*अभिव्यक्ति की दौड़ *


कर्ता है क्योंकि कारण है
कारण है ,क्योंकि करण है
अभिव्यक्ति की आजादी
यानी समक्ष रखना तात्पर्य
व्यक्त करना
यानि जो समक्ष है प्रदर्शित हो रहा है
अभिव्यक्ति हो रहा है वही सत्य है।

सुर है ,संगीत है
शब्दों की मधुर
ध्वनि संग लय
और ताल की
मीठी तान है
भावों की गहराई के अर्थ
की भी महिमा है।

बहुत सुंदर
संगीत वायुमंडल
में व्यक्त
क्यों अव्यक्त है
वायुमंडल में ध्वनि तरंगों
से ही तो व्यक्त होता सरगम है
तरंगों क्या कोई अर्थ नहीं
नित्य शाश्वत आभामंडल का
ही सम्पूर्ण तेज है।

विद्वता में भी वही तो तेज है
प्रकृति ही सौंदर्य
सौंदर्य की तुलना
कोई और नहीं
बाकी सब उपमा तुलनात्मक
यानि कर्ता कारण है
यदि कर्ता का महत्व है
वो उच्च है ,तो कारण भी
महत्वपूर्ण सर्वोच्च और शाश्वत है ।

प्रकृति सुर और संगीत


वायुमंडल की तरंगों में
रचता-बसता है संगीत
तभी तो वाद्य यंत्रों की
ध्वनि से बजता है संगीत
सरगम के सुरों से बन कर
कोई गीत ,गुनगुनाता है
जब कोई मीत तब सफ़र
का साथी बन जाता है संगीत
होठों पर गीत ,प्रकृति से प्रीत

कभी ध्यान से सुनना .....
वायु में वीणा के तारों की सुमधुर झंकार
होती है ,वृक्षों की डालियों पर
महफ़िल सजती है

पक्षियों की अंत्राक्षी होती है
कव्वाली होती है ,मैंने सुना है
कोयल की मीठी बोली तो मन ही
मोह लेती है
जब सावन की झडी लगती है
वर्षा की बूंदों से भी संगीत बजता है

आसमां में जब बादल घुमड़ता है
तब आसमां भी रोता है
धरती को तपता देख उसे
अपने अश्रुओं से ठंडक देता देता
तब मेघ मल्हार का राग बजता है

 धरती तब समृद्ध होती है
वर्षा के जल से धरती का
अभिषेक आसमां करता है
हरी घास के कालीन पर
पर विहार होता है
प्रकृति की सुंदरता पर
हर कोई मोहित होता है

वृक्षों की डालियां
भी समीर के रिदम पर
नृत्य करती हैं
वृक्षों से टकराकर वायु विहार करते हुए
जब सांय-,सांय की आवाज करती है
तब प्रकृति भी गाती है
गुनगुनाती है
वायु से जो ध्वनि संगीत के रूप में निकलती है
प्रकृति को आनंदित करती है ,प्रफुल्लित करती है ।

Vanilla custard ice cream recipe*


* गर्मियों का मौसम*
   चिलचिलाती धूप ऐसे मे किसका मन नही करेगा कि,
    घर मे बैठकर ठंडी-ठंडी आइसक्रीम खायी जाये ।
    आइये आपको बताते है घर पर ही स्वादिष्ट आइसक्रीम      कैसे बनाये ।

   *वैनिला कस्टर्ड आइसक्रीम बनाने की विधि:-
   
1. 300gm milk
2. Vanilla cultured pwder
3. 50 gm cream
4. Grind sugar 30 gm
3. 1o pieces wet almond
4. 10 pieces cashews

  सबसे पहले दूध को उबाल लें ,
साथ-ही साथ तीन चम्मच कस्टर्ड पाउडर एक अलग बाउल में डालें और उसमें ढूध डाल कर एक गाड़ा पेस्ट बना लें ,जब ढूध उबल जाये फिर गैस धीमा करके उसमें कस्टर्ड की पेस्ट डालें साथ ही साथ चीनी भी अच्छे से मिला दें ध्यान  रखें कस्टर्ड डालते समय गिल्टी न बने साथ-साथ हिलाते रहें  उसे ठण्डा होने के लिए रख दें
साथ मे क्रीम भी डाल दे फिर मिक्सी में अच्छे से मिक्स कर लें  साथ मे थोड़े भीगे बादाम काटकर, काजू कटे हुए मिला लें।
फिर एक बाउल में डाल कर ऊपर से सिल्वर फॉयल से ढक दे ।
और पाँच घंटे के लिये जमने के लिए रख दें ,यकीन मानिये पांच घंटे बाद बहुत स्वादिष्ट ठंडी-ठंडी आइस्क्रीम खाने को मिलेगी ।जिसे आपको बार-बार खाने उर बनाने का मन करेगा ।

