विश्वास और जीत

   " विश्वास और जीत "
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मेरा मुझ पर विश्वास जरूरी है ,
मेरे हाथों की लकीरों में मेरी तकदीर
सुनहरी है ।

क्यों स्वयं से अधिक हम दूसरों पर
यकीन करें।

माना की कोई किसी से कमतर नहीं है ।
पर मैं भी बेहतर और बेहतरीन हूँ
मुझे समझना जरूरी है।

हर एक की है ,अपनी विशेषता
माना मैं नही किसी के जैसा
यही तो मेरी पहचान है ।

मैं जैसा हूँ, मैं वैसा हूँ।
पर मैं जैसा हूँ ,बेहतरीन हूँ
क्योंकि मुझमे है, इन्सानियत की
खुद्दारी है ,मेरी पहचान है,वफादारी ।

मुझे करनी होगी अब जीतने की तैयारी
जीत सुनिश्चित है अबकी बारी
 स्वयं पर विश्वास की तैयारी ।

 मैं किसी से कम नहीं ,परस्पर प्रेम,
सभ्य आचरण, और इन्सानियत
की कलमों से रचना रची है मैंने सारी।

मेरा मुझ पर विश्वास है,
जीत सुनिशित है , मैंने की है पूरी तैयारी।।





**भारतीय ** संस्कृति **

          भारतीय    संस्कृति
**               **                **
भारतीय संस्कृति विश्व की समस्त संस्कृतियों में श्रेष्ठ है।
संस्कृति यानि उच्च से उच्चम संस्कार ।
संस्कार कोई स्थूल वस्तु नहीं ........
संस्कार मनुष्य द्वारा किये गये कर्म व् व्यवहार ...
भारतीय संस्कृति के आदर्श ,सदभावना, परस्पर प्रेम, आदर, आत्मविश्वास का आभूषण जिससे भारतीयता के श्रृंगार में और निखार आता है , क्योंकि सत्य ,और अहिंसा भारतीय संस्कृति की सशक्त लाठी है।
भारतीय संस्कृति हिंसा में कभी भी विश्ववास नहीं करती ।
इसका तातपर्य यह कदापि नहीं की हम कमजोर हैं ।
हिंसा से हमेशा विनाश ही हुआ है हिंसा अपने साथ कई मासूमों की भी बलि चढ़ा देती है ।
हम भी ईंट का जवाब पत्थर से दे सकते है और समय आने पर हम भारतीयों ने ईट का जवाब पत्थर से दिया भी है ।यह समस्त विश्व जनता है । भारत अहिंसा का का पुजारी है और अहिंसा की शक्ति तो महात्मा गाँधी ने बखूबी दिखा दी थी । गोले बारूद से अधिक आत्मविश्वास ,सत्य और अहिंसा की शक्ति है जिसका लोहा भारतीय संस्कृति की के इतिहास में मिलता है।

 सत्य, प्रेम अंहिसा ,के तप का के बल की अग्नि
 के आगे गोले,बारूद, की अग्नि भी शून्य है ।
 गोले ,बारूद तो कुछ एक को ही तबाह करते हैं
 पर भारतीयों के तप के बल की अग्नि में वो तेज है जो
 की कहीं भी भी किसी को बैठे-बैठे ही स्वाहा कर सकती है।
        भस्म कर सकती है । स्वाहा कर सकती है ।

**मैं बेटी हूँ यही तो मेरा सौभाग्य है**

जब मैं घर में बेटी बनकर जन्मी

सबके चेहरों पर हँसी थी ,

हँसी में भी ,पूरी ख़ुशी नहीं थी,

लक्षमी बनकर आयी है ,शब्दों से सम्मान मिला ।

माता - पिता के दिल का टुकड़ा ,

चिड़िया सी चहकती , तितली सी थिरकती

घर आँगन की शोभा बढ़ाती ।

ऊँची-ऊँची उड़ाने भरती

आसमाँ से ऊँचे हौंसले ,

सबको अपने रंग में रंगने की प्रेरणा लिए

माँ की लाड़ली बेटी ,भाई की प्यारी बहना ,पिता की राजकुमारी बन जाती ।

एक आँगन में पलती,   और किसी दूसरे आँगन की पालना करती ।

मेरे जीवन का बड़ा उद्देश्य ,एक नहीं दो-दो घरों की में कहलाती ।

कुछ तो देखा होगा मुझमे ,जो मुझे मिली ये बड़ी जिम्मेदारी।

सहनशीलता का अद्भुत गुण मुझे मिला है ,

अपने मायके में होकर परायी ,  मैं ससुराल को अपना घर बनाती ।

एक नहीं दो -दो घरों की मैं कहलाती ।

ममता ,स्नेह ,प्रेम ,समर्पण  सहनशीलता  आदि गुणों से मैं पालित पोषित                                                                                                     मैं एक बेटी ,मैं एक नारी ....

