नारी असतित्व

मैं हूँ प्रभु का फरिशता,
मुझसे है,हर प्राणी का दिली रिश्ता,
मुझमें समता,मुझमें ममता,
मैं नारी ह्रदय से कोमल हूँ।
फूलो सा जीवन है मेरा,
काँटों के बीच भी खिलखीलाती हूँ।
मुझसे ही खिलता हर बाग का फूल,
कभी-कभी चुभ जाते है मुझे शूल।
मैं नारी हूँ,
मुझसे  ही  असतित्व,
मुझे से ही व्यक्तित्व,
फिर भी पूछे मुझसे पहचान मेरी,
मुझसे ही है ए जगत शान तेरी,
फिर भी तेरे ही हाथों बिकी है,
आन मेरी।
हर पल अग्नि-परिक्षाए देती हूँ,
मैं ममता की  देवी हूँ,
 हर-पल स्नेह लुटाती हूँ,
मैं नारी हूँ,नहीं बेचारी हूँ, 
करती जगत कि रखवाली हूँ। 
                ''सवर्ग और नरक '' ''अनमोल वचन ''
दादी और पोते   का लाड़ प्यार उनकी खट्टी  -मीठी  बातें ही  मानो  कहानियों  का रूप  ले  लेती हैं।
 
 एक बार  एक  पोता  अपनी  दादी से  पूछता  है ,कि दादी  आप  जब मुझे कहानी  सुनाती हो ,उसमे स्वर्ग  की बाते करते हो ,क्या  , स्वर्ग बहुत सुंदर है।   दादी स्वर्ग  कहाँ है /   ?     क्या हम जीते  जी  स्वर्ग नहीं  जा सकते ?

     दादी  अपने  पोते    कि बात सुनकर  कहती है बेटा , स्वर्ग  हम  चाहें  तो  अपने कर्मों  द्वारा इस धरती  को स्वर्ग बना  सकते हैं।

पोता  अपनी  दादी से कहता है   इस धरती को स्वर्ग  वो  कैसे ,  दादी कहती है है ,   बेटा  भगवान ने जब हमें इस धरती  पर  भेजा  ,तो खाली  हाथ  नहीं भेजा  . ,भगवा न ने हमें प्रकृति  कि अनमोल  सम्पदाएँ  ये हवाएँ , नदियाँ , पर्वत ,आदि  दिए अन्य सम्पदाएँ   सूरज ,  चाँद , सितारें  न  जाने क्या -क्या  दिया।

  दूसरी ओर  भगवान ने हमें अ आत्मा कि शुद्धि के लिए  भी  कई रत्न  दिए ,लेकिन बेटा   वह रत्न अदृश्य हैं।  तुम्हे मालूम  है कि वह  रत्न कौन से  हैं ,  

पोता  कहता  है,  नहीं दादी  वह  रत्न  कौन  से हैं, मुझे नहीं  मालूम ,

   दादी कहती है , वह  रत्न  हैं   हमारी भावनाएँ  ,सबसे बड़ा  रत्न हैं ,     '' प्रेम '' जब प्रत्येक  प्राणी का प्रत्येक  प्राणी  से प्रेम होगा ,तो दुःख  कि कोई बात  ही नहीं  होगी। अन्य  रत्न हैं प्रेम ,दया ,क्षमा ,सहनशीलता  समता ये  सब हमारी आत्मा  के रत्न  हैं।

छोटा -बड़ा  तेरा मेरा इन  भावनाओं को अपनी  आत्मा  से निकल  फेंकना होगा , अनजाने में हुई  किसी कि गलती को माफ़  करना होगा।    