चिकित्सक भी डर गया है ... सहम गया है

आज एक चिकित्सक भी डर गया है 

सहम गया है .....अब एक चिकित्सक बनने  की  बजाय  कुछ और बन्ना पसंद कर रहा है असमंजस  में है चिकित्सक की जब कोई  रोगी दर्द में करहाता, ज्वर की पीड़ा में उसके पास आए ,वो क्या करे ,रोग की जड़ में जाने की बजाय उसे तत्काल इलाज की सुविधा और दवा देकर भेज दे,फिर कुछ दिन ठीक रहने के बाद वो मरीज फ़िर उसी रोग में तड़फता चिकित्सक के पास आएगा और कहेगा डॉक्टर साहब आपने ये कैसी दवा दी मैं तो फिर से  बीमार हो गया ।

अगर चिकित्सक किसी बीमारी का कारण जानने के लिए ,रक्त जांच ,या आवयश्कता पड़ने पर एक्सरे या और कोई जांच करवाता भी है तो इसलिए की रोगी का इलाज सही से हो सके ।

आज विज्ञान के युग में किसी भी क्षेत्र में नए-नए शोध हो रहे हैं ।

चिकित्सा क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है नए - नए शोधों ने जटिल से जटिल रोगों का इलाज संभव कर दिया है,जिसके लिए खर्चा भी बहुत आता है

महंगी -महंगी मशीनों की देख-रेख के खर्चे भी बहुत होते हैं, जिससे रोगी के लिए इलाज का खर्चा भी बढ़ जाता है इसमें एक चिकित्सक का क्या कसूर.......


सरकारी अस्पतालों में आवश्यकता से कम चिकित्सक का होना, और मरीजों का आव्यशकता  से अधिक होना आप ही बताइए अगर दो सौ मरीजों का एक ही डॉक्टर इलाज करेगा तो क्या होगा आखिर इतना अधिक बोझा और काम का प्रेशर उस पर मरीज और मरीज के घर वालों का डर एक डॉक्टर जितना डरता होगा शायद उतना कोई और नहीं डरता होगा क्योंकि उस पर कई रोगियों की उनकी जिंदगियों की जिम्मेदारी होती है । 

सरकारी अस्पतालों इलाज में सही से इलाज   नहीं होता ।

अब मरीज हार के  अच्छे इलाज के लिए प्राइवेट डॉक्टर के पास जाता है अब प्राइवेट डॉक्टर क्या करें उसे तो अपना खर्चा निकालना है ना ...ज्यादा बिल बनता है तो उसका क्या कसूर 

मशीनों और जांचों का खर्च तो आएगा ही ना अब एक चिकित्सक के पास रुपए का पेड़ तो नहीं जो वह सब का इलाज सस्ते में कर दे दोष किसी का नहीं दोष हमारी मानसिकता का है कभी भी कोई अच्छा इंसान अपने पेशे के साथ गद्दारी नहीं करता और कोई यह नहीं चाहता कि उसका नाम और पेशा बदनाम हो इतना तो सब समझते हैं अपने काम के प्रति ईमानदारी ही एक चिकित्सक को भगवान का दर्जा दिलाती है। सिर्फ अपनी मजबूरी ना समझिए एक चिकित्सक की में मजबूरी समझिए अगर हम अपनी जगह सही है तो वह भी अपनी जगह सही हो सकती हैं तुरंत प्रतिक्रिया हमेशा जंग को जन्म देती है माना कि संवेदनाएं मनुष्य को कमजोर कर देती हैं फिर भी  स्थिति कैसी भी हो सम रहना और किसी बात की तह तक पहुंचना एक अच्छे इंसान की पहचान होती है

मैं यह नहीं कहूंगी की दुनिया में सब लोग बहुत अच्छे ही हैं कुछ लोग हैं जो लोभी और स्वार्थी और अनभिज्ञ प्रवृत्ति के होते हैं। मैं कहना चाहूंगी कम से कम किसी की जिंदगी का सवाल हो तो उन्हें अपनी गलत प्रवृत्तियों को छोड़ देना चाहिए क्योंकि जीवन एक बार मिलता है बार-बार नहीं ......

कहते भी हैं ना कि एक मछली सारे तालाब को गन्दा करती है।  एक के गलत होने से  सबको गलत कहना उचित नहीं...






