*क्यों ना बस अच्छा ही सोचें *

**क्यों अपने संग बेवजह का बोझ
लेकर चलूं क्यों ना हल्का हो जाऊँ और
बिना पंखों के भी ऊंचा उड़ूं
क्योंकि जो जितना हल्का होगा
उतना ऊंचा उड़ेगा

क्यों ना कुछ अच्छा सोचें
अच्छा ही बोले अच्छा ही सुने
और अच्छा ही करें
और फिर अच्छा करते-करते
जब सब और अच्छा ही हो जाए

अच्छों की दुनिया अच्छी ही होती है
ऐसा नहीं की की बुराई नहीं आती
मुश्किलें नहीं आती
आती तो है कठिनाइयां बहुत आती हैं
परंतुअच्छा सोचने वालों के लिए हर मुश्किल भी अच्छाई की ओर ले जाने वाली सीढ़ियां बन जाती है

इल्जाम भी लगते हैं
स्वार्थी घमंडी अहंकारी
होने की तोहमतें भी लगती हैं
पर जो अच्छा सोचता है
उसे आदत पड़ जाती
वो बुराई के नरक में जाने से
कतराता है झूठ के जाल में
फंसने से डरता है
जो सच्चा होता है वो
आजाद हो जाता है
झूठ के नकाब के मायाजाल से
फ़िर क्यों ना मैं भी उडूं
मदमस्त ,बेफिक्र आसमां की ऊंचाइयों में
और अच्छा बनने की कोशिश करूं ।

9 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय ऋतु जी, नीरज जी का कहना है_______
    जितना कम सामान रहेगा
    सफर उतना आसान रहेगा।!!
    फिर बोझ मन पर हो या तन पर।!
    सार्थक बिंदुओं को रेखांकित करती रचना। 👌👌👌👌
    हार्दिक शुभकामनाएं। 🌹🌹🌹🌹💐💐💐💐💐💐🌷🌷

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    1. रेणु जी नमन आभार रचना पड़ने और टिप्पणी देने के लिए

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  2. नमस्कार !
    आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 23 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. नमस्कार !
    आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" मंगलवार 23 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. प्रिय मीना जी आपका आभार मेरी लिखी रचना को सांध्य मुखरित मौन में शामिल करने के लिए आभार

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  4. बेहतरीन सृजन प्रिय रितु दी जी
    सादर

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  5. बहुत सुंदर सृजन सीख भी हौसला भी जीने का ढंग भी वाह!

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