अवसाद या डिप्रेशन *पर विशेष *
*क्या हुआ जो हम किसी के जैसे नहीं
हम जैसे है , वैसे ही अच्छे हैं
हमारी अपनी पहचान है ,क्यों हम
किसी की पहचान जैसे बने
" डिपरेशन" या "अवसाद"
आखिर ये डिप्रेशन है क्या ?
क्या डिप्रेशन कोई बीमारी है ?
आज के युवाओं में डिप्रेशन एक महामारी के रूप में फ़ैल रहा है।
डिप्रेशन दीमक की तरह किसी भी इंसान को अन्दर ही अन्दर खोखला कर देता है ।
डिप्रेशन है ,हमारी सोच ,किसी भी बात को सोचने के दो पहलू होते हैं ।
एक सकारात्मकता , और एक नकारात्मकता
डिप्रेशन नकारात्मक सोच का बड़ा ही जहरीला रूप है ।,डिप्रेशन की अवस्था में इन्सान की सोच इतनी नकारात्मक हो जाती है ,कि वह इंसान अच्छी चीज में उलटा सोचने लगता है ,डिप्रेशन वाले व्यक्ति को लगता है जैसे उसके खिलाफ कोई साजिशें रच रहा है ,क्योंकि उसकी आँखों पर नकारात्मकता का चश्मा जो चढ़ा होता है।
कभी -कभी हमारा डिप्रेशन ,यानि हमारी नकारात्मक सोच इतना भयंकर रूप ले लेती है,कि डिप्रेशन वाला व्यक्ति स्वयं ही स्वयं का दुश्मन बन आत्महत्या तक कर लेता है ।
अवसाद की स्थिति आने ही न पायें ,इसकेलिए इस पीढ़ी को और भावी पीढ़ी को अपने जीवन जीने के तरीकों में परिवर्तन करना होगा।
1. संयुक्त परिवारों को बढ़ावा देना होगा ।
2.बड़ों का आदर, आपसी स्नेह, परस्पर प्रेम को बढ़ावा दें।
3.ये बात हमें समझनी होगी की प्रत्येक व्यक्ति की अपनी विशेष विशेषता होती है ।
4.कभी किसी की किसी से तुलना करके अपशब्द न कहें।
5.सबको अपने जैसे बनाने की कोशिश ना करो ,प्रत्येक की अपनी रूचि ,और विशिष्टता होती है ।
6.किसी को इतना ना दुत्कारें की वह निराशा के अँधेरे में घिरने लगे ।
7. अगर आपके परिवार का या आपका कोई मित्र सम्बन्धी
के बर्ताब में परिवर्तन आने लगे ,उसे किसी के साथ से अधिक अकेला पन भाने लगे,तो ऐसे व्यक्ति को ज्यादा देर अकेला न छोड़ें।
8. शान्ति प्रिय होना अच्छी बात है ,पर समाज से कट कर अपनी ही धुन में रहने वाले पर कड़ी नज़र रखें ।
9.उसके इस व्यवहार की वज़ह बड़ी उदारता से पूंछे ,और उसे सहयोग दें ,और सपनी सहानुभूति भी दें ।
10.डिप्रेशन वाले व्यक्ति को बहुत ही ज्यादा ,प्रेम की अपनेपन की और सहयोग की आव्यशकता होती है ,उसे एहसास दिलाते रहें कि वह भी एक विशिष्ट व्यक्ति है ,उसकी इस समाज में विशेष उपयोगिता है ।
11.कोई भी व्यक्ति निर्थक नहीं हर व्यक्ति के जन्म के पीछे कोई न कोई अर्थ जरूर है ।
डिप्रेशन का एक प्रमुख कारण आज के युग में, एकल परिवारों की प्रमुखता ,पहले हमारे दादा,दादी,नाना ,नानी के काल में संयुक्त परिवारों की प्रथा थी ,यह संयुक्त परिवारों में रहने की प्रथा बहुत ही अच्छी थी ।जो लोग संयुक्त परिवारों में रहते हैं, या रहते थे उन लोगों का डिप्रेशन से दूर -दूर तक कोई वास्ता नहीं है ,क्योंकि जब एक परिवार संयुक्त रूप से एक ही जगह रहता है ,तब उस परिवार में रहने वालों के दिन हँसी ख़ुशी बीतता है ,एक रूठा ,दूसरे ने मना लिया एक से गलती हुई घर के किसी सदस्य ने समझा लिया ,अपनी बात कहने के लिये एक साथ इतने रिश्ते मिल जाते है।
