💐💐*कृषकों को नमन*💐💐

💐 **कृषकों को नमन**💐

💐💐सर्वप्रथम जीने के लिये *अन्न है आवयशक ।
* मैं कृषक मैं खेत जोतता हूँ उसमें बीज डालता हूँ
मेरी मेहनत रंग लाती है जब खेतों में फ़सल लहलहाती है
मेरे द्वारा उगाया गया अन्न सिर्फ मैं ही नहीं खाता हूँ
ना ही अन्न को गोदामों में भरता हूँ ,की कल मैं उसे ऊँची कीमत
पर बेच पाऊँ।💐

बस मेरी आवयशक आवयशकताएँ पूरी हो जाएं
मैं बस यही चाहता हूँ , पर कभी -कभी तो मैं साहूकार के
लोभ के कारण कर्ज में डूब जाता हूँ ।

मेरे परिवार की कई पीढ़ियों का जीवन कर्ज उतारते बीत
जाता है ,फिर भी वह कर्ज खत्म नही होता ।

*मैं किसान *अगर *अन्न नही उगाऊंगा तो सब भूखे मर
जाओगे ।
दो वक्त की रोटी के लिये ही मानव करता है
दुनियाँ भर के झंझट ।

अंत में पेट की क्षुधा मिटा कर ही पाता है चैन
एक वक्त का भोजन न मिले अग़र हो जाता है बैचैन

फिर जो हम मनुष्यों के लिये खेतों में उगाता है अन्न *
तपती धूप में कड़ी मेहनत , सर्दी गर्मी ,सूखा, या फिर
बाढ़ की मार ,किसानों को ही सहनी पड़ती है ।

माना कि कृषि किसानों का है पेशा
पर ये पेशा है धर्म मे सबसे ऊँचा ।*

मौसम की मार का मुआवजा देश आर्थिक सहायता से चुकाये
अपने देश के अन्नदाता ,भगवानो को बचाये ।

*किसानों का सम्मान करो उन पर अभीमान करो ।*

21 टिप्‍पणियां:

  1. जी भारती जी "जय जवान जय किसान"

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  2. sahi kaha hai ... kisan hi sabke liye ann upjata hai ... unka sammaan jaroori hai ...

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  3. very nice keep posting keep visiting on www.kahanikikitab.com

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  4. जी दिगम्बर जी किसानों को उनके हिस्से का सम्मान अवश्य मिलना चाहिये ।

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  5. जी सर्वेश जी धन्यवाद आभार

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  6. नमस्ते, आपकी यह रचना "पाँच लिंकों का आनंद "(http://halchalwith5links.blogspot.in) में लिंक की गयी है। गुरुवार 1 जून 2017 को प्रकाशित होने वाले अंक में चर्चा के लिए आप सादर आमंत्रित हैं।

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  7. धन्यवाद रविन्दर जी मेरी लिखी रचना को halchal with5links.blogpost.in में शामिल करने के लिये ।

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  8. सुन्दर कविता कृषकों के जीवन पर.

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    1. धन्यवाद विशेष कुमार ही कृषकों को भी यतयोग्य सम्मान मिले ।

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  9. सुन्दर कविता कृषकों के जीवन पर.

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  10. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. जय जवान जय किसान. सुन्दर कविता किसानों का महत्व बताती हुई.

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    1. जी तुषार जी किसान हमारा अन्नदाता उनका भी सम्मान बड़े ।

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  12. किसानों की तकलीफ और समाज में उनकी ज़रूरत को बताया है इस कविता मे

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  13. बड़ी ही पीड़ा होती है सोचकर, इस अन्नदाता की हालत, पहले जमींदार इनका हक़ मारते थे ,फिर राजा-रजवाड़े ,साहूकार , ब्राह्मण समाज जो गोदान कराता था ,धूर्त साहूकार जो अँगूठा लगवाता था ,आज राजनीतिज्ञ परिवर्तित रूप में, इन्हें लूट रहें हैं। कुछ नहीं बदला केवल शोषक के रूप बदले हैं ,मार्मिक रचना ऋतु जी ,सोचकर ही मुझे अपने इंसान होने पर शर्म आने लगती है ,आभार। "एकलव्य"

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    1. जी ध्रुव जी किसानों उनके हक का सम्मान मिलना चाहिये ,मैं तो चाहूँगी ,जैसे डॉक्टर ,इंजीनयर नेता, अभिनेता को सम्मान मिलता है किसानों को भी बराबर का सम्मान मिलना चाहिये ,फिर देखिये देश कैसे तरक्की करेगा ।

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  14. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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