Ritu Asooja Rishikesh , जीते तो सभी है , पर जीवन वह सफल जो किसी के काम आ सके । जीवन का कोई मकसद होना जरूरी था ।परिस्थितियों और अपनी सीमाओं के अंदर रहते हुए ,कुछ करना था जो मेरे और मेरे समाज के लिए हितकर हो । साहित्य के प्रति रुचि होने के कारण ,परमात्मा की प्रेरणा से लिखना शुरू किया ,कुछ लेख ,समाचार पत्रों में भी छपे । मेरे एक मित्र ने मेरे लिखने के शौंक को देखकर ,इंटरनेट पर मेरा ब्लॉग बना दिया ,और कहा अब इस पर लिखो ,मेरे लिखने के शौंक को तो मानों पंख लग
दिव्य अर्क
मेरा आशियाना
निकला जाता हूं अक्सर
घर से कहीं दूर दिल को बहलाने को
कुछ पल सूकून के पाने को
दुनिया भर के झंझटों से आजाद हो जाने को
बेफिक्र परिंदा बन आकाश की
ऊंचाइयों में उड़ जाने को ...
शाम होते ही लौट आता हूं अपने
आशियाने को, सादे भोजन से तृप्ति पाता हूं
रख कर सिर लुढ़क जाता हूं खटिया पर रखे सिरहाने पर
शायद भटक -भटक कर थक जाता हूं
और समझ जाता हूं अपने आशियाने और
अपनों के जैसा अपनत्व कहीं नहीं जमाने में
लाखों की भीड़ है ज़माने में बहुत कुछ आकर्षक
है देखने को दिल बहलाने को
किन्तु अपनों के जैसा अपनत्व नहीं जमाने में
मुझे मेरे अपने मिलते हैं मेरे आशियाने में
खट्टी मीठी एहसास कराने को संरक्षण पाने को ।
अमृत धारा
श्रद्धा से मेरे दर पर आ कर तो देखो
तन के संग मन के समस्त मैल धुल जायेंगे
सब द्वंद संग बहा ले जाती हूं
एक ही पल में नव निर्मल धारा
का आगमन नये आने वाले समय का
आगाज मैं मुक्ति की पवित्रता की बहती धार...
रोक ना सकोगे , मैं बहती जलधार हूं
प्रकृति की रफ्तार हूं
मैं तरल,सरल, निर्मल हूं
वसुन्धरा का प्यार हूं दुलार हूं
आंचल में धरती मां के समाती
धरा अम्बर का समर्पित प्यार हूं
बहना आगे की और बढ़ना
मेरी नियति,बस करो बांध बनाना मुझपर
मेरी फितरत को नहीं बदल सकोगे जानते भी हो
मुझमें निहित शीतलता में विद्युत तरंगों का तेज भी है
शीतल हूं , तो जलनशील भी हूं लहरों के उतार-चढ़ाव संग
सम्भलना भी सीखो ए मानव ,हर बार मैं ही क्यों
कुछ तुम भी तो बदलो ए मानव .....