मेरी  परवरिश  लेती है , जिम्मेवारी , तभी तो धरती  पर सुसज्जित है ,

ज्ञान, साहस त्याग समर्पण प्रेम से फुलवारी    ,

ध्रुव , एकलव्या  गौतम ,कौटिल्य ,चाणक्य वीर शिवजी

वीरांगना "लक्षमी बाई ," ममता त्याग की देवी  "पन्ना धाई",आदि जैसे हीरों के शौर्य से गर्वान्वित है भारत माँ की फुलवारी

"वियय पर्व " "अच्छाई का बुराई पर "

अच्छाई की बुराई पर जीत का पर्व विजयदशमी ।
परमात्मा करे कलयुग में भी कोई रामचन्दर आयें और
मनुष्य की आत्माओं के विचारों और व्यवहारों में पल पोस रहे रावणों को मार गिराये ।

मेरा -मेरा करता मानव , आज बन गया है तू दानव ।
 रावण भी खाली हाथ गया तू गया ले जायेगा संग
शुभ कर्मों की फसल उगा ले मीठी वाणी का प्रसाद
फिर रह जायेगा तेरे जाने के बाद ऐ मानव तेरा नाम ।।

हर वर्ष रावण के पुतले जलाने से अच्छा है ,हम मनुष्य अपने विचारों और व्यवहारों से जो रावण रुपी दुष्कर्मों जैसे द्वेष द्वन्द नफ़रत ईर्ष्या जलन पल रहे दुष्कर्मों का अन्त करे ।
मेरा तो मानना है कि,विजय दशमी का पर्व अवश्य मनायें
रावण का पुतला अवश्य जलायें ,परन्तु इसके पीछे के सत्य को जाने और अपने अन्दर के रावण रुपी अंहकार को भी परस्पर प्रेम की जोत से मुस्कान से सहर्ष मार डालें । 

*भारत का सर्जिकल ऑपरेशन*

भारत का सर्जिकल ऑपरेशन *


देश के रक्षक सर्वप्रथम सम्मानीय
 भारतीय सेना के समस्त वीर जांबाज सैनिकों को मेरा सहृदय धन्यवाद ।......धन्यवाद यह शब्द बहुत संकीर्ण हैं ,देश के रक्षकों के लिये ,यह वो महान लोग हैं जो अपने देश की रक्षा के लिये अपने घर परिवार से लम्बे समय तक दूर रहते हैं कई -कई महीने हो जाते हैं इन्हें माँ ,बाप पत्नी ,बहिन और बच्चों से मिले हुए ,क्या इन वीर देश के रक्षकों को अपनी माँ ,की पत्नी की ,बच्चों की याद नहीं आती होगी ........आती है पर इसलिये की हम यानि मात्र भूमि का प्रत्येक परिवार अपने-अपने घरों में सुरक्षित जीवन जी सके ..ये जांबाज देश के रक्षक अपनी जान की परवाह किये बिना अपनी" जान हथेली पर लेकर सिर पर कफ़न बाँध कर शान से सीमाओं पर पहरा देते हैं ।

मेरी सोच तो यह कहती है ,कि अगर सर्वप्रथम सम्मानीय ,और सबसे ऊँची पदवी कोई है तो अपनी मात्र भूमि के रक्षक वीर सैनकों की ।

अभी कुछ ही दिन पहले भारतीय सनिकों द्वारा आतंकवाद के खिलाफ जो सर्जिकल स्ट्राइक हुई है ,वह अपने आप में बहुत बेहतरीन कदम था भारतीय सैनिकों का ।
आखिर कब तक आतंकवाद का शिकार होते रहेंगे निर्दोष हम लोग । बहुत ही न्यायपूर्ण था यह सर्जिकल ऑपरेशन .... इस विषय में किसी भी बहस की आव्य्शाकता नहीं ....अपनी रक्षा करना हमारा स्वयं का अधिकार है ,आखिर कब तक इतना घिनौना खेल सह सकता है कोई ,हमारे ही देश की सीमाओं में छुप कर हम पर ही वार ।
बहुत हो चुका यह आतंकवाद का घिनौना खेल ।
मेरा तो कहना है ऐसे सर्जिकल ऑपरेशन भारतीय सेना द्वारा होते रहने चाहियें ,ये थोड़े की कोई भी आतंकवादी रुपी जंगली जानवर हमारे घर में घुस आये और हमारे ही परिवार के सदस्यों को मार डाले
और हम उस आतकंवादी जंगली जानवरों को यूँ ही छोड़ दे ।अगली बार फिर आना और हमें भी खा जाना वाह ऐसा तो नहीं होने देंगे ।
इस विषय में मै आदरणीय प्रधानमंत्री जी की सरहना करूंगी की उन्होंने इस ऑपरेशन की सहमति दी  ।कुछ लोग इसे राजनीति से जोड़ रहे हैं ।
राजनीति हो या जो कुछ भी पर देश की सुरक्षा के लिए उठाया गया यह कदम सरहनीय है। अगर आव्य्शकता पड़े तो आगे भी यह कदम भारतीय सेना उठाती रहे । अब बहुत पी लिया आतंकवाद का जहरीला जहर बस अब और नहीं ।।।।।।



