Ritu Asooja Rishikesh , जीते तो सभी है , पर जीवन वह सफल जो किसी के काम आ सके । जीवन का कोई मकसद होना जरूरी था ।परिस्थितियों और अपनी सीमाओं के अंदर रहते हुए ,कुछ करना था जो मेरे और मेरे समाज के लिए हितकर हो । साहित्य के प्रति रुचि होने के कारण ,परमात्मा की प्रेरणा से लिखना शुरू किया ,कुछ लेख ,समाचार पत्रों में भी छपे । मेरे एक मित्र ने मेरे लिखने के शौंक को देखकर ,इंटरनेट पर मेरा ब्लॉग बना दिया ,और कहा अब इस पर लिखो ,मेरे लिखने के शौंक को तो मानों पंख लग
**यहां मेरी भावनाओं की कोई कदर नहीं .....
प्रेरणास्पद, भावात्मक, काल्पनिक,हास्यास्पद,
( नाटक)
श्रीमान जी :- सुनो श्रीमती जी बाहर से
किसी रद्धि वाले की आवाज आए तो उसे रोक लेना।
और मुझे बुला लेना मुझे कुछ बेचना है ।
श्रीमती जी:- अब क्या बेचना है ,अभी परसों ही तो सारा रद्दी सामान दिया था ,जबकि मैंने कहा था एक दो अखबार बचा लेना अलमारी में बिछाने के लिए चाहिए थे ,तुमने तो एक भी अखबार नहीं छोड़ा था, अब क्या रह गया है कुछ, जो बेचना है ।
श्रीमान जी:- अरे भाग्यवान बस कुछ बेचना है ,बहुत कीमती है, परंतु कोई उनका मोल नहीं जानता ।
श्रीमती जी :- कीमती है और बेचना है,ऐसा क्या है कहीं मेरे गहने तो नहीं ....
श्रीमान जी:- तुम्हारे गहने वो तुम्हारे हैं अभी इतने भी बुरे दिन नहीं आए ,की मुझे ऐसा कुछ बेचना पड़़े ।
श्रीमती जी:- अनमोल अजी मुझे तो घबराहट हो रही है आप ऐसा क्या है जो रद्दी वाले को बेचने वाले हैं ,कहीं आप मुझे तो रद्दी वाले लो तो नहीं दे देंगे ......
श्रीमान जी:- राम -राम..... रद्दी वाला तुम्हें लेकर क्या करेगा , तुम्हें तो मैं ही झेल लूं इतना ही बहुत है.... व्यंग करते हुए श्री मान जी .....
श्रीमती जी:- हां -हां मेरी कीमत तो मेरे जाने के बाद ही पता चलेगी ।
श्रीमान जी :- आवाज सुनो रद्दी वाले की है शायद ....
श्रीमती जी:- दरवाजा खोल कर देखती हैं इधर-उधर ताकने के बाद ,कोई नहीं है यहां ...
श्रीमान जी :- चलो तो फिर एक कप चाय ही पीला दो
थोड़ी देर में चाय भी बनकर तैयार थी श्रीमानजी चाय की चुस्कियां ले ही रहे थे ,तभी श्रीमती जी ने थोड़ा साहस करके प्रेम से श्रीमान जी से पूछा ,अच्छा ये बताईए आपको रद्दी वाले को क्या सामान बेचना है।
श्रीमान जी :- कुछ डायरियां निकाल कर रखी थीं कुछ पेपर कुछ पत्रिकाएं बोले इन्हे बेचना है
श्रीमती जी :- परंतु ये तो आपकी भावनाएं हैं आपकी धरोहर हैं आपकी अमानत हैं
आपको तो ये बहुत प्रिय हैं।
श्रीमान जी :- हां ये मेरी भावनाएं हैं ,मेरी आत्मा की आवाज हैं ,ये मेरे द्वारा लिखे गए वो भाव हैं जिनमें विचारों की गहराई है ।
श्रीमती जी मैंने आज तक जो लिखा समाज के हित में प्रेरणादायक लिखा और प्रयास किया , परंतु श्रीमती जी कौन कदर करता है इन भावनाओं की ,आज विज्ञान के युग में तकनीकी दुनियां में कोमल भावनाओं का तो मानों अंतिम संस्कार हो चुका है । श्रीमती जी तुम सही कहती थी जिसके पास समय है आज के युग में ये सब पड़ने का कोई मोल नहीं मेरी लिखी रचनाओं का .....श्रीमती जी दे दो इन्हें किसी रद्दी वाले को .....
