Ritu Asooja Rishikesh , जीते तो सभी है , पर जीवन वह सफल जो किसी के काम आ सके । जीवन का कोई मकसद होना जरूरी था ।परिस्थितियों और अपनी सीमाओं के अंदर रहते हुए ,कुछ करना था जो मेरे और मेरे समाज के लिए हितकर हो । साहित्य के प्रति रुचि होने के कारण ,परमात्मा की प्रेरणा से लिखना शुरू किया ,कुछ लेख ,समाचार पत्रों में भी छपे । मेरे एक मित्र ने मेरे लिखने के शौंक को देखकर ,इंटरनेट पर मेरा ब्लॉग बना दिया ,और कहा अब इस पर लिखो ,मेरे लिखने के शौंक को तो मानों पंख लग
**यहां मेरी भावनाओं की कोई कदर नहीं .....
फिर मैं सारे शहर को बता कर आती हूं कि मेरे श्रीमान जी को उनके उत्कृष्ट लेखन के लिए राज्य सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया है ।
**दफन**
** कल मुझे कुछ संस्कार मिले
कफ़न में लिपटे हुए
पड़े थे मृत के समान मूर्छित अवस्था में,मानों कोमा में
सांसे ले रहे थे ,
पर मरे नहीं थे,तैयार थे ,
शव शैय्या पर
स्वाहा होने के लिए
क्योंकि मृत के सामान पड़े थे
ले जाया जा रहा था उन्हें अंतिम संस्कार
के लिए .......
तभी कुछ हलचल हुई,
एक आस जो बची थी
जीवंत हो उठी ,संस्कारों ने
लम्बी सांस ली...... इंसानियत
भी मुस्करा उठी ,खिलखिलाने लगी....
शुभ मंगल संस्कारों की सांसे चलते देख....
*बेटियां *
बेटियां इन कलियों की
अहमियत तो उन बागवानों से पूछो ,
जिन बागों में यह खिलती हैं
घर आंगन महकाती हैं
रौनकें बढ़ाती हैं
बेटियां दो घरों की आन-बान
और शान होती हैं
एक घर की जड़ों में
फलती -फूलती और संस्कारित होती है
दूजे घर की इज्जत नींव और जड़ों को पोषित करने की जिम्मेदारियां निभाती हैं
बेटियां एक नहीं दो -दो घरों की रौनक और शान बढ़ाती हैं ।
बेटे वंशज होते हैं तो
बेटियां उपजाऊ धरती होती हैं
भूमिका में दोनों की अहमियत सामान होती है ।
*विचार शून्य जीवन का क्या आधार *
**
*किसी अद्वितीय असीमित,
शक्तिशाली विचार से ही प्रारम्भ
हुआ होगा धरती पर जीवन
विचारों से ही संसार का
अद्भुत नजारा......
विचारों से ही सृष्टि की सभ्यता विकसित
मनुष्य में विद्यमान विचारों ने धरती को खूब
संवारा ......
मेरा तो मानना है कि विचारों की नींव
पर ही टिका ही संसार सारा
विचार ही तो हैं जीवन का आधार ......
जीवन का सार ,विचार ना होते तो तब
कहां सम्भव था धरती पर प्रेम और सौहार्द.....
विचार माना की अद्वितीय शक्तियों का
सार ,शक्ति का आधार ,जैसे मनुष्य जीवन
में प्राण रक्त का संचार,हृदय गति का आधार ....
विचारों के भी दो प्रकार :-
जहां असुर विचार :- संहारक विनाशकारक
सुर विचार शुभ दैवीय विचार :-उत्थान करक
तो क्यों कहते ,शुभ और अशुभ विचार
नकारात्मक और साकारात्मक सोच
जब मनुष्य की सोच ही उसके काम
बनाती और बिगाड़ती है तो विचारों
का ही तो हुआ खेल सारा....
शक्तिशाली विचार से ही प्रारम्भ
हुआ होगा धरती पर जीवन
विचारों का खेल है सारा
विचारों से ही संसार का
अद्भुत नजारा......
