*मार्गदर्शक की भूमिका *

 सकारात्मक संकल्प
 के दिए का प्रकाश का पुंज
 होता है एक कवि ।

 निराशा में आशा की
 मशाल लेकर चलता है
 एक कवि
 उम्मीद की नयी किरणें
 सकारात्मक दिव्य प्रकाश
 के दिए जलाते चलो

माना की तूफ़ान तेज है
तिनका -तिनका बिखरो मत
उन तिनकों से हौसलों की
बुलन्द ढाल बनाते चलो

माना की घनघोर अंधेरी रात है
नाकारत्मक वृत्तियों से लड़ते हुए
सकारात्मकता का चापू चलाते चलो

संघर्ष के इस दौर में
हौसलों के महल बनाते चलो
राह में आने वालों के लिए
मार्गदर्शक की भूमिका निभाते चलो।



*ज़रा सम्भल कर ........



  बेटा :- अपनी मां से ,मां अभी चार दिन पहले ही मैंने अपने मित्र के घर जाकर ,उसका पालतू तोता जो पिंजरे में कैद था ,पिंजरा खोलकर खुले आकाश में उड़वा दिया था। 

मां जब आप छोटे थे ,तभी भी क्या कुछ ऐसा हुआ था ,की आप लोगों को घरों में कैद होकर बैठना पड़ा था , मां बेटे से नहीं बेटा हमारे जीवन काल में ऐसा कभी नहीं हुआ बेटा ।

बेटा :- मनुष्य पहले तो घर से निकला था दो रोटी कमाने के लिए ,लेकिन चलते - चलते भागने लगा ,फिर एक समय ऐसा आया मनुष्य भागते -भागते एक दूसरे की जान को परवाह किए बिना एक दूसरे को धक्के देकर एक दूसरे को चोट पहुंचाने लगा ।
  
 फिर समय बीतने के साथ -साथ मनुष्य स्वयं को धरती का भगवान समझने लगा ।
आसमान में उड़ने लगा ,अंतरिक्ष की यात्रा चांद की सतह तक भी पहुंच गया मनुष्य ।
यूं तो कोई विचित्र बात नहीं थी यह ,क्योंकि मनुष्य धरती पर सबसे बुद्धिमान प्राणी है ,वास्तव में यह धरती मनुष्यो के लिए ही है ,प्रकृति में हम मनुष्यों के पालन - पोषण आधि -व्याधियों की समस्त व्यवस्था है ।
उस पर भी मनुष्य दिमाग़ ने जीव - जंतुओं पर शोध करने आरम्भ कर दिए ,पशुओं को जंतुओं का भोजन करने लगा ।
 किसी प्राणी का भक्षण के उसे अपना भोजन बनाना कितना बड़ा अपराध है,मनुष्य ना जाने क्या-क्या अपराध करने लगा ।
 कई लोगों ने तो ऐसे जीवों पर शोध कर डाला ,जो स्वयं ही मनुष्यों के प्राणों के लिए घातक हथियार बन गए । 
 बेटा यह जो समय हम देख रहे हैं ना की आज मनुष्य घरों में कैद है और ,वो जहरीले जीव धरती पर एक व्याधि बनकर फैल गए हैं।
 सुनो बेटा, आवयश्कता से अधिक छेड़खानी भी मनुष्यों को आफत में डाल देती है।
 जो जानवर जंगलों में कैद रहते थे वो जानवर आज सड़कों पर आजाद घूम रहे हैं ,और हम मनुष्य घरों में कैद हैं।
 मां क्या हम कभी घर से बाहर निकल पाएंगे ।
मां अपने बेटे के सिर पर हाथ फेरते हुए बेटा ,सब ठीक हो जाएगा ,कुछ अच्छी शक्तियां हैं इस धरती पर जो उस दिव्य शक्ति से प्रार्थना कर इन व्याधियों को अंत करने में जरूर कामयाब होंगे ।
 बेटा मैं तुम्हें यही नसीहत देना चाहूंगी ,की तरह जिन्दगी में कभी भी किसी भी चीज का आवयश्कता से अधिक शोध और दुरुपयोग नहीं करना ।
बेटा प्रकृति यह धरती हम मनुष्यों के लिए ही है परमात्मा ने यह धरती हम मनुष्यो को रहने के लिए दी है, इसे संवारना इसे सुधारना हमारा कर्तव्य है ।
मनुष्य च

* वसीयत*

 
 मुकेश मैंने तुम्हें पहले भी कहा था की मैं नहीं जाऊंगा उनके घर.....
उनका मेरा कोई रिश्ता नहीं।
एक मित्र दूसरे मित्र को समझाते हुए ,देख पहला मित्र मुकेश, दूसरा के नाम मोहित ।

