एक नया अध्याय जोडिये


 एक नया अध्याय अपने जीवन में जोड़ीए ....

बांटना सीखिए , मुस्कुराहटें बांटिये,

अच्छे विचार‌ बांटिये,बडे बुजुर्गो के संग बैठ उनके

तजुर्बों की सुनहरी साठ -गांठ बांटिए

किसी के अकेले पन को अपने 

संग के रंग से भरिये   

साथियों के संग कुछ वक्त बांटिए 

एक दुजे के हाल-चाल बांटिए

 सही वक्त का इंतजार मत कीजिए 

वक्त की सूई हाथ ना आयेगी 

जिन्दगी यूं ही बीत जायेगी 

आज किसी की,कल किसी और की आपकी 

भी बारी आ जायेगी , मुश्किल हालातों में कुछ 

साकारात्मक साहसिक विचार बांटिए ......

होसलौ से ओतप्रोत कुछ चरितार्थ बांटिए

वृक्षों,नदियों ,प्रकृति से बांटना सीखिए 

यह बात सत्य है की बांटने से कभी कुछ कम 

नहीं होता नव नूतन निर्माण ही होता है 

जब पीछे वाली चीज आगे खिसकती है 

तो पीछे की चीज स्वत: ही आगे आ जाती है 

तो बांटना सीखिए आगे बढ़ने के लिए 

स्वच्छता निर्मलता पवित्रता प्रेरणा स्वयं की 

 और समाजिक उन्नति के लिए 

आगे बढीए ।




संस्कृति और सभ्यता

इतिहास गवाह है

भारतीय संस्कृति का 

अद्भुत शौर्य, देशप्रेम में

वीरों का बलिदान

नतमस्तक सहृदय सम्मान 


इतिहास संस्कृति,सभ्यता 

अमूल्य सम्पदा विश्व धरोहर 

प्रेरणाओं का अनुपम स्रोत

वेद उपनिषद अनेकों ग्रन्थ 

ज्ञान दर्पण एवं ज्ञान गंगा का 

अद्भुत अथाह अनन्त सागर  


 देश,काल, प्रगति का सूचक 

इतिहास धरोहर, विचार मनोहर

प्रेरक व्यक्तित्व त्याग, समर्पण

निस्वार्थ सेवा परस्पर प्रेम का 

निश्चल पावन‌ सरोवर


सफल जीवन की परिभाषा 

कर्मों से जागे निराश जीवन में आशा

नव जीवन की नव अभिलाषा 

इतिहास गवाह हो जीवन जियो कुछ ऐसा ।

 

नाम:- ऋतु असूजा 

शहर :- ऋषिकेश उत्तराखंड

सदाबहार


फूल खिले हैं क्यारी - क्यारी 
प्रकृति की अनुपम चित्रकारी

माली ने भी की है खूब तैयारी 

वसुन्धरा हर्षित प्रसन्नचित फुलवारी

मौसम अनुकूल कोयल कूके मीठी बोली 

वातावरण में गूंजे प्रकृति होती संगीतमय सारी 

जल स्रोतों में पक्षी विहार

रंग बिरंगी तितलियों का संसार 

मानों प्रकृति का कर रहा हो श्रृंगार 

वादियों में रहे सदाबहार 

हरे भरे वृक्षों की कतार 

फलों फूलों से लदे रहे बागों में 

रहे सदाबहार अबकी बार सदा सर्वदा

खुशहाली हो सबके घर द्वार 

करते हैं यही दुआ प्रभु से आपार 

प्रकृति अद्भुत चित्रकार यूं ही करते 

रहना वसुन्धरा का श्रृंगार 

हम सब दृढ़ प्रतिज्ञ हो ले शपथ 

प्रकृति का संरक्षण हम सब का अधिकार ।।



 