विचारों से ही सृष्टि की सभ्यता विकसित
मनुष्य में विद्यमान विचारों ने धरती को खूब
संवारा ......
मेरा तो मानना है कि विचारों की नींव
पर ही टिका ही संसार सारा
विचार ही तो हैं जीवन का आधार ......
जीवन का सार ,विचार ना होते तो तब
कहां सम्भव था धरती पर प्रेम और सौहार्द.....
विचार माना की अद्वितीय शक्तियों का
सार ,शक्ति का आधार ,जैसे मनुष्य जीवन
में प्राण रक्त का संचार,हृदय गति का आधार ....
विचारों के भी दो प्रकार :-
जहां असुर विचार :- संहारक विनाशकारक
सुर विचार शुभ दैवीय विचार :-उत्थान करक
*विचारों के द्वंद्व में उलझा
तब समझा ,विचार शून्य
सब निरर्थक ,निराधार ,
विचार ही जीवन का आधार
विचारों के चयन की ना होती महिमातो क्यों कहते ,शुभ और अशुभ विचार
नकारात्मक और साकारात्मक सोच
जब मनुष्य की सोच ही उसके काम
बनाती और बिगाड़ती है तो विचारों
का ही तो हुआ खेल सारा....
सोचना पड़ा
*मैं वो भाषा हूं जो सबको समझ आ जाती हूं
मैं ना कुछ बोलती हूं ,ना कुछ कहती हूं
फिर भी लोगों के दिल में उतर जाती हूं *
*सोचना पड़ा
खुदा को भी सच्ची मोहब्बतों के कुछ चिरागों को नफरतों की आंधियों के आगे भी ना बुझते देख अपने चक्षुओं को अश्कों से भिगोना पड़ा सोचना पड़ा खुदा को भी मोहब्बत के नाम पर फ़ना होना पड़ा*
*भावनाएं भी क्या चीज हैं
जीवन का आधार ,जीवन का सार है
भावनाओं से रहित जीवन निराधार हैं
भावनाएं नदिया का बहता जल
लहरें उतार -चढ़ाव,
फंसना यानी भंवर में फंसना
भावनाओं की लहरों संग सामंजस्य बिठा कर
जीवन नैय्या पार करना ही जीवन यात्रा की सफलता ....*
*हिंदी हिन्दुस्तान की आत्मा उसका गौरव*
🙏🙏🎊🌹हिंदी मेरी मात्रभाषा अन्नत है,शाश्वत है, सनातन है , हिंदी किसी विशेष दिवस की मोहताज नहीं जब तक धरती पर अस्तित्व रहेगा तब तक हिंदी भाषा का अस्तित्व रहेगा 🙏🌹🌹🎊🌸🌺🙏
“ हिंदी मेरी मातृभाषा माँ तुल्य पूजनीय '' 🙏🙏
😊😃जिस भाषा को बोलकर मैंने अपने भावों को व्यक्त किया ,जिस भाषा को बोलकर मुझे मेरी पहचान मिली ,मुझे हिंदुस्तानी होने का गौरव प्राप्त हुआ , उस माँ तुल्य हिंदी भाषा को मेरा शत -शत नमन।
भाषा विहीन मनुष्य अधूरा है।
भाषा ही वह साधन है जिसने सम्पूर्ण विश्व के साथ जनसम्पर्क को जोड़ रखा है जब शिशु इस धरती पर जन्म लेता है ,तो उसे एक ही भाषा आती है वह है, भावों की भाषा ,परन्तु भावों की भाषा का क्षेत्र सिमित है।
मेरी मातृभाषा हिंदी सब भाषाओँ में श्रेष्ठ है। संस्कृत से जन्मी देवनागरी लिपि में वर्णित हिंदी सब भाषाओँ में श्रेष्ट है। अपनी मातृभाषा का प्रयोग करते समय मुझे अपने भारतीय होने का गर्व होता है। मातृभाषा बोलते हुए मुझे अपने देश के प्रति मातृत्व के भाव प्रकट होते हैं। मेरी मातृभाषा हिंदी मुझे मेरे देश की मिट्टी की सोंधी -सोंधी महक देती रहती हैं ,और भारतमाता माँ सी ममता।
आज का मानव स्वयं को आधुनिक कहलाने की होड़ में 'टाट में पैबंद ' की तरह अंग्रेजी के साधारण शब्दों का प्रयोग कर स्वयं को आधुनिक समझता है।
अरे जो नहीं कर पाया अपनी मातृ भाषा का सम्मान उसका स्वयं का सम्मान भी अधूरा है। किसी भी भाषा का ज्ञान होना अनुचित नहीं अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। इसका ज्ञान होना अनुचित नहीं।
परन्तु माँ तुल्य अपनी मातृभाषा का प्रयोग करने में स्वयं में हीनता का भाव होना स्व्यम का अपमान है।
मातृभाषा का सम्मान करने में स्वयं को गौरवान्वित महसूस करें। मातृभाषा का सम्मान माँ का सम्मान है.