मोहित ,अपने मित्र मुकेश से सुन मित्र रिश्ते कभी नहीं टूटते , एक ना एक दिन तो उन्हें उनके घर जाना ही पड़ेगा ।


मुकेश ,क्यों जाना पड़ेगा ,उन्होंने कहा था तुम जा सकते हो ,हां हमारा रिश्ता आज से ख़तम।

मोहित :- सुनो मुकेश कई बार परिस्थितियां ऐसी होती हैं ,की कुछ ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं ।

मुकेश कोई भी रिश्ता अपने बच्चों से बड़ा नहीं होता

मोहित :- नहीं मुकेश तुम गलत सोच रहे हो ,अभी कुछ दिन पहले मुझे तुम्हारे बाबूजी मिले थे , उन्होंने मेरे साथ बहुत सारी बातें की थीं।

तभी तुम्हारे बाबूजी ने मुझे बताया की उन्होंने जो भी फैंसला लिया , तुम्हें स्वावलंबी बनाने के लिए लिया था ।
उन्होंने मुझे बताया की वो धृष्टराष्ट्र नहीं बनना चाहते थे , पुत्र मोह में अंधा होकर वो तुम्हारा आज तो संवार देते परंतु ,परंतु कल के लिए तुम मोहताज बन जाते ।

मुकेश तुम्हारे पिताजी ने तुम्हे अपनी वसीयत में से हिस्सा इसीलिए नहीं दिया था उस वक्त की उस समय तुम धन के लोभ में अंधे थे ।
अब तुम ही सोचो मुकेश अगर उस समय तुम्हे वसीयत में से हिस्सा मिल गया होता तो तुम आज यहां नहीं होते जहां तुम आज हो ।

  आज तुम स्वावलंबी हो ,और एक जिम्मेदार इंसान हो ,सिर्फ अपने पिताजी के कारण ,अगर उस समय उनकी वसीयत तुम्हें मिल जाती तो तुम उतने में हो सीमित रह जाते, तुम सोचते बहुत है तुम्हारे पास मेहनत क्यों करनी ।
जबकि उनकी वसीयत आज भी तुम्हारे ही नाम हैं ।

रोहित तुम्हारे पिताजी अस्पताल में हैं ,उनकी तबीयत ज्यादा ठीक नहीं है कमजोरी भी बहुत है ।
डाक्टर का भी कहना है की अब इनकी सेवा करो और इन्हे खुश रखो ,दवाइयों से ज्यादा दुआएं काम आती हैं ।
चलो मुकेश, बेटा ना सही इंसानियत के नाते चलो ,मिल आते हैं उस इंसान से ।
  मुकेश और मोहित अस्पताल पहुंच गए थे ,नर्स और स्टाफ मुकेश को देखकर सिर वार्ड नं 5 में जो हैं वो आपके पिताजी हैं ,मुकेश हां में सिर हिलाते हुए ।
 मुकेश और मोहित बेड के पास खड़े थे ,पिताजी की आंखे बंद थीं शायद नींद में थे
तभी हल्की सी आहट हुई पिताजी ने आंखे खोली ,सामने नरस थी ,सिर आपकी दवाइयों का समय हो गया है ।
 क्योंकि मुकेश अब बहुत बड़ा बिजनेस मेन बन गया था ,शहर के सभी लोग उसे जानने लगे थे , नर्स बाबूजी ये मुकेश जी आपके अपने बेटे हैं आपने कभी बताया नहीं , बहुत अच्छे इंसान हैं शहर में इनका बहुत नाम हैं ,आप किस्मत वाले हैं जो मुकेश जी जैसे इंसान के आप पिताजी हैं ।
मुकेश ,मोहित ,और पिताजी सब शून्य थे सबकी आंखों में अपनत्व और स्नेह की नमी और स्वाबलंबन का गर्व था।

स्वरचित :-
ऋतु असूजा ऋषिकेश




* बरकत का चूल्हा *



 *हर घर में रोज जले बरकत का चूल्हा
 प्रेम ,अपनत्व का सांझा चूल्हा **

 मां तुम जमा लो चूल्हा
 मैं तुम्हें ला दूंगा लकड़ी
 अग्नि के तेज से तपा लो चूल्हा,
 भूख लगी है ,बड़े जोर की
 तुम मुझे बना कर देना
 नरम और गरम रोटी।
 मां की ममता के ताप से
 मन को जो मिलेगी संतुष्टि 
 उससे बड़ी ना होगी कोई
 खुशी कहीं ।
 चूल्हे की ताप में जब पकता
 भोजन महक जाता सारा घर
* हर घर में रोज जले बरकत
 का चूल्हा ,प्रेम प्यार का सांझा चूल्हा *



