बुलंदी की ऊँचाइयाँ
बुलन्दी की ऊँचाइयाँ कभी भी अकेले आसमान नहीं छू पाती ,परस्पर प्रेम ,मैत्री ,सद्भावना विश्व्कुटुम्ब्क की भावना ही तरक्की की सीढ़ियां हैं।धार्मिक संगठन किसी भी देश -प्रदेश की भगौलिक प्राकृतिक परिस्थियों के अनुरूप नियमों का पालन करते हुए अनुशासन में रहते हुए संगठन में रहने के गुण भी सिखाता है।
अपनी विषेश पहचान बनाने के लिये या यूं कहिए की अपने रीती -रिवाज़ों को अपनी परम्पराओं व् संस्कृति को जीवित रखने के लिए किसी भी धर्म जाती या संगठन या समूह का निर्माण प्रारम्भ हुआ होगा इसमें कोई दो राय नहीं हैँ,ना ही यह अनुचित है। परन्तु कोई भी धर्म या परम्परा जब जड़ हो जाती है ,भले बुरे के ज्ञान के अभाव में आँखों में पट्टी बाँध सिर्फ उन परम्पराओं का निर्वाह किया जाता है ,तो वह निरर्थक हो जाती है।
समय।,काल ,वातावरण के अनुरूप परम्पराओं में परिवर्तन होते रहना चाहिए परिवर्तन जो प्रगर्ति का सूचक हो। शायद ही कोई धर्म किसी का अहित करने को कहता हो ,
कोई भी इंसान जब जन्म लेता है ,एक सा जन्मता है सबकी रक्तवाहिनियों में बहने वाले रक्त का रंग भी एक ही होता है' लाल '. हाँ किसी भी क्षेत्र की जलवायु वहां के रहन -सहन के विभिन्न तौर -तरीकों की व्भिन्नता के कारण इंसान की चमड़ी के रंग में परिवर्तन अवशय होता है। अतः धर्म जाती के नाम पर लड़ना आतंक फैलाना स्वार्थ सिद्ध करना कोई भी धर्म या धर्म ग्रन्थ धर्म के नाम पर लडना नहीं सीखता।धर्म की आड़ लेकर कई संगठन विभिन्न भ्रांतियाँ फैलाना स्वार्थ सिद्धि के लिए आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं ,आतंकवाद से किसी का भला होने वाला नहीं है, सिर्फ विनाश ही विनाश---------
एक मजबूत किले की दीवार के लिए ईंठ ,पत्थर ,सीमेंट इत्यादि सभी को एक होकर एक रंग में रंगना पढ़ता है। तभी ऐतिहासिक इमारतें बनती हैं इतिहास भी इस बात का ग्वाह है।
अतः मेरा देश महान मेरा भारत महान तो सभी कहते हैं ,देश महान तभी बनेगा जब हम सब धर्म जातिवाद व् स्वार्थवाद से ऊपर उठकर प्रेम सद्भावना के रंग में रंग कर देश की उन्नति के लिए अग्रसर होंगे। अतः प्रत्येक मनुष्य जाती का धर्म परस्पर प्रेम ही होना चाहिये।