हिंदी भाषा के कई महान ग्रन्थ सहित्य ,उपनिषद ' रामायण ' भगवद्गीता ' इत्यादि महान ग्रन्थ युगों -युगों से विश्वस्तरीय ज्ञान की निधियों के रूप में आज भी सम्पूर्ण विश्व का ज्ञानवर्धन कर रहे हैं व् अपना लोहा मनवा रहे है।
भाषा स्वयमेव ज्ञान की देवी सरस्वती जी का रूप हैं। भाषा ने ही ज्ञान की धरा को आज तक जीवित रखे हुए हैं
मेरी मातृभाषा हिंदी को मेरा शत -शत नमन आज अपनी भाषा हिंदी के माध्यम से मैं अपनी बात लिखकर आप तक पहुंचा रही हूँ।
“ हिंदी मेरी मातृभाषा माँ तुल्य पूजनीय '' 🙏🙏
😊😃जिस भाषा को बोलकर मैंने अपने भावों को व्यक्त किया ,जिस भाषा को बोलकर मुझे मेरी पहचान मिली ,मुझे हिंदुस्तानी होने का गौरव प्राप्त हुआ , उस माँ तुल्य हिंदी भाषा को मेरा शत -शत नमन।
भाषा विहीन मनुष्य अधूरा है।
भाषा ही वह साधन है जिसने सम्पूर्ण विश्व के साथ जनसम्पर्क को जोड़ रखा है जब शिशु इस धरती पर जन्म लेता है ,तो उसे एक ही भाषा आती है वह है, भावों की भाषा ,परन्तु भावों की भाषा का क्षेत्र सिमित है।
मेरी मातृभाषा हिंदी सब भाषाओँ में श्रेष्ठ है। संस्कृत से जन्मी देवनागरी लिपि में वर्णित हिंदी सब भाषाओँ में श्रेष्ट है। अपनी मातृभाषा का प्रयोग करते समय मुझे अपने भारतीय होने का गर्व होता है। मातृभाषा बोलते हुए मुझे अपने देश के प्रति मातृत्व के भाव प्रकट होते हैं। मेरी मातृभाषा हिंदी मुझे मेरे देश की मिट्टी की सोंधी -सोंधी महक देती रहती हैं ,और भारतमाता माँ सी ममता।
आज का मानव स्वयं को आधुनिक कहलाने की होड़ में 'टाट में पैबंद ' की तरह अंग्रेजी के साधारण शब्दों का प्रयोग कर स्वयं को आधुनिक समझता है।
अरे जो नहीं कर पाया अपनी मातृ भाषा का सम्मान उसका स्वयं का सम्मान भी अधूरा है। किसी भी भाषा का ज्ञान होना अनुचित नहीं अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। इसका ज्ञान होना अनुचित नहीं।
परन्तु माँ तुल्य अपनी मातृभाषा का प्रयोग करने में स्वयं में हीनता का भाव होना स्व्यम का अपमान है।
मातृभाषा का सम्मान करने में स्वयं को गौरवान्वित महसूस करें। मातृभाषा का सम्मान माँ का सम्मान है.