*अग्नि जीवन आधार*

 जीवन का आधार अग्नि
 भोजन का सार अग्नि
 जीवन में , शुभ --लाभ
 पवान ,पवित्र,पूजनीय अग्नि
 ज्योति अग्नि,हवन अग्नि
नकारात्मकता को मिटाती
दिव्य सकारात्मक अग्नि

 सूर्य का तेज भी अग्नि
 जिसके तेज से धरती पर 
 मनुष्य सभ्यता पनपती
 अग्नि विहीन ना धरती
 का अस्तित्व ।

 अग्नि के रूप अनेक 
 प्रत्येक प्राणी में जीवन
 बनकर रहती अग्नि।

 प्रकाश का स्वरूप अग्नि 
 ज्ञान की अग्नि,विवेक की अग्नि
 तन को जीवन देती जठराग्नि 
अग्नि का संतुलन भी आव्यशक
ज्वलंत ,जीवन , अग्नि स्वयं प्रभा ।


  

मैं वसुंधरा

* मैं वसुन्धरा*
    ऐ मानव, सुन मेरी करुण पुकार
 मेरा दम घुट रहा है ,हवाओं में फैला है जहर
 ये कैसी हाहाकार ये कैसा कहर,
ऐ मानव,
 तुमने मेरे द्वारा दी गई स्वतंत्रता का किया
 बहुत दुरुपयोग किया,

 बस - बस अब और नहीं अत्याचार......
 बहुत दूषित किया तुमने मेरे आंचल को
 बहुत आरियां चलाईं ,छलनी किया मेरी छाती को
 मेरे धैर्य मेरी सहनशीलता का बहुत मज़क उड़ाया ,
 बस अब और नहीं........
 ऐ मानव, तुमने तो मेरी ही अस्तित्व को
खतरे में डाल दिया ,मेरी समृद्धि भी विपदा में पड़ी
ऐ मानव, दिखावे के पौधारोपण से ना मैं समृद्ध होने वाली ,तुमने तो मेरी जड़ों को ही जहरीला किया।
ऐ मानव , अब मुझ वसुन्धरा को स्वयं ही करना होगा स्वयं का उद्धार .....
ऐ मानव सुन मेरी करुण पुकार,
कर मुझ पर उपकार बन्द कर अपने घरों के द्वार
अब तक मुझे स्वयं ही करना होगा स्वयं का उद्धार ।



विधा :- नवगीत प्रदत पंक्तियां

ऊर्मिया घूंघट उठाकर
फिर मचलती आ रही है


 मन की आंखों के घूंघट से
 नयनों में पलकों के पर्दों से
 मेरे दिल के दरवाजों से
 मेरा सपना कहता है मुझसे

 जैसे सीप में मोती
 नयनों में ज्योति 
घूंघट की आड़ में
पगली क्यों रोती

तारों की बारात है सजी
चन्दा को चांदनी जमीं पर उतरी
सपनों के सच होने में अब ना होगी देरी
देख उर्मीया घूंघट उठाकर
फिर मचलती आ रही हैं ।

स्वरचित, ऋतु असूजा







युग परिवर्तन


 निसंदेह युग परिवर्तन ने
दी है दस्तक ,चार पहियों
की रफ्तार थम गई है ।

 बहाना चाहे कोई भी हो
घरों में रिश्ते जीवंत हो रहे हैं
जीवन कल भी था जीवन आज
भी है, बचपन संस्कारित हो रहा है ।

ना जाने इससे पहले क्या कर
रहे थे,भाग रहे थे,जी कल भी
रहे थे जी आज भी रहे हैं
 क्या ज्यादा पाने के लालच में
अपना आज भी दांव पर लगा
रहे थे, कल जो देखा नहीं उन
खुशियों की खातिर अपना आज
भी गंवा रहे थे ।
आज कारण चाहे कोई भी हो
आज में जी रहे हैं ,खुश हैं की
सब साथ में हंस बोल रहे हैं ।
कल जीने की खातिर नए सपने
संजो रहे हैं ,सम्भल कर चल रहे हैं ।




ये कैसा किरदार

व्याधियां हंसने लगी
सो रहे दिन रात
प्रदत पंक्तियां......