श्रीमती जी:- आप निराश न हों श्रीमान जी हम तो बस यूं ही कह देते हैं , हमें बहुत कदर है आपकी भावनाओं की ,हम जानते हैं आप लिखते हैं क्योंकि आप समाज को कुछ अच्छा सिखाना ,और बताना चाहते हैं ,आप निराश न हों एक दिन आएगा जब आपकी भावनाओं की लोग कदर करेंगे ,आपका लिखा हुआ पड़ने के लिए प्रतीक्षा की पंक्तियों में खड़े होंगे ,
और वो क्या कहते हैं आपसे आपके हस्ताक्षर यानी ऑटोग्राफ लेने शानमें अपनी समझेंगे ।
तभी द्वार पर किसी ने दस्तक दी ,श्रीमती जी ने द्वार खोला डाकिए था कोई पत्र था पकड़ा कर चला गया.....
श्रीमान जी :- हाथ में पत्र लेते हुए अब ये क्या है ,पत्र हाथ में था श्रीमान जी के चेहरे पर आत्मसम्मान की लहर दौड़ पड़ी
श्रीमती जी :- ऐसा क्या है कोई मनी ऑर्डर आया है क्या , श्रीमान जी चुप थे ,श्री मती जी ने श्रीमान जी के हाथ से पत्र ले लिया और पड़ने लगी श्रीमती जी के चेहरे पर भी खुशी की लहर दौड़ पड़ी ।
श्रीमती जी :-क्या अभी भी ये सब रद्दी वाले को देना है
श्रीमान जी :- तुम सही कहती थी श्रीमती जी ,एक दिन ऐसा आएगा जब मेरी भावनाओं को भी कोई समझेगा और आज वो सच हुआ ।
श्रीमती जी :-चलिए सबसे पहले परमात्मा को नमन कीजिए ,शुक्रिया कीजिए ।
फिर मैं सारे शहर को बता कर आती हूं कि मेरे श्रीमान जी को उनके उत्कृष्ट लेखन के लिए राज्य सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया है ।

**दफन**
** कल मुझे कुछ संस्कार मिले
कफ़न में लिपटे हुए
पड़े थे मृत के समान मूर्छित अवस्था में,मानों कोमा में
सांसे ले रहे थे ,
पर मरे नहीं थे,तैयार थे ,
शव शैय्या पर
स्वाहा होने के लिए
क्योंकि मृत के सामान पड़े थे
ले जाया जा रहा था उन्हें अंतिम संस्कार
के लिए .......
तभी कुछ हलचल हुई,
एक आस जो बची थी
जीवंत हो उठी ,संस्कारों ने
लम्बी सांस ली...... इंसानियत
भी मुस्करा उठी ,खिलखिलाने लगी....
शुभ मंगल संस्कारों की सांसे चलते देख....
*बेटियां *
बेटियां इन कलियों की
अहमियत तो उन बागवानों से पूछो ,
जिन बागों में यह खिलती हैं
घर आंगन महकाती हैं
रौनकें बढ़ाती हैं
बेटियां दो घरों की आन-बान
और शान होती हैं
एक घर की जड़ों में
फलती -फूलती और संस्कारित होती है
दूजे घर की इज्जत नींव और जड़ों को पोषित करने की जिम्मेदारियां निभाती हैं
बेटियां एक नहीं दो -दो घरों की रौनक और शान बढ़ाती हैं ।
बेटे वंशज होते हैं तो
बेटियां उपजाऊ धरती होती हैं
भूमिका में दोनों की अहमियत सामान होती है ।
*विचार शून्य जीवन का क्या आधार *
**
*किसी अद्वितीय असीमित,
शक्तिशाली विचार से ही प्रारम्भ
हुआ होगा धरती पर जीवन
विचारों से ही संसार का
अद्भुत नजारा......
विचारों से ही सृष्टि की सभ्यता विकसित
मनुष्य में विद्यमान विचारों ने धरती को खूब
संवारा ......
मेरा तो मानना है कि विचारों की नींव
पर ही टिका ही संसार सारा
विचार ही तो हैं जीवन का आधार ......
जीवन का सार ,विचार ना होते तो तब
कहां सम्भव था धरती पर प्रेम और सौहार्द.....
विचार माना की अद्वितीय शक्तियों का
सार ,शक्ति का आधार ,जैसे मनुष्य जीवन
में प्राण रक्त का संचार,हृदय गति का आधार ....
विचारों के भी दो प्रकार :-
जहां असुर विचार :- संहारक विनाशकारक
सुर विचार शुभ दैवीय विचार :-उत्थान करक
तो क्यों कहते ,शुभ और अशुभ विचार
नकारात्मक और साकारात्मक सोच
जब मनुष्य की सोच ही उसके काम
बनाती और बिगाड़ती है तो विचारों
का ही तो हुआ खेल सारा....
