हिंदी मेरी मात्रभाषा है माँ तुल्य पूजनीय है 



मेरी मात्रभाषा हिंदी है । मै गर्व से कहती हूँ! जिस भाषा को बोलकर सर्व- प्रथम मैंने अपने भावों को प्रकट किया ,जिसे बोलकर बन जाते हैं मेरे सरे काम ,उस भाषा का मै दिल से करती हूँ  सम्मान। आज विशेषकर भारतीय लोग अपने देश की भाषा अपनी मात्रभाषा को बोलने में स्वयं को छोटा महसूस करते हैं। अंग्रेजी भाषा को प्राथमिकता देकर स्वयं को विद्वान् समझते हैं। मात्रभाषा बोलने में हीनता महसूस करते हैं। हिंदी में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करके समझते हैं की आधुनिक हो गए हैं। क्या  आधुनिकता की पहचान अंग्रेजी भाषा ही है ? अरे! नहीं- नहीं आधुनिकता किसी भाषा पर निर्भर नहीं हो सकती। आधुनिकता किसी भी समाज द्वारा किये गए ,प्रगति के कार्यों से उच्च संस्कृति व् संस्कारों से होती है।जापान के लोग अपनी मात्रभाषा को ही प्राथमिकता देते हैं,क्या वह देश प्रगति नहीं कर रहा ,बल्कि प्रगति की राह में अपना लोहा मनवा रहा है ।
अरे नहीं कर सका जो अपनी माँ सामान मात्रभाषा का सम्मान ,उसका स्वयं का सम्मान भी अधूरा है , खोखला है, अपनी जड़ों से हिलकर हवा में इतराना चाह रहा है । संसार में बोले जाने वाली किसी भी भाषा का ज्ञान होना कोई अपराध नहीं , आवयशक है । परन्तु अपने देश में सर्वप्रथम अपनी मात्रभाषा को ही स्थान देना चाहिए । माँ तो माँ ही है ,भारत की मात्रभाषा हिंदी है, हिंदी भारतवासियों की पहचान है । हिंदी में रचित साहित्य विश्व  में अपनी पहचान है । हिंदी भाषा में जो बिंदी है प्रय्तेक भारतवासी के माथे के सिर का ताज है ।आज आवश्यकता है भारत  के प्रत्येक नागरिक को प्रणलेना होगा ,की वह अपनी बोल -चाल की भाषा कार्य -स्थल पर हिंदी को ही प्राथमिकता देंगे । माना की अंग्रेजी भाषा को अंतराष्ट्रीय भाषा का स्थान मिला है मेरी मात्रभाषा हिंदी है। मेरे लिए मेरी मात्र भाषा हिंदी से उच्च कोई नहीं ,अपने ही देश में अपनी मात्र -भाषा संग सौतेला व्यवहार उचित नहीं ,हिंदी गरीबो की ही भाषा बन कर रह गयी है अंग्रेजी  स्कूलों में पड़ने के लिए लाखों रूपये खर्च दिए जातें है। अपने ही देश मे अपनी मात्र -भाषा का अपमान  निंदनीय है। आधुनिकता की अंधी दौड़ में जिस देश की संकृति उस देशकी पहचान है,अपनी ही भाषा का अपमान होना क्या उचित है। हिंदी का सम्मान माँ का सम्मान है।

