इन्द्रधनुषी रंगों का सुन्दर संसार


मकसद तो एक है हर रंग को अपनाना
हर रंग से सामंजस्य बिठाना 
हर रंग से प्यार 
मुझे तो लागे हर रंग प्यारा
 दिल चाहे मैं हर रंग में घुल मिल जाऊं
उन रंगों से अपने और अपनों की जिंदगी बेहतर बनाऊं
क्यों ना करुं मैं रंगों से प्यार 
इन्द्रधनुषी रंगों से सजा सुन्दर संसार 
हरियाली हरी -भरी समृद्धि का प्रतीक
हरे रंग में व्याप्त खुशहाली
लाल रंग विजय, सम्मान ,सवाभिमान 
केसरी रंग ,साहस, हिम्मत, हौसलों और वीरों का शौर्य
श्वेत रंग स्वच्छता, निर्मलता , पवित्रता एवं  शांति का प्रतीक ........
प्रकृति का अनुपम सौन्दर्य तो देखो 
रंगों का अद्भुत ताल मेल मन को मोहित कर जाता
दिल को हर्षाता सुकोमल ,सुन्दर रंगीन पुष्पों को‌ खिलौने वाला सृष्टि को रचने वाला अद्भुत कलाकार 
मैं भी बोलूं ये ‌कौन चित्रकार है .... श्रेष्ठतम चित्रकार है 
जिसने लगाया रंगों का मेला 
अब ना रहे कोई नीरस‌‌ अकेला 
सृष्टि सजी  है अनेकों रंगों के मिलकर
आओ सजायें और बनायें अलग-अलग रगों से अपनी और अपनों की जिंदगी बेहतर 
मुझे को लागे हर रंग प्यारा
 दिल चाहे मैं हर रंग में घुल मिल जाएं 
उन रंगों से अपने और अपनों की जिंदगी बेहतर बनाऊं।



लेखक और लिखना

लेखक के मन दर्पण में

 विचारों रूपी  भाव 

जब प्रेरणा के रंग भरते हैं 

तब एक लेखक कुछ ज्ञानवर्धक कुछ प्रेरणास्पद 

कुछ सामाजिक ,कुछ मनोरंजक रंगों के सामांजसय से 

लिखकर समाज को एक अनमोल भेंट देता है ।


लेखक एक निर्दशक 

एक विचारक एक दार्शनिक

एक मनोरंजक भी होता है 

लेखक समाज का वो आईना होता है 

जिसमें स्वयं की पारदर्शिता होती है 

लेखक एक जौहरी की भांति 

विचारों को शब्दों को‌ भावों को 

तराशता है फिर संवारता है 

और फिर रसों की अनुभूति से 

एक संकलन तैयार करता‌ 

जो प्रेरणास्रोत बन समाज को 

युगों-युगों तक प्रेरित करता रहता है ‌।



भावों का सुन्दर होना  

स्वस्थ मानसिकता

 मां शारदे का आशीर्वाद 

दार्शनिक विचार

सभ्य सुन्दर सुसंस्कृत समाज हित में 

जो वर्तमान एवं आने वाले 

समाज के लिए प्रेरणा स्रोत 

हो लिखना पड़ता है ।

जिंदा रहने का शौंक

जिंदा है वो जो जीने 
का शौंक रखता है 
शख्सीयत मेरी मिट्टी 
ही सही,लेकिन भव्य
किले,महल बनाने के 
बुलंद हौसले रखता हूं।

मैं अजनबी निकला हूं
अजनबी शहर में
कुछ पाने को 
दिल को समझाने को 
किसी को अपना बनाने को 

मुसाफिरों की भीड़ में
मैं भी एक मुसाफ़िर
सजा रहा हूं आशियाने को
जानता हूं लौट जाना होगा
फिर ना आना होगा 
इसी लिए तो छोड़ जाने को
बेताब हूं कुछ अमिट अनमोल 
निशानियों को ....

जाने से पहले कुछ ऐसी
 छाप छोड़ जाऊंगा याद 
आता रहूंगा अपने द्वारा 
रची कहानियों से कर्मों की 
निशानियों से ....




असली -नकली

मैं शाश्वत सत्य की बातें करना चाहता हूं 

सत्य की खोज उसकी वास्तविकता को 

समझना चाहता हूं 

मुखौटों के आकर्षण देख 

अक्सर मोहित हो जाता हूं 

मुखौटों के पीछे का सत्य कैसा होगा

मैं शाश्वत सत्य की बातें 

करना चाहता हूं 

मुखौटों के बाजार में 

कौन है असली

 कौन है नकली 

पहचान करना चाहता हूं 

अरे! यहां तो नकली भी 

खालिस नहीं 

असली भी मिलावटी 

अब जायें तो जायें कहां 

नकली भी असली नहीं  

असलियत का चेहरा तो 

अब नजर ही नहीं आता 

किसकी खोज कर रहा हूं मैं 

खोजते -खोजते मैं भी बदल रहा हूं 

उम्र का एक दौर पार कर चुका हूं 

मुखौटों के आकर्षण देख 

अक्सर मोहित हो जाता हूं 

मुखौटों के पीछे का सत्य कैसा होगा

मैं शाश्वत सत्य की बातें करना चाहता हूं 

सत्य की खोज उसकी वास्तविकता को 

समझना चाहता हूं ।

श्रमिक किसान

मैं श्रमिक किसान

लोग मुझे देते सम्मान

कहते अन्नदाता भगवान ......


