" आत्म यात्रा "


      दो अक्षर क्या पड़ लिये ,मैं तो स्वयं को विद्वान समझ बैठा ।
वो सही कह रहा था ,चार किताबें क्या पड़ लीं अपने को ज्ञानी समझ बैठे ।
उनका क्या जिन्होंने शास्त्रों को कंठस्थ किया है ,जिन्हें वेद ,ऋचाएँ ज़ुबानी याद हैं ।
ज्ञानी तो वो हैं ,जिन्होंने अपना सारा जीवन शिक्षा अद्धयन में लगा दिया जिनके पास शिक्षा  की डिग्रियों की भरमार है ,
निसंदेह बात तो सही ,जिन्होंने अपना सारा समय,अपना सारा जीवन अद्ध्य्नन कार्यों में लगा दिया ।
 
    दिल में ग्लानि के भाव उत्पन्न होने लगे, बात तो सही है , मैं मामूली सा स्नातक क्या हो गया, और शास्त्र लिखने की बात कहने लगा ,बात तो सही थी ,कौन सी डिग्री थी मेरे पास कोई भी नहीं .....चली लेखिका बनने .....
कुछ पल को सोचा मामूली सा लिखकर स्वयं को विद्वान समझने का भ्रम हो गया था मुझे ।
भले ही मैं विद्वान ना सही पर ,परन्तु मूर्ख भी तो नहीं ।

परन्तु बचपन से ही चाह थी , अपने मनुष्य जीवन काल में कुछ अलग करके जाना है ,जीवनोपर्जन के लिये तो सभी जीते हैं ,बस यूँ ही खाया -पिया कमाया जमा किया ,और व्यर्थ का चिंतन ,जब ज्ञात ही है कि जन्म की ख़ुशियों के संग ,   जीवन की कड़वी सच्चाई मृत्यु भी निश्चित ही है ,उस पर भी भीषण अहंकार ,लोभ ......किस लिये.....जाना तो सभी ने है ,
फिर क्यों ना कुछ ऐसा करके जायें जिससे हमारे इस दुनिया से चले जाने के बाद भी लोग हमें याद रखें ।
समाज के कुछ नियम क़ायदे हैं ,प्रत्येक का अपना परिवेश अपना दायरा है , और आवयक भी है नहीं तो समाज में उपद्रवऔर हिंसा की स्तिथि उत्पन्न हो सकती है ,मेरे भी दायरे सीमित थे । समाज में अपनी छाप छोड़नी थी कुछ अच्छा देना था  समाज को ।   अपने विचारों को शब्दों में ढाल कर लिखना शुरू कर दिया ,सब कहने लगे  फ़ालतू का काम हैकिसी को पड़ने का शौक़ नहीं है ,इतना अच्छा भी नहीं लिखा है की लोग पड़े ।
परन्तु मन मैं जनून था  ,सिर्फ़ कोई पड़ता ही रहे ऐसा सोचा ही नहीं बस लिखना  था ,आत्मा को विश्वास था की अगर मेरा लिखा कोई एक भी पड़ता है ,उसका मार्गदर्शन या मनोरंजन होता है तो ,मेरा लिखा सफल है ।
कहते हैं ना ,करते हम हैं ,कारता वो है ,यानि परमात्मा तो रास्ता दिखता है ,भाव देता है कर्म हम मनुष्यों को करना है ,
यह बात भी सत्य है की संसार एक मायाजाल है ,परन्तु जो इस मायाजाल से ऊपर उठकर कर्म करता है , आत्मा की बात मान कर निस्वार्थ भाव से सही राह पर चलता है , वो कभी निराश नहीं होता ,वह स्थायी ख़ुशी और सफलता पाता है ।