माना की संयुक्त परिवारों में अलग स्वभावों वाले इन्सान भी होते हैं कई बार उनसे ताल -मेल बिठाना इतना आसान नहीं होता ,पर क्या हुआ परिवार यानि एक हाथ की पांच उँगलियाँ
उनको थामने वाली हथेली ,यानि परिवार का मुखिया ,चार उँगलियाँ एक अँगूठा यानि परिवार की सदस्य सभी छोटी बड़ी उँगलियों को तालमेल बना कर रखना पड़ता है एक भी कटी हाथ बेकार,यही परिवार का भी हाल होता है तालमेल बना कर रखना पड़ता है ।
मत होना जीवन में इतना कमजोर कि, जीवन एक बोझ लगने लगे ।क्या हुआ जो आज समय हमारे विपरीत है ।
विपरीत परिस्थियों में ही रास्ते खोजने का आनन्द ही अलग है। ।ना हारे थे ,न हारेंगे हम वो आग हैं ,जो अपनी ही आग से चूल्हा जला लेते है, पर्वतों में ही अपना आशियाना बना लेंते है।
हम आँधी, तूफानों को अपने घरोंदें बना लिया करते हैं ।
प्रेरक प्रसंग पड़े और लोगों को भी सुनायें ।हमेशा उत्साह वर्धक बातें कीजिये ।
सही कहा है नकारात्मक सोच को बाहर निकालना होगा ...
जवाब देंहटाएंअच्छे सुझाव दिए हैं आपने और कोई चाहे तो डिप्रेशन से जरूर बाहर आ सकता है ... अच्छी पोस्ट है आपकी ....
धन्यवाद दीगम्बर नवासा जी पोस्ट पड़ने के लिये।
जवाब देंहटाएंडिप्रेशन कोई बिमारी नहीं है। इंसान चाहे तो इससे सहजता से बाहर निकल सकता है। सुंंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसही कहा ज्योति जी ,हर व्यक्ति की अपनी विशेषिष्टता होती है ,एक तो किसी से किसी की तुलना न करना ,दुसरे परिवार के प्रत्येक सदस्य का परस्पर सहयोग अवसाद की अ स्था को आने ही नहीं देगा । धन्यवाद ज्योति जी ।
जवाब देंहटाएंऑफिस के प्रेशर से भी अवसाद होते देखा है जो बढ़ते बढ़ते आत्महत्या के कगार तक ले आया. और संयुक्त परिवार इससे बचा लेगा कह नहीं सकता. और फिर संयुक्त परिवार घटते ही जाएंगे. तन और मन स्वस्थ रहे तो अवसाद से बचा जा सकता है. और तन मन के स्वस्थ रहने के लिए योगाभ्यास बहुत बढ़िया है.
जवाब देंहटाएंमत होना जीवन में इतना कमजोर की काम हमें बोझ लगने लगे । क्या हुआ जो आज समय हमारे अनुकूल नहीं ।
जवाब देंहटाएंविपरीत परिस्थियों में रास्ते खोजने का आनन्द ही अलग है। जी योगाभ्यास बहुत बढ़िया है ,परन्तु जैसे आपने कहा आफिस में काम का प्रेशर ,मतलब काम को कुछ ऐसे ढंग से किया जाये क़ि वह काम बोझ न लगे ,इसके लिये हमें अपनी सोच को सकारात्मक रखनी होगा और इसके लिए आगे कैसे काम किया जाये ,और वाकई काम आव्यशकता से अधिक है तो अपने बॉस को हम एक सकारात्मक सोच द्वारा ही समझा सकते हैं
समाज को राह दिखाती आपकी पोस्ट बहुत ही अच्छी है रितु जी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राकेश जी आप लोगों के कमेंट हमारा उत्साहबड़ाते हैं।
जवाब देंहटाएंBhut hi acchi post h ritu ji aasa karta hu aage bhi aap logo ko acchi jankari deti rhhegi
जवाब देंहटाएंThanks sarvesh bagoria hi
जवाब देंहटाएंअवसाद से बाहर निकलने के गुर बहुत सटीक हैं, सार्थक प्रस्तुति हेतु धन्यवाद
जवाब देंहटाएंJi Kavita ji aapka aabhar dhanywad .
जवाब देंहटाएंPrena dayak
जवाब देंहटाएंThanks keshav ji
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