सौ प्रतिशत सच का ,
मिलावटी सच
पक्के वादों का,
मिलावटी सच
दुग्ध में जल या जल में दुग्ध
मिलावट का अदृश्य सच
कहने में,करने में होने में,
मोहब्बत में,प्यार में ,
इरादों में,वादों में
सब में लगाया जाता है
स्वार्थ का मक्खन।
रंगों का बाजार
आकर्षण का संसार
तस्वीर के रंग हजार
मुखौटे लगा चल रहा है व्यापार
मिलावट की दुनियां के चर्चे हजार
फिर भी मिलावट का ही होता करोबार ।
सौ प्रतिशत सच का ,मिलावटी सच
चेहरे पर हंसी का मिलावटी पहरा
मिलावट का सौंदर्य, नायक -नायिकाओं के
आकर्षण का केंद्र
मिलावट की दुनियां के चर्चे हजार
मिलावट का रचता बसता संसार
बस एक ही विनती है और है मेरी
कुछ मिलावट कर लो नफरत में कुछ मिलावट
कर लो प्रेम की, स्वार्थ में कुछ मिलावट कर लो
निस्वार्थ प्रेम की ,
क्यों ना कर दें अब हम सब मिलकर मिलावट का ही
का काम तमाम।
Ritu Asooja Rishikesh , जीते तो सभी है , पर जीवन वह सफल जो किसी के काम आ सके । जीवन का कोई मकसद होना जरूरी था ।परिस्थितियों और अपनी सीमाओं के अंदर रहते हुए ,कुछ करना था जो मेरे और मेरे समाज के लिए हितकर हो । साहित्य के प्रति रुचि होने के कारण ,परमात्मा की प्रेरणा से लिखना शुरू किया ,कुछ लेख ,समाचार पत्रों में भी छपे । मेरे एक मित्र ने मेरे लिखने के शौंक को देखकर ,इंटरनेट पर मेरा ब्लॉग बना दिया ,और कहा अब इस पर लिखो ,मेरे लिखने के शौंक को तो मानों पंख लग
*सौ प्रतिशत मिलावट का सच*
**दूर रहेगा घातक करोना **
**भारतीय परम्परा का अद्भुत
परिचय हाथ जोड़ नमस्कार करें **
भोर लालिमा हरी घास पर टहले
तन को भी सूरज की किरणों से
सहलाएं,सूरज की गर्मी से रोग -
प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाएं ।
योगाभ्यास व्यायाम दिन चर्या बनाएं
जीवन रक्षक प्राकृतिक संपदाओं को
अपनाएं ।
दैनिक कार्यों के अंतराल
स्वच्छता के नियमों को अपनाकर
स्वच्छ हाथों करें जीवन यापन करें।
दैनिक कार्यों के अंतराल
स्वच्छता के नियमों को अपनाकर
स्वच्छ हाथों करें जीवन यापन करें।
प्राकृतिक सम्पदाओं का भरपूर उपयोग करें
नीम ,गिलोय तुलसी ,एलोवीरा का
सेवन कर कई रोगों को दूर भगाएं ।
सार्वजनिक स्थलों पर गंदगी ना मचाएं
स्वच्छता के नियम अपनाकर स्वस्थ जीवन अपनाएं
**करोना के संक्रमण से डरोना
स्वस्थ जीवन के गुण अपनाकर
दूर रहेगा घातक करोना **
सार्वजनिक स्थलों पर गंदगी ना मचाएं
स्वच्छता के नियम अपनाकर स्वस्थ जीवन अपनाएं
**करोना के संक्रमण से डरोना
स्वस्थ जीवन के गुण अपनाकर
दूर रहेगा घातक करोना **
**मेरा धर्म तो इंसानियत है **
नहीं- नहीं -नहीं , मैं नहीं करूंगा जो तुम मुझसे करवाना चाहते हो ,चाहे मैं और मेरे बच्चे भूख से मर जाएं पर हम ऐसा काम कभी नहीं करेंगे ।
इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं और हम अपने धर्म से कभी पीछे नहीं हटेंगे।
अब्बा जान जरा दिमाग़ लगा कर सोचो ,सरकार ने नागरिकता बिल पास कराया है ,और सरकार का कहना है की सभी को नागरिकता लेनी पड़ेगी .....