ज्ञान तो अंतरात्मा की एक आवाज़ है ,जो जितना गहरा गया ,उसने उतना पाया ,।
बशर्ते हमारी सोच क्या है ,हमारी सोच का दायरा जैसा होगा ,हम वैसा ही पायेंगे। हमारी सोच जितनी निस्वार्थ  और सत्य होगी हम उतना ही गहराई से अंतरात्मा की यात्रा कर पायेंगे, मन की पवित्रता और निस्वार्थता सबसे अधिक महत्वपूर्ण है ।
       मिट्टी में मिट्टी मिली
       मिट्टी हो गयी ,मिट्टी
       मिट्टी ने मिट्टी के महल बनाये
       एक दिन राख हो गयी मिट्टी।।
     
       मिट्टी का तन ,
       मिट्टी का दिया
       तन और दिया दोनों में
       प्रकाश ही प्रकाश
       प्रकाश जब रोशन करने लगा
       संसार तब हुआ जीवन का उद्धार ।
     
   
   
     

🌺सुस्वागतम् नववर्ष का,पल -पल बदलते नये पल का 🌺

🎉🎉स्वागत करो ,पल-पल बदलते हर नये पल का🎉🎉
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"नया दौर है ,
नया युग है
"नये युग की नयी -नयी आशाएँ
नये रूप में,नये रंग में,
नये अरमानों के पंख लिये
नये ढंग से इतिहास रचने को
नयी-नयी अभिलाषाएँ।
दिवस बदलेगा ,माह बदलेगा,वर्ष भी बदलते जायेंगे
युग बदलेगा , समय का पहिया आगे बड़ता जायेगा"

नवयुवकों स्वागत करो ,पल -पल बदलते हर नये पल का
आगे बड़ता हर क्षण नया है ,
आनन्द,का हर क्षण मूल्यवान
हर क्षण आनन्द और उत्साह का
सत्यता के संग ,परिश्रम लगन,और जुनून की
आत्मिक पूँजी, है हर पल सफलता की कुंजी

सुस्वागतम् हर नये वर्ष का
समय है ये बड़े हर्ष का

माता ,बहनों के पूजन से होता है शुभारम्भ
" भारतवर्ष " के नववर्ष का ,नवसंवत्सर का

माता ,अन्नपूर्णा ,लक्ष्मी,सरस्वती और दुर्गा
आध्यात्मिकता के बीजों से सींचित
सादगी,सदाचार ,और सुख -शान्ति का सन्देश लिये
किसानों हमारे अन्नदाताओं की कड़ी मेहनत जब रंग लाती
खेतों में जब फ़सल लहलहाती
तब भी भारत के वासी नववर्ष का जश्न मानते हैं ।




*सफलता कभी भी परिस्थितयों की मोहताज नहीं होती
आज तक जितने भी सफ़ल लोग हुये हैं, उन सब ने विपरीत परिस्थियों से लड़कर ही सफलता पायी है *

* उड़ने को पँख तो मिले थे, पँखों में उड़ान भी थी ,परन्तु उड़ने को खुला आसमान नहीं था
विचारों के समन्दर मैं पंख फड़फड़ाते थे ,विचार उड़ान तो भरते थे, परन्तु दायरे सिमित थे *

निःसंदेह यह बात तो सत्य है ,कि डिजिटल दुनियाँ ने लेखक, लेखिकाओं को , लिखने को खुला आसमान दिया
विचारों और भावों को प्रकट करने को भव्य खुला आकाश

दिल से आभार और धन्यवाद ,"prachidigital.in " का जिसने देशभर से 24 लेखकों का चयन किया

उन 24 लेखकों की 24 कहानियों की "पंखुड़ियाँ "

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" अमीरी"


 अगर विचार ही संकीर्ण हों तो ,
 कोई क्या करे
  विचारों की अमीरी ने अपने जुनून और
  कर्मठता के बल पर ,कई लोगों को बादशाह
  बना दिया इतिहास इसका गवाह है ।