बेटा    भगवान ने इस धरती  का  निर्माण  किया  पर इंसानो ने  अपने  बुरे कर्मों द्वारा  इस धरती का हाल बुरा  कर दिया है  ,
  पोता  दादी कि बातें सुनकर  कहता है  दादी मै  बनाऊगा  इस धरती को ' स्वर्ग '  मै   इस धरती से  तेरा -मेरा  का भाव  मिटा दूँगा  दादी मै अपनी  आत्मा  में  छिपे और  प्रत्येक  प्राणी  कि आत्मा  में छिपे  सुंदर रत्नों   की  पहचान  उन्हें  कराऊंगा  . त्याग ,दया  क्षमा ,प्रेम  आदि  ही आज  से  मेरे  आभूषण  हैं ,मैं इन  सुंदर  रत्नो से स्व्यम  को  सजाऊंगा।  इस  धरती को  स्वर्ग  बनाऊँगा। .

 ''कुछ तो लोग कहेंगे ''


जब ज़िंदगी के कैनवास के रंग लगने लगे 
बेरंग--------
उसी क्षण  बदल  लेना अपने  जीवन जीने  का ढंग ,
उदासियों  का न  करना  कभी  संग ,
उदासियों  के कोहरे को  चीरते  हुए  आगे निकल जाना। 

 माना  कि जीवन है ,'जंग '
फिर भी  जीवन  के हैं कई  रंग। 
दिल कि  सुनना ,
कुछ  तो  लोग कहेंगे , लोगों का ,काम  है कहना। '
रँग बिरंगे रंगो  से जीवन सजा लेना ,

परस्पर प्रेम  का दीप  जला लेना ,
उम्मीद कि नई किरण ढूंढ लेना ,
किरण जो ले जाए उजाले कि ओर,
तुम्हें रोशन  करे और  सारे  जहाँ को रोशन कर जाए। 

जिंदगी  की जंग  में ,जगा के नई  उमंग। 
खुशियों  के संग ,जब होगी नई तरंग। 
तब होगा जीवन का शुभ आरम्भ।    

कहते हैं ना,देर आए पर दुरुस्त

सफलता  पर  सभी  का  अधिकार  है। कठिन  परिश्रम सच्ची  लगन  पूर्ण निष्ठा  से  कर्म  करने  के  बावजूद  कभी- कभी  हताशा  और  निराशा  मिलती  है । छोटी -छोटी  बातों  पर अमल  करके  सफलता  की  सीड़ियाँ  चढ़ा  जा  सकता  है। सीधा   सरल  सच्चा  रास्ता  थोड़ा लम्बा  और  कठनाइयों  भरा  हो  सकता  है परंतु   इसके  बाद  जो  सफलता मिलती है। वह चिरस्थाई   और  कल्याणकारी   होती                       “  कहते      हैं    ना  ,     देर     आए    पर    दुरुस्त     आए  ”     

  • कई  बार  व्यक्ति  रातों -रातों  रात  सफल  होना  चाहता  है  वह कई  गलत   तरीके  अपनाता  है । और  सफल  भी  हो  जाता  है  परन्तु  वह  सफलता  टिकती नहीं  क्योंकि  खोखले  कमजोर  साधन  मजबूती  कैसे  दे  सकते  है । फिर शर्मिंदगी  का  सामना करना  पड़ता है।मन में किसी  तरह  का  द्वेष  किसी  का अहित  करने   की भावना या किसी का  अहित  होने का  भाव भी  हमारी  सफलता  में  बहुत बड़ी  बाधा  होता   है। अक्सर  लोग  मानते  हैं की  जितने  भी बड़े  सफल व्यक्ति  हैं।  उनकी  सफलता  के  पीछे  छल -कपट   की  बड़ी  भूमिका  होती  है परन्तु यह  बहुत  ही  गलत  सोच  ह। अपने मन के  खोट  हम  सवयं से  तो  छिपा लेतें हैं  परन्तु  उस  सर्वशक्तिमान  को सब  ज्ञात  होता  है।मनचाही  सफलता  का स्वाद  चखने  के लिए मेहनत इच्छाशक्ति  जितनी  अवयशक  है।उतना  ही  जीवन  का दूसरा  पहलू   सीधा – सच्चा  सरल  रास्ता निर्मलता   व्  निर्द्वेश्ता  भी  अवयकश  है।
                                    ''  जिस दिल में मॊहब्बत होती है ''
                                                                 