अब्बा जान - तो क्या हुआ ले लेंगे नागरिकता हमारा तो जन्म यहीं का है हमारी हमारा निका ह भी यहीं और यहीं के परिवार से हमारा रिश्ता जुड़ा अब कोई हम कहीं और थोड़े जाने वाले हैं , ले लेंगे यहीं को नागरिकता और यहीं के होकर रहेंगे इसमें दिक्कत क्या है।
अब्बा जान ,आप भी ना बहुत सीधे हैं ये हिन्दुस्तान है,यहां हिन्दुओं का राज रहेगा ।
अब्बा जान अपने पड़ोसी मित्र पर झल्लाते हुए तो लल्लन हमें कौन सा राज करना है ,हमसे अपना घर परिवार सम्भल जाए वो ही काफी है ।
लल्लन, अब्बा जान से तुम्हें कोई नहीं समझ सकता जब धक्के मार कर बाहर निकाल जाओगे ना तब
पता चलेगा ।
अब्बा जान मैं आज ही यहां की नागरिकता लेता हूं फिर कौन निकलेगा हमें बाहर जब हम यहीं के हो जाएंगे ।
दूसरा दृश्य.....
बहुत अच्छे से ट्रेनिंग दी गई थी इन युवाओं को
जानवर ,भेड़िए,आस्तीन के सांप ,जैसे कितने भी अपशब्द कम थे ऐसे देश के गद्दारों के लिए ,जिस थाली में खा रहे थे उसी में छेद कर रहे थे ।
भटके हुए प्राणी कुछ पैसों के लालच और गलत शिक्षा के कारण भटके हुए थे ये हिंसक युवा .....
जब नोटों का लालच दिखाया जाता है ,तब बड़े- बड़ों का ईमान डोल जाता है ।
और जब पापी पेट का सवाल हो तो ...
अपना पेट तो छोड़ो बच्चों की जरूरतों की खातिर ।
अगले ही दिन टेलीविजन पर आज कुछ उपद्रवियों ने किसी पुलिस चौकी के समीप पथराव किया ,
फिर एक और ख़बर उपद्रव की बड़ी खबरें शहर में जगह -जगह हिंसा पथराव,कई लोग घायल .....
लगातार कई दिनों से हिंसा की घटनाएं चल रही थीं अब्बा जान मन ही मन बहुत परेशान थे कुछ कर भी नहीं पा रहे थे । आखिर अपने ही सगों के खिलाफ आवाज उठान इतना आसान नहीं था ,लेकिन अब्बा जान का जमीर इस बात की गवाही नहीं दे रहा था ।
शहर के कई इलाके नफरत की आग में झुलस रहे थे ।
अब्बा जान क्योंकि लल्लन के पड़ोसी मित्र थे ,और उम्र में भी बड़े तो सब उन्हें अपने अब्बा सामान ही समझते थे ,लेकिन सुनता कौन था उनकी ।
बस अब और नहीं अब्बा जान की आत्मा उन्हें धिक्कार रही थी ,हर अगले दिन कौन सी वारदात होनी है उन्हें ख़बर होती ,माना की वो उस वारदात का हिस्सा नहीं थे और ना ही चाहते थे परन्तु हिंसा
या किसी वारदात की खबर होना और कुछ ना कर पाना यह भी किसी हिंसा से कम नहीं था ।
अब्बा जान स्वयं को दोषी मानने लगे थे ,अल्लाह तो सब जानता है ,क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा का पाठ कभी नहीं पढाता ।
अब्बा जान जब आल्लाह से मुलाकात होगी तो दोषी मैं भी ठहराया जाऊंगा ।
अब्बा जान नहीं मुझे कुछ करना होगा कैसे रौंकू इस उपद्रव की गन्दगी को ....