दस्तक एक आहट
प्रकृति स्वयंमेव एक
अद्भुत चित्रकार
दिनकर सुनहरी किरणों का
अद्वितीय संसार सृष्टि पर जीवन
का आधार दिनकर रहित जीवन
निराकार , निर्थक , अकल्पनीय
सूर्यदव सत्य सारस्वत सृष्टि निर्माणाधीन
सृष्टि आज उर्जा चमत्कार
हम सृष्टि के रखवाले
जैसा चाहे वैसा बना ले
विचारों से मिलता आधार
दस्तक एक आहट
गहरे समुद्र वृहद संसार
रत्न ,मणियों का अनन्त भण्डार
दिल स्पंदन लहरें उमड़े
शब्द ध्वनि वाक्य आकार
काव्य का आधार
प्रेरणा बन उपजे
खोले आत्मा द्वार
श्रवण द्वार आवाज
अदृश्य पदचाप
आंगन बीच पदचिन्ह छोड़े
दिव्य अद्वितीय कृतियों के
आकार सभ्य अद्वितीय आकार
सुन्दर सुसंस्कृत सभ्य संसार
थामे एक डोर
जीवन की बागडोर
एक छोर से दूजे छोर
नव पल्लवों के सुकोमल
अंकुर नव चेतना के नव रुप
सुख समृद्धि से भरपूर।
फिर बही रस धार
निर्झर झरनों सी रफ्तार
स्वच्छ , निर्मल ,जलधार
लोकतंत्र
स्वस्थ समाज का आगाज़
आपकी हमारी हम सब की आवाज
चयनित करें ऐसा नेता जो सुनने को रहे
तत्पर हर क्षण समाज की आवाज
निस्वार्थ सेवा जनहित करें हो बढ़ा समाज सुधारक
बुद्धि जीवि और बड़ा विचारक
निसंकोच करें हम जिसका आदर
बने वो हमारे देश का रक्षक
लोकतंत्र का अधिकार कभी
ना करें इसका दुरुपयोग
एक अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने
जैसा रोग ....
लोकतंत्र है एक बड़ा धर्म सर्व जन हिताय
जिसका मर्म , लोकतंत्र स्व उत्थान का धन
सूझ-बूझ से बुद्धि जीवि का हो चयन
लोकतंत्र में प्रजा ही करे अपने राजा का चयन
राजा वही जो प्रजा का करे प्रगति
नव नूतन निष्पक्ष निर्माण .........
A cup of a Tea
A cup of tea lucky lucj
Wow ! Happiness or sorrow
In the rain, with the pakoras
Ginger and basil with winter
Do you have an effect
Get it all the time
Dussehra or Diwali
Dissolve sweetness in relationships
Fellowship of friendship
Fatigue life
The essence of Hari leaves in a boil of water
Dissolved milk mixture and sugar
Wow but sweet taste! what
Sweetness in the bitterness of life
Makes relationships precious
A tea cup containing cardamom
Taste tongue
Tea is a good excuse
A little late
Relax moments have to be explored.
एक कप चाय की प्याली
एक कप चाय की प्याली
खुशकिस्मत हो नसीबों वाली
वाह ! खुशी हो या गम
बरसात में, पकौड़ों की संग
जाड़े में अदरक और तुलसी वाली
भाती हो असर करती हो
हर समय मिल जाती हो
दशहरा हो या दिवाली
रिश्तों में मिठास घोलती
मित्रता की संगिनी
थकान की संजीवनी
जल के उबाल में हरि पत्तियों का सार
दुग्ध मिश्रण और शक्कर के घुल जाने
पर मीठा स्वाद वाह! क्या बात
जीवन की कड़वाहट में मीठास का घोल
रिश्तों को बनाती अनमोल
एक चाय की प्याली इलायची वाली
स्वाद का जीभ से रिश्ता
चाय का बहाना अच्छा है
कुछ देर और सुस्ताना है
सुकून के पलों को तलाशना है ।
चाय से सीखा एक गुण सयाना है
थोड़ी कड़वाहट को शक्कर सी
मीठे बोलों से हटाना है
आओ अच्छा बस अच्छा सोचें
आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...
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इंसान होना भी कहां आसान है कभी अपने कभी अपनों के लिए रहता परेशान है मन में भावनाओं का उठता तूफान है कशमकश रहती सुबह-शाम है ब...
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*ए चाॅंद* कुछ तो विषेश है तुममें जिसने देखा अपना रब देखा तुममें ए चाॅद तुम तो एक हो तुम्हें चाहने वालों ने जाने क्यों अलग-अलग किया खुद ...
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रास्ते भी क्या खूब हैं निकल पड़ो चल पड़ो मंजिलों की तलाश में किसी सफर पर रास्ते बनते जाते हैं रास्ते चलना सिखाते हैं,गिरना-समभलना फिर उ...