बकरा ईद की सबको बधाई ।
जब हम स्कूल मे पड़ते थे ,तभी से हमारे स्कूलों में जिस तरह होली ,दिवाली दशहरा,आदि त्योहारों की छुट्टी होती आ रही है उसी तरह मीठी ईद ,बकरा ईद की भी छुट्टी होती है आज भी ।
त्यौहार कोई भी हो मेरा दिल हर्षोल्लास से भर जाता जाता है एक नयी उमंग एक नयी तरंग । स्वादिष्ट व्यंजन बाजार की रौनक ही बड़ जाती है ।
इन्सानियत मेरा धर्म है । जिस भी धर्म में कुछ अच्छा होता है मै उसे ग्रहण करने में कोई आपत्ति नहीं समझती।
यूँ तो सभी धर्म परस्पर प्रेम और सौहार्द की बात सिखाता है। कोई भी धर्म अपने धर्म के नाम पर हिंसा तो शायद ही करने की बात करता हो ।फिर क्यों ये धर्म के नाम पर ये दंगा फसाद आतंक फैलाना क्यों?
ईद है अच्छी बात है ,पर किसी बकरे को पहले मारो फिर बलि चढाओ प्रसाद रूप में बाँटो।
कहते हैं हर हर जीवात्मा में आत्मा होती है ।
फिर अपनी ही जैसी किसी आत्मा को मारना उसकी बलि चढ़ाना ......
किसी जानवर के तन में भी तो मनुष्य जैसी ही कोई आत्मा वास करती है , सोचिये कभी कुछ ऐसा हो कि दुर्भाग्यवश किसी मनुष्य की मृत्यु हो जाती है और और उस मनुष्य के मृत शरीर का कुछ अंश किसी मंदिर के पास जाकर गिरता है और अकस्मात ही आतंक्वाद खत्म हो जाता है तो बताइए आप क्या करेंगे ।अब क्या हर वर्ष आतंक समाप्त करने की ख़ुशी में मनुष्यों की बलि चड़ाने
लग जायेंगे ।इंसानों का कोई भरोसा भी नहीं अपने स्वार्थ के लिये अन्धो की तरह अपनों का ही खून पीने लग जाये।
किसी भी मनुष्य का सबसे पहला धर्म इंसानियत ही है और होना चाहिये ।
हिन्दू,मुस्स्लिम,सिख ,इसाई आदि यह सब धर्म किसी भी देश के काल परिस्थिति एवं वातावरण कॆ अनुसार बनते चले गये हम लोग उनके उन्यायी
परम्परायें त्यौहार उत्सव वो होते हैं ,जो दिलों में प्रेम आपसी सौहार्द बढायें
जब हम स्कूल मे पड़ते थे ,तभी से हमारे स्कूलों में जिस तरह होली ,दिवाली दशहरा,आदि त्योहारों की छुट्टी होती आ रही है उसी तरह मीठी ईद ,बकरा ईद की भी छुट्टी होती है आज भी ।
त्यौहार कोई भी हो मेरा दिल हर्षोल्लास से भर जाता जाता है एक नयी उमंग एक नयी तरंग । स्वादिष्ट व्यंजन बाजार की रौनक ही बड़ जाती है ।
इन्सानियत मेरा धर्म है । जिस भी धर्म में कुछ अच्छा होता है मै उसे ग्रहण करने में कोई आपत्ति नहीं समझती।
यूँ तो सभी धर्म परस्पर प्रेम और सौहार्द की बात सिखाता है। कोई भी धर्म अपने धर्म के नाम पर हिंसा तो शायद ही करने की बात करता हो ।फिर क्यों ये धर्म के नाम पर ये दंगा फसाद आतंक फैलाना क्यों?
ईद है अच्छी बात है ,पर किसी बकरे को पहले मारो फिर बलि चढाओ प्रसाद रूप में बाँटो।
कहते हैं हर हर जीवात्मा में आत्मा होती है ।
फिर अपनी ही जैसी किसी आत्मा को मारना उसकी बलि चढ़ाना ......
किसी जानवर के तन में भी तो मनुष्य जैसी ही कोई आत्मा वास करती है , सोचिये कभी कुछ ऐसा हो कि दुर्भाग्यवश किसी मनुष्य की मृत्यु हो जाती है और और उस मनुष्य के मृत शरीर का कुछ अंश किसी मंदिर के पास जाकर गिरता है और अकस्मात ही आतंक्वाद खत्म हो जाता है तो बताइए आप क्या करेंगे ।अब क्या हर वर्ष आतंक समाप्त करने की ख़ुशी में मनुष्यों की बलि चड़ाने
लग जायेंगे ।इंसानों का कोई भरोसा भी नहीं अपने स्वार्थ के लिये अन्धो की तरह अपनों का ही खून पीने लग जाये।
किसी भी मनुष्य का सबसे पहला धर्म इंसानियत ही है और होना चाहिये ।
हिन्दू,मुस्स्लिम,सिख ,इसाई आदि यह सब धर्म किसी भी देश के काल परिस्थिति एवं वातावरण कॆ अनुसार बनते चले गये हम लोग उनके उन्यायी
परम्परायें त्यौहार उत्सव वो होते हैं ,जो दिलों में प्रेम आपसी सौहार्द बढायें
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