अब्बा जान कश्मकश में थे उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था, तभी अब्बा जान अचानक कहीं चले गए ।
पूरी रात बीत गई थी अब्बा जान घर नहीं पहुंचे थे घर वालों को चिंता हो रही थी ,आखिर अब्बा जान किधर गए ,कई जगहों से पता लगाया परंतु अब्बा जान का कुछ भी पता नहीं चल रहा था ।
इधर दंगाइयों का उपद्रव सिर चड़ कर बोल रहा था ,शहर में आगजनी की वारदातें भी बड़ रही थीं ।
पुलिस फोर्स भी इन दंगों पर काबू नहीं कर पा रही थी ।
आखिर बढते हुए दंगे जान- माल का भारी नुकसान । अगले दिन ही समाचार सुनने को मिला की सरकार ने दंगा पीड़ित इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया है । शहर के हालात दो -चार दिन सामान्य होने लगे थे ।
थोड़े दिनों बाद छब्बीस जनवरी थी ।
आज अब्बा जान अच्छे से तैयार होकर कहां चले लल्लन ने व्यंग कसते हुए कहा ।
गले में सम्मान प्रतीक मेडल और हाथ में राष्ट्रपति सम्मान का प्रमाण पत्र लिए अब्बा जान अपनी गली से अपने घर के लिए जा रहे थे अब्बा जान की चाल में सवभिमान की साफ झलक रहा था ।
गली के और घर के लोग बाहर खड़े मन ही मन अब्बा जान का स्वागत कर रहे थे ,खुश थे की अब्बा जान ने कुछ बेहतरीन काम किया है जो आज उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार मिला है ।
अपने घर की चौखट पर अभी अब्बा जान ने कदम बढाया ही था की अचानक जोर की आवाज हुई ,अब्बा जान की पीठ लहूलुहान थी ,सब लोग अब्बा जान कि तरफ दौड़े , अब्बा जान ने आखिरी सांसे लेते हुए ,वंदेमातरम कहते हुए अपने प्राण छोड़ दिए और सबकी आंखें नम हो गईं ।
इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं और हम अपने धर्म से कभी पीछे नहीं हटेंगे।
अब्बा जान जरा दिमाग़ लगा कर सोचो ,सरकार ने नागरिकता बिल पास कराया है ,और सरकार का कहना है की सभी को नागरिकता लेनी पड़ेगी .....
अब्बा जान - तो क्या हुआ ले लेंगे नागरिकता हमारा तो जन्म यहीं का है हमारी हमारा निका ह भी यहीं और यहीं के परिवार से हमारा रिश्ता जुड़ा अब कोई हम कहीं और थोड़े जाने वाले हैं , ले लेंगे यहीं को नागरिकता और यहीं के होकर रहेंगे इसमें दिक्कत क्या है।
अब्बा जान ,आप भी ना बहुत सीधे हैं ये हिन्दुस्तान है,यहां हिन्दुओं का राज रहेगा ।
अब्बा जान अपने पड़ोसी मित्र पर झल्लाते हुए तो लल्लन हमें कौन सा राज करना है ,हमसे अपना घर परिवार सम्भल जाए वो ही काफी है ।
लल्लन, अब्बा जान से तुम्हें कोई नहीं समझ सकता जब धक्के मार कर बाहर निकाल जाओगे ना तब
पता चलेगा ।
अब्बा जान मैं आज ही यहां की नागरिकता लेता हूं फिर कौन निकलेगा हमें बाहर जब हम यहीं के हो जाएंगे ।
दूसरा दृश्य.....
बहुत अच्छे से ट्रेनिंग दी गई थी इन युवाओं को
जानवर ,भेड़िए,आस्तीन के सांप ,जैसे कितने भी अपशब्द कम थे ऐसे देश के गद्दारों के लिए ,जिस थाली में खा रहे थे उसी में छेद कर रहे थे ।
भटके हुए प्राणी कुछ पैसों के लालच और गलत शिक्षा के कारण भटके हुए थे ये हिंसक युवा .....
जब नोटों का लालच दिखाया जाता है ,तब बड़े- बड़ों का ईमान डोल जाता है ।
और जब पापी पेट का सवाल हो तो ...
अपना पेट तो छोड़ो बच्चों की जरूरतों की खातिर ।
अगले ही दिन टेलीविजन पर आज कुछ उपद्रवियों ने किसी पुलिस चौकी के समीप पथराव किया ,
फिर एक और ख़बर उपद्रव की बड़ी खबरें शहर में जगह -जगह हिंसा पथराव,कई लोग घायल .....