ये कैसा किरदार
कैद होकर पिंजरों
में आज, मनुष्य बैठा
बेबस लाचार आज
संक्रमण का साम्राज्य

जीवों संग खिलवाड़
शोधों का दुरुपयोग
भोगों अपने ही
कर्मो का प्रकोप

व्याधियां हंसने लगी
सो रहे दिन - रात

व्याधियों ने लिए
अब पांव पसार
मच रही संक्रमण की
हा- हा कार

प्राण घातक
बनकर मनुष्यों के
प्राणों की आफ़त
उपद्रवी राक्षस

त्राहि -त्राहि करता
जन-जन आज
छोड़ कर सब काम - काज़
मनुष्य बेबस लाचार
सावधानी ही,
सामयिक उपचार

कारण कोई भी हो
घरों में एकजुट होने को
मजबूर हैं सब जन आज
पिंजरों में कैदी जीवन 
दर्द ए एहसास आज ।






शोधों पर शोध

शोधों पर शोध
कांपी धरा रौद्र
रूप भर क्रोध।

हवाओं में फैला जहर
संसार पर बनकर कहर।

विष संग खेला
अब विष ने आकर
तुझको ही घेरा ।

जीने के शौंक में
मौत के आशियाने
बना लिए, वाह! मानव
तूमने अपने जीने के लिए
मरने के ठिकाने बना लिए ।






यूं कश्ती भी भूल गई है
कागज वाली आज ठिकाना

ना जाने क्यों मेरा दिल
गुनगुनाना चाहता है

कोई भुला हुआ तराना
भूल कर अपने घर का
पता पुराना, ढूंढ़ रहा हूं
गुजरा हुआ जमाना ।

धुंधली सी आंखों में
यादों का यतीमखाना

जब लौटकर नहीं आने
वाला गुजरा जमाना
फिर क्यों यादों में रहता है
वो कागज़ की कश्ती और
बारिश का आना ।










* जैसी आज्ञा *

 
 आज हमारे पितामह आने वाले हैं !
       जाने आज  क्या घोषणा करेंगे ।
       
     जब भी आते हैं ,पितामह !
 कुछ ऐसा ऐलान कर जाते हैं ,पत्थर को लकीर ... एक दिन कहेंगे सांस लेना छोड़ दो आक्सीजन की कमी हो रही है,वेंटिल्टर में कमी हो रही है ,तब बताओ क्या करेंगें ,सांस लेना छोड़ देंगें।

  पितामह आज भी आये ,बोले घर से बाहर नहीं निकलना ,बाहर कोई राक्षस घूम रहा है ,बाहर निकलोगे तो वो राक्षस तुम्हें खा जायेगा, ये राक्षस आया कहां से ,पितामह कुछ तो करो।
 अब तो किसी अर्जुन का इंतजार आए , एकलव्य का अंगूठा कट गया , कर्ण जैसे दानवीर भी अब नहीं रहे ,सब तस्वीर चाहते हैं ।
  अम्मा इन पितामह में गजब का तेज है ,वो जब - जब टेलीविजन पर आकर कुछ बोलते हैं तब सब प्रजवासी बड़े धैर्य पूर्वक उनकी बातों को सुनते हैं ।

कितना सोते हो राजू तुम, इतना तो
कुंभकर्ण भी नहीं सोता था ।

राजू आपनी अम्मा से ,लगता है ,आपने रामायण कभी ढंग से नहीं देखी।

अम्मा ,अब तुम हमें रामायण के बारे में बताओगे जितनी रामायण, हमने देखी और सुनी है ,ना बेटा ,उतनी तो जिन्दगी में किसी ने भी नहीं सुनी होगी।
तुम्हारी नानी, हमें दिन रात रामायण के चरित्रों के बारे में बताती रहती थी ।
मुझे तो वो सीता कहती थीं इसलिए उन्होंने मेरा नाम सिया रखा था।

अच्छा अम्मा ,तो आप सीता माता और पिताजी हमारे राम ।

मां फिर तो मैं आपका लव हुआ ,और छोटी बहन कुशा.......

अम्मा हो..... अम्मा आप अपने को मंदोदरी समझती हो, और पापा (रावण)  ,मां जोर से चिल्लाई ,शर्म करो ,कलयुग भयंकर कलयुग आ गया है ।

मां मैंने क्या गलत कहा ,जब आपने मुझे कुंभकर्ण कहा तभी तो  मैंने कहा।

चुप हो जा मूर्ख।
अच्छा अम्मा में उठ जाता हूं ,फिर भूख लगेगी और आपको खाना बनाना पड़ेगा ।
लेकिन कुंभकर्ण तो साल में एक ही बार उठता था ,फिर बहुत सारा खाना खाता था ,और सो जाता था।