शक्तिशाली विचार से ही प्रारम्भ
हुआ होगा धरती पर जीवन
विचारों का खेल है सारा
विचारों से ही संसार का
अद्भुत नजारा......
विचारों से ही सृष्टि की सभ्यता विकसित
मनुष्य में विद्यमान विचारों ने धरती को खूब
संवारा ......
मेरा तो मानना है कि विचारों की नींव
पर ही टिका ही संसार सारा
विचार ही तो हैं जीवन का आधार ......
जीवन का सार ,विचार ना होते तो तब
कहां सम्भव था धरती पर प्रेम और सौहार्द.....
विचार माना की अद्वितीय शक्तियों का
सार ,शक्ति का आधार ,जैसे मनुष्य जीवन
में प्राण रक्त का संचार,हृदय गति का आधार ....
विचारों के भी दो प्रकार :-
जहां असुर विचार :- संहारक विनाशकारक
सुर विचार शुभ दैवीय विचार :-उत्थान करक
*विचारों के द्वंद्व में उलझा
तब समझा ,विचार शून्य
सब निरर्थक ,निराधार ,
विचार ही जीवन का आधार
विचारों के चयन की ना होती महिमातो क्यों कहते ,शुभ और अशुभ विचार
नकारात्मक और साकारात्मक सोच
जब मनुष्य की सोच ही उसके काम
बनाती और बिगाड़ती है तो विचारों
का ही तो हुआ खेल सारा....
सोचना पड़ा
*मैं वो भाषा हूं जो सबको समझ आ जाती हूं
मैं ना कुछ बोलती हूं ,ना कुछ कहती हूं
फिर भी लोगों के दिल में उतर जाती हूं *
*सोचना पड़ा
खुदा को भी सच्ची मोहब्बतों के कुछ चिरागों को नफरतों की आंधियों के आगे भी ना बुझते देख अपने चक्षुओं को अश्कों से भिगोना पड़ा सोचना पड़ा खुदा को भी मोहब्बत के नाम पर फ़ना होना पड़ा*
*भावनाएं भी क्या चीज हैं
जीवन का आधार ,जीवन का सार है
भावनाओं से रहित जीवन निराधार हैं
भावनाएं नदिया का बहता जल
लहरें उतार -चढ़ाव,
फंसना यानी भंवर में फंसना
भावनाओं की लहरों संग सामंजस्य बिठा कर
जीवन नैय्या पार करना ही जीवन यात्रा की सफलता ....*
*हिंदी हिन्दुस्तान की आत्मा उसका गौरव*
🙏🙏🎊🌹हिंदी मेरी मात्रभाषा अन्नत है,शाश्वत है, सनातन है , हिंदी किसी विशेष दिवस की मोहताज नहीं जब तक धरती पर अस्तित्व रहेगा तब तक हिंदी भाषा का अस्तित्व रहेगा 🙏🌹🌹🎊🌸🌺🙏
“ हिंदी मेरी मातृभाषा माँ तुल्य पूजनीय '' 🙏🙏
😊😃जिस भाषा को बोलकर मैंने अपने भावों को व्यक्त किया ,जिस भाषा को बोलकर मुझे मेरी पहचान मिली ,मुझे हिंदुस्तानी होने का गौरव प्राप्त हुआ , उस माँ तुल्य हिंदी भाषा को मेरा शत -शत नमन।
भाषा विहीन मनुष्य अधूरा है।
भाषा ही वह साधन है जिसने सम्पूर्ण विश्व के साथ जनसम्पर्क को जोड़ रखा है जब शिशु इस धरती पर जन्म लेता है ,तो उसे एक ही भाषा आती है वह है, भावों की भाषा ,परन्तु भावों की भाषा का क्षेत्र सिमित है।
मेरी मातृभाषा हिंदी सब भाषाओँ में श्रेष्ठ है। संस्कृत से जन्मी देवनागरी लिपि में वर्णित हिंदी सब भाषाओँ में श्रेष्ट है। अपनी मातृभाषा का प्रयोग करते समय मुझे अपने भारतीय होने का गर्व होता है। मातृभाषा बोलते हुए मुझे अपने देश के प्रति मातृत्व के भाव प्रकट होते हैं। मेरी मातृभाषा हिंदी मुझे मेरे देश की मिट्टी की सोंधी -सोंधी महक देती रहती हैं ,और भारतमाता माँ सी ममता।
आज का मानव स्वयं को आधुनिक कहलाने की होड़ में 'टाट में पैबंद ' की तरह अंग्रेजी के साधारण शब्दों का प्रयोग कर स्वयं को आधुनिक समझता है।
अरे जो नहीं कर पाया अपनी मातृ भाषा का सम्मान उसका स्वयं का सम्मान भी अधूरा है। किसी भी भाषा का ज्ञान होना अनुचित नहीं अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। इसका ज्ञान होना अनुचित नहीं।
परन्तु माँ तुल्य अपनी मातृभाषा का प्रयोग करने में स्वयं में हीनता का भाव होना स्व्यम का अपमान है।
मातृभाषा का सम्मान करने में स्वयं को गौरवान्वित महसूस करें। मातृभाषा का सम्मान माँ का सम्मान है.