लगातार कई दिनों से हिंसा की घटनाएं चल रही थीं अब्बा जान मन ही मन बहुत परेशान थे कुछ कर भी नहीं पा रहे थे । आखिर अपने ही सगों के खिलाफ आवाज उठान इतना आसान नहीं था ,लेकिन अब्बा जान का जमीर इस बात की गवाही नहीं दे रहा था ।
शहर के कई इलाके नफरत की आग में झुलस रहे थे ।
अब्बा जान क्योंकि लल्लन के पड़ोसी मित्र थे ,और उम्र में भी बड़े तो सब उन्हें अपने अब्बा सामान ही समझते थे ,लेकिन सुनता कौन था उनकी ।
बस अब और नहीं अब्बा जान की आत्मा उन्हें धिक्कार रही थी ,हर अगले दिन कौन सी वारदात होनी है उन्हें ख़बर होती ,माना की वो उस वारदात का हिस्सा नहीं थे और ना ही चाहते थे परन्तु हिंसा
या किसी वारदात की खबर होना और कुछ ना कर पाना यह भी किसी हिंसा से कम नहीं था ।
अब्बा जान स्वयं को दोषी मानने लगे थे ,अल्लाह तो सब जानता है ,क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा का पाठ कभी नहीं पढाता ।
अब्बा जान जब आल्लाह से मुलाकात होगी तो दोषी मैं भी ठहराया जाऊंगा ।
अब्बा जान नहीं मुझे कुछ करना होगा कैसे रौंकू इस उपद्रव की गन्दगी को ....
अब्बा जान कश्मकश में थे उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था, तभी अब्बा जान अचानक कहीं चले गए ।
पूरी रात बीत गई थी अब्बा जान घर नहीं पहुंचे थे घर वालों को चिंता हो रही थी ,आखिर अब्बा जान किधर गए ,कई जगहों से पता लगाया परंतु अब्बा जान का कुछ भी पता नहीं चल रहा था ।
इधर दंगाइयों का उपद्रव सिर चड़ कर बोल रहा था ,शहर में आगजनी की वारदातें भी बड़ रही थीं ।
पुलिस फोर्स भी इन दंगों पर काबू नहीं कर पा रही थी ।
आखिर बढते हुए दंगे जान- माल का भारी नुकसान । अगले दिन ही समाचार सुनने को मिला की सरकार ने दंगा पीड़ित इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया है । शहर के हालात दो -चार दिन सामान्य होने लगे थे ।
थोड़े दिनों बाद छब्बीस जनवरी थी ।
आज अब्बा जान अच्छे से तैयार होकर कहां चले लल्लन ने व्यंग कसते हुए कहा ।
गले में सम्मान प्रतीक मेडल और हाथ में राष्ट्रपति सम्मान का प्रमाण पत्र लिए अब्बा जान अपनी गली से अपने घर के लिए जा रहे थे अब्बा जान की चाल में सवभिमान की साफ झलक रहा था ।
गली के और घर के लोग बाहर खड़े मन ही मन अब्बा जान का स्वागत कर रहे थे ,खुश थे की अब्बा जान ने कुछ बेहतरीन काम किया है जो आज उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार मिला है ।
अपने घर की चौखट पर अभी अब्बा जान ने कदम बढाया ही था की अचानक जोर की आवाज हुई ,अब्बा जान की पीठ लहूलुहान थी ,सब लोग अब्बा जान कि तरफ दौड़े , अब्बा जान ने आखिरी सांसे लेते हुए ,वंदेमातरम कहते हुए अपने प्राण छोड़ दिए और सबकी आंखें नम हो गईं ।
*मैं प्रकृति अत्यंत दिलदार हूं मैं *
*मैं प्रकृति अत्यंत दिलदार हूं मैं*
प्रकृति प्रदत अमिय
जीवन का सार हूं मैं
स्वच्छंद निर्मल जलधार हूं मैं
हां मैं प्रकृति, देवस्थान अनन्त
निस्वार्थ सेवा की रसधार हूं मैं।
मैं प्रकृति बहुत दिलदार हूं मैं
अन्न, कंद - मंद फल, फूल का भंडार हूं मैं।
ममत्व का सरस-सरल अद्भुत, संसार हूं मैं
पूज्य धरती माता, उठाती दुनियां का भार हूं मैं।
उस पर भी सहती अत्याचार हूं मैं
मैं वसुंधरा मुझ पर ही बनते सपनों के महल
और पाती खंजर से वार हूं मैं
मेरे द्वारा ही पोषित , मैं ही पालना
मैं प्रकृति प्राणियों का संसार हूं मैं
मैं प्रकृति प्राणियों से समृद्ध,
प्राणियों से ही संसार का अस्तित्व....
