*मानव पहुंच गया आज चांद पर
तुम खटिया पर बैठे दिन -भर
क्या बड़बड़ाती रहती
इंटरनेट है ,हम सब का साथी
उसके बिना ना हम सब को जिंदगी भाती
तुम क्यों बेवजह अम्मा बड़बड़ाती
तेरी बात ना कोई समझना चाहता
सारा ज्ञान इंटरनेट से मिल जाता
अम्मा बोली हां मैं अनपढ़, ना अक्षर ज्ञानी
उम्र की इस देहलीज पर आज पहुंची हूं
क्या दे सकती हूं मैं तुम सबको
अपना काम भी ना ढंग से कर पाती
मैं तो बस अपने अनुभव बांटती
जीवन के उतार-चाढाव के कुछ
किस्से सुनाती कई बार गिरी ,गिर-गिर
के संभली यही तो मैं कहना चाहती
बेटा चलना थोड़ा संभलकर
तुम ना करना मेरे जैसी नादानी
मैं तो सिर्फ अपने अनुभव बांटती
जो आता है जीवन जीने से देखो
तुम नाराज़ ना होना मेरे बच्चों
आज जमाना इंटरनेट का
चन्द्रमा तक तुम पहुंच चुके हो
अंतरिक्ष में खोजें कर रहे हो
आशियाना बनाओ चन्द्रमा पर अपना
पूरा हो तुम सब के जीवन का सपना
मैं तो बस अपने अनुभव बांटती
ना मैं ज्ञानी ,ना अभिमानी।
मैं तो बस अपने अनुभव बांटती
ना मैं ज्ञानी ,ना अभिमानी।