निर्धनता को दूर किया जा सकता है
धनकमा कर ..निर्धन होना इतना बुरा नहीं
क्योंकि परमात्मा द्वारा मनुष्य को
आत्मबल की जो अमूल्य सम्पदा प्राप्त है
उसके उचित उपयोग द्वारा निर्धन धनवान बन सकता है

परन्तु ग़रीबी ........ग़रीबी तो पनपती है मनुष्य के मन में
अगर कोई अमीर होना ही ना चाहे तो कोई क्या करे
हाँ धन की अधिकता संसाधनों मई वृद्धि अवश्य करती है ।

धन का क्या है कहीं ज़्यादा कहीं कम
अमीर बनिये दिल के अमीर ,
खाता हर कोई रोटी ही है
निधन सबका निश्चित है
अमीर और ग़रीब जाती सबकी झोली ख़ाली है ।


💐इन्तजार💐


💐इन्तजार नहीं-नहीं..... मुझे किसी का भी इन्तजार नहीं
पर शायद दिल के किसी के कोने में
करता तो हूँ, मैं भी किसी का इन्तजार
पर किसका ,नाम नहीं जानता उसका
दरवाजे पर खड़ा अक्सर झाँकता रहता हूँ
कोई नहीं है, फिर भी ना जाने किसका
इंतजार रहता है ।
शायद कोई मीठी सी महक 💐
मन्द मधुर समीर का झोंका
कोई मीठा सा एहसास दे जाये
कोई आये मुस्कराहटों की बौछार ले आये
हम भी मुस्करायें, वो भी मुस्करायें
सारा जहाँ मुस्कराना सीख जाये
नहीं किसी भी चेहरे पर
उदासी की झलक नज़र आये
सभी गिले-शिकवे ख़त्म हो जायें
आये तो अब बस बहारों के ही मौसम आयें
इन्तजार मैं रहता हूँ,अक्सर
कोई ईर्ष्या,द्वेष लोभ, अहँकार जैसी
जहरीली बिमारियों को खत्म करने की
दवा ले आये।
अब जो भी ईंसान नज़र आये
निस्वार्थ प्रेम की औषधी संग
जीने की वज़ह लेकर आये ।।💐💐💐💐💐💐💐💐
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐






*सुकून *


**** मेरे पड़ोस में रहने वाली बूढ़ी अम्मा ,दिन भर घर के द्वार पर ही नज़र आती ।
सब गली मोहल्ले वाले अपने काम से आते-जाते बूढ़ी अम्मा का आशीर्वाद जरूर लेते ।
पहले तो अम्मा द्वार पर खड़ी रहती,पर जब थक जाती तब
बूढ़ी अम्मा अपने घर के द्वार के बाहर अधिकतर एक छोटी सी चौकी लगाकर बैठ जाती ।
आते -जाते सबको देखती रहती ,कभी किसी के पास फुर्सत होती तो दो पल अम्मा के पास खड़ा होकर बातें भी कर लेता ,
बस अम्मा का सारा दिन यूँ ही बीत जाता ।
हम सब आस-पास के गली -मोहल्ले वाले अम्मा को न्यूज़ रिपोटर भी कहते ,कयोंकि अम्मा को कोई काम तो था ,नहीं और सत्तर साल की उम्र में उनके बस की बात भी नही थी कोई काम करने की ।
सुबह सवेरे ही अम्मा रोज का नियम कर्म करके नाश्ता करके बाहर आ जाती ,  और चलते-फिरते कोई न कोई उन्हें कुछ न कुछ जो भी कुछ अलग हो रहा होता आस-पास तो बता देता ,जैसे कोई बीमार है, कोई कहीं बाहर घूमने गया है ,किसी ने कुछ नया खरीदा ,किस की बहू कैसी है, वगैरा-वगैरा  आस-पास देश दुनियाँ में क्या कुछ नया हो रहा है खबर दे देता ।
अम्मा सबकी सुनती ,फिर अपने ढंग से सबको बताती रहती।
हमें भी इंतजार रहता कि अगर कुछ अलग होगा तो अम्मा हमें खबर दे ही देगी ।
जब कभी अम्माँ का स्वास्थ्य ख़राब होता तो वो घर से में ही आराम करती , यूँ तो सब लोग इस बात से चिड़ते थे की अम्मा सबको टोकती है कहते पता नहीं कब इस अम्माँ से पीछा छूटेगा  पर जब एक दिन अम्माँ ना दिखती तो बेचैन हो जाते
  कई परिवारों में कई बार अम्माँ की व किलग्रैम्ज़ से विवाद हो जाता ,कभी देवरानी ,जेठनी कभी सास बहू ,नन्द-भाभी वग़ैरा
  अब तो सब को पता चल हुआ था की अम्माँ इधर की उधर बातें करती हैं चाहे वो अपनी जंग सही होती होंगी पर उनकी
बातें सुन के कई लोग ग़लत मतलब खाते थे ।
एक बार तो अम्माँ ने हमारे ही घर में झगड़ा कर दिया ,हुआ यूँ की अम्माँ ने मेरे पति देव को भड़का दिया की तेरी बीवी तो रोक शाम को बाज़ार जाती है और ना जाने कितना -कितना समान ख़रीद कर लाती है ।
जबकि जीमेल डोनो पति-पत्नी को पता था की अम्माँ किसी भी बात को भूत बड़ा कर कहती है
पर कभी -कभी बुद्धि खराब हो जाती है और बस ....एक दिन मेरे पति देव भी किसी बात से पहले से hi परेशान थे उस पर अम्माँ ने थोड़ा मिर्च माल्स खा कर कह दिया की मैं अभी-अभी आयी हूँ बाज़ार से और भूत समान ख़रीद कर लायी हूँ ,
मेरे पतिदेव तो घर में घुसते ही मुझ पर भड़कने लगे और कहने लगे की उड़ा लो मेरी मेहनत की कमाई को तुम में सारा दिन पाटूँ की तरह घर से बाहर मेहनत करता हूँ और तुम दिन भर घर आराम से रहती हो और शाम को चल देती हो मेरे पैसे उड़ाने मज़े हैं तुम्हारे ।
मैंने अपने पति देव के आगे एक ग्लास ठंडा पानी रखा ,पानी पीते ही वो थोड़ा शांत हुए

मैंने बोला हाँ मैं शाम को बाज़ार जाती हूँ ,पर घर की ज़रूरत का सामान लेने घर का सामान भी आ जाता है और मेरा चलना भी । अगर आपको बुरा लगता है तो कल से बाज़ार नहीं जाऊँगी ,जब आप आओगे तब आपके साथ ही ले आया करेंगे घर का सामान , पति देव बोले अरे नहीं कुछ काम तुम भी कर लिया करो घर का दामन तो तुम ही लाया करो ....
हम दोनो ही हँसने लगे ...
हम सोनी ने अम्माँ जी के घर का दरवाज़ा खटखटाया अम्माँ आयी ,यूँ तो अम्माँ बड़े प्यार वाली थी हमें अपने पास बिठाया
बोली ख्या खाओगे ,हमने बोला अम्माँ कुछ नहीं बस आप बस इधर की बात उधर मत किया कीजिए
अम्माँ बोली मई जानती हूँ ये मेरी हालत आदत है कर करूँ ,मेरे भू बेटे तो मेरे पास रहते नहीं बस टेंशन में सब कर देती हूँ
हमने बोला अम्माँ कल से रोक शाम को हम आपसे मिलने आयेंगे आपके पास बैठेंगे ,अम्माँ ने  डोनो के सिर ख़ुशी से चूम लिए ,अम्माँ बहुत ख़ुश हुई आज उनके चेहरे पर सुकून दिखायी दे था था ।
शायद हमारे बड़े बुज़र्गों को दो हम बच्चों से कुछ नहीं चाहिये बस दो दो बोल प्यार के एर हम बच्चों का साथ चाहिये।

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आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...