ये कैसा किरदार

व्याधियां हंसने लगी
सो रहे दिन रात
प्रदत पंक्तियां......

ये कैसा किरदार
कैद होकर पिंजरों
में आज, मनुष्य बैठा
बेबस लाचार आज
संक्रमण का साम्राज्य

जीवों संग खिलवाड़
शोधों का दुरुपयोग
भोगों अपने ही
कर्मो का प्रकोप

व्याधियां हंसने लगी
सो रहे दिन - रात

व्याधियों ने लिए
अब पांव पसार
मच रही संक्रमण की
हा- हा कार

प्राण घातक
बनकर मनुष्यों के
प्राणों की आफ़त
उपद्रवी राक्षस

त्राहि -त्राहि करता
जन-जन आज
छोड़ कर सब काम - काज़
मनुष्य बेबस लाचार
सावधानी ही,
सामयिक उपचार

कारण कोई भी हो
घरों में एकजुट होने को
मजबूर हैं सब जन आज
पिंजरों में कैदी जीवन 
दर्द ए एहसास आज ।






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