**मै इंसान **

 ना जाने क्यों भटक जाता हूँ ,
 अच्छा खासा चल रहा होता हूँ," मैं"
 पर ना जाने क्या होता है ,
 ना जाने क्यों राहों के बीच मे ही उलझ जाता हूँ" मै"
जानता हूँ ,ये तो मेरी राह नहीं ,
मेरी मंजिल का रास्ता यहाँ से होकर तो नहीं जाता,
फिर भी न जाने क्यों ?आकर्षित हो जाता हूँ "मैं "
भटक जाता हूँ ,"मैं" हासिल कुछ भी नहीं होता
बस यूँ ही उलझ जाता हूँ "मै"फिर निराश -हताश
वापिस लौटकर अपनी राहों की और आता हूँ "मैं"
फिर आत्मा को चैन मिलता है ।
अपनी राह से कभी ना भटक जाने की सौगंध लेता हूँ।"मैं"
जीवन एक सुहाना सफ़र है ।
"मैं"मुसाफिर"अपने किरदार में सुंदर -सुंदर रंग भरना चाहता हूँ "मैं" बस हर दिल मैं प्यार भरना चाहता हूँ" मैं"
          बस जिन्दगी के नाटक मे अपना किरदार बखूबी निभाना चाहता हूँ "मै"

*तुम कभी मत टूटना *

 जब मैं निकला था , मौसम बड़ा सुहाना था,
 कुछ पल बहुत हँसे मुस्कराए ,सुंदर -सुंदर ख्वाब सजाये ,
 कुछ ख्वाब पूरे हुए ,कुछ अधूरे धूप तेज निकली ,गर्मी से मेरे होंठ सूखने लगे थे।
 ख्वाब अभी पूरे भी नहीं हुए  थे ,राहों में कंकड़ आ गये ,कंकड़ हटाये फिर चलना शुरू कर  दिया ,फिर बाधाओं पर बाधा मैं कुछ पल रुका ,फिर चल दिया ,मैं चल ही रहा था ,तेज आँधी आ गयी फिर तूफ़ान पर  
तूफ़ान मैं डरा सहमा , टूट सकता था ,और बिखर भी सकता था , पर मैं टिका रहा , माना की वक़्त मेरा साथ नहीं दे रहा था।  परन्तु मेरा हौंसला भी कम्बखत मेरा साथ नहीं छोड़ रहा था ।
थोड़ा वक़्त तो जरुर लगा ,मैं निराश भी हुआ ,परन्तु मेरे हौंसलों ने मरहम का काम किया तूफानों की चोटें अब भरने लगीं थी ।   सफ़र अब भी जारी था मेरा विश्वास मेरा हौंसला ही कम नहीं होने दे रहा था ।    
मौसम फिर से बदला ,सावन आया बादल बरसे खुशियों की बरसात हुई ।
मेरी आत्मशक्ति ने मेरी पीठ थपथपाई  ! क्योंकि मेरी आत्मा का विश्वास कभी टूटा नहीं ,उस  दृण  निश्चय विश्वास ने मुझे मेरी मंजिल तक पहूँचाया। जिन्दगी की दौड़ का एक फलसफा ही समझ आया उतार -चढाव तो आयेंगे ही धूप  से  पैर  भी झुलसेगें , आँधियों से सपने भी बिखरेंगें  पर  ऐ मानव  तुम ना बिखरना कभी ना टूटना  मंजिले तो मिल जायेंगी ,परन्तु अगर तुम बिखरे तो सब खत्म हो जाएगा ।।।।।।

**आँगन की कली**

आँगन की कली *

vlcsnap-2015-07-23-11h14m17s66जब मैं घर में बेटी बनकर जन्मी
सबके चेहरों पर हँसी थी ,
हँसी में भी ,पूरी ख़ुशी नहीं थी,
लक्षमी बनकर आयी है ,शब्दों से सम्मान मिला ।
माता – पिता के दिल का टुकड़ा ,
चिड़िया सी चहकती , तितली सी थिरकती
घर आँगन की शोभा बढ़ाती ।
ऊँची-ऊँची उड़ाने भरती
आसमाँ से ऊँचे हौंसले ,
सबको अपने रंग में रंगने की प्रेरणा लिए
माँ की लाड़ली बेटी ,भाई की प्यारी बहना ,पिता की राजकुमारी बन जाती ।
एक आँगन में पलती,   और किसी दूसरे आँगन की पालना करती ।
मेरे जीवन का बड़ा उद्देश्य ,एक नहीं दो-दो घरों की में कहलाती ।
कुछ तो देखा होगा मुझमे ,जो मुझे मिली ये बड़ी जिम्मेदारी।
सहनशीलता का अद्भुत गुण मुझे मिला है ,
अपने मायके में होकर परायी ,  मैं ससुराल को अपना घर बनाती ।
एक नहीं दो -दो घरों की मैं कहलाती ।
ममता ,स्नेह ,प्रेम ,समर्पण  सहनशीलता  आदि गुणों से मैं पालित पोषित                                                                                                     मैं एक बेटी ,मैं एक नारी ….
मेरी  परवरिश  लेती है , जिम्मेवारी , तभी तो धरती  पर सुसज्जित है ,
ज्ञान, साहस त्याग समर्पण प्रेम से फुलवारी    ,
ध्रुव , एकलव्या  गौतम ,कौटिल्य ,चाणक्य वीर शिवजी
वीरांगना “लक्षमी बाई ,” ममता त्याग की देवी  ”पन्ना धाई”,आदि जैसे हीरों के शौर्य से गर्वान्वित है भारत माँ की फुलवारी

