"अरमानों का तेज़ाब"

डरता हूँ ,कहीं मुझमें पनपता
तेज़ाब मुझे ही स्वाहा ना
कर डाले ।
तेज़ाब मेरे अधूरे सपनों के
फड़फड़ाते अरमानों का तेज़ाब
अरमानों के पंखों में
सपनों की उड़ान
फड़फड़ाते पंखों से
जब -जब भरने लगता हूँ उड़ान।

मध्य में टकराते हैं ,कई व्यवधान
खोजता हूँ कई समाधान

फिर भी मंज़िले नहीं होती आसान
दिल में जलता अरमानों का तेज़ाब
जो करता रहता है ,हर क्षण मुझे बेताब
जलता रहता हूँ ,अपने ही अरमानों के
तेज़ाब में ,
डरता हूँ ,
कहीं इस तेज़ाब से मेरा
ही ना घर जले ,यह तेज़ाब मुझे ही ना छले
अपने आरमानों के पंखों को
धीमे -धीमे ही सही आगे बड़ाता रहता हूँ
धीमे -धीमे ही सही बहुत आगे निकल आया हूँ
अरमानों के तेज़ाब को अब थोड़ी ठंडक मिलने
लगी है ।
आत्म संतुष्टि का धन जब से मैंने पाया है
मेरा जीवन बन गया शीतल छाया है
अब तेज़ाब से मुझे डर नहीं लगता
क्योंकि अब  अनियंत्रित अरमानों का आब
समा चुका है ,समुन्दर की शांत लहरों में ।











2 टिप्‍पणियां:

  1. आत्म संतुष्टि का धन जब से मैंने पाया है
    मेरा जीवन बन गया शीतल छाया है
    अब तेज़ाब से मुझे डर नहीं लगता
    क्योंकि अब अनियंत्रित अरमानों का आब
    समा चुका है ,समुन्दर की शांत लहरों में ।
    बहुत सुंदर प्रस्तुति, रितु जी।

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