उद्देश्य मेरा निस्वार्थ प्रेम का पौधारोपण
अपनत्व का गुण मेरे स्वभाव में
शायद इसी लिए नहीं रहता अभाव में
सर्वप्रथम खड़ा हूं पंक्ति में
समाज हित की पौध लिए
श्रद्धा के पुष्प लिए भावों की
ज्योत जलाएं चाहूं फैले च हूं और
उजियारा निस्वार्थ दया धर्म
का बहता दरिया हूं बहता हूं निरंतर
आगे की ओर बढ़ता सदा निर्मलता
का संदेश देता भेदभाव का सम्पूर्ण
मल किनारे लगाता सर्व जन
हित में उपयोग होता सर्वप्रथम खड़ा हूं पंक्ति में
निर्मलता का गागर भरता ।