कृषक हूं ,कृषि मेरा धर्म 

कृषि मेरा कर्म ....


प्रकृति की गोद में पलता -बढता हूं

अनछुये नहीं मुझसे दर्दों के मर्म 

नहीं भाता मुझे उत्पाद 

क्यों बनूं मैं उपद्रवी 

मेरा उत्पादन है , खेतों में बोना 

फसल कीमती पोष्टिक 

कनक,धान ,फल और सब्जी....


धरती माता की समृद्धि देख 

मन हर्षाता ....


नन्हें बीज खेतों में बोता 

प्रकृति मां से अनूकूल 

वातावरण को प्रार्थना करता 

अपनी कर्मठता एवं श्रम से 

अच्छी फसल जब पाता 

मन हर्षाता खुशी के गीत गाता ।


मैं श्रमिक किसान धरती हो 

समृद्ध ना रहे भूखा इन्सान 

मेरे द्वारा उगाऐ अन्न तो देते है 

जीवन में प्राण ....


मैं किसान जीविका के साधनों 

मैं धरती मां समस्त प्रकृति का 

पाकर संग जीवन में भर लेता हूं रंग ।


 




 






वीरों का शौर्य ......

*भारत माता का गौरव 

वीरों का शौर्य*

*भारत की आज़ादी नहीं इतनी सस्ती

बलिदान हुए हैं असंख्य शहीदों की हस्ती*


*असंख्य सपूतों के बलिदानों की

आहूतियों का सिंदूर भारत माता के  

को भेंट चढ़ा है तब जाकर स्वतंत्र हुआ है*


*अखंड सुहागन सिंदूर मस्तक पर 

रक्षा प्रहरी बन खड़े ‌सीमाओं पर 

भारत माता के लाल जांबाज .......


भारत माता के सिर का ताज‌ 

उत्तर में अडिग अनन्त हिम-आलय 

हिमराज ......


हंसते -खेलते बच्चों की क्रीड़ा में 

      अदृश्य

सिसकती सिसकियों की पीढ़ा 

सूने पड़े असंख्य परिवारों के आंगन 

कहते बिछड़न का दर्द ....



*भारत माता के सिर का ताज 

सिंह दहाड़ वीरांगना जांबाज

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई 

अमर प्रेरणा भारत का सम्मान ......


मध्य भारत का विशाल ह्रदय 

फहराता विजय पताकाओं का साम्राज्य ......


राजस्थान की शौर्य गाथा 

देवी पद्मावती पूजनीय माता.....


इतिहास गवाह है मातृभूमि की 

पीढ़ा समाहित अनन्त अद्वितीय

अडिग किलों में जो रक्षा को करें बैठे 

अति उत्तम अमर प्रयास .....


सिंह दहाड़ चीर पहाड़ 

वीर शिवाजी ‌राना सांगा  

ताना जी के शौर्य गाथाओं ‌ 

का भारत ...... 

दक्षिण में कन्या कुमारी 

का गौरव देव तुल्य पूजनीय भारत माता

असंख्य भारत माता के लाल

 बलिदानों 

 आहूतियों का सिंदूर भारत माता के 

का भेंट चढ़ा है ।

सुशोभित हो रहा है 

यह आजादी इतनी सस्ती नहीं  

भारत माता की अखंडता 

भारत माता की स्वतंत्रता को 

खण्ड खण्ड हुए असंख्य बलिदानों का 








अच्छा सोचने की आदत डालें

"आंखों को सिर्फ अच्छा देखने की आदत डालें
मन को सिर्फ अच्छा सोचने की आदत डालें"
" माना की दुनियां में बुराई भी बहुत है
   और गन्दगी भी बहुत है ।

 तो इसका मतलब क्या ? हम बुराई छल-कपट के बारे में सोच -सोच कर अपने मन में नाकारात्मक विचार भर लें और अच्छाई में भी बुराई ढूंढ -ढूंढ कर सब ओर बुराई ही देखने लग जायें , और बहर का सारा कूड़ा और बुराईयों को अपने अन्दर भर लें ?  

    जी नहीं यहां हमें अपनी सोच और अपनी नजरों को साफ रखना होगा।

 बदलनी होगी यहां हमें अपनी सोच , अपनी सोच और अपनी नजरों को इतना अच्छा कर लें कि बाहर की बुराईयों से आप बच कर निकल जायें‌ और वो आपके मन मस्तिष्क में अपना नाकारात्मक प्रभाव डालने में असफल हो जायें ।

 अपनी सोच और अपने विचारों को‌ को इतना साकारात्मक और पवित्र कर लिजिए कि, आप बुराई यों के कारण जान उनके निवारण का हल निकाल उनमें साकारात्मक परिवर्तन ला पायें। 

नज़रों का खेल है सारा 
दुनियां में अच्छाई भी है 
बुराई भी , किन्तु मनुष्य की
विडम्बना तो देखो .
कुछ बुरा या ग़लत क्या देख लिया
वह हर चीज में बुराई ढूंढने लगता है 
अनेकों खूबियों के बावजूद 
एक बुराई ग़लत सोचने को‌ विवश 
कर देती है ।
बुराई ,गन्दगी या छल-कपट कहीं बाहर होता है
या यूं कहिए किसी और की होती है 
और मनुष्य को तो देखो उस बुराई के 
बारे में सोच सोच कर मनुष्य अपना मन मस्तिष्क ही
गन्दा कर लेता है या यूं कहिए बाहर की गन्दगी अपने अन्दर भर लेता है ।





आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...