" महिलाओं की पोशाकों पर ही चर्चा क्योंं ?"
संस्कृति और संस्कार सिर्फ महिलाओं के लिये ही क्यों ?
हर देश की अपनी सभ्यता और संस्कृति होती है ,यह बात निसन्देह सत्य है ।
हमारे संस्कार ,संस्कृति,परम्परायें प्राकृतिक वातावरण का
परिवेश जो हमारी जड़ों के साथ जुड़ा होता है ।वह हमें विरासत के रूप में मिलता है ,और उन संस्कारो को हम परम्पराओं की विरासत के रूप में स्वीकार कर अपना लेते हैं ।
संस्कृति ,संस्कारों और परम्पराओं को अपनाना बहुत अच्छी बात है,परन्तु उन्ही परम्पराओं को आने वाली पीड़ी पर थोपना उन्हें भावात्मक रूप से मजबूर करना की यह हमारे संस्कार हैं हमारी संस्कृति है बस तुम्हे आँखे बन्द करके इन्हें अपनाना है ।
मेरी दृष्टि में यह अपराध है ।
कुछ परम्पराओं में वक्त के साथ अगर बदलाव आता है ,तो कोई दोष नहीं ।
भारतीय संस्कृति की विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान है।
संस्कार और संस्कृति कोई चिन्ह तो नहीं ?
संस्कार हमारे कर्मो में होने चाहियें जिससे की संस्कृति की झलक हमारे कर्मो में और व्यवहार में झलके ।
संस्कृति मात्र भोजन और पोशाकों में निहित नहीं होनी चाहिये।
कोई महिला क्या पहनती है या क्या पहने उसकी आजादी हाँ शालीनता सभ्यता होनी आव्यशक है । सामने वाले की नज़र में भी शालीनता होनी चाहिये ।
महिलायें क्या पहने क्या ना पहने अगर इस पर चर्चा होती है तो फिर पुरुष वर्ग को क्यों इससे वंचित रहे उनके पहनावे पर भी चर्चा होनी आव्यशक है ।।
संस्कृति और संस्कार सिर्फ महिलाओं के लिये ही क्यों ?
हर देश की अपनी सभ्यता और संस्कृति होती है ,यह बात निसन्देह सत्य है ।
हमारे संस्कार ,संस्कृति,परम्परायें प्राकृतिक वातावरण का
परिवेश जो हमारी जड़ों के साथ जुड़ा होता है ।वह हमें विरासत के रूप में मिलता है ,और उन संस्कारो को हम परम्पराओं की विरासत के रूप में स्वीकार कर अपना लेते हैं ।
संस्कृति ,संस्कारों और परम्पराओं को अपनाना बहुत अच्छी बात है,परन्तु उन्ही परम्पराओं को आने वाली पीड़ी पर थोपना उन्हें भावात्मक रूप से मजबूर करना की यह हमारे संस्कार हैं हमारी संस्कृति है बस तुम्हे आँखे बन्द करके इन्हें अपनाना है ।
मेरी दृष्टि में यह अपराध है ।
कुछ परम्पराओं में वक्त के साथ अगर बदलाव आता है ,तो कोई दोष नहीं ।
भारतीय संस्कृति की विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान है।
संस्कार और संस्कृति कोई चिन्ह तो नहीं ?
संस्कार हमारे कर्मो में होने चाहियें जिससे की संस्कृति की झलक हमारे कर्मो में और व्यवहार में झलके ।
संस्कृति मात्र भोजन और पोशाकों में निहित नहीं होनी चाहिये।
कोई महिला क्या पहनती है या क्या पहने उसकी आजादी हाँ शालीनता सभ्यता होनी आव्यशक है । सामने वाले की नज़र में भी शालीनता होनी चाहिये ।
महिलायें क्या पहने क्या ना पहने अगर इस पर चर्चा होती है तो फिर पुरुष वर्ग को क्यों इससे वंचित रहे उनके पहनावे पर भी चर्चा होनी आव्यशक है ।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें