*वाइरस *

आज के युग में विषेले जीवाणु को 
पहचान पाना आसान है ,बजाय 
मनुष्य के ......मन में पनप रहे नफरत के जहर को
वाइरस के संक्रमण का डर सच्चा है 
उसमें संक्रमण है वो छुपता नहीं
किंतु मनुष्य की क्या कहिए किसके
 भीतर कितना और कैसा जहर भरा है
वह अदृश्य ही रहता है ।
 चेहरे पर मुस्कान मीठी
 छुरी शब्दों की चासनी
दिलों में जहर धोखा बेईमानी 
भरी जो अदृश्य
इसलिए मनुष्य से बेहतर तो वह 
जीवाणु ही है जिस के संक्रमण का 
डर साक्षात है जिससे स्वयं की 
रक्षा के बचाव किए जा सकते हैं 
किन्तु मनुष्यों के मन में भरे जहर 
नकारात्मक विचारों के जहर का क्या कीजिए
हम मनुष्य हैं शिव तो नहीं
जहर को पीकर अमर होना हमें नहीं आता
नफरत ,लोभ , कपट का जहर 
जीवन का  कहर 
रोग मधुमेह का बन जीवन
का जब होता है अंत
सामने वाला बन संत 
लुत्फ उठाता है जीवन के कतल का घिनौना अंत ।
किन्तु सत्य तो शाश्वत है ,सनातन है 
कब तक छिपेगा कोहरे में सत्य का सूरज 
जब कोहरा हटेगा ,तब होगा सत्य के प्रकाश का उजाला।
 

1 टिप्पणी:

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