प्रकृति प्रदत अमिय
जीवन का सार हूं मैं
स्वच्छंद निर्मल जलधार हूं मैं
हां मैं प्रकृति, देवस्थान अनन्त
निस्वार्थ सेवा की रसधार हूं मैं।
मैं प्रकृति बहुत दिलदार हूं मैं
अन्न, कंद - मंद फल, फूल का भंडार हूं मैं।
ममत्व का सरस-सरल अद्भुत, संसार हूं मैं
पूज्य धरती माता, उठाती दुनियां का भार हूं मैं।
उस पर भी सहती अत्याचार हूं मैं
मैं वसुंधरा मुझ पर ही बनते सपनों के महल
और पाती खंजर से वार हूं मैं
मेरे द्वारा ही पोषित , मैं ही पालना
मैं प्रकृति प्राणियों का संसार हूं मैं
मैं प्रकृति प्राणियों से समृद्ध,
प्राणियों से ही संसार का अस्तित्व....
*मेरी भूमिका *
**हम महिलाओं की भूमिका पर्दे के पीछे के सच्चे और अथक
पुरूषाथ का परिदृश्य होती है **
समाज की नींव ,संस्कारों की उर्वरा
विचारों की समृद्धि मेरे द्वारा ही रोपी जाती है
मैं एक नारी हूं ,जो अबोध को सुबोध बनाती हूं
एक स्वस्थ शिशु की पालना में अपना सर्वस्व लुटाती हूं
मैं एक नारी ही हूं जो मकान को घर बनाती हूं
सकारात्मक ऊर्जा से मनुष्यों के मन मस्तिष्क को शुभ भावनाओं से पोषित करती हूं ,संस्कारों के बीज अंकुरित कर समृद्ध समाज की नींव रखने की पहल करती हूं *
*हम नारी है *
हमारी भूमिकाएं अदृश्य हैं
परंतु नींव की बुनियाद हम ही होती है
समृद्ध समाज की कर्णधार भी हम ही होती हैं
समाज की तरक्की और उन्नति के सूचक
की प्रथम भूमिका हम महिलाओं की होती है
दुर्गा है , काली हैं,अन्नपूर्णा है सरस्वती हैं
फिर भी सहनशक्ति और प्रेम का सागर हैं
हम महिलाएं क्या करती हैं कह कर भी ,
समाज की नींव में मील का पत्थर बनकर खड़ी रहती हैं
कांधो पर समृद्ध समाज की नींव का भार लिए स हन शक्ति की अद्भुत मिसाल होती हैं।
नींव से छेड़छाड़ समाज के पतन का कारण बनती है।
नींव हिलती है तो सारी सृष्टि हिल जाती है
हम महिलाओं की भूमिका पर्दे के पीछे के सच्चे और अथक
पुरूषाथ का परिदृश्य होती है ।
पुरूषाथ का परिदृश्य होती है **
समाज की नींव ,संस्कारों की उर्वरा
विचारों की समृद्धि मेरे द्वारा ही रोपी जाती है
मैं एक नारी हूं ,जो अबोध को सुबोध बनाती हूं
एक स्वस्थ शिशु की पालना में अपना सर्वस्व लुटाती हूं
मैं एक नारी ही हूं जो मकान को घर बनाती हूं
सकारात्मक ऊर्जा से मनुष्यों के मन मस्तिष्क को शुभ भावनाओं से पोषित करती हूं ,संस्कारों के बीज अंकुरित कर समृद्ध समाज की नींव रखने की पहल करती हूं *
*हम नारी है *
हमारी भूमिकाएं अदृश्य हैं
परंतु नींव की बुनियाद हम ही होती है
समृद्ध समाज की कर्णधार भी हम ही होती हैं
समाज की तरक्की और उन्नति के सूचक
की प्रथम भूमिका हम महिलाओं की होती है
दुर्गा है , काली हैं,अन्नपूर्णा है सरस्वती हैं
फिर भी सहनशक्ति और प्रेम का सागर हैं
हम महिलाएं क्या करती हैं कह कर भी ,
समाज की नींव में मील का पत्थर बनकर खड़ी रहती हैं
कांधो पर समृद्ध समाज की नींव का भार लिए स हन शक्ति की अद्भुत मिसाल होती हैं।