राजू व्यंग करते हुए, अम्मा मैं इसीलिए तो ज्यादा सोता हूं ,जितना कम सोऊंगा उतनी भूख कम लगेगी ।
और आप मेरे हिस्से का भोजन भूखों को खिला देना ।
राजा बेटा, मैंने तुम्हारा नाम राजा रखा था ,क्योंकि हम चाहते थे तुम राजा की तरह रहो ,राजा की तरह अपने कर्तव्यों का पालन करो ,आलस में अपना समय व्यर्थ  न करो ।
इस सुन्दर समाज की स्थापना का भार तुम्हारे कांधो पर है पुत्र ।
जैसा तुम व्यवहार करोगे कर्म करोगे वैसा ही समाज निर्माण होगा ।
राजा जैसी आज्ञा माता जी, आगे से आप हमें कुंभकर्ण कहने की गलती मत करना ।
हां पुत्र ,हम इस अपराध की क्षमा मांगते हैं ,तुम हमें जो सजा देना चाहो ,दे सकते हो ।

नहीं माता जी ,ऐसा कैसे हो सकता है आप हमारी माता है आपको हमें कुछ भी कहने का अधिकार है
हे माता , आप अपने राजा बेटे के लिए स्वादिष्ट सा भोजन परोसिए हम अभी आपकी सेवा में हाजिर होते हैं ।

हमारा क्या है ,हम तो समाज के लिए हैं ,समाज की भलाई आपकी आज्ञा हमारा तो बस यही धर्म है।


* वक़्त किसने देखा *

 पौता :-  अपनी दादी से ,

दादी आप आजकल मंदिर नहीं जाते , पहले तो आप मंदिर जाए बिना खाने को हाथ भी नहीं लगाते थे।

हां बिल्कुल सही कह रहे हो बेटा ,अपनी पैंसठ साल  के जीवनकाल में ,मैंने ऐसा कभी नहीं देखा की देशभर के समस्त मंदिर धार्मिक स्थल बंद हों ।

हे ,भगवान ,कैसा समय आ गया

हे राम, हे राम ,कैसा कलयुग आ गया ।

जिन्दगी में पहली बार हुआ की पूरा विश्व एक अदृश्य शक्ति जिसे तुम सब वाइरस कह रहे हो ,बाहर घूम रहा है,और हम सब जनता लोग घरों के बिलों में चूहे की तरह घुसे पड़े हैं ,डर के मारे .......
हे भगवान ,कैसा घोर कलयुग आ गया है !
हे,भगवान , हम सब के पापों को क्षमा करो ,और कोई युक्ति बताओ जिससे हम इस महामारी के राक्षस का अंत कर सकें।

दादी सच कह रही हो ,वैज्ञानिकों ने बहुत खोजें की हैं, इसपर पर भी शोध जारी है ।

दादी:- पौते से आ बेटा मेरे पास बैठ ,आ हम मिलकर अपने इसी घर को मंदिर सा पवित्र बनाते हैं ।
बेटा मेरा रोज मंदिर जाना ,मुझे एक नियम में बांध कर रखता था, जिससे कुछ क्षण तो मेरा मन भगवान में स्थिर होता था।
लेकिन अब समय आ गया है, घर को ही पवित्र बनाने का ....
बहुत भाग लिए बाहर की दुनियां में ......
अब समय है,अंदर की दुनियां में शोध करने की और सकारात्मक सोच के दिए जलाने की ।

आओ बेटा थोड़ा ध्यान लगाएं और अन्तर्मन के मन्दिर की ज्योत प्रकाशित कर जन-जन के जीवन में ज्ञान के प्रकाश के मन्दिर को प्रकाशित करें।

बेटा आगे बड़ता है,और वक़्त रहते वक़्त के साथ जीने में ही भलाई है।
लेकिन वक़्त ,वक़्त बदलता है,तो  ना जाने अपने साथ-साथ बहुत कुछ बदल जाता है ।


* सतर्कता *


      हम सब समझते हैं,  डाक्टर साहब!
 आप लोग हमारे साथ इतना गंदा व्यवहार क्यों करते हैं ।

    हम लोग गरीब हैं ना इसलिए आप हमारे साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं ,डाक्टर साहब आप बड़े लोग हैं,पड़े-लिखे हैं ।

     इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं की हमारी कोई इज्जत नहीं ।

   डाक्टर साहब!        इससे पहले कुछ कहते डाक्टर के क्लीनिक में काम करने वाला एक कर्मचारी आ गया
वह उस मरीज को पकड़ कर बाहर ले गया ।

     कर्मचारी मरीज से,  तुम्हें डाक्टर साहब से इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी वो बड़े हैं ,हम लोग भी उनसे ऊंची आवाज में बात नहीं कर सकते ।

    मरीज,   अस्पताल में काम करने वाले कर्मचारी से तुम्हें जितनी जी हजूरी करनी है करो ,तुम तो करोगे क्योंकि तुम उनके यहां काम करते हो ,अगर कुछ कहोगे तो नौकरी से निकाल दिए जाओगे ।
 तुम्हें उनका चमचा बनना है तुम बनो ,हम क्यों बने, इतनी फीस देते हैं हम लोग डाक्टर को और वो कहते हैं दूर बैठो ,जल्दी बोलो ज्यादा मत बोलो सफाई का ध्यान रखो ।

