हिम्मत का कदम बढ़ाना हैै, हारना नहीं हराना है 

तूफानों को तो आना है, दस्तूर यह पुराना है 

सही बात है बातें करना बहुत आसान है उन पर अमल करना बहुत मुश्किल ।

 मुश्किल हालातों में जब सब ओर डर और नकारात्मक विचारों का माहौल हो उस समय ,साकारात्मक विचारों से ओत-प्रोत विचार मरहम का काम कर हौसलों को मजबूत करने का काम करते हैं, और मन में आत्मविश्वास का दीप जलाकर मन को धीरज देकर कर कहते हैं रास्ते अभी और भी हैं  हिम्मत मत हारना, कल फिर नया सूरज निकलेगा 

 सच में कहना बहुत आसान है , जिस पर बीतती है वही जानता है । किन्तु हिम्मत तो करनी पड़ेगी अपनों के लिए आने वाले कल के लिए .... 

 सोच को साकारात्मक रखना ही होगा , जो समक्ष है उन्हें साकारात्मकता का प्रकाश देना ही होगा आने वाली पीढ़ी की सोच को साकारात्मक विचारो‌ के हौसलों से तैयार करना होगा । 

जो हो रहा है असहनीय है ,जो छिन रहा है अनमोल है किन्तु जो शेष बच रहा है वह अमूल्य धरोहर है इस समाज की,अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या दोगे ,यही सोच कर कुछ प्रेरक कुछ उपयोगी कुछ साकारात्मक विचारो की संपदा छोड़ जाने की चाह में कुछ करते चले जातीहूं ।

 कभी कभी  स्थितियां ऐसी आती है , मनुष्य तन से भी कमजोर हो जाता है परिस्थितियां बिल्कुल विपरीत होती हैं ,उस वक्त मनुष्य को हौसलों की अधिक आवश्यकता होती है ।और साकारात्मक विचार बहुत सहयोगी साबित होते है




सतर्कता से जो कदम बढ़ाता है,

जीत को समीप पाता है 

धैर्य को जो धारण करता है

मुश्किलों से ना घबराता है,

साहस से आगे बढ़ता जाता है 

हौसलों के काफिले बनाता है , 

उम्मीदों की किरणों के दीपक

 लेकर संग लेकर चलता है , 

निराशा में आशा के दीप जलाता है 

वह जीवन की जंग में एक 

सफल यौधा बन जाता है ।।


वह मनुष्य जग को नयी राह 

दिखाता है जग जीवन बन जाता है 

इतिहास बहुत कुछ दोहराता है 

वक्त का चक्र चलता जाता है 

कभी अमृत तो कभी विष भी निकल 

आता है, विष जब अपना प्रताप दिखाता है 

जिवाणुओं का वाईरस महामारी बन अपना 

कहर दिखाता है ,राक्षस की भांति संसार पर  

का विनाश का कारण बन जाता है ,सब और 

त्राहि-त्राहि हो जाता है कलयुग का चौथा चरण 

कष्टदाई आधि-वयाधियों से घिर जाता है 

तब मसीहा, स्वयं धरती पर अवतरित हो जाता 

जागरूकता का की मशाल जलाता  है 

धैर्य,संयम,सतर्कता साहस अनगिनत अनमोल 

रत्नों की उपयोगिता को जीवन में धारण करने की 

उपयोगीता बताता है उम्मीद की किरण बन 

जीवन में अमृत बरसाता है जीने की राह दिखाता  है। 

यौधा है वो जो लड़ता है ,देश का सेवक होता है 

 जीवन दान देता है 


 

कीमती वही जो उपयोगी हो


 राम सिंह:-  यह महानगर है, बड़े -बडे लोग रहते हैं यहां बहुत पैसे वाले यह लोग जमीन पर पैर नहीं रखते , लम्बी लम्बी गाड़ियों में घूमते हैं । और मौका मिले तो हवाई जहाज में बैठ कर आसमान की ऊंचाइयां भी नापते हैं ।

शामू :- अच्छा बड़े -बडे लोग बड़ी बड़ी बातें कितने एश ओ आराम हैं ,वाह जिंदगी हो तो ऐसी हो ।और यह बड़े-बड़े लोहे के सिलेंडर यह किस लिए हैं शामसिंह।

 राम सिंह :- शाम सिंह तुम जहां हो ठीक हो (दूर के ढोल सुहाने ) समझ लो ।

शाम सिह:- नहीं फिर भी जीते तो शहर वाले हैं ,हम गांव वाले दिन भर काम ही काम.....