नींव से छेड़छाड़ समाज के पतन का कारण बनती है।
नींव हिलती है तो सारी सृष्टि हिल जाती है
हम महिलाओं की भूमिका पर्दे के पीछे के सच्चे और अथक
पुरूषाथ का परिदृश्य होती है ।
* मुख्य भूमिका *
महिलाएं समाज की नींव हैं ,महिलाओं की भूमिका के बिना समाज का कोई औचित्य ही नहीं ,इसलिए नींव पर मत प्रहार करना ,प्रहार किया तो इसकी तह में समा जाओगे मिट जाओगे ढेः जाओगे ।
* महिलाओं को महिला दिवस की बधाई हो
,महिलाओं को सम्मान देनें की बात हुई यह भी अपने आप में बहुत बड़ी बात है ।
चलिए कुछ सोचा तो गया महिलाओं के बारे में की महिलाओं भी कुछ कर सकती हैं ।
बस आज थोड़ा सा व्यंग करने को मन कर रहा है ,..किन्तु व्यंग में भी सच ही है ।
अरे भई क्यों ? महिलाओं के लिए सिर्फ एक दिन का सम्मान साल के 365 दिन में से एक दिन महलिआओं को सम्मान दिया जाएगा , और बाकी के364 दिन किस को सम्मान दिया जाएगा ...... चलो छोडिए ।
महिलाओं को किसी विशेष दिवस की आवयश्कता नहीं ..... महिला दिवस हर दिन होता है हर रोज होता है और प्रतिपल होता है ,और सदा सर्वदा होता रहेगा ।
हां अगर सम्मान की बात है तो हम महिलाओं को एक दिन का ही सम्मान ... अरे वाह ! ऐसा नहीं चलेगा
महिलाओं को सम्मान देना है तो जीवन पर्यन्त दो।
महिलाओं को किसी विशेष दिवस को देनेकी आवयश्कता कैसे और क्यों पड़ी?
ओहो अच्छा तो बात यह है कि पुरुष प्रधान समाज को जब एहसास होने लगा की महिलाओं को सम्मान दिए बिना जीवन में तरक्की संभव नहीं है, उनके घर,परिवार और कुटुम्ब ,समाज ,और देश की नींव को पालित पोषित और उनके शिशुओं में सभ्य संस्कारों के गुण रोपित करने वाली महिलाएं ही हैं तब महिलाओं को सम्मान देने की आवश्यकता महसूस हुई ।
अब आप सब बताईए , अगर इस दुनियां में सिर्फ पुरुष ही रह जाएं तो समाज की स्थिति कैसी होगी क्या समाज आगे बड़ पाएगा ,ऐसा ही महिलाओं के साथ भी है ।
जब इस दुनियां की नींव के दो स्तम्भ ,महिला और पुरुष हैं तो किसी एक भी स्तम्भ के कमजोर होने से या ना होने पर समाज का समाज रहना ही सम्भव नहीं तो फिर क्यों?
महिलाओं और पुरुषों को दोनों का समानता का ,यही अधिकार हुआ ना।
सिर्फ कहना नहीं है इसे जीवन में अपनाना भी है ,तभी समानता आएगी
किसी एक में अगर एक ताकत है ,तो दूसरे में कुछ और विशेषता होगी और यहीं प्रकृति का नियम भी है ।
चलिए फिर आज से एक दिन पुरुष दिवस के रूप में भी मनाया जायेगा दिन पुरुष स्वयं तय कर लेंगे।
महिलाएं अपने नन्हे शिशुओं में बाल्यकाल से सभ्य ,सुसंस्कृत आचरण , समाजिक एवं व्यवहारिक ज्ञान की शिक्षा देकर समाज में जीने के काबिल बनाती है महिलाएं ही अपने बच्चों को शारीरिक और मानसिक रूप से इतना परिपक्व बनाती हैं की जीवन में कठिन से कठिन परिस्थितियों का धैर्य पूर्वक सामना कर सकें।
साल में 365 दिन होते हैं ,और 365 दिन महिलाओं के लिए होते है ।
बाकी दिन महिलाएं कहां जाती है ?
