** क्या छिपा रहे हो ****   {कविता }

   * क्या छिपा रहे हो
   * कितना छिपाओगे
    *लाख छुपाओगे उजाले को
     💐उजाला किसी झिर्री से बाहर आ ही जायेगा
    💐💐💐💐💐💐
    *जो सच है ,सामने आ ही जाता है
** श्वेत मेघों की ओट में
   वो छुपा बैठा था सच
   बना-बना कर विभिन्न
   आकृतियाँ मोहित कर
   रहा था सभी को ।

  💐 आसमान की ऊँचाइयाँ
   पर जा -जाकर इतरा रहा था।
   उसी में सच्चाई दिखा
   दिल लुभा रहा था   ।

  💐 सुना था सच सामने आ ही जाता है
   अचानक तेज आँधियाँ चली
   सब अस्त-व्यस्त ।
   श्वेत मेघों का पर्दा हटा
   हो गया सब पानी-पानी ।
 
  शाश्वत था जो वो सामने आ गया
  लाख छुपा सत्य विभिन्न आकृतियों
  वाले श्वेत ,काले ,घने ,मेघों की ओट में ।**💐💐

4 टिप्‍पणियां:

  1. सत्य को चुआना शायद आसान नहीं ... लाख कोशिशें बेकार हो जाती हैं ...
    अच्छी रचना है ...

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  2. जी दिगाम्बर जी सत्य को लाख छुपाए कोई परन्तु सत्य तो सत्य है ।

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  3. सच कभी न कभी किसी न किसी रूप में सामने आता ही हैं। लेकिन कभी-कभी सच सामने आने में इतनी देरी लगा देता हैं कि हम झूठ को ही सच मानने लगते हैं। सुंदर प्रस्तुति।

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