रामसिंह :-  काम करते हो अच्छी बात है तुम्हारा व्यायाम हो जाता है ,शहर वाले तो पैसे खर्च करते हैं व्यापाम के लिए भी , शहर में तो हर चीज बिकती है ,हवा, पानी,सांसें आदि -आदि जो गांवों में बेमोल हैं इनकी कद्र करो , जीवन रहते मेरे अपनों ...

शामसिंह :- क्या वहां सांसें भी बिकती है ?

राम सिंह :- बिल्कुल सही प्रश्न किया तुमने . आजकल शहरों में एक महामारी फैली हुई हैं , अगर यह बिमारी शरीर में अन्दर तक फैल जाती है तो उस व्यक्ति के फेफड़ों को खराब कर देती है और उस इंसान को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है उसका दम घुटने लगता है ,और कभी कभी तो मृत्यु भी हो जाती है ।

किसी किसी को तो डाक्टर की परामर्श से आक्सीजन वही प्राण वायु जो जो गांवों में मुफ्त में पेड़ पौधों से मिल जाती है, सांस लेने के लिए वह हवा उन्हें पैसे देकर खरीद नी पड़ रही है 

शाम सिंह :-  ओहो!  अच्छा वो लम्बे लम्बे लोहे के सिलेंडर उनमें आक्सीजन है ,यानि इंसान के सांसों के लिए हवा ....

कैसा समय आ गया है , प्रकृति ने मनुष्यों के जीने के लिए सब व्यवस्था की है, लेकिन मनुष्यों ने बिना सोचे समझे प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया ,आज स्थिति ऐसी कर दी की अपनी सांसों के लिए भी हवा नहीं बची ,वो भी खरीदनी पड़ रही है ।

रामसिंह :- शहर वालों का रुपया पैसा सब धरा के धरा रह जाएगा आज वो दुनिया की मंहगी सी महंगी चीजें खरीद सकते हैं , किन्तु क्या फायदा ,जब सांसें ही नहीं रहेगी तो सब पैसा यहीं पड़  रह जाएगा ।

महंगे से महंगा सौदा भी आपकी सांसें नहीं लौटा सकता 

जीते जी ज़िन्दगी की कद्र करो मेरे अपनों गयी ज़िन्दगी और गया वक्त फिर लौटकर नहीं आता ।






कवारनटाईन का उद्देश्य

राघव:-  वनवास जैसा ही तो है।

 राघव :- चौदह दिन के लिए कवारनटाइन हूं , कैसे बीतेंगे ‌‌‌चौदह दिन .....

सिया :- राघव , तुम्हें तो सिर्फ चौदह दिन के लिए अलग रहना है तो तुम्हें इतनी परेशानी हो रही है । श्री राम सीता लक्ष्मण जो एक राजा की संतान थे ,राजमहल में रहते हुए समसत सुख सुविधायेओं के बीच जीवन यापन कर रहे थे , उन्होंने राजमहल के समस्त सुख वैभव को‌‌ पल में त्यागकर वनवास में आने वाली ‌ कठिनाई‌ यों के बारे में तनिक भी ना सोचते हुए सहर्ष चौदह साल का वनवास स्वीकार किया था।

 राघव :- वो सतयुग था ,और सतयुग की बात अलग थी , मैं साधारण मानव हूं ।

सिया: - राघव तुम्हें अलग तो रहना पड़ेगा , तुम्हारे तन के अन्दर वाईरस रुपी ने प्रवेश कर लिया है ,और तुम्हारे जैसे अनगिनत लोगों के शरीरों में यह वाइरस रूपी राक्षस प्रवेश करके तबाही मचा चुका है और कई लोगों को तो मौत के घाट उतार चुका है । 

अब  तुम क्या चाहते हो , तुम्हारे से यह वाइरस रुपी राक्षस और बचे स्वस्थ लोगों के शरीरों में घुस कर तबाही मचा दे।

राघव;- अरे नहीं -नहीं  जैसे राम ,सिया,लक्ष्मण के वनवास के पीछे कई विषेश कार्यों को सम्पन्न करना था । ऐसे ही हमें भी इस कवारनटाईन काल में कुछ अधूरे कार्य पूर्ण करने होंगे  ।

वाईरस रुपी शत्रु राक्षस से बचना है ,और अपने परिवार को समाज को बचाना है ..... जिसके लिए हमें बहुत कुछ सीखना होगा तैयारी मां करनी होगी

1,कवारनटाईन के बहाने समय मिला है , स्वयं के ऊपर कार्य करने का.... भागती दौड़ती जिंदगी में फुर्सत का जो समय मिला है ,उसका सदुपयोग किजिए ।