   मरीज हम लोग गरीब हैं ,परंतु अछूत नहीं हमारे पास अच्छे कपड़े नहीं तो हम क्या करें ।

  कर्मचारी ,मरीज से, बात अच्छे कपड़ों की नहीं ,बात साफ सफाई की है ,दो जोड़ी कपड़ों में भी इंसान साफ कपड़े तो पहन सकता है ।

    ये शोर कैसा बाहर से आवाजें आ रही थीं सभी की नजरें बाहर देखने लगी ।
एक औरत जोर - जोर से रो रही थी, किसी ने आकर बताया की उसकी पति की मृत्यु हो गई है ,सिर्फ चालीस साल का था ,कुछ दिन पहले उस औरत के ससुर की भी मृत्यु हो गई थी इसी बीमारी से और
वही बीमारी उसके पति को भी ही गई थी ,डॉक्टरों ने और सबने उसे बहुत समझाया था की बीमार व्यक्ति से दूर रहे लेकिन वो नहीं माना और आज देख लिया उस भी जान से हाथ धोना पड़ा ।

  मरीज ,  अस्पताल के कर्मचारी से ऐसी कौन सी महामारी आ गई है जो ऐसा हो रहा है ।

   डाक्टर:-  मरीज को समझाते हुए देखो भाई हमें तुमसे कोई तकलीफ़ नहीं है ,डाक्टर का तो फर्ज है मरीज का इलाज करना ।

  मैंने इसीलिए कहा था ,थोड़ी दूरी बना कर रखो इसमें तुम्हारा और हमारा और हम सब का तुम्हारे ,हमारे सबके परिवारों का फायदा होगा ।

  कहा जा रहा है सबसे पहले इस बीमारी से चीन के वुहान शहर में किसी एक की मृत्यु हुई और धीरे -धीरे यह बीमारी इतनी फैल गई कि इस बीमारी के संक्रमण से चीन में हजारों की संख्या में लोग मरने लगे ।
 फिर डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के शोधों द्वारा यह पता चला की यह बीमारी किसी वाइरस के संक्रमण से फैल रही है ,इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के संपर्क में जो भी आया उसे यह बीमारी हो गई ।
 और फिर दुनिया भर में इस वायरस के संक्रमण से कई लोग बीमार होने लगे सांस रुकने से मृत्यु ।

  शोधों से यह पाया गया जो लोग इस बीमारी से ग्रसित लोगों के संपर्क में नहीं आ रहे हैं ,वह सुरक्षित हैं । लेकिन इस वायरस के कण इतने सूक्ष्म हैं कि अगर संक्रमित व्यक्ति खांसते छींकते वक्त इधर-उधर गिर जाते है और उसके छूने से अन्य व्यक्ति भी संक्रमित हो जाता है ।
  और दूसरा ,इसलिए इस चेन को तोड़ना है ।
 इस संक्रमण से बचने का सबसे बेहतर इलाज संक्रमित व्यक्ति से दूरी बनाकर रखना ।

क्योंकि शुरुआत में पता नहीं चलता कि यह बीमारी  किस को है ,इसलिए इससे बचाव ही बेहतर इलाज है ।
 बात छुआ छूत की नहीं है ,बात बचाव की है ।
 लोगों से कम से कम मेलजोल यानि समाजिक दूरियां , दूरियां कुछ दिनों के लिए हैं जब तक यह बीमारी का संक्रमण ख़तम नहीं हो जाता ।
  आजकल सोशल मीडिया का समय है ,किसी से मिले बिना भी फोन पर बातचीत करके उनका हाल खैरियत पूछी जा सकती है।
 हाथों को , बार- बार धोना ,बाजार से जरूरी सामान लाकर उन्हें किसी बाहर से साफ करना ।

  मरीज:- डाक्टर से डाक्टर साहब ,मुझे माफ़ कर दीजिए ,मैंने पूरी बात जाने बिना आपको बुरा भला कह दिया ।

 आप लोग तो सच में भगवान हैं ,हम लोग जब घरों में सुरक्षित हैं ,आप लोग अपनी जान की परवाह किए बिना मरीजों का इलाज कर रहे हैं ,आप महान हैं डाक्टर साहब ,मुझे माफ़ कर दीजिएगा , मैं भी अपना फर्ज निभाऊंगा और लोगों को जागरूक करूंगा ।










*खुद्दारी *



"कहते हैं जान है तो जहान है "

        सुना है, बाहर कोई वाइरस घूम रहा है।
  किसी राक्षस की भांति वो हमें छूने मात्र से संक्रमित कर जायेगा ।