* योग्यता को आरक्षण की लाठी की आव्य्शाकता नहीं *

  • बस अब और नहीं आरक्षण की आड़ में राजनीति अब और नहीं,आरक्षण की चाह ,और इतना भक्षण अपने स्वार्थ के लिये अन्य लोगों को नुकसान पहुँचना ।
    6h

  • बन्द करो बस बन्द करो,
    योग्यता को आरक्षण की लाठी की आव्य्शाकता नहीं *

  • आरक्षण का ये घिनौना खेल बन्द करो ,आरक्षण का की आड़ में अपनी मात्रभूमि में आतंक ना फैलायें आज देश
    में वो स्थिथि आ चुकी की है ,आरक्षण के हकदार वास्तव में आर्थिक रूप से कमजोर लोगे ही होने चाहिये , अगर किसी भी व्यक्ति में योग्यता है तो दुनियाँ की कोई ताकत आपको आगे बढने से नहीं रोक सकती ,योग्यता के आधार पर आगे बढिए ,आरक्षण की लाठी लेकर आगे बढना यानि स्वयं को कमजोर समझना मेरी देश वासियों से विनती है ,कृपया आरक्षण के नाम पर दँगा फसाद ना फैलाएँ स्वयं को काबिल और सक्षम बनाएँ अपनी क़ाबलियत व् योग्यता के बल पर आगे बढिए ,क्या बहते हुए पानी को कोई रोक पाया है क्या कभी रोशनी की हल्की सी किरण भी अगर जो हो तो वो झरोंकों से बाहर निकल ही जाती है ,योग्यता को आरक्षण की लाठी की कोई आवय्शकता नहीं योग्यता को अपाहिज न बनाइये 

* वीर सिपाही हम*

शोला हम,चिंगारी हम
आँधियों के वेग की हिस्सदारी हम
सूर्य के समान हम में है तेज
हिमखंडों की भांति शीतल भी हम ,
हिमालय सा विशाल सीना है ,अपना
धीर भी हम ,वीर भी हम ।
मात्रभूमि की रक्षा प्रहरी हम ,
मात्रभूमि के  सच्चे सपूत हैं हम ,वीर सिपाही हम।
आँधियों से लड़ना शौंक है अपना
तूफानों में तैरती कश्तियाँ हैं,अपनी ।
आँखों में भरें हैं अंगारे ,बाजुओं में फौलाद है ,अपनी
एक धाहड़ भी जो मारे तो ,दुश्मन भाग जाते लौट के उलटे पाँव । मात्रभूमि की आन में ,मात्रभूमि की शान में
हम वीर सिपाही खड़े ,हैं बन देश के रक्षा प्रहरी ।
मात्रभूमि है ,माँ के जैसी । माँ की ममता है ,कवच हमारी
जो शून्य डिग्री के तापमान में रहकर भी चलती रहती है सांसें हमारी ।
मात्रभूमि के विरोध में जो एक आवाज भी उठ जाये तो माफ़ नहीं होगी गद्दारी ।।देश की रक्षा है, अपनी जिम्मेदारी ।
हनुमत थप्पा सी साँसे हमारी ।
वीर भगत सिंह,मंगल पांडे ,लक्ष्मी बाई महाराणा प्रताप जैसे
कई वीरों से सुसज्जित है , भारत माँ के हर आँगन की किलकारी।।।।


" गँगा मात्र सरिता नहीं माता गँगा है "