rose-flower-9बस यूँ ही मुस्कराता है
गुनगुनाता है ,मुस्कराहटें लुटाता है।
मोहब्ब्तों में सब सुंदर हो जाता है ,
मोहब्ब्तों  में इंसान खुदा  हो जाताहै  
Lovely Rainbow Rose Pics
मोहब्बतों जिन दिलों में होती हैं
उन चेहरों कि रौनके ही ख़ास होती है ,
दुनियाँ को देखने कि उनकी निगाहें भी ख़ास होती हैं
आत्मिक सौन्दर्य से परिपूर्ण ,
वह  दिल नहीं मन्दिर होता है।
प्रेम का समुन्दर लिए
इतराता इठलाता अधरों पर गीत बन गुनगुनाता है।
  प्रेम ,
बस यूँ ही मुस्कराता है ,
मीठी कशिश ,अनकहे शब्दों में सब कह जाता ,
  प्रेम ,
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तपती दोपहरी में वृक्ष कि छाया 'संगीत में सुरों कि तरह
हवा में सुगंध कि तरह विलीन हो जाता है प्रेम ,
स्व्यं के लिए तो सभी जीते  है ,
जो दूसरों के  जीने के लिए जी जाता है ,
वही है, सच्चा प्रेम।
                                            '''नया  जमाना  आएगा ''

अभी तक जितने नेता हुए , वह नेता जनता के वोटों के आधार पर चुनाव में जीतकर , भिन्न -भिन्न पदो पर मंत्री बन उस पद के कार्यक्षेत्र  कि अर्थव्यवस्था  का कार्य-भर सँभालते  हुए , राजा  बन राज्य करते आए।

आज़ दिन तक सभी नेता देश व् समाज कि भलाई व् सुरक्षा से अधिक  सवयं कि भलाई पर अधिक धयान देते आए हैं।    
जनता कि आवश्यक आवश्कताओं को पूरा करने कि बजाये अपनी आर्थिक  उन्नति पर विशेष ध्यान केन्द्रित करते आये हैं।
मंत्री बनते ही नेताओं के तेवर बदल जाते हैं। वेह मंत्री जो देश व् समाज कि रक्षा के लिए होता है।  सबसे पहले उसकी सुरक्षा के कड़े इन्तजाम हो जाते हैं ,फिर चाहे देश कि सुरक्षा ,उसके लिए जान कि बाजी लगते हैं , हमारे सुरक्षा अधकारी ,देश कि पुलिस और देश का सैनिक।

दूसरी तरफ देश का महा नायक ''अरविन्द केजरीवाल जी ''अपनी सुरक्षा के इंतजामों को ठुकरा कर एक आम  आदमी कि तरह रहना चाहा , यह उनकी महानता को दर्शाता है ,   शायद इसी को  कहते हैं ,


'' सिंपल लिविंग हाई थिंकिंग  ''    पहली बार पार्टी वाद से हटकर देश कि  आम जनता ने
आम पार्टी से एक हीरा ढूंढ निकला है।
अरविंदजी ने भ्रष्टाचार के दल-दल को साफ़  करने का जो  संकल्प लिया है ,उस  संकल्प में  देश आम जनता को  हम सब को मिलकर चलना है  भ्रष्टाचार कि  जड़े  बहुत गहरी  हैं जिसके  लिए हम सब भारतवासियों को
अरविन्द जी कि ताकत बनना है।
 भ्रष्टाचार  के बीजों को पनपने  से रोकना है।
यूँ तो अन्ना जी ही  लड़ाई के महानायक हैं  अन्नाजी  के संकल्पों  व् अनशन  ने भ्रष्टाचार कि जड़ो को पहले से ही हिला दिया है और खोकला कर दिया था ,  मन कि आज अरविन्द जी ने आज अपनी एक अलग पार्टी बना ली है ,परन्तु अन्ना जी का  आशिर्वाद आज भी अरविन्द जी के साथ है।