हिंदी भाषा के कई महान ग्रन्थ सहित्य ,उपनिषद ' रामायण ' भगवद्गीता ' इत्यादि महान ग्रन्थ युगों -युगों से विश्वस्तरीय ज्ञान की निधियों के रूप में आज भी सम्पूर्ण विश्व का ज्ञानवर्धन कर रहे हैं व् अपना लोहा मनवा रहे है।
भाषा स्वयमेव ज्ञान की देवी सरस्वती जी का रूप हैं। भाषा ने ही ज्ञान की धरा को आज तक जीवित रखे हुए हैं
मेरी मातृभाषा हिंदी को मेरा शत -शत नमन आज अपनी भाषा हिंदी के माध्यम से मैं अपनी बात लिखकर आप तक पहुंचा रही हूँ।
श्री राधे -राधे
श्री राधे नाम की रस धारा हो
और कृष्ण नाम का सहारा हो
अमृत्मयी विचारधारा तो उसके
जीवन का अद्भुत ,अतुलनीय स्वर्ग सा नजारा हो
फ़िक्र का क्यों जिक्र करूं
जब श्री कृष्ण मित्र हमारा हो
श्री राधे नाम के इत्र से महकने
लगी है मेरे जीवन की बगिया
अब मेरे संग मेरे अंतर्मन में रहने
लगे हैं कृष्ण कन्हैया
श्री राधे रानी,जब से मैंने तुम्हारे नाम
का सहारा लिया है ,कृष्ण नाम के अमृत
से पवित्र होने लगी है मन मन्दिर की बगिया
हे कन्हैया , मैं जानता हूं तेरे नाम की रसधारा
में डूबकर ही पार लगेगी जीवन की नैया
श्री राधे -राधे
श्री राधे नाम की रस धारा हो
और कृष्ण नाम का सहारा हो
अमृत्मयी विचारधारा तो उसके
जीवन का अद्भुत ,अतुलनीय स्वर्ग सा नजारा हो
फ़िक्र का क्यों जिक्र करूं
जब श्री कृष्ण मित्र हमारा हो
श्री राधे नाम के इत्र से महकने
लगी है मेरे जीवन की बगिया
अब मेरे संग मेरे अंतर्मन में रहने
लगे हैं कृष्ण कन्हैया
श्री राधे रानी,जब से मैंने तुम्हारे नाम
का सहारा लिया है ,कृष्ण नाम के अमृत
से पवित्र होने लगी है मन मन्दिर की बगिया
हे कन्हैया , मैं जानता हूं तेरे नाम की रसधारा
में डूबकर ही पार लगेगी जीवन की नैया
श्री राधे -राधे
**शिक्षकों का स्थान सर्वोच्च **
कभी सिर पर हाथ फेर कर
कभी डांट कर,
कभी दुत्कार कर
कभी मूर्ख, कभी मंदबुद्धि
कहकर , माना की मेरा दिल
बहुत जलाया ......
परंतु उसी आग ने मेरे अंदर
के स्वाभिमान को जगाया
उस चिंगारी से सर्वप्रथम
मैंने स्वयं को जगाया एक
बेहतर इंसान बनाया
फ़िर समाज के लिए कुछ
कर गुजरने के जनून ने
मुझे मेरे कर्म मार्ग में निरंतर
आगे की और बड़ने को प्रेरित किया
मैं आज जो कुछ भी हूं
मेरे शिक्षकों द्वारा दी गई शिक्षा के फलीभूत....