क्यों ना बस अच्छा ही सोचे

*बडे़ भाग मानुष तन पाया* फिर क्यों ना जीवन में हर दिन हर पल उत्सव मनाएं *जीवन जीना भी एक कला है*
 समयानुसार मौसम भी बदलता है,तब भी तो मनुष्य परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालता है और स्वयं की रक्षा करता है। ठीक उसी तरह जीवन में भी उतार -चढाव आते हैं ,बजाय परिस्थितियों का रोना रोने की उन विषम परिस्थितियों से बाहर निकलने की कला सीखें ,जिससे आपका जीवन अन्य मनुष्यों के लिए भी प्रेरणास्पद बन जाएं और आप स्वयं के जीवन में एक मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकें ।
परिस्थितियां तो परीक्षाओं के समान है 
कहते हैं कई लाख योनियों के बाद मनुष्य जीवन मिलता है , समस्त प्राणियों में मनुष्य जीवन ही श्रेष्ठ है,क्योंकि मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो अपनी बुद्धि ,विवेक के द्वारा धरती पर बडे़ - बडे़ अविष्कार कर सकता है ,चाहे तो अपने कर्मों द्वारा धरती को स्वर्ग बना सकता है ,चाहे तो नर्क ,परमात्मा ने यह धरती मनुष्यों के रहने के लिए प्रदान की,मनुष्यों को चाहिए की वह इस धरती को स्वर्ग से भी सुन्दर बनाएं ।
 परमात्मा द्वारा प्रदत प्रकृति की अनमोल संपदाएं , जल स्रोत,सुन्दर प्रकृति वृक्षों पर लगने वाले फल,फूल हरे -भरे खेतों में उगते अनाज विशाल पर्वत श्रृंखलाएं आदि अंनत उत्तम व्यवस्था की है, परमात्मा ने इस धरती पर मनुष्यों के जीविकोपार्जन के लिए, किन्तु मनुष्यों ने अपने स्वार्थ में अंधा होकर इस धरती का हाल बुरा कर दिया है,संभालो मनुष्यों यह धरती तुम मनुष्यों के लिए ही है, इसे संवारो , बिगाड़ो नहीं ,अभी भी समय है धरती पर प्राप्त प्राणवायु में जहर मत घोलो ।
  प्रत्येक दिन को एक उत्सव की तरह मनाओं क्योंकि प्रत्येक नया दिन एक नए जन्म जैसा होता है ,जन्म के साथ प्रत्येक मनुष्य अपनी मृत्यु की तारीख भी लिखवा कर आया है जो एक कड़वा सत्य है। तो फिर क्यों ना धरती पर प्राप्त इस मनुष्य जीवन का सदुपयोग करें ,अपने जीवन को सार्थक बनाएं। क्यों ना धरती पर कुछ ऐसा कर जाएं जिससे स्वयं का और समाज के भला हो और हमारा जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायक बन जाए  ।
  लोग क्या कहेंगे ,इस बारे में सोचकर अपने जीवन के अनमोल पल व्यर्थ ना गवाएं ,लोग तो कहेंगे लोगों के काम है कहना ,किसी भी व्यक्ति का जीवन उसकी स्वयं की धरोहर है ,अपनी इस अनमोल जिन्दग  में खुशियों के सुन्दर सतरंगी रंग भरे ,उदास ,अभावों का दर्द छलकाते रंगों वाली बेरंग तस्वीर किसी को नहीं भाती ,अतः अपने जीवन को सदैव इंद्रधनुषी रंगों को सुन्दर छवि दें ।  *यूं ही बे वजह मुस्कराया करो माहौल को खुशनुमा बनाया करो *
 यानि हर पल जीवन का उत्सव मनाते रहें । बुरे और नकारात्मक विचारों से स्वयं को बचाएं जिस प्रकार धूल गंदगी मैले वस्त्रों को हम दिन-प्रतिदिन बदलते हैं ,उसी प्रकार समाज में फ़ैल रही नकारात्मक प्रवृतियों को स्वयं को बचाते हुए उस दिव्य शक्ति परमात्मा का नित्य स्मरण करते हुए,परमात्मा से दिव्यता का वरदान प्राप्त करते रहें । व्यर्थ की चिन्ता से स्वयं को बचाएं जीवन में उतार -चढाव तो आते रहेंगे जीवन में निरसता को स्थान नए दें । प्रत्येक दिन एक नई शुरुआत करें ।
 एक महत्वपूर्ण सत्य,अपने जीवन में हर कोई सुख-शांति और खुशियां चाहता है ,अगर किसी कारण वश आप खुश नहीं है आप शान्ति का अनुभव नहीं कर पा रहे हैं तो खुशियों के पीछे भागिये मत,क्योंकि जीतना हम किसी को पाने के लिए भागते हैं, वह चीज हमसे और दूर जाती रहती है। अतः जिस चीज की चाह आपको अपनी जिन्दगी में है ,उसे बांटना सीख लीजिए यकीन मानिए जितना आप खुशियां बांटेंगे उतनी आपकी जिन्दगी में खुशियां बडेंगी ,कभी किसी भूखे को खाना खिलाकर देखिए ,कभी किसी रोते को हंसा कर देखिए ,आपको सच्ची खुशियों की सौगात मिलेगी ,बेसहारों का सहारा बनकर देखिए जीवन में अद्भुत शान्ति का अनुभव होगा 
किसी निराश हताश के मन में आशा के दीप जलाकर उसे आगे बढ़ ने के लिए प्रेरित कीजिए 
दिखायेगा अमुक व्यक्ति के दिल से निकली दुआएं आपका जीवन सफल बना देंगी।
* तो चलिए आइए जीवन को बेहतरीन से बेहतरीन ढंग से जिएं*
*आओ हर दिन हर पल को एक उत्सव की तरह जिएं जीवन में नित नए आशा के दीप जलाये* अपने संग औरों के घर भी रोशन कर आएं ,उम्मीद की नयी किरणों से जीवन में सकारात्मकता का प्रकाश फैलायें ,आओ हर दिन प्रेम के रंगों का त्यौहार मनाएं दिलों में परस्पर प्रेम और अपनत्व की फसल उगाये**

