Ritu Asooja Rishikesh , जीते तो सभी है , पर जीवन वह सफल जो किसी के काम आ सके । जीवन का कोई मकसद होना जरूरी था ।परिस्थितियों और अपनी सीमाओं के अंदर रहते हुए ,कुछ करना था जो मेरे और मेरे समाज के लिए हितकर हो । साहित्य के प्रति रुचि होने के कारण ,परमात्मा की प्रेरणा से लिखना शुरू किया ,कुछ लेख ,समाचार पत्रों में भी छपे । मेरे एक मित्र ने मेरे लिखने के शौंक को देखकर ,इंटरनेट पर मेरा ब्लॉग बना दिया ,और कहा अब इस पर लिखो ,मेरे लिखने के शौंक को तो मानों पंख लग
अच्छा सोचने की आदत डालें
सपने ही तो अपने होते हैं
सपनों के पंख जब यथार्थ के
धरातल पर पर उड़ान भरते हैं
तब ही तो अद्भुत अविष्कार एवम्
चमत्कार होते हैं भव्य अतुलनीय
प्रस्तुतियों की मिसाल विश्व की धरोहर बनते हैं
सपने तो सपने होते हैं
सपने ही तो सिर्फ अपने होते हैं
बंद आंखो से देखे सपने भी सुनहरे होते हैं
खुली आंखों से देखे सपनों में राज गहरे होते हैं
खुली किताब पर कलम स्याही से तो
हिसाब-किताब होते हैं
सपनों के बिना जीवन निराधार होता है
सपनों से ही जीवन का आधार होता है
सपनों से जीवन का सुन्दर आकर होता है
सपनों में ही तो बसा सुन्दर संसार होता है ।।
भावों का सार
विचार अभिव्यक्ति को
विचारों का मंथन तो
अवश्य होता है किन्तु
भावों की उलझन में
भावों की खिचड़ी ही बन जाती है ।
ना भाव रहते हैं ना भावों का सार
सारा रस ही समाप्त हो जाता है
और वास्तविक विचार स्वाहा हो जाता है
विचार अभिव्यक्ति की उलझन में ।
विपरीत परिस्थितियां
विपरीत हालात
फिर भी जीने का हो मस्त अंदाज
जिंदादिली से जीने कला
हौसलों में हो उड़ान ,
मुश्किलों को हंसकर पार कर जाना जिसकी शान
किस्मत के हाथों बदल ही जाते हैं उसके हालत ।
हिंदी हिंदुस्तान का गौरव
"हिन्दुस्तान" का गौरव ,हिंदी मेरी मातृ भाषा, हिंदुस्तान की पहचान हिंदुस्तान का गौरव "हिंदी" मेरी मातृ भाषा का इतिहास सनातन ,श्रेष्ठ,एवम् सर्वोत्तम है ।
भाषा विहीन मनुष्य पशु सामान है ,भाषा ही वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को शब्दों और वाक्यों के माध्यम से एक दूसरे से अपनी बात कह सकते हैं और भव प्रकट कर सकते हैं ।
हिंदी मात्र भाषा ही नहीं, हिंदी संस्कृति है,इतिहास है,हिंदी इतिहास की वह स्वर्णिम भाषा है जिसमें अनेक महान वेद ग्रंथो के ज्ञान का भण्डार संग्रहित है ।
अपनी मातृ भाषा को छोड़कर किसी अन्य भाषा को अपनाना स्वयं का एवम अपने माता - पिता के अपमान जैसा हैं ।
मातृ भाषा से मातृत्व के भाव झलकते है ।
हिन्दी मेरी मातृ भाषा मां तुल्य पूजनीय है ।
जिस भाषा को बोलकर सर्वप्रथम मैंने अपने भावों को प्रकट किया उस उस मातृ भाषा को मेरा शत-शत नमन ।
जिस प्रकार हमें जन्म देने वाली माता पूजनीय होती है उसी तरह अपनी मातृ भूमि अपनी मातृ भाषा भी पूजनीय होनी चाहिए ।
मातृ भाषा का सम्मान ,यानि मां का सम्मान मातृ भूमि का सम्मान । मां तो मां होती ,और मां सिर्फ एक ही होती है ,बाकी सब मां जैसी हो सकती है। ऐसे ही मातृ भाषा भी एक ही होती है।
अपनी मातृ भाषा को छोड़कर किसी अन्य भाषा की ऊंगली पकड़ना ,मतलब बैसाखियों का सहारा लेना स्वयं को अपंग बनना ।
अपनी मातृ भाषा हिन्दी अनमोल है ,अद्वितीय है ,जीतना पुरातन इतिहास हिन्दी भाषा का उतना किसी अन्य भाषा का नहीं । अपनी भाषा को अपना गौरव समझते हुए उसके साथ चलिए इतिहास गवाह है भारतीय संस्कृति का लोहा विश्व में सदियों से अपना गौरवान्वित इतिहास बनाता आया है ,और आगे भी बनाएगा ।
*जमाना खराब है *
"होश की बातें करते हैं वो
जो नशे में सदा रहते हैं
स्वयं आदतों के गुलाम है
और दुनियां की आजादी
की बातें करते हैं "
"देकर उदहारण ,
जमाना खराब का
कैद में रखकर आजादी को
स्वतंत्रता , स्वालभिलंब,एवम्
शसक्तीकरण का ऐलान करते हैं
नियत खराब है ,कहने वालों
नियत जिसकी खराब है ,
दोषी वह है ,जिसकी सोच बुरी है
फिर सच्चाई के पैरों में जंजीरे क्यों"
"कैद करना है सजा देनी है तो
उस गलत सोच को दो
जो अच्छाई को भी अपनी बुरी
और गलत सोच और दृष्टि से
दूषित करने की सोचती है "
"बेडीयां डालनी है जो जमाना खराब है
उस खराब जमाने पर डालो अच्छाई की सांसों
को खुली हवा में सांस लेने दो "
*वाइरस *
जागृति की मशाल
कविता मात्र शब्दों का मेल नहीं
वाक्यों के जोड़ - तोड़ का खेल भी नहीं
कविता विचारों का प्रवाह है
आत्मा की गहराई में से
समुद्र मंथन के पश्चात निकली
शुद्ध पवित्र एवम् परिपक्व विचारो के
अमूल्य रत्नों का अमृतपान है
धैर्य की पूंजी सौंदर्य की पवित्रता
प्रकृति सा आभूषण धरती सा धैर्य
अनन्त आकाश में रोशन होते असंख्य सितारों के
दिव्य तेज का पुंज चंद्रमा सी शीतलता का एहसास
सूर्य के तेज से तपती काव्य धारा
स्वच्छ निर्मल जल की तरलता का प्रवाह
काव्य अंतरिक्ष के रहस्यमयी त्थयों की परिकल्पना
का सार है, साका रत्मक विचारो के जागृति की मशाल होती है।
आओ अच्छा बस अच्छा सोचें
आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...
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इंसान होना भी कहां आसान है कभी अपने कभी अपनों के लिए रहता परेशान है मन में भावनाओं का उठता तूफान है कशमकश रहती सुबह-शाम है ब...
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*ए चाॅंद* कुछ तो विषेश है तुममें जिसने देखा अपना रब देखा तुममें ए चाॅद तुम तो एक हो तुम्हें चाहने वालों ने जाने क्यों अलग-अलग किया खुद ...
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रास्ते भी क्या खूब हैं निकल पड़ो चल पड़ो मंजिलों की तलाश में किसी सफर पर रास्ते बनते जाते हैं रास्ते चलना सिखाते हैं,गिरना-समभलना फिर उ...