क्यों ना बस अच्छा ही सोचें *
मुश्किलें नहीं आती परंतु अच्छा सोचने वालों के लिए हर मुश्किल भी अच्छाई की ओर ले जाने वाली सीढ़ियां बन जाती है।
Ritu Asooja Rishikesh , जीते तो सभी है , पर जीवन वह सफल जो किसी के काम आ सके । जीवन का कोई मकसद होना जरूरी था ।परिस्थितियों और अपनी सीमाओं के अंदर रहते हुए ,कुछ करना था जो मेरे और मेरे समाज के लिए हितकर हो । साहित्य के प्रति रुचि होने के कारण ,परमात्मा की प्रेरणा से लिखना शुरू किया ,कुछ लेख ,समाचार पत्रों में भी छपे । मेरे एक मित्र ने मेरे लिखने के शौंक को देखकर ,इंटरनेट पर मेरा ब्लॉग बना दिया ,और कहा अब इस पर लिखो ,मेरे लिखने के शौंक को तो मानों पंख लग
चलो आज फिर सब हल्के हो जाएं
दिल से सच्चे हो जाएं बच्चे हो जायें
मासूमियत के फ़रिश्ते हो जाएं
मुस्कुराहटों को अपने चेहरों पर सजाएं
यूं ही बेबाक मुस्करायें
स्वयं को ना बिन बात पर उलझाएं
सपनों के ऊंचे महल बनाएं
परियों की दुनियां सजाएं
राजा -रानी और जिन्न के किस्से
कहानियों को सच कर जायें
प्रतिस्पर्धा की दौड़ में सब एक
पंक्ति में आ जाये ,ईर्ष्या द्वेष से दूर
अंतरिक्ष में चहल कदमी कर सितारों के
जहां में एक नया जहां बनाएं ,धरती पर
आसमान की दूरियों को दूर कर धरती पर
एक सुन्दर नया प्यारा न्यारा जहां बनायें
जहां सभी नेकी के फ़रिश्ते हो जायें ।
उम्मीद रखो सदा स्वयं से
स्वयं को स्वयं की उम्मीद पर
परखो ना किसी को स्वयं को
खरा बनाओ पारखी बनो
स्वयं की कमियों को जानो
उन्हें निखारो, कमियां किसी की
अपनी नहीं उसमे नासमझी की
जो समझ है हो सके तो उस समझ को
सवारों ,कोयले की खान में से हीरे को
तलाशने की नज़र बना लो जीवन
खूबसूरत होगा नज़र में अच्छी सोच का
नजरिया तो डालो ।
सिर्फ पाने की नहीं देने की नियत बना लो
जिन्दगी बेहतरीन होगी उम्मीद स्वयं की
सोच से स्वयं के कर्मो में कर्मठता का इत्र मिला लो ।
काबिल बनाने के लिए
स्वयं के आत्मसम्मान के लिए
स्वयं की और समस्त जहां की खुशियों के
लिए भलाई के बीज रौपता हूं
सुख समृद्धि और नेकी के लिए
स्वस्थ खुशहाल संसार की कल्पना
करता हूं स्वयं को समझाता हूं
निष्काम कर्म को अपना मूल मंत्रi
शिवमय संसार
शिव ही जीवन का आधार
ढूंढता हूं शिव को आंखें मूंद
जबकि शिव तुझमें- मुझमें भीतर- बाहर
दिव्य ज्योत का लो आधार
शिव से होगा एकीकार
भय पर...
पाकर विजय
बना मैं अजेय ...
भय- भ्रम सब का अंत
दुविधाओं का डर नहींं
दौर अग्नि परीक्षाओं का
हुए सब खोट बाहर
शिव स्तुति उपासना का आधार
शिव शक्ति दिव्य ज्योति से जब हुआ एकीकार
मिला जीवन को सुंदर आकार
कुन्दन बना ,कोयले की खानों
में ज्यों एक हीरा नायाब जैसे
सृष्टि कर्ता जब संग अपने
जीवन के अद्भुत रंग अपने
शिव शक्ति को स्मरण कर
ऊं नमो शिवाय का मंत्र रख संग अपने
ऊं नमो शिवाय ।।
क्या तुम जिन्दगी में आगे नहीं बढ़ना चाहते , नहीं साहब जी ,बस हम खुश हैं....अपनी इस छोटी सी दुनिया में इतने ऊंचे सपने हमें नहीं सुहाते .... हमरा परिवार में हमको मिलाकर पांच जन हैं.. हमारे दो लड़की दो लड़का है एक पत्नी है उनकी रोटी का इंतजाम होता रहे बस बहुत है ।
और बच्चों की पढ़ाई .....उनकी मां रोज उन्हें भेजती है पास के सरकारी स्कूल में , ज्यादा पढ़-लिख कर क्या करेंगे , बाबू जी .... हमारे पास इतना नहीं की हम इनको ऊंचे-ऊंचे सपने दिखा सके । बच्चों का ब्याह करा दें यही है अपना सपना।
सम्मान दो... सदा सदा के लिए
शाश्वत....
सिर्फ एक दिवस का सम्मान
मुझे स्वीकार्य नहीं ....
महिला दिवस बता.....
मानों महिलाओं को रिझाते हो
हाथ में झुनझुना दे दिल बहलाते हो ।
भूल गए मैं तुम्हारी जननी हूं
माता हूं ..... माना की बीज तुम्हारे हैं
फुलवारी को मैंने बढ़े जतन से पाला है
संस्कारों की खाद से पौष्टिकता और
सभ्यता के विकास को मैंने एक सभ्य
सुसंस्कृत समाज के निर्माण का काम किया है
नहीं चाहिए मुझे एक दिन का सम्मान
देना है तो मुझे मेरा अधिकार दो
बराबरी से चलने की स्वतन्त्रता दो
रक्षा कवच बन रहो ,
निज पशुता का वर्धन करो
जंगलराज का अब अंत करो
कांधे से कांधा मिला संग चलने का आह्वान करो ।
आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...