पावनी माँ गँगा की अविरल जलधारा ,गँगा मात्र सरिता नहीं ,यह हम भारतीयों के लिए अमृत है ,संजीवनी है ।यह जन-जन की आस्था और विश्वास ही तो है ,गँगा जी को गँगा माता कहकर बुलाते हैं ।हमारे पुराने ग्रंथों में लिखा है की ,राजा सगर साठ हजार पुत्रोँ को मुक्ति दिलाने के लिए भागीरथ ने घोर तपस्या की थी अनन्तः भगवन शिव ने प्रसन्न होकर गँगा की अविरल धरा को धरती पर प्रवाहित किया ,गंगा की प्रचण्ड वेगधारा जो अपने साथ सम्पूर्ण जग को जलमग्न कर देती ,तब शिवजी ने गँगा की अविरल धारा को अपनी जटाओं में समाहित करते हुए धीरे-धीरे धरती पर छोड़ा ,जिस तरह गंगा ने महाराजा सागर साठ हजार पुत्रों का उद्धार किया ,उसी तरह गंगे मैया आज तक जन-जन का उद्धार करती आ रही है । गँगा की महिमा उतुलनीय है ।
गँगा जी में कुम्भ मेले का भी विशेष महत्व है ,प्रत्येक बारह वर्ष के पश्चात कुम्भ मेला होता है ,और छह वर्ष में अर्ध कुम्भ मेला यह मेला इस वर्ष हरिद्वार में है ,निरन्तर जंगलों में योगसाधना ,तपस्या हवन यज्ञ आदि कर रहे ऋषि मुनि साधू कुम्भ मेले के दौरान माँ गंगा की अमृतमयी जलधारा में स्नान करने आते है ,सम्पूर्ण वातावरण आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत हो जाता है ।कुम्भ मेले के दौरान जब योग ,तपस्या का कुम्भ चारों और छलकता है ,तब गँगा का अमृतमयी जल प्रफुल्लित होते हुए अपनी शरण आये हुए भक्तों के तन -मन को शीतल करता है ।
जब माँ गँगा जन-जन का कल्याण करती है ,प्रकृति को सींचती है ,तो वहीं हम सब को भी कर्तव्य बनता है ,की हम इस अमृतमयी अमूल्य धरोहर का संरक्षण करे गँगा नदी में गन्दगी ना डाले ,इसकेआस-पास कूड़ा -करकट न एकत्रित करें ।गँगा की हमारा ही कल्याण है।
हर-हर गंगे के स्वर माँ गँगा की ममतामयी शीतलता का स्पर्श ,ज्यों एक माँ अपने बच्चों के सारे दुःख दूर करती है वैसे ही माँ गंगा भी अपनी शरण मेंआये हर भक्त के पाप दुःख दर्द दूर करती है और निरन्तर आगे बढ़ते रहने का सन्देश भी देती है ।
कुम्भ हूँ ,में ज्ञान का, तप का ,वैराग्य का समृद्धि का ,शीतलता का अन्तः करण की शुद्धि का।
परमात्मा ने हमें प्रकृति के रूप में अनमोल सम्पदाएँ दी हैं जैसे ये नदियाँ,ये झरने वृक्ष पर्वत इत्यादि
ये सम्पदाएँ हैँ ,अनमोल रत्न हैं हमारी निधियाँ है हमें इनका संरक्षण करना चाहिए ।
और माँ गँगा के रूप में भारत को अमृत  प्राप्त है ,गंगाजल की कीमत हम भारतीय बहुत अच्छे से जानते है हर घर में पूजा अर्चना में गंगाजल अनिवार्य है ।
गँगा की पवित्रता व् स्वछता को बनाये रखना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है , इस संजीवनी  औषधि की स्वच्छ्ता को हमें बनाये रखना है ,गँगा के रूप मिले इस खजाने का हमें संरक्षण करना होगा इसे स्वच्छ रखने का हमें प्रण लेना होगा।

मेरा भारत महान

सरल स्वभाव मीठी वाणी ,
आध्यमिकता के गूंजते शंख नाद यहाँ
अनेकता में एकता का प्रतीक मेरा भारत देश महान ,
विभिन्न रंगों के मोती हैं  ,फिर भी माला अपनी एक हैं
मेरे देश का अद्भुत वर्णन ,मेरी भारत माँ का मस्तक हिमालय के ताज से सुशोभित
सरिताओं में बहता अमृत यहाँ,
जड़ी -बूटियों संजिवनियों का आलय
प्रकृति के अद्भुत श्रृंगार से सुशोभित
मेरा भारत देश महान ,अपने देश की महिमा का क्या करूं व्याख्यान
जी चाहे मैं हर जन्म में बन देश का रक्षा प्रहरी शीश पर शीश झुकाऊँ
देश की खातिर प्राणों की बलि चढाऊँ, भारत माँ की शान में जो दुश्मनों की आँख भी उठ जाए
तो उन्हें"   छटी का दूध" याद दिलाऊँ दुश्मन " दाँतों तले ऊँगली दबाएँ" " उल्टे पाँव घर लौट जाएँ "
भारत माँ की आन में, भारत की शान बन जाऊँ
मैं अपनी मातृ भूमि भारत माँ का माँ जैसा ऊँचा सम्मान करूँ ।।
मैं भारत माँ का माँ से भी ज्यादा करूं सम्मान

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...