हिंदी भाषा के कई महान ग्रन्थ सहित्य ,उपनिषद ' रामायण ' भगवद्गीता ' इत्यादि महान ग्रन्थ युगों -युगों से विश्वस्तरीय ज्ञान की निधियों के रूप में आज भी सम्पूर्ण विश्व का ज्ञानवर्धन कर रहे हैं व् अपना लोहा मनवा रहे है।
भाषा स्वयमेव ज्ञान की देवी सरस्वती जी का रूप हैं। भाषा ने ही ज्ञान की धरा को आज तक जीवित रखे हुए हैं
मेरी मातृभाषा हिंदी को मेरा शत -शत नमन आज अपनी भाषा हिंदी के माध्यम से मैं अपनी बात लिखकर आप तक पहुंचा रही हूँ।
“ हिंदी मेरी मातृभाषा माँ तुल्य पूजनीय '' 🙏🙏
😊😃जिस भाषा को बोलकर मैंने अपने भावों को व्यक्त किया ,जिस भाषा को बोलकर मुझे मेरी पहचान मिली ,मुझे हिंदुस्तानी होने का गौरव प्राप्त हुआ , उस माँ तुल्य हिंदी भाषा को मेरा शत -शत नमन।
भाषा विहीन मनुष्य अधूरा है।
भाषा ही वह साधन है जिसने सम्पूर्ण विश्व के साथ जनसम्पर्क को जोड़ रखा है जब शिशु इस धरती पर जन्म लेता है ,तो उसे एक ही भाषा आती है वह है, भावों की भाषा ,परन्तु भावों की भाषा का क्षेत्र सिमित है।
मेरी मातृभाषा हिंदी सब भाषाओँ में श्रेष्ठ है। संस्कृत से जन्मी देवनागरी लिपि में वर्णित हिंदी सब भाषाओँ में श्रेष्ट है। अपनी मातृभाषा का प्रयोग करते समय मुझे अपने भारतीय होने का गर्व होता है। मातृभाषा बोलते हुए मुझे अपने देश के प्रति मातृत्व के भाव प्रकट होते हैं। मेरी मातृभाषा हिंदी मुझे मेरे देश की मिट्टी की सोंधी -सोंधी महक देती रहती हैं ,और भारतमाता माँ सी ममता।
आज का मानव स्वयं को आधुनिक कहलाने की होड़ में 'टाट में पैबंद ' की तरह अंग्रेजी के साधारण शब्दों का प्रयोग कर स्वयं को आधुनिक समझता है।
अरे जो नहीं कर पाया अपनी मातृ भाषा का सम्मान उसका स्वयं का सम्मान भी अधूरा है। किसी भी भाषा का ज्ञान होना अनुचित नहीं अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। इसका ज्ञान होना अनुचित नहीं।
परन्तु माँ तुल्य अपनी मातृभाषा का प्रयोग करने में स्वयं में हीनता का भाव होना स्व्यम का अपमान है।
मातृभाषा का सम्मान करने में स्वयं को गौरवान्वित महसूस करें। मातृभाषा का सम्मान माँ का सम्मान है.
हिंदी भाषा के कई महान ग्रन्थ सहित्य ,उपनिषद ' रामायण ' भगवद्गीता ' इत्यादि महान ग्रन्थ युगों -युगों से विश्वस्तरीय ज्ञान की निधियों के रूप में आज भी सम्पूर्ण विश्व का ज्ञानवर्धन कर रहे हैं व् अपना लोहा मनवा रहे है।
भाषा स्वयमेव ज्ञान की देवी सरस्वती जी का रूप हैं। भाषा ने ही ज्ञान की धरा को आज तक जीवित रखे हुए हैं
मेरी मातृभाषा हिंदी को मेरा शत -शत नमन आज अपनी भाषा हिंदी के माध्यम से मैं अपनी बात लिखकर आप तक पहुंचा रही हूँ।
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