💐मेरा मज़हब मोहब्बत💐

*क्या करूँ ,मेरा तो मज़हब ही मोहब्बत है
मोहब्बत के सिवा मुझे कुछ समझ ही न आये *
तो मैं क्या करूं ?

"हम तो मोहब्बतें चिराग जलाये बैठे रहेगें
चिरागों से नफरतों के अँधेरे दूर होते रहेंगे
चिराग तो जलते ही हैं ,जहाँ को रोशन करने के लिये
अब कोई अपना मन जलाये तो हम क्या करें
किसी को समझ ना आये तो हम क्या करें"

मोहब्बत की आग तो चिराग़े दिलों में ही
जला करती है, यूँ तो *ये*मोहब्बत की आग दिलों को
ठंडक देती है , पर कभी-कभी दिलों को जला
भी देती है।

"आग है तो ,चिंगारियाँ भी होंगीं ,
चिंगारियाँ होंगीं तो ,आग भी होगी
आग होगी तो ,जलन भी होगी
पर एक खूबसूरत बात आग के साथ
रोशनी भी आपार  होगी"
*मोहब्बते चिराग यूँ ही तो नहीं जला करते
सूरज भी हर-पल जला ही है
उजालों की खातिर ,जलना ही पढ़ता है
हासिल कुछ हो या न हो,चिराग जलता ही है
अन्धकार दूर करने के लिये है**

*मोहब्बतों का कोई मज़हब नहीं होता
  मज़हब तो ,विचारों और विवादों का होता है
 सबसे बड़ा मज़हब तो मोहब्बत ही है
"जिसमें न कोई हिन्दू,ना मुसलमान ,न ईसाई होता है
होता है तो सिर्फ इन्सान होता है ,सिर्फ इंसान होता हैं"***

11 टिप्‍पणियां:

  1. *मोहब्बतों का कोई मज़हब नहीं होता
    मज़हब तो ,विचारों और विवादों का होता है
    सबसे बड़ा मज़हब तो मोहब्बत ही है
    "जिसमें न कोई हिन्दू,ना मुसलमान ,न ईसाई होता है
    होता है तो सिर्फ इन्सान होता है ,सिर्फ इंसान होता हैं"***

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  2. वाह्ह्ह...रितु जी लाज़वाब रचना..बहुत सुंदर भाव पिरोये है आपने।

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  3. वाह वाह!!रितु जी ,बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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  4. मुहब्बत का कोई मजहब नहीं होता ...
    प्रेम बस प्रेम होता है ... बहुत खूब लिखा है ...

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