क्यों ना बस अच्छा ही सोचें *

अच्छों की दुनिया अच्छी ही होती है ऐसा नहीं की  
मुश्किलें नहीं आती परंतु अच्छा सोचने वालों के लिए हर मुश्किल भी अच्छाई की ओर ले जाने वाली सीढ़ियां बन जाती है।
जो सच्चा होता है वो सरल होता है निर्मल होता है और हल्का होता है । 
आओ हर दिन एक उत्सव की तरह मनाएं ,जीवन में नित नए आशा के दीप जलाएं उम्मीद की किरणों से जीवन में सकारात्मकता का प्रकाश फैलाएं।           हे मानव तुम अपने आत्मबल को कभी कमजोर नहीं होने देना आत्मशक्ति मनुष्य का सबसे बड़ा धन है। जीवन में भले ही धन-दौलत नष्ट हो जाए  लेकिन अगर आपके पास शिक्षा धन और आत्मविश्वास एवम् आत्मबल की शक्ति है तो आपके पास आपके जीवन में सब कुछ प्राप्त है  अतः आत्म शक्ति को कभीकमजोर नहीं होने देना यही है जीवन का सबसे बड़ा गहना।

स्वरचित:
ऋतु असूजा

चलो हल्के हो जाये

चलो आज फिर सब हल्के हो जाएं 

 दिल से सच्चे हो जाएं बच्चे हो जायें

मासूमियत के फ़रिश्ते हो जाएं 

मुस्कुराहटों को अपने चेहरों पर सजाएं

यूं ही बेबाक मुस्करायें 

स्वयं को ना बिन बात पर उलझाएं 

सपनों के ऊंचे महल बनाएं 

परियों की दुनियां सजाएं

राजा -रानी और जिन्न के किस्से  

कहानियों को सच कर जायें

प्रतिस्पर्धा की दौड़ में सब एक 

पंक्ति में आ जाये ,ईर्ष्या द्वेष से दूर 

अंतरिक्ष में चहल कदमी कर सितारों के

जहां में एक नया जहां बनाएं ,धरती पर 

आसमान की दूरियों को दूर कर धरती पर

एक सुन्दर नया प्यारा न्यारा जहां बनायें 

जहां सभी नेकी के फ़रिश्ते हो जायें ।




 उम्मीद रखो सदा स्वयं से 

 स्वयं को स्वयं की उम्मीद पर 

परखो ना किसी को स्वयं को 

खरा बनाओ पारखी बनो 

स्वयं की कमियों को जानो 

उन्हें निखारो, कमियां किसी की

अपनी नहीं उसमे नासमझी की 

जो समझ है हो सके तो उस समझ को 

सवारों ,कोयले की खान में से हीरे को 

तलाशने की नज़र बना लो जीवन 

खूबसूरत होगा नज़र में अच्छी सोच का 

नजरिया तो डालो  ।

सिर्फ पाने की नहीं देने की नियत बना लो 

जिन्दगी बेहतरीन होगी उम्मीद स्वयं की 

सोच से स्वयं के कर्मो में कर्मठता का इत्र मिला लो ।


काबिल बनाने के लिए 

स्वयं के आत्मसम्मान के लिए

स्वयं की और समस्त जहां की खुशियों के 

लिए भलाई के बीज रौपता हूं 

