''सवर्ग और नरक '' ''अनमोल वचन ''
दादी और पोते का लाड़ प्यार उनकी खट्टी -मीठी बातें ही मानो कहानियों का रूप ले लेती हैं।
एक बार एक पोता अपनी दादी से पूछता है ,कि दादी आप जब मुझे कहानी सुनाती हो ,उसमे स्वर्ग की बाते करते हो ,क्या , स्वर्ग बहुत सुंदर है। दादी स्वर्ग कहाँ है / ? क्या हम जीते जी स्वर्ग नहीं जा सकते ?
दादी अपने पोते कि बात सुनकर कहती है बेटा , स्वर्ग हम चाहें तो अपने कर्मों द्वारा इस धरती को स्वर्ग बना सकते हैं।
पोता अपनी दादी से कहता है इस धरती को स्वर्ग वो कैसे , दादी कहती है है , बेटा भगवान ने जब हमें इस धरती पर भेजा ,तो खाली हाथ नहीं भेजा . ,भगवा न ने हमें प्रकृति कि अनमोल सम्पदाएँ ये हवाएँ , नदियाँ , पर्वत ,आदि दिए अन्य सम्पदाएँ सूरज , चाँद , सितारें न जाने क्या -क्या दिया।
दूसरी ओर भगवान ने हमें अ आत्मा कि शुद्धि के लिए भी कई रत्न दिए ,लेकिन बेटा वह रत्न अदृश्य हैं। तुम्हे मालूम है कि वह रत्न कौन से हैं ,
पोता कहता है, नहीं दादी वह रत्न कौन से हैं, मुझे नहीं मालूम ,
दादी कहती है , वह रत्न हैं हमारी भावनाएँ ,सबसे बड़ा रत्न हैं , '' प्रेम '' जब प्रत्येक प्राणी का प्रत्येक प्राणी से प्रेम होगा ,तो दुःख कि कोई बात ही नहीं होगी। अन्य रत्न हैं प्रेम ,दया ,क्षमा ,सहनशीलता समता ये सब हमारी आत्मा के रत्न हैं।
छोटा -बड़ा तेरा मेरा इन भावनाओं को अपनी आत्मा से निकल फेंकना होगा , अनजाने में हुई किसी कि गलती को माफ़ करना होगा।
बेटा भगवान ने इस धरती का निर्माण किया पर इंसानो ने अपने बुरे कर्मों द्वारा इस धरती का हाल बुरा कर दिया है ,
पोता दादी कि बातें सुनकर कहता है दादी मै बनाऊगा इस धरती को ' स्वर्ग ' मै इस धरती से तेरा -मेरा का भाव मिटा दूँगा दादी मै अपनी आत्मा में छिपे और प्रत्येक प्राणी कि आत्मा में छिपे सुंदर रत्नों की पहचान उन्हें कराऊंगा . त्याग ,दया क्षमा ,प्रेम आदि ही आज से मेरे आभूषण हैं ,मैं इन सुंदर रत्नो से स्व्यम को सजाऊंगा। इस धरती को स्वर्ग बनाऊँगा। .