गीली मिट्टी



चाक चले जब गीली मिट्टी
लेती ज्यूं आकार प्रिए
नव सृजन की नव रचना
कोमल,प्यारी नन्हीं कलियां
मन हर्षित होकर अपना
सुन्दर जीवन और शुभ सपना।

चाक चले जब गीली मिट्टी
कच्ची मिट्टी का नव आकार
व्याकुल मन के सपने हजार
देने को नव रंगो का संसार
आतुर हो रहा चित्रकार।

चाक चले जब गीली मिट्टी
लेती ज्यों नव आकार
दुनियां में पहचान बनेगी
मेरी कृति महान बनेगी
दूंगा मैं तुझे दिव्य संस्कार
उच्च आदर्शों का व्यवहार।


चाक चले जब गीली मिट्टी
लेती ज्यों नव आकार
अग्नि परीक्षाओं का संसार
ठोक पीट का व्यवहार
तू संवरेगा तू निखरेगा
चाक चले जब गीली मिट्टी
लेती ज्यों नव आकार










कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...