सुख समृद्धि और नेकी के लिए

 स्वस्थ खुशहाल संसार की कल्पना 

करता हूं स्वयं को समझाता हूं 

निष्काम कर्म को अपना मूल मंत्रi

ऊं नमो शिवाय


ऊं नमो शिवाय 

 शिवमय संसार 

शिव ही जीवन का आधार 

ढूंढता हूं शिव को आंखें मूंद 

जबकि शिव तुझमें- मुझमें भीतर- बाहर 

दिव्य ज्योत का लो आधार 

शिव से होगा एकीकार  

भय पर...

 पाकर विजय 

 बना मैं अजेय ...

 भय- भ्रम सब का अंत 

दुविधाओं का डर नहींं  

दौर अग्नि परीक्षाओं का 

हुए सब खोट बाहर 

शिव स्तुति उपासना का आधार 

शिव शक्ति दिव्य ज्योति से जब हुआ एकीकार 

मिला जीवन को सुंदर आकार 

कुन्दन बना ,कोयले  की खानों 

में ज्यों एक हीरा नायाब जैसे 

सृष्टि कर्ता जब संग अपने ‌ 

जीवन के अद्भुत रंग अपने 

शिव शक्ति को स्मरण कर

ऊं नमो शिवाय का मंत्र रख संग अपने 

ऊं नमो शिवाय ।।






जरा सोचिए ...

इतने दिनों से मैं तेरी परिक्षाओं के कारण घर में कैद हूं कई जरुरी काम रुके हुए हैं मेरे ......
बेटी अपनी मां से.... मां आप बताओ परीक्षा में मेरी थी या आपकी .......
मां बेटी से ,माना की परीक्षाएं तुम्हारी थी , किन्तु मेरी भी परीक्षाएं ही थी ।
बेटी ,वो कैसे ?
मां बेटी से , अच्छा बेटा जी , परीक्षाओं के समय तुम्हें सब कुछ एक जगह बैठे बिठाए कौन देता था , थोड़ी भी देर मैं ‌इधर उधर जाती तो तुम मुझे पुकारने लगती । तुम्हारा पूरा ध्यान तुम्हारी पढ़ाई पर हो इसलिए मैं यही रही तुम्हारी सेवा में हाजिर ।
बेटी ,अपनी मां से ओ मां तुम कितनी अच्छी हो .....
मां अच्छा चल अब ज्यादा मक्खन ना लगा । पहले मैं बाज़ार जाऊंगी , फिर मीना मौसी के यहां कब से नहीं आती उससे मिलने हम ही तो हैं उसके अपने .....
बेटी मां से ,बेचारी मीना मौसी कितने अच्छे परिवार में की थी उनके मां बापू ने उनकी शादी ,‌पर शादी जो आप लोगो के लिए सब कुछ है ,आज मीना मौसी ,कल किसी और के साथ भी कुछ भी हो सकता है , इससे अच्छा तो अगर उनके माता-पिता उन्हें पढ़ा लिखा कर कोई काम करने देते यानि वो कोई अपना काम या सर्विस कर रही होती तो उन्हें इस तरह अकेले पन और मोहताज गी की जिंदगी ना झेलनी पड़ती ।
मां निशब्द थी मानों आंखों ही आंखों में कह गयी थी जी लेना बेटी तू अपनी मन मर्जी से ....
 

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...