चिकित्सकों द्वारा बताई गई दवाईयों का यथासमय सेवन कीजिए ।

व्यायाम और योगाभ्यास को अपनी दिनचर्या में शामिल कीजिए ।

समय मिला है स्वयं के सुधार का ध्यान योग का अभ्यास कीजिए ।

एक बात तो अवश्य समझ आई होगी स्वास्थ्य धन से बढ़ा कोई धन नहीं , स्वास्थ्य ठीक रहेगा तभी संसार के समस्त सुख अच्छे लगते है ।


1,वाइरस रूपी राक्षस अन्य स्वस्थ लोगों के शरीरों में ना प्रवेश करें इस के लिए कवारनटाइन ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌रूप वनवास  को स्वीकार कर अलग रहना होगा ।

2.वाइरस रुपी राक्षस को मारने के लिए मास्क की ढाल सदैव धारण करें ।

3.हाथों को बार बार धोयें , सेनेटाइज करें अनावश्यक रूप से इधर उधर ना छुएं 

4, अनावश्यक रूप से घर से बाहर ना निकले जरूरी सामान लाना है तो घर का एक ही सदस्य एक बार में सारा सामान ले आये।

राम जी के वनवास का उद्देश्य था राक्षसों का अंत रावण जैसे महाज्ञानी , किन्तु अहंकारी राक्षस को मारकर पृथ्वी में रामराज्य स्थापित करना ।






हमसाया

हमसाया हम सब मां का 

मां का प्यार कड़वी औषधि 

का सार, खट्टा मीठा सा 

प्यारा एहसास 

मां की कृति हम सब 

मां की आकृति हम सब 

मां ने हमें आकार दिया 

ज्ञान संस्कारों का वरदान दिया 

मां ने हमें तराश -तराश कर सभ्य 

सुसंस्कृत जीवन जीने का अधिकार दिया 

मां ने ही हमें बनाया, मां ने हमें संवारा 

मां ने हमें संसार में रहने को 

बल, बुद्धिि, विवेक, धैर्य की संजीवनी के 

अमृत का रस पान दिया , मां ने हमें बनाया 

मां का ही हम सब हमसाया 

पिता विशाल कल्पवृक्ष  

जड़ों की मजबूती का साया ।।






मां की महिमा का क्या बखान करूं 



एसी कोई जगह नहीं जहां नहीं होती 



पसंद

कोई मुझे पसंद करें 

यह मेरी चाह नहीं 

मेरे द्वारा किए कर्म 

मुझे मेरी पहचान दिलाने 

मैं कामयाब होते हैं तो मेरा 

जीवन सार्थक है ।।




परवाह


काम बस इतना करना है 

थोड़ा सम्भल कर चलना है 

सतर्कता को अपनाना है 

सुरक्षा अपनी और अपनों की  

करनी है, जिम्मेदारी यह 

हम सबको निभानी है 

दिखावे की छुट्टी करनी है 

परवाह‌ जो अपनों की करते हो 

सुरक्षा नियमों का पालन करो 

कुछ समय दूर से ही सगे संबंधियों 

और मित्रों से मिलों , महफिलें फिर से 

जम जायेंगी , ज़िन्दगी रहेगी तो रिश्तों 

की डोरियां फिर से तीज त्यौहारों में एक 

हो जायेंगी  रौनकें बहार लौट आयेंगी ।




खुशहाली लौट आयेगी


व्यवस्था में सुधार चल रहा है 

उथल-पुथल तो होगी ही 

अस्त -व्यस्त हो रखा है सब कुछ

उसे सुव्यवस्थित करने की 

प्रक्रिया चल रही है

स्वच्छता अभियान चल रहा है 

धूल तो उड़ेगी ही ,एकत्रित हुआ 

जहरीला वाईरस गंदगी के रूप में 

फैल रहा है , जैसे ही गन्दगी का वाईरस  

समाप्त हो जायेगा फिर से धरा मुस्करायेगी 

धरती हरी -भरी समृद्ध हो जायेगी 

प्राण वायु फिर से लौट आयेगी फिर ना

दम घुटने से ना किसी की जिंदगी जायेगी 

धरती पर खुशहाली लौट आयेगी ।



व्यवस्था में सुधार चल रहा है 

उथल-पुथल तो होगी ही 

अस्त -व्यस्त हो रखा है सब कुछ 

उसे सुव्यवस्थित करने की 

प्रक्रिया चल रही है

 

सुधार का समय चल रहा है 

बिगड़े हुए हालातों को काबू 

में लाने की प्रक्रिया में त्रुटियों 

के लेखा-जोखा का स दक्ष श श्र  

गलतियों की होगीं जो सबने 

उनके पश्चाताप का समय चल 

रहा है 

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...