यहीं रहती हैं ना इस धरती पर ।
क्या यह धरती सिर्फ पुरुषों से चलती है ? नहीं ना
महिला और पुरुष यह धरती ना तो सिर्फ पुरुषों से ही चल सकती है ,और नए ही सिर्फ महिलाओं से ।
जब धरती में समाज की स्थापना के लिए स्त्री और पुरुष दोनों की आवश्यकता है तो सिर्फ ,महिला दिवस ही क्यों?
* महिलाओं को महिला दिवस की बधाई हो
,महिलाओं को सम्मान देनें की बात हुई यह भी अपने आप में बहुत बड़ी बात है ।
चलिए कुछ सोचा तो गया महिलाओं के बारे में की महिलाओं भी कुछ कर सकती हैं ।
बस आज थोड़ा सा व्यंग करने को मन कर रहा है ,..किन्तु व्यंग में भी सच ही है ।
अरे भई क्यों ? महिलाओं के लिए सिर्फ एक दिन का सम्मान साल के 365 दिन में से एक दिन महलिआओं को सम्मान दिया जाएगा , और बाकी के364 दिन किस को सम्मान दिया जाएगा ...... चलो छोडिए ।
महिलाओं को किसी विशेष दिवस की आवयश्कता नहीं ..... महिला दिवस हर दिन होता है हर रोज होता है और प्रतिपल होता है ,और सदा सर्वदा होता रहेगा ।
हां अगर सम्मान की बात है तो हम महिलाओं को एक दिन का ही सम्मान ... अरे वाह ! ऐसा नहीं चलेगा
महिलाओं को सम्मान देना है तो जीवन पर्यन्त दो।
महिलाओं को किसी विशेष दिवस को देनेकी आवयश्कता कैसे और क्यों पड़ी?
ओहो अच्छा तो बात यह है कि पुरुष प्रधान समाज को जब एहसास होने लगा की महिलाओं को सम्मान दिए बिना जीवन में तरक्की संभव नहीं है, उनके घर,परिवार और कुटुम्ब ,समाज ,और देश की नींव को पालित पोषित और उनके शिशुओं में सभ्य संस्कारों के गुण रोपित करने वाली महिलाएं ही हैं तब महिलाओं को सम्मान देने की आवश्यकता महसूस हुई ।
अब आप सब बताईए , अगर इस दुनियां में सिर्फ पुरुष ही रह जाएं तो समाज की स्थिति कैसी होगी क्या समाज आगे बड़ पाएगा ,ऐसा ही महिलाओं के साथ भी है ।
जब इस दुनियां की नींव के दो स्तम्भ ,महिला और पुरुष हैं तो किसी एक भी स्तम्भ के कमजोर होने से या ना होने पर समाज का समाज रहना ही सम्भव नहीं तो फिर क्यों?
महिलाओं और पुरुषों को दोनों का समानता का ,यही अधिकार हुआ ना।
सिर्फ कहना नहीं है इसे जीवन में अपनाना भी है ,तभी समानता आएगी
किसी एक में अगर एक ताकत है ,तो दूसरे में कुछ और विशेषता होगी और यहीं प्रकृति का नियम भी है ।
चलिए फिर आज से एक दिन पुरुष दिवस के रूप में भी मनाया जायेगा दिन पुरुष स्वयं तय कर लेंगे।
महिलाएं अपने नन्हे शिशुओं में बाल्यकाल से सभ्य ,सुसंस्कृत आचरण , समाजिक एवं व्यवहारिक ज्ञान की शिक्षा देकर समाज में जीने के काबिल बनाती है महिलाएं ही अपने बच्चों को शारीरिक और मानसिक रूप से इतना परिपक्व बनाती हैं की जीवन में कठिन से कठिन परिस्थितियों का धैर्य पूर्वक सामना कर सकें।
साल में 365 दिन होते हैं ,और 365 दिन महिलाओं के लिए होते है ।
बाकी दिन महिलाएं कहां जाती है ?
यहीं रहती हैं ना इस धरती पर ।
क्या यह धरती सिर्फ पुरुषों से चलती है ? नहीं ना
महिला और पुरुष यह धरती ना तो सिर्फ पुरुषों से ही चल सकती है ,और नए ही सिर्फ महिलाओं से ।
जब धरती में समाज की स्थापना के लिए स्त्री और पुरुष दोनों की आवश्यकता है तो सिर्फ ,महिला दिवस ही क्यों?
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