदभावना, परस्पर प्रेम, आदर, आत्मविश्वास का आभूषण जिससे भारतीयता के श्रृंगार में और निखार आता है , क्योंकि सत्य ,और अहिंसा भारतीय संस्कृति की सशक्त लाठी है।
भारतीय संस्कृति हिंसा में कभी भी विश्ववास नहीं करती ।
इसका तातपर्य यह कदापि नहीं की हम कमजोर हैं ।
हिंसा से हमेशा विनाश ही हुआ है हिंसा अपने साथ कई मासूमों की भी बलि चढ़ा देती है ।
हम भी ईंट का जवाब पत्थर से दे सकते है और समय आने पर हम भारतीयों ने ईट का जवाब पत्थर से दिया भी है ।यह समस्त विश्व जनता है । भारत अहिंसा का का पुजारी है और अहिंसा की शक्ति तो महात्मा गाँधी ने बखूबी दिखा दी थी । गोले बारूद से अधिक आत्मविश्वास ,सत्य और अहिंसा की शक्ति है जिसका लोहा भारतीय संस्कृति की के इतिहास में मिलता है।
सत्य, प्रेम अंहिसा ,के तप का के बल की अग्नि
के आगे गोले,बारूद, की अग्नि भी शून्य है ।
गोले ,बारूद तो कुछ एक को ही तबाह करते हैं
पर भारतीयों के तप के बल की अग्नि में वो तेज है जो
की कहीं भी भी किसी को बैठे-बैठे ही स्वाहा कर सकती है।
भस्म कर सकती है । स्वाहा कर सकती है ।