*देवदूत हैं चिकित्सक, सम्मान करो*

*देवदूत हैं चिकित्सक, सम्मान करो* 


**चिकित्सक का सम्मान करो
देवदूत का ना अपमान करो
चिकित्सक परमात्मा के दूत हैं
कई वर्षों के कठोर अध्ययन के बाद
एक चिकित्सक तैयार होता है
अपना संपूर्ण जीवन चिकित्सा क्षेत्र में कई शोधों और अध्ययन कार्य में समर्पित करता है
 एक चिकित्सक जटिल से जटिल रोगों पर शोध कर , रोगों से निजात दिलाने में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करता है  शारीरिक और मानसिक कष्ट से कैसे बचा जाए इस पर भी एक चिकित्सक अपनी भूमिका निभाता है
एक चिकित्सक का सम्पूर्ण जीवन समाज को समर्पित होता  ,आपातकाल में चिकित्सक को कभी भी बुलाया जाता है उस पर भी एक चिकित्सक अपना कर्तव्य समझ अपना सुख-चैन भूलकर सेवा करता है
उस पर भी धरती पर परमात्मा का दूत
चिकित्सक अपमानित होता , हाय! ये सच
में कलयुग ही लगता
आपातकाल की स्थिति में
एक अस्सी साल का बुजुर्ग जब दिल का दौरा पड़ने पर चिकित्सालय में लाया जाता
उसका यथा विधिवत उपचार किया जाता है।
समय की ऐसी विडम्बना बुजुर्ग दुनियां से
चल बनता है, ये तो विधि का खेल है

उस पर परिजनों का आक्रोश चिकित्सकों पर उतरता है,*भगवान के दूतों चिकित्सकों *को पीटा जाता , हाय! ये कैसा जमाना आ गया जीवन रक्षक के प्राणों पर संकट आ गया 

बस करो ये अत्याचार
चिकित्सक का करो सम्मान
वरना रोगी बनकर दर्द में तड़पते -तड़पते
करहाते -करहाते पड़े रहना खटिया पर और एक दिन छोड़ देना प्राण
जब चिकत्सक ना होंगे
तब धरती पर सब करहाते रहेंगे
चिकित्सक का सम्मान करो
देव दूतों का ना अपमान करो
अगर नहीं विश्वास चिकित्सकों पर
तो घर बैठे दर्द में करहाते रहो पर ना
चिकित्सक के इलाज पर इल्ज़ाम करो
विज्ञान की खोजें हैं कई मंहगे मशीनों से
प्रयोगशालाओं में कई जटिल रोंगों
का के अंत का तोड़ निकला है ।
देवदूतों चिकित्सकों का सम्मान करो ।

*इंसानियत के चिराग*

निस्वार्थ मोहब्बत का
पुजारी हूं इस दुनियां
में इंसानियत का चिराग
लेकर घूम रहा हूं
घोर अन्धकार में दिया
जला देता हूं
मैं नौसिखिया वीणा के तारों
में इंसानियत
का राग सजा देता हूं ।

ढूंढ रहा हूं
इधर-उधर
नहीं मिल रही कहीं मगर
फिर रहा हूं डगर-डगर
नगर -नगर
व्यर्थ हो गया,
मेरे जीवन का सफर,
इंसान तो मिले बहुत मगर
इंसानियत ना मिली मुझे
मैं हारा थककर
स्वार्थ का बोलबाला था
मैं तो राही मतवाला था
परस्पर प्रेम के बीज मैं
स्वार्थ की बंजर भूमि में बो आया आने वाले कल को

मोहब्बत की फसलें दे आया *

इंसानियत के चिराग जला आया हूं 

*गुड़िया का दर्द*

  **मां मैं बाहर खेलने जा रही हूं 

नहीं -नहीं गुड़िया   

तुम बाहर खेलने नहीं जा सकती 

बाहर कुछ जानवर घूम रहे हैं 

गुड़िया बोली :- मां मैंने अभी अभी अभी बाहर देखा

बाहर कोई जानवर नहीं था

मां बोली:- अरे नहीं -नहीं गुड़िया 

वह जानवर ही हैं दिखते इंसान जैसे हैं

पर हैं हैवान, बेटी वो दरिंदे हैं

तुम्हें नहीं पता, तुम अभी छोटी सी गुड़िया हो ना

वह गुड़िया को भी नहीं छोड़ते, 

उसके भी टुकड़े टुकड़े कर देते हैं 

तुम बाहर मत जाना गुड़िया

मैं तुम्हारे जैसी मासूम गुड़िया 

और कहां से लाऊंगी

मैं तो तुम्हारे बिना मर ही जाऊंगी 

नहीं नहीं गुड़िया

तुम मुझे बहुत प्यारी हो

मेरी राज दुलारी हो

मेरी आंखों का तारा

तुम ही हो मेरे जीने का सहारा

बेटी बोली:-मां वो इंसान ऐसे क्यों हैं 

क्या उन्हें कभी किसी ने समझाया नहीं

क्या उनके घर में मेरी जैसी और कुछ छोटी कुछ बड़ी आपके जैसी गुड़िया ही नहीं

मां आप भी तो बड़ी गुड़िया हो ना

मैंने सुना है जब पापा कहते हैं जा छोटी गुड़िया

अपनी मां बड़ी गुड़िया को बुला ले ,

मां हम सब गुड़ियाओं को मिलकर इन 

इंसानों में छिपे जानवर ,राक्षसों ,हैवानों को 

तब तक मारना चाहिए जब तक वो एक अच्छे 

इंसान ना बन जाएं

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...