🎉🎉" शून्य का शून्य में वीलीन हो जाना 🎉🎉

         
           मनुष्य जीवन में ,तन का अस्तित्व राख हो जाना ,आत्मा रूपी शक्ति ,जिससे मनुष्य तन पहचान में आता है , यानि         मनुष्य का अस्तित्व धरती पर तभी तक है जब तक तन में आत्मा की ज्योत रहती है ।
दिव्य अलौकिक शक्ति जिससे आप ,मैं, हम ,तुम  और सम्पूर्ण प्राणी जगत है , सब के सब  जिस रूप में दिखाए देते हैं वह सब  एक आकार है ,या यूँ कहिए ...   ब्रह्माण्ड में व्याप्त अलौकिक शक्ति ,जिसका तेज़ इतना अधिक और उसकी शक्ति  असीमित है ,उस अलौकिक शक्ति में से कुछ शक्तियाँ विखंडित होकर के अपना अस्तित्व खोजने लगीं उन शक्तियों की शक्तियाँ भी असीमित ......उन शक्तियों ने अस्तित्व में आने  के लिये पाँच तत्वों से निर्मित एक तत्व बनाया, धरती पर निवास हेतु उस तत्व की संरचना बख़ूबी की गयी .......उसके पश्चात् उसमें आत्मा रूपी दिव्य जोत को प्रवेश कराया गया , वहीं से से मनुष्य  तन अस्तित्व में आया होगा ।    क्योंकि वह शक्ति स्वयं में ही इतनी शक्तिशाली है कि उस शक्ति ने स्वयं की शक्तियों का उपयोग करते हुए ,स्वयं के लिये धरती पर सब सुख सुविधाओं की भी व्यवस्था की , उन्हीं शक्तियों के तेज़ ने संभवतया वंश वृद्धि को जन्म दिया .....और चल पड़ा धरती पर मनुष्य जीवन का कारवाँ ......
मनुष्य का धरती पर जन्म एक लम्बा सफ़र ,बचपन ,जवानी ,बुढ़ापा ।
जीवन फिर मरण शाश्वत सत्य ।
धरती पर मनुष्य जीवन का सर्वप्रथम सत्य ,प्राणियों की उत्पत्ति ,क्यों ? और कैसे ?
संसार की भाग दौड़ में भागते -भागते जब कभी मनुष्य को सत्य का  ज्ञान होता है ,
तब किसी भी मनुष्य के मन में यह सवालज़रूर उठता होगा ,जव मरण भी निश्चित है ,जन्म क्यों ?
धरती पर मनुष्य जीवन की गुत्थी , वेद ,ऋचाओं ,शास्त्रों में कई तथ्य ,उद्धारण हैं
सूर्य सत्य है ,
शाश्वत है ,
दिव्य तेज़ ,सूर्य देव
सर्वप्रथम सूर्य ही श्रेष्ठ
सूर्य रहित धरती का नहीं अस्तित्व
तन के पुतले में
जब प्रवेश हुआ तेज़
एक प्रकाश ,एक ज्योत
आत्मा जिसका नाम
तब मनुष्य तन आया अस्तित्व में
पाकर सूक्ष्म सा तेज़ मनुष्य तन
स्वयं को माने शक्तिशाली
करे स्वयं पर अभिमान
मिट्टी से मिट्टी जन्मी
तन की मिट्टी से जब 
आत्मा की ज्योत निकली
मिट्टी हो गयी राख ,जब 
मिट्टी में मिली ,मिट्टी हो गयी मिट्टी 
मिट्टी ने मिट्टी की सड़कों पर
ऊँचे-ऊँचे महल बनाए
खण्डहर हो गए महल
खण्डहर हो गयी मिट्टी
मिट्टी के दिये का है तब तक अस्तित्व
जब तक है उसमें प्रकाश
जैसे ही विलुप्त हुआ प्रकाश
अस्तित्व समाप्त
प्रकाश को जानो ,मानो
और पहचानो क्योंकि प्रकाश से ही है
संसार के प्रत्येक जीव का अस्तित्व
प्रकाश का स्रोत सूर्य देव
सूर्यवंश की संतानें हम
माना की मनुष्य में भी है तेज़
परन्तु मनुष्य है सूर्य की किरणों का तेज़
किरणों का प्रकाश से ही अस्तित्व
अन्धकार में विलुप्त हो ही जाती किरणे
तो रहें प्रकाश के सम्पर्क में
प्रकाशित रहें ,प्रकाशित करते रहें संसार ।








18 टिप्‍पणियां:

  1. एक और गहरा दर्शन समेटे ...
    सत्य क्या अहि यही जान लेना इंसान का धर्म है ... और सत्य मिल जाये तो जीवन सफल ...

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  2. वाह ! खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।

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  3. परम सत्य का उद्घाटन! सुन्दर कथ्य!

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  4. वाह!!प्रथम बार अपको पढ़ा मैंने,और दिल से कहती हुं, इतनी उच्च कोटि की महानतम विचारों से आपने इस रचना में संदेश को संप्रेषित किया है ,मन की गहराइयों में ये बातें दर्ज हो गई, विरले ही इस तरह की दार्शनिक संवादों से मिलना होता है... बहुत बधाई आपको इतनी अच्छी लेख के लिए..!

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    1. अनीता जी आपने मेरे द्वारा रचित रचना पड़ी
      और इतनी अच्छी टिप्पणी दी धन्यवाद आपका

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  5. आदरणीया ,ऋतु जी आपसे अनुरोध है कृपया
    आप अपने ब्लॉग पर अनुसरण करें का गैजेट लगायें ताकि पाठक आपके ब्लॉग का अनुसरण कर सकें। धन्यवाद ! "एकलव्य"

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  6. दार्शनिक संवादों से सजी बहुत सुंंदर रचना.

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आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...