या यूं कहिए मेरे अंदर की
ज्ञान की चिंगारी को मशाल का
रूप देकर समाज को रोशन किया
धन्य -धन्य ऐसे शिक्षकों को
जिन्होंने मेरे और मेरे जैसे कई
मनुष्यों के जीवन को सही मार्ग दिखाने
के लिए स्वयं के जीवन को चिराग बनाया
उनका जीवन सफल बनाया..
शिक्षकों के सम्मान में
एक अच्छा शिक्षक नदिया के
बेहते जल की तरह होता है
जिसके ज्ञान की निर्मल धारा में
कोई भी अपनी प्यास बुझा सकता है और
उसकी बेहती जल धारा, गन्दगी रूपी अज्ञान को
बाहर निकाल देती है ।
स्वागतम् गणपति महाराज जी आपका ....
माता जाकी पार्वती
पिता महादेवा ,
हे गणपति,हे गणेशा
मैं सदा ,सरल हृदय से
शुद्ध बुद्धि से तेरा नाम
गुणगान गवां ,तेरा नाम सिमरन
कर नित -नए भोग लगवां
हे गणपति मैं निश दिन प्रतिपल
तुझे ही मनावां
रिद्धि, सिद्धि
शुभ , लाभ
लक्ष्मी और सरस्वती
समस्त सिद्धियों के तुम स्वामी
तुम अन्तर्यामी ,
सब के मन की जानी
विश्व भ्रमण का सुख
माता -पिता के चरणों
में पाया, हे, लम्बोदर
बड़े-बड़े रहस्यों को
विशाल ललाट मस्तक में
सिद्धि विनायक ने
विवेक बुद्धि ,ज्ञान से
वेद, ग्रंथों ,आदि महाकाव्यों
की रचना कर जगत को
ज्ञान विवेक का पाठ सिखाया
हे ,विनायक हे लम्बोदर
तेरे नाम लेने से तर जाएं सातों समुन्दर
कीमती सामान
बहुत दिन से मां कह रही थी ,आलमारी का सामान ठीक करना है ,सारा सामान उलट-पलट करके रखा है ।
मैं भी बाल मन दस साल मेरी उम्र ....
एक दिन अपना समान ढूंढ़ते वक़्त बाकी सब सामान अस्त -व्यस्त अब अलमारी में रखे सामान की ऐसी स्थिति थीं की ढूंढने पर भी कोई सामान आसानी से नहीं मिलने वाला था।
मां चिल्लाई ये क्या किया राघव कबाड़ी भी इससे अच्छी तरह रखते होंगे घर में सामान और तुमने क्या हाल कर दिया है ....
मां झ्ट से अाई और अलमारी का सारा सामान बा हर की तरफ निकाल दिया , अब ये सामान ऐसे ही रहेगा ठीक करना अपने आप ,फिर मां खुद ही सारा सामान समेटने लगी ....
मैं पलंग पर बैठा हुआ तिरछी निगाहों से मां को देख रहा था ,तभी मेरी नजर अलमारी के बाहर फैले सामान पर पड़ी ,मेरी जासूस निगाहें उस समान में से ना जाने क्या खोजने लगा कब मैं जाकर उस समान के पास बैठ गया मुझे भी नहीं पता चला। ,तभी मां चिल्लाई तू फिर आ गया तंग करने, मां एक मिनट कहते ही मेरी नज़र कपड़ों के नीचे पड़ी एक कीमती चीज पर पड़ी ,मैंने झट से उसे निकाल लिया और अपने पास रख लिया,और फिर मेरी जासूस निगाहें और कुछ ढूंढने लगी ,रंगों वाले पेन का पैकेट मैने मां से पूछा ये वही रंग हैं ना देखा आपने यहां छिपा कर रखे थे ,मां बोली तुम से कुछ नहीं छिपा राघव..
मां ने धीरे- धीरे अलमारी का सारा सामान संभाल लिया ।
मां इधर-उधर देखने लगी कुछ छूटा तो नहीं ,तभी मेरा हाथ देखकर बोली ये क्या है तेरे हाथ में क्या है दिखा तो सही ...