                                                " रोना बन्द करो   
                                                         अपना भाग्य स्वयं लिखे
 सामन्यता मनुष्य भाग्य को कोसते रहते हैं ,कि मेरा भाग्य अच्छा नहीं ,स्वयं को छोटा समझना कायरता है। 
स्वयं को बड़ा बनाना है तो ,अपने भाग्य का रोना बंद करना होगा। कोई भी मनुष्य छोटा या बड़ा नहीं जन्मता एक सा जन्मता है 'एक सा मरता है। कोई भी मनुष्य कर्म से ही महान होता है। जितनी भी महान हस्तियाँ हुई हैं। वे अपने कर्मो के कारण ही महान हुई हैं। जैसे गांधीजी ,मदर टेरेसा ,स्वामी विवाकानंद ;आ दि।
 गाँधी जी ,के विचार थे ,'सादा जीवन उच्च विचार। मदर टेरेसा अपने पास रखती थी एक थाली एक  लौटा ।ऐसी कई महान हस्तियाँ हुई जो अपने निस्वार्थ कर्मो के कारण महान हुई ,उनके पास थी आत्म -बल की शक्ति। 
अतः रोना बंद करो जीवन को उन्नत बनाने के लिए समर्पित कर्म करो ,जिसमे कर्तापन का अहंकार न हो। ऐसा कर्म करे जिसमे सेवा व् धर्म हो। कुछ हमारी मानसिकता कुछ हमारे आस पास का वातावरण हमारे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। जैसे परिवेश हम रहते हैं ,स्वयं को वैसा ही समझने लगते हैं। राजा का बेटा स्वयं को राजा शुद्रकाबेटा स्वयं को शुद्र किसान का बेटा स्वयं को किसान समझने लगता है।  वास्तव राजा किसान ,शुद्र यह सब तो कर्म के एक प्रकार हैं जिस मनुष्य को जो कर्म मिलता है ,वह करने लगता है। 
यह तो हमारी मानसिकता है ,जो हमें छोटा या बड़ा बनाती हैं सूरज सबको एक समान रोशनी देता है,नदियाँ सबको एक सा जल देती हैं ,जीवन को उन्नत बनाने के लिए कर्म अति आवयशक है ,कर्म तो करना ही है ,कहते है न कर्म बिना न मिले भिक्षु को रोटी द्वार -द्वार पर चिल्लाए न जो ज़ोर -जोर की। 
धन -दौलत तो जीवको -पार्जन का एक साधन है ,हमारी पहचान नहीं। सबसे बड़ी है आत्मा की शक्ति या आत्म -बल जो हमें शुभ कर्म करने से मिलती है ,हमें अपने जीवन चरित्र को महा- पुरषों के जीवन चरित्रों से सींचते रहना चहिये ,जो हमारा आत्म -बल बड़ा जीवन जीने की कला सिखाते हैं। 
सबसे बड़ा धन है संतोष ,मेरा तो हर प्राणी से यही सन्देश है ,की भाग्य का रोना बंद करे ,संतोष का धन अपनाये ,शुद्ध कर्मों की दीवार बनाए ,स्वयं का जीवन बनाए जैसे सूर्य,सरिताएँ और  वृक्ष ------------  
                                                 आदतों के गुलाम मत  बनो
  मनुष्य आदतों का गुलाम बनारहता है।  आदतें क्या हैं ,जिन्हें हम कई बार छोड़ना तो चाहतें हैं ,परन्तु छोड़ नहीं पाते। किसी भी आदत के आभाव में जब मनुष्य स्वयं को असहज महसूस करता है,तब वह आदत उसकी कमजोरी बन जाती है। आदतें क्या हैं ,आदतें दो प्रकार की  होती हैं ,एक अच्छी आदतें ,दूसरा बुरी आदतें। परन्तु आदतें अच्छी हों या बुरी  उनका गुलाम बन जाना उचित नहीं।

वास्तव में होता क्या है ,कि कोई मनुष्य किसी आदत को छोड़ना भी चहता है पर छोड़ नहीं पाता ,सोचता है की लोग क्या कहेगे ,मनुष्य स्वयं के बारे से ज्यादा  समाज के बारे में सोचता है. मनुष्य को समाज की चिंता अधिक होती है। मनुष्य अगर स्वयम में बदलाव भी लाता है तो समाज को ध्यान में रखकर लता है।
आज के आधुनिक समाज में अपना प्रभाव दिखाने के लिए कई बुरी आदतों को अपना लिया जाता है ,अंजाम चाहे जो भी हो,उदाहरण  के लिए ,अरे यार कुछ तो अपना लाइफ स्टाइल बदलों अगर मेरे पास इतना पैसा होता ,तो मेरा लाइफ -स्टाइल देखते बिलकुल बदल जाता। मेरे तो पैर ही जमीन पर नहीं पड़ते। दो -चार नौकर गाड़ीयाँ तो जरुर रखता समाज में आज तुम्हारी पहचान है। बदलाव तो लाना ही होगा। मनुष्य स्वयम के लिए नहीं वरन समाज के कई आदतों का संग करता है।

प्रत्येक व्यक्ति की अपनी ज़िन्दगी है। किसे क्या चाहिए उसे मालूम होता है।  वह स्वयं को नहीं बदलना चाहता है ।  प्रत्येक मनुष्य की इच्छा है वो जो चाहे करे।

बदले तो यूँ   बदले आपके लिए समाज स्वयं को बदलने लगे।  समाज आपसे प्रभावित हो जाये।  आपका आचरण आपकी आदतें  ज़िन्दगी की रोशनी बढ़ाये , आपकी और समाज की प्रगति हो जाये।  अच्छी  आदतों का संग करें , बुरी आदतों को कभी न स्वीकारें।  

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...