            हे भगवान  ये कैसी आपदा है ।
लोगों को कैद करके अब बहुत मज़ा आ रहा है।

   अरे भाई जानता के पसंदीदा मनोरंजन के प्रोग्राम जैसे,रामायण,महाभारत ,शक्तिमान,चाणक्य आदि  सब दूरदर्शन पर प्रसारित हो रहे हैं ।

 हम कोई बच्चे थोड़े हैं जो हमें बेहला रहे हो ।
 अरे मित्र कैसी बातें कर रहे हो तुम एक समझदार देश के नागरिक हो देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाओ ।

 जहां तक मुझे पता है तुम्हारे अंदर देशभक्ति के बहुत से गुण हैं ।
आज समय है ,अपनी देशभक्ति दिखाने का ।

 मित्र हमारे घर में जो साफ-सफाई का काम करती है ना मालती नाम है उसका ,उसके चार बच्चे सभी स्कूल जाते हैं ,और उसका पति मजदूरी करता है ,पता है कल वो हमारे घर आयी थी बहुत रो रही थी कह रही थी घर में सात लोग खाने वाले हैं,और कमाने वाला एक ,  मेरी कमाई से क्या होता है बच्चों की फीस और खर्चे भी पूरे नहीं हो पाते ,और मेरा पति वो तो जितना कमाता है, उससे ज्यादा की तो वो शराब ही पी जाता है ,कल मेरे पति ने मुझे बहुत मारा कह रहा था ,पैसे दे मुझे शराब पीनी है ।

  तुम बताओ मित्र ऐसे लोगों का क्या होगा ,माना कि सरकार इन लोगों को राशन दे रही है,कई लोग खाना बना कर भी बांट रहे हैं ,माना कि भूखे तो यह लोग नहीं रहेंगे ।

 मित्र इसके विपरीत एक और दर्दनीय दृश्य जो पर्दे के पीछे है जो दिखता नहीं और कोई उसे दिखाना भी नहीं चाहता वह दृश्य है कुछ खुद्दार लोगों का कुछ इज्जतदार लोगों का जो भूखे रह लेंगे परंतु किसी के सामने रोएंगे नहीं हाथ नहीं फैलाएंगे ।

   यह वर्ग है देश के मध्यम वर्गीय परिवार के लोग ये लोग बहुत खुद्दार होते हैं यह लोग दिल के बहुत अमीर होते हैं ।

 यह वर्ग अपने परिवार को अपनी हैसियत से ज्यादा अच्छा रहन-सहन देते हैं ,जो कमाते हैं ,वही खर्च करते हैं । इनके पास ज्यादा जमा पूंजी नहीं होती ।
कब तक खाएंगे यह लोग अपनी जेब से निकाल कर ये खुद्दार लोग किसी से मांगेंगे नहीं भूखे मर जाएंगे ,
 कुछ करना होगा मेरे मित्र इन खुद्दार लोगों के लिए जल्दी से जल्दी स्थिति को सुधार कर इन्हें काम पर लौट जाने देना होगा मेरे मित्र .........

*जिन्दगी को जीने के बहाने *

    " कुछ खोने के दर्द में

      कुछ पाने के बहाने मिल गए"

**जिन्दगी को जीने के बहाने मिल गए

मकान को घर बनाने के अफसाने मिल गए

धीमी रफ़्तार में चलने के ठिकाने मिल गए

थोड़ा आराम करने के दिन जो सयाने मिल गए

हंसने मुस्कराने के तराने मिल गए

बेवजह गुनगुनाने को गाने मिल गए

खेल-कूद मौज-मस्ती के मानों दिन 

वो बचपन के पुराने मिल गए 

एक दूजे संग सामंजस्य बिठाने के 

लिए रिश्तों को निभाने के लिए 

फुर्सत के पल एहसास ए तराने मिल गए 

किसी बहाने से ही सही ,जिन्दगी को 

जीने के बहाने मिल गए ।

जिन्दगी को जीने के बहाने मिल गए

      " इंसान को बैठना पड़ा घरों में  

    कैद होकर ,प्रकृति को लहलहाने 

             के बहाने मिल गए 

    वसुन्धरा को समृद्ध होने के

         वक़्त ए जमाने मिल गए              

     वायुमंडल में शुद्ध हवा के झौकों को 

         ठिकाने मिल गए "




* भारत की पहचान *



   *भारत मेरा  देश महान ,भारत माता की जय*


भारत मात्र क्षेत्रफल या क्या किसी सीमा का नाम  ही है ? 