"केनवास जीवन के "

जीवन क्या है,मैं आज तक,
 समझ के भी समझ ना पाया ।
जीवन कभी निर्मल ,निर्द्वन्द
निश्छल ,सरल सी प्रतीत होता है ।

और फिर कभी द्वंदों के सैलाब
से लड़ता ,तूफानों में अपनी जीवन
की कश्ती को सम्भालता ।

कभी जेठ की तपती धूप में सुलगता
शीतलता को तरसता ।
फिर वहीँ कभी जाड़े की
सिरहा देने वाली सर्दी में
 दिनकर की तपिश से
स्वयं को सुकून दिलाता ।

जीवन का सिलसिला समझ के
भी समझ नहीं आता ।
हम आयें हैं ,तो जाना क्यों ?
जाना है तो आये क्यों?
शायद ये बात भी सच है
जीवन एक सराय है हम
मुसाफ़िर ,अपने सफ़र को क्यों
ना सुहाना बनाये ,क्यों मोह माया के
चक्कर में अपने सफ़र में कड़वाहट भरें ।

जब हम सब ही मुसाफिर हैं
तो फिर चलो अपने-अपने जीवन के
केनवास में सुन्दर रंग भरें
ताकि हमारे केनवास हमारे इस दुनियां
से चले जाने के बाद आने वाली पीड़ी
के लिये एक सुन्दर मिसाल बने ।


" माँ आदिशक्ति"


           "माँ आदिशाक्ति "

“माँ
आदि शक्ति ” भारत देश एक ऐसा देश है, जहाँ दिव्यशक्ति जो इस सृष्टि का रचियता है,विभिन्न अवतारों रूपों में आराधना की जाती है । परमात्मा के विभिन्न अवतारों के कोई ना कोई कारण अवश्य है ,जब -जब भक्त परमात्मा को पुकारतें हैं ,धरती पर पाप और अत्याचार अत्यधिक हो जाता तब परमात्मा अवतार लेते हैं और धरती को पाप मुक्त करतें है। हमारे यहाँ जगदम्बा के नवरात्रे की भी बड़ी महिमा है ,जगह -जगह जय माता दी ,के जयकारे ,माता के जागरण चौकी ,माता की भेंटों से गूंजते मंदिर ……..पवित्र वातावरण सजे धजे मंदिर मातारानी का अद्भुत श्रृंगार लाल चुनरिया लाल चोला, लाल चूड़ियाँ ,निहार माँ के लाल होते है ,निहाल । माँ का इतना सूंदर भव्य स्वागत ये हमारा देश भारत ही है ,जहाँ माँ का स्थान सबसे ऊँचा है ,फिर चाहे वो धरती पर जन्म देने वाली माँ हो ,या जगत जननी , क्यों न हो वो एक माँ ही तो है ,जो दृश्य या अदृशय रूप से अपनी संतानो का भला ही करती है । कहतें हैं ,धरती पर जब पाप और अत्याचार ने अपनी सीमायें तोड़ दी थी ,साधू सज्जन लोग अत्यचार का शिकार होने लगे थे,चारों और अधर्म ही अधर्म होने लगता था,तब शक्ति ने अधर्म का नाश करने के लिए और धर्म की रक्षा के लिए धरती पर अवतार लिया था, पापियों और राक्षसों का अंत किया,और फिर से धर्म की स्थापना की ,राक्षसों का अंत करने के लिए माँ को कई रूप धारण करने पढे ,माँ गौरी ,माँ दुर्गा , अम्बे ,माँ काली आदि माँ आदिशक्ति कई नामो जानी जाती है । माँ अन्नपूंर्णा बन अपनी संतानों का पालन पोषण करती है , तो कभीमाँ सरस्वती का रूप धारण कर अपनी संतानों में ज्ञान के बीज बोती है, तो वहीँ लक्ष्मी बन जगत को सुख समृद्धि प्रदान करती है। माँ हमेशा से पूजनीय है , नवरात्रों में देवी की पूजा का विशेष महत्व है , नवरात्रों में गुजरात में गरबा का विशेष महत्त्व है । कोल्कता में काली माँ की पूजा ,बंगाली समुदाय द्वारा काली पूजा बड़े ही पाराम्परिक ढंग से व् श्रद्धा से की जाती है । हमें जन्म देने वाली.माँ को भी हमें उतना ही सम्मान देना चाहिए ,क्योंकि धरती पर सर्वप्रथम माँ ने ही हमें समर्थ बनाया ।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...