परन्तु मेरा मानना है कि अरविन्द जी का अलग से पार्टी बनाना आवश्यक भी था , क्योंकि कहते हैं न गंदगी को साफ़ करने के लिए गंदगी में उतरना पड़ता है।
आज राजनीती  बड़े दल -दल का रूप ले चुकी  है , भगवान् करे  अरविन्द जी दल -दल में फंसने से बचे , अपना और  अपने सहयोगियों  का सारा  ध्यान  भ्रष्टाचार के दल -दल को साफ़  करने  में लगवाएं।

भ्रष्टाचार एक गंदे गहरे घिनौने  व्  स्वार्थ  के अंधे कुँए ,  कि तरह है।    जिसका सबसे  अधिक नुकसान मध्यमवर्गीय  आम जनता को  उठाना पड़ता है , तरक्की तो सिर्फ उसी कि होती है ,जो धनवान  है ,,ज्ञान  कि तो कोई कीमत ही नही।

उम्मीद है कि ,आम पार्टी  समाज कि तस्वीर  बदलने में ,निरंतर  कार्य-शील  रहेगी।
भगवान करे कि  अन्ना जी का अनशन  व्यर्थ न जाए ,आम पार्टी के आम नायक अरविन्द जी निरन्तर कार्य शील रहें , अरविन्द जी को किसी कि सुरक्षा कि आवश्यकता ही न पड़े।   वैसे भी  कहते है न   '' ,जाको राखे साईयाँ मार सके न कोई। ''
एक  सुंदर  सभ्य  सुसंस्कृत  समाज कि स्थापना  हो , देश कि तक़दीर और तस्वीर  दोनों बदले। बस यही चाह है।
        नया   जमाना   आएगा  , नया  जमाना  आएगा। 
                                                         '' अग्निकुंड ''   
                                                                                                                      

  क्रोध यानि उत्तेजना ,क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।
 क्रोध करने वाला स्वयं के लिए अग्नि-कुंड बनाता है ,और उस अग्नि में सवयं को धीरे -धीरे जलाता है। कुछ लोग मानते हैं
 कि ,क्रोध उनका हथियार है ,सब उनसे डरते हैं ,उनकी ईज्जत करते हैं।
परन्तु क्रोधी स्व्भाव का व्यक्ति यह नहीं जानता कि जो लोग उसके  सामने आँखे नीची करके बात करते हैं ,जी -हजूरी करते हैं वह सब दिखावा है
। वास्तव में वह  क्रोधी व्यक्ति कि इज्ज़त नहीं करते ,पीठ पीछे
 क्रोधी व्यक्ति को खडूस ,नकचढ़ा ,एटमबम ,इत्यादि ना जाने क्या -क्या नाम   देते है। इसके विपरीत सीधे सरल लोगों के प्रति सम भाव रखते हैं।

आज के मानव ने सवयं के आगे पीछे बहुत  कूड़ा -करकट इ क्क्ठा कर रखा है। सवयं के बारे में सोचने का आज के मानव के  पास समय ही नहीं है।  वास्तव में मानव को यह ज्ञात ही नहीं या यूँ कहिए कि ,उसे ज्ञात ही नहीं कि वास्तव में वह चाहता क्या है। 
क्यों कहाँ कैसे किसलिए  वह जी रहा है
। सामाजिक क्रिया -कलापों में सवयं को बुरी तरह जकड़ कर रखा है। बस करना है  ,चाहे रास्ता पतन कि और क्यों न ले जाए।  
 क्योंकि सब चल रहे हैं इसलिए मुझे भी चलना है जहां तक और लोग पहुंचे आज के मानव को भी पहुँचना ही है वह तरक्की करना चाहता है परन्तु सही ढंग और सही रास्ता नहीं मालूम नहीं ,किसी भी तरह मंजिल कि और बड़े जा रहा है मंजिल मिले या न मिले। 