 "भारत माता की जय " हम भारतीय अपने देश को माता का स्थान देते हैं ,क्योंकि माता का स्वरूप वसुंधरा की भांति सदैव अपनी संतानों के कर्म फलों का भार सहन करते हुए स्वयं को और अपनी संतानों को संभाले रहती है ,और कभी विचलित नहीं होती ।


  *भारत की पहचान भारत का अस्तित्व ,हम सब भारत के नागरिकों से हैं ,हम सब भारतीय भारत के नागरिकों से रहित, भारत देश मात्र क्षेत्रफल या सीमा ही बनकर रह जाएगा।


भारत की पहचान हैं , हम सवा सौ करोड़ देशवासी।

आप , मैं और हम सब के बिना भारत की पहचान है ।सिर्फ एक क्षेत्रफल है ।


किसी भी देश की संस्कृति ,वहां की सभ्यता ही वहां के नागरिक और नागरिकों के उच्च आदर्श ,कर्मों में कर्मठता ,ज्ञान ,विज्ञान और संस्कार ही उस देश की पहचान और सभ्यता का प्रतीक होते हैं।


  सभी भारतीय ,भारत के नागरिकों के द्वारा किए गए निस्वार्थ कर्म जो स्वार्थ सिद्धि से ऊपर उठ कर सबके और समाज के हित में किए जाते हैं ,वह सब देश की धरोहर देश की वास्तविक सम्पदा है ।



सकारात्मक सामूहिक संकल्प शक्ति

दिव्य मशाल की ज्वाला से 

वायुमंडल को प्रकाशित करना  है

वैश्विक महामारी के संकट काल में

सामूहिक सात्विक ऊर्जा शक्ति से

सकारात्मकता का दिव्य तेज

 जब समस्त विश्व को प्रकाशित करेगा ।

तब नकारात्मक ऊर्जा के

संकट को भागना ही पड़ेगा

आत्मशक्ति के तेज का प्रकाश जब

सम्पूर्ण विश्व में फैलेगा ,

तब अवश्य ही

विश्व के समस्त प्राणी

 स्वस्थ,निरोगी एवं दिव्य होंगे ।

पुष्पों में पुष्प पलाश

पुष्प तुम विधाता की
प्रकृति को बेहतरीन
अनमोल ,अतुलनीय अद्भुत 
देन या यूं कहिए भेंट हो ।

पुष्प तुम्हारी प्रजातियां अनेक
पुष्पों में पुष्प पलाश 
पल्लवित पलाश दर्शाता
प्रकृति का वसुंधरा 
के प्रति अप्रितम प्रेम
दुल्हन सा श्रृंगार
सौंदर्य का अद्भुत तेज 
पुष्प तुम प्रकृति के 
अनमोल रत्न दिव्य आधार
पुष्प तुम श्रद्धा
पुष्प तुम श्रृंगार 
पुष्प तुम प्रेम 
पुष्प तुम मित्रता 
पुष्प तुम समर्पण
पुष्प तुम महक
पुष्प तुम रौनकें बहार
पुष्प तुम संवेदना
पुष्प तुम श्रद्धांजलि
मिट्टी की गोद आकाश की छत
कांटों के बीच भी मुस्कराते हो
जीने की वजह बन जाते हो
पुष्प ने कहा ,मेरा स्वभाव ही ऐसा है 
मुस्कराने के सिवा कुछ आता नहीं 
देने के सिवा कुछ भाता नहीं








*पलाश के पुष्पों का सुन्दर संसार*

पलाश के पुष्पों का सुन्दर संसार
मन प्रफुल्लित रोम-रोम में होने
लगा अद्भुत रक्त संचार
सत्य है प्रकृति तुम हो जीवन का आधार
तुमसे ही सुन्दर संसार
वसुंधरा भी करती है श्रृंगार
मन मोहित हर्ष आभार
प्रकृति की बहार
नाच उठा मन मयूर
अद्भुत प्रकृति भी खूब चित्रकार

नई नवेली दुल्हन सा श्रृंगार
पलाश के पुष्पों की रक्तिम
बूटियों से जड़ी चुनरिया की कतार
अग्नि शोलों सा प्रतीत होता
सानिध्य में शीतल अतुलनीय
आभास ,मानों प्रेम की मीठी मिठास
रक्त वर्ण पलाश के पुष्पों की आभा
अग्निपथ प्रतीत होता
टेसू के कानन में जब झांका
प्राप्त हुई शांत ,निर्मल सुन्दर
रक्तिम पलाश के पुष्पों
की चुनरिया ओढ़े
दुल्हन ,प्रकृति चित्रकार
वसुंधरा दुल्हन ,अम्बर दूल्हा
देख मेरा रूप चांद भी शर्माता.......
पलाश के पुष्पों ने मेरा मन मोह में बांधा।




आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...