तभी मैंने कहा नहीं मां यह मैं नहीं दूंगा ,यह बहुत कीमती चीज है ,मां बोली क्या है बेटा दिखा तो सही ,मैंने भी एक शर्त रखी की आप यह कीमती चीज मेरे पास ही रहने दोगी ,मां बोली अच्छा चल दिखा ....मैंने मां को मेरी कीमती चीज दिखाई ,मां ने मुझे देखा और बोली ये तेरे दोस्त हैं ना ,यह तस्वीर उस समय की है जब स्कूल में तुम्हारा जन्मदिन तुम्हारे स्कूल के दोस्तों के साथ पहली बार मनाया था ...देखो सब कितने अच्छे -अच्छे उपहार लाए थे ...
हां मां यह सब मेरे सबसे अच्छे दोस्त हैं
में इस फोटो इस कीमती सामान को हमेशा अपने पास संभाल कर रखूंगा ....
मां बोली रख बेटा अपना कीमती सामान अपने पास ।
मैं भी बाल मन दस साल मेरी उम्र ....
एक दिन अपना समान ढूंढ़ते वक़्त बाकी सब सामान अस्त -व्यस्त अब अलमारी में रखे सामान की ऐसी स्थिति थीं की ढूंढने पर भी कोई सामान आसानी से नहीं मिलने वाला था।
मां चिल्लाई ये क्या किया राघव कबाड़ी भी इससे अच्छी तरह रखते होंगे घर में सामान और तुमने क्या हाल कर दिया है ....
मां झ्ट से अाई और अलमारी का सारा सामान बा हर की तरफ निकाल दिया , अब ये सामान ऐसे ही रहेगा ठीक करना अपने आप ,फिर मां खुद ही सारा सामान समेटने लगी ....
मैं पलंग पर बैठा हुआ तिरछी निगाहों से मां को देख रहा था ,तभी मेरी नजर अलमारी के बाहर फैले सामान पर पड़ी ,मेरी जासूस निगाहें उस समान में से ना जाने क्या खोजने लगा कब मैं जाकर उस समान के पास बैठ गया मुझे भी नहीं पता चला। ,तभी मां चिल्लाई तू फिर आ गया तंग करने, मां एक मिनट कहते ही मेरी नज़र कपड़ों के नीचे पड़ी एक कीमती चीज पर पड़ी ,मैंने झट से उसे निकाल लिया और अपने पास रख लिया,और फिर मेरी जासूस निगाहें और कुछ ढूंढने लगी ,रंगों वाले पेन का पैकेट मैने मां से पूछा ये वही रंग हैं ना देखा आपने यहां छिपा कर रखे थे ,मां बोली तुम से कुछ नहीं छिपा राघव..
मां ने धीरे- धीरे अलमारी का सारा सामान संभाल लिया ।
मां इधर-उधर देखने लगी कुछ छूटा तो नहीं ,तभी मेरा हाथ देखकर बोली ये क्या है तेरे हाथ में क्या है दिखा तो सही ...
तभी मैंने कहा नहीं मां यह मैं नहीं दूंगा ,यह बहुत कीमती चीज है ,मां बोली क्या है बेटा दिखा तो सही ,मैंने भी एक शर्त रखी की आप यह कीमती चीज मेरे पास ही रहने दोगी ,मां बोली अच्छा चल दिखा ....मैंने मां को मेरी कीमती चीज दिखाई ,मां ने मुझे देखा और बोली ये तेरे दोस्त हैं ना ,यह तस्वीर उस समय की है जब स्कूल में तुम्हारा जन्मदिन तुम्हारे स्कूल के दोस्तों के साथ पहली बार मनाया था ...देखो सब कितने अच्छे -अच्छे उपहार लाए थे ...
हां मां यह सब मेरे सबसे अच्छे दोस्त हैं
में इस फोटो इस कीमती सामान को हमेशा अपने पास संभाल कर रखूंगा ....
मां बोली रख बेटा अपना कीमती सामान अपने पास ।
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आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...
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