तरक्की पाने के लिए आज का मानव सवयं को ईर्ष्या ,द्वेष संशय ,क्रोध लालच वहम इत्ययादी। 

  नकारात्मक विचारों के दल-दल में फंसा रखा है। 
जब हमारे मन कि नहीं होती तब हम धैर्य खो देते है। 
 और फिर हमारे मन में क्रोध उत्त्पन होता है। क्रोध कि अवस्था में क्रोध करने वाले को कुछ नहीं सूझता ,वेह जल रहा होता है ,क्रोध कि अग्नि में ,उसके लिए उचित -अनुचित में भेद कर पाना मुश्किल हो जाता है।

क्रोधी व्यक्ति के मन में नकारात्मक विचारों कि परत च ड़ी होती है।कि उसे सवयं का भला  बुरा नहीं दिखाए देता क्रोधी व्यक्ति का कहना होता है कि ,अमुक व्यक्ति ने मेरा बुरा कर दिया। 
वास्तव में हमारी सोच ही हमारे क्रोध का कारन होती है ,कोई किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। 
 हो सकता है कि,किसी वयक्ति के विचार हमारे विचारो से मेल न खाते हों वेह हमारे विचारो के विपरीत परिस्थियाँ उत्त्पन करता हो ,  ऐसे अवस्था में हमें सवयम को समझाना चाहिए। 

किसी दूसरे को बदलना या उसके विचार और वयव्हार से प्रभावित होकर ,क्रोध के वशीभूत होकर हम सवयं का ही नुकसान करते हैं।,जो कि उचित नहीं है। किसी का बुरा आचरण हमें प्रभावित करता है तो हम कमज़ोर।
क्रोध कई बुरे विचारों का जन्मदाता है बुरे विचार किसी का बुरा सोचना, बुरा बोलना,. किसी के प्रति क्रोध करके हम सोचते हैं ,कि हैम उसे सबक सिखा रहे हैं यह हमें भी नहीं समझ नहीं आता वास्तव में तो वेह क्रोध हमें ही सबक सिखा रहा होता है।


हमारा मानसिक सन्तुलन बिगाड़ रक्त-चाप बड़ा देता है।   क्रोध के वशीभूत होकर हम कई नकारात्मक विचारो  का ऐसा जाल बुन लेते है  ,और वह विचार  हमें  अच्छासोचने ही नहीं देते  ,नई -नई विधियाँ  नए -नए विचार  नकारात्मक क्रोध कि  अवस्था में हमारे मन में पनपने लगते हैं
जिन्हे हम  अपना हथियार  समझ रहे होते है

क्रोधी वयक्ति इस जाल में इतनी बुरी तरह फँसा होता है कि वेह उस जाल से निकलना भी चाहता तो निकल नहीं पाता  वह उसके स्व्भाव  का एक हिस्सा  बन जाता है।

अतः उचित यही है कि  क्रोध रूपी अग्नि  को अपने अंदर पनपने ही न दें। क्रोध रुपी हथियार  का जिसका हम स्वयं कि सुरक्षा के लिए उपयोग करते हैं  वह हथियार हमारी स्वयं  कि भी हिंसा कर रहा होता है।

कोई भी  हथियार हिंसा का ही प्रतीक है।  वह हथियार  जो हमें दुश्मनो  से बचने के काम आता है वह हमारे भी हिंसा कर सकता है,  हथियार हिंसा का ही  प्रतीक है।

                 
           ''क्रोध कि अग्नि जो जलाये ,पहले पहल वह  जले दूजे को जलाये ,स्वयं  बुरे विचारों के जाल